विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1948 में बनाए गए ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स एंड ट्रेड (GATT)’ के स्थान पर 1 जनवरी 1995 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना की गई थी। इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक सुधार बताया गया है। WTO की शुरूआत के बाद विवाद निस्तारण की नई प्रक्रिया शुरू हुई। परंतु वर्तमान में मुक्त व्यापार का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है, एवं WTO की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है।
वर्तमान परिदृश्य –
सेवा क्षेत्र का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, और इसमें आगे और वृद्धि होने की उम्मीद है। वैश्वीकरण का अगला दौर सेवा व्यापार से उत्पन्न होगा, जिसे वैश्वीकरण 4.0 का नाम दिया जाएगा।
- आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सेवा व्यापार में वृद्धि को लेकर चौंका सकती है। मौजूदा वैश्विक व्यापार व्यवस्था में संरक्षणवाद बढ़ रहा है। कोविड तथा यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रंखला को झटका दिया है।
- अपने देश में तथा मित्र देशों में उत्पादन करने के प्रयास किए जा रहे हैं, खासतौर पर अहम रणनीतिक क्षेत्रों, मसलन सेमीकंडक्टर चिप आदि के मामले में।
- WTO ने विवाद निपटाने के लिए अधिक औपचारिक प्रणाली पेश की, जिसमें विशेषज्ञों की एक अपील संस्था शामिल है जो विवादों पर निर्णय करती है। लेकिन अब वह व्यवस्था सही नहीं रही।
- अमेरिका ने अपील संस्था में नए सदस्यों की नियुक्ति को रोक दिया है, जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है।
- बहुपक्षीय समझौतों पर प्रगति नहीं हो पा रही है। ई-कॉमर्स निवेश, संरक्षण और पर्यावरण तथा श्रम मानकों को लेकर भी कोई हल नहीं निकल पा रहा है।
- यूरोपीय संघ की कार्बन बॉर्डर समायोजन प्रणाली तथा अमेरिका के उच्च टैरिफ के कारण बढ़ते संरक्षणवाद की आशंका के बीच और चीन के सब्सिडी आधारित निर्यात मॉडल पर काम करते रहने के कारण व्यापार नियमों पर वैश्विक सहमति बन पाने की संभावना बहुत कम है।
वैश्विक समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद WTO बड़ी कारोबारी शक्तियों के अनुकूल नहीं रह गया है, और अगर कुछ नाटकीय नहीं घटित होता है, तो यह अपने अंतिम पड़ाव पर है।
भारत के लिए आगे की राह –
- भारत को मुक्त व्यापार समझौतों पर अधिक विश्वास करना होगा।
- UK, EU और USA के साथ समझौते जरूरी होंगे।
- आरसेप में शामिल होना भी एक विकल्प है, लेकिन तब भारतीय बाजार चीन के आयात से पट जाएगा।
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