27-05-2024 (Important News Clippings)

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27 May 2024
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Date: 27-05-24

Tragedy Foretold

Rajkot, Delhi fires point to familiar stories of official negligence that allow shady businesses to flout norms

Editorial

A horrifying weekend – fires killing at least 9 children along with 28 adults and counting in a Rajkot gaming/recreational set-up, and 7 newborns in a private children’s hospital in Delhi. Post-tragedy,Indian authorities are all too efficient at making arrests, filing FIRs, hand wringing, chest-beating, announcing compensation –while courts do their thing. In a few months’ time, little would have changed and in all likelihood, it’ll be business as usual. Owner of the Rajkot facility that operated in tin sheds has been arrested for culpable homicide, as it should be. The tragedy was one waiting to happen.

Loophole in urban plan | But the Rajkot facility’s owner is not alone to blame. As TOI reported, a glaring loophole in Gujarat’s development regulations (CGDCR) allowed illegal recreational activities to flourish. Implemented in 2017 to regulate urban development, CGDCR has zero construction and safety guidelines for recreational facilities, which private players have exploited, erecting temporary structures for gaming facilities, without any approvals. Here then, it is policy itself that poses a significant threat to public safety, especially for children. Per reports, numerous such establishments have cropped up, even in bigger cities like Ahmedabad and Gandhinagar. Most are functioning without mandatory fire safety or town planning sanctions. Privately owned plots hosting such activities often sidestep regulatory scrutiny altogether. On the Rajkot premises, 2,000 litres of petrol were stored onsite along with numerous tyres.

Fires & accidents routine | Oxygen cylinders exploding triggering fatal fires, as was the case in the Delhi hospital yesterday, are nothing new for commercial premises, even though their storage is supposed to be strictly regulated. The Mumbai billboard tragedy is a recent case of criminal negligence. It is when authorities turn away from brazen flouting of norms that fatal accidents occur. In fire after fire or bridge collapses – Morbi (135 deaths), Kollam temple fire (109 deaths, 2016), Varanasi flyover collapse (at least 18 deaths, 2018), or Delhi’s Mundka fire (27 deaths, 2022) – at fault is official oversight, lax enforcement of safety norms and audits, and lack of accountability for low-quality construction and maintenance across India.

Pin the blame | Experts have long cautioned against this pan India disregard for safety regulations. As court takes note, and investigation proceeds, it is the system of ignored rules, avaricious bureaucrats and crooked businessmen that must be in the dock. Nothing will lower the probability of future tragedies more than swift and exemplary punishment of the powerful.


Date: 27-05-24

समृद्ध और सशक्त भारत की रूपरेखा

रमेश कुमार दुबे, ( लेखक एमएसएमई मंत्रालय के निर्यात संवर्धन एवं विश्व व्यापार संगठन प्रभाग में अधिकारी हैं )

सामान्यतः लोकसभा चुनाव से पहले सरकारें जनादेश को लेकर आशंकित रहती हैं, लेकिन मोदी सरकार इन सबसे अलग नजर आ रही है। तभी तो लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता करते हुए अपने मंत्रियों से नई सरकार के लिए पहले 100 दिन और पांच साल के लिए रोडमैप तैयार करने के लिए कहा। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने विकसित भारत-2047 के विजन दस्तावेज पर विचार-विमर्श किया था। तब प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं न छोटा सोचता हूं, न मामूली सपने देखता हूं और न ही मामूली संकल्प करता हूं, क्योंकि 2047 में मुझे देश को विकसित भारत के रूप में देखना है। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी 25 वर्ष का रोडमैप बनाकर आगे बढ़ रहे हैं और इसके केंद्र में है छोटे शहरों का विकास।

इसका आभास संकल्प पत्र के नाम से जारी भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र से भी होता है। प्रधानमंत्री मोदी का भारत को विकसित देश बनाने का यह संकल्प हवा-हवाई नहीं है। इसकी सफलता के ठोस जमीनी आधार हैं। पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार में चार करोड़ गरीबों को घर बनाकर दिए गए हैं। सरकार 83 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दे रही है। नल जल योजना के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीणों तक पाइपलाइन से पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। देश के हर घर में स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत अब तक 10 करोड़ से अधिक रसोई गैस के कनेक्शन दिए जा चुके हैं। इसी तरह स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में करोड़ों शौचालय बनाए गए हैं, जिससे देश खुले में शौच की कुप्रथा से मुक्त हो रहा है।

गरीबी उन्मूलन की दिशा में सरकार की जनधन-आधार-मोबाइल त्रयी के जरिये विकसित हुए बिचौलिया मुक्त धन हस्तांतरण नेटवर्क की मुख्य भूमिका रही है। आज जनधन बैंक खातों का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं की सब्सिडी, छात्रवृत्ति, पेंशन, आपदा सहायता जैसी अनगिनत योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाने में किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने विभिन्न योजनाओं के 7.16 लाख करोड़ रुपये लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किए, जो 2013-14 में हस्तांतरित राशि (7,367 करोड़ रुपये) की तुलना में 100 गुना ज्यादा है जब प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी) शुरू किया गया था। आज 53 केंद्रीय मंत्रालयों की 320 योजनाओं के लाभ डीबीटी के तहत सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जा रहे हैं। इसी तरह महंगे इलाज के कारण जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अस्पतालों तक नहीं जा पाता था। लाखों परिवारों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता था जिससे उनकी जमीन-जायदाद तक बिक जाती थी। इस संकट को आयुष्मान भारत योजना के तहत मिल रहे मुफ्त इलाज ने खत्म कर दिया।

भारत विकसित देश बने, इसके लिए गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति भी जरूरी है। इसी के तहत पहले चरण में देश के हर गांव तक बिजली पहुंचाने के साथ-साथ आपूर्ति में सुधार किया गया। इसी का परिणाम है कि आज शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन औसतन 23.5 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 20.5 घंटे बिजली आपूर्ति की जा रही है। अब सरकार देश के हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने की कवायद में जुटी है। इसके लिए मार्च 2025 की समयसीमा तय की गई है। बिजली क्षेत्र की भांति ही सरकार रेलवे और सड़क क्षेत्र का भी कायाकल्प कर रही है, ताकि देश में विश्वस्तरीय आधारभूत ढांचा बने। विकास में बाधा बने सैकड़ों कानूनों को पहले ही निरस्त किया जा चुका है।

मोदी सरकार की योजनाओं के पारदर्शी क्रियान्वयन का नतीजा गरीबी उन्मूलन के रूप में सामने आया है। वित्त वर्ष 2013-14 से 2022-23 के बीच देश में बहुआयामी गरीबी 29.17 प्रतिशत से घटकर 11.28 प्रतिशत रह गई। इस दौरान 24.8 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। शहरों की तुलना में ग्रामीण आबादी का अधिक हिस्सा गरीबी रेखा से ऊपर उठा है। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश मुख्य राज्य रहे हैं। गरीबी घटने की इस रफ्तार को देखें तो जल्दी ही वह एक अंक में रह जाएगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) गरीबी की एक परिभाषा का उपयोग करता है जिसे बहुआयामी गरीबी सूचकांक कहा जाता है। यह सूचकांक शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर के 10 संकेतकों को शामिल करता है। भारत में नीति आयोग ने इसके अलावा मातृत्व स्वास्थ्य और बैंक खाते को भी शामिल कर लिया है। इस प्रकार भारत में 12 संकेतकों के आधार पर बहुआयामी गरीबी का आकलन किया जाता है। इसमें बहुआयामी गरीबी को शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार की कसौटी पर मापा जाता है। सरलता से देखें तो एक व्यक्ति जो इन सभी मोर्चों पर मजबूत हुआ हो उसे ही बहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने के तौर पर गिना गया है। अब तक देश में गरीबी आकलन के आंकड़े प्रति व्यक्ति आय तक सिमटे रहे हैं। इससे गरीबी उन्मूलन की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती थी। इसका कारण है कि आय के अनुमान हासिल करना कठिन है।

कुल मिलाकर मोदी सरकार के इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि भारत दुनिया की 10वीं से पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गारंटी दे रहे हैं कि उनकी तीसरी पारी में भारत दुनिया की तीन शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।


Date: 27-05-24

सही मायने में अतुल्य हो भारत

संपादकीय

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के हर छह माह पर जारी होने वाले नवीनतम यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (TTDI) में भारत का 39वें स्थान पर आना यह दिखाता है कि इस ऊंची संभावना वाले कारोबारी अवसर के दोहन में हमारा देश कमतर प्रदर्शन कर रहा है।

करीब 119 देशों पर किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत पूरे दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा यात्रा और पर्यटन क्षेत्र है लेकिन इसने टीटीडीआई में किसी शीर्ष निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था की तरह प्रदर्शन किया है।

वैसे तो साल 2019 के अध्ययन में भी भारत काफी नीचे 54वें स्थान पर था, लेकिन उससे बिल्कुल तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि तब से अब सूचकांक के मापदंड बदल गए हैं। हालांकि कई आंकड़े यह बताते हैं कि भारत अब कोरोना महामारी के दौर से उबर चुका है।

उदाहरण के लिए, भारत तीन संसाधन मानदंडों पर शीर्ष दस में स्कोर करने वाले केवल तीन देशों में से एक है – प्राकृतिक (6), सांस्कृतिक (9) और कारोबार, चिकित्सा और शिक्षा के लिए यात्रा (9)। इसके अलावा उत्साहनजक बात यह भी है कि कीमत प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में भारत 18वें, हवाई यातायात की प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में 26वें और जमीनी एवं बंदरगाह बुनियादी ढांचे के मामले में 25वें स्थान पर है।

अध्ययन में इस बात पर भी गौर किया गया है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, पर्यावरण सततता और पर्यटन सामाजिक-आर्थिक प्रभाव जैसे कई प्रमुख कमियों को दूर करने के मामले में भी प्रगति हो रही है।

कुल मिलाकर बनी तस्वीर से यह संकेत मिलता है कि प्राकृतिक सौंदर्य की समृद्ध विविधता और जीवंत बहु-सांस्कृतिकवाद का आनंद लेने वाले देश में यात्रा और पर्यटन से रोजगार की भारी संभावनाओं को देखते हुए भारत काफी बेहतर कर सकता है।

इसके बावजूद साल 2021 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटक आगमन में भारत की हिस्सेदारी महज 1.54 फीसदी रही। वैसे तो साल 2011 के करीब 0.63 फीसदी के आंकड़े की तुलना में यह बेहतर है, लेकिन यह तथ्य ध्यान रखना होगा कि विदेशी पर्यटक आगमन में बड़ी संख्या प्रवासी भारतीयों की है।

यही नहीं, इस तथ्य को देखते हुए भी ऐसा कहा जा सकता है कि भारत बहुत फायदा नहीं उठा पाया है, कि दुनिया के दस सबसे ज्यादा घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों वाले देश चीन में इस दौरान लंबे समय तक लॉकडाउन लगा हुआ था।

उदाहरण के लिए नवीनतम टीटीडीआई में चीन का आठवां स्थान है, जबकि उसने अपना सख्त लॉकडाउन जनवरी 2023 में जाकर हटाया है। यह गौर करने की बात है कि दुनिया के सभी शीर्ष दस पर्यटन गंतव्य ऊंची आय वाली अर्थव्यवस्थाएं हैं और ज्यादातर यूरोप में हैं।

वैसे तो इन गंतव्यों तक पर्यटकों का आना सुनिश्चित हो, इसके लिए उनके शहरों और देहाती इलाकों की सुंदरता और उनके पेशेवर तरीके से तैयार किए गए संग्रहालयों की जबरदस्त भूमिका है, लेकिन सबसे अहम अंतर है वहां उपलब्ध बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता।

फ्रांस हो, जापान, चीन या इटली, साधारण से साधारण पर्यटक के लिए भी वहां शीर्ष गुणवत्ता के स्थानीय सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का लाभ उठाना संभव होता है-बसें, ट्रेन, ट्राम आदि- और वहां किफायती कीमत पर ठहरने के स्वच्छ और सुरक्षित विकल्प भी उपलब्ध हैं।

भारत में अगर दो शहरों में मेट्रो रेल सेवा को सम्मानजनक अपवाद मान लें, तो इंटरसिटी बस और ट्रेन सेवाओं जैसे सार्वजनिक परिवहन उस तरह की विश्वस्तरीय गुणवत्ता से काफी दूर हैं, जो कि अब भारतीय हवाई अड्डों और हवाई यात्रा की विशेषता बन चुकी है।

पश्चिम के विपरीत, जहां सभी वर्गों के नागरिक सार्वजनिक यातायात सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, भारत के अमीर और उच्च मध्य वर्ग के लोग आमतौर पर अपने देश में ऐसी सेवाओं के इस्तेमाल से बचते हैं। ऐसे नामुनासिब वजहों से भारत की मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर होती है। इन सबका नतीजा यह है कि भारत पर्यटन के मामले में अपनी क्षमता से कमतर प्रदर्शन कर रहा है।

पर्यटन उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 6 फीसदी का योगदान करता है और लेकिन इसमें सिर्फ 8 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से रोजगार मिला हुआ है।

पिछली जी20 (G20) बैठकों के एक हिस्से के तहत जारी धर्मशाला घोषणापत्र में सरकार ने साल 2047 तक पर्यटन से जीडीपी में 1 लाख करोड़ रुपये की बढ़त करने और भारत को एक प्रमुख पर्यटन गंतव्य बनाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। तो भारत को अपने सभी नागरिकों के लिए स्वच्छ और अधिक रहने योग्य बनाने की बुनियादी बातों पर काम कर इस मामले में अच्छी शुरुआत की जा सकती है।


Date: 27-05-24

कम मतदान चिंता की बात

संपादकीय

भीषण गर्मी और पश्चिम बंगाल में कुछ केंद्रों पर परस्पर विरोधी राय रखने वालों के बीच झड़प के बीच शनिवार को लोक सभा चुनाव के छठे चरण, जिसके तहत 8 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 58 सीटों पर मतदान हुआ, में औसतन 61.22 फीसद मत पड़े। दिल्ली की सातों संसदीय सीटों के लिए मतदान 58.52 फीसद पर सिमट गया। पिछली बार यह 60.52 फीसद था। चुनाव आयोग के अनुसार सुबह सात से शाम छह बजे तक चले मतदान में पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 78.19 फीसद वोट डाले गए जबकि उत्तर प्रदेश में 54.03 फीसद मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। छठे चरण के मतदान के साथ ही लोक सभा की 486 सीटों के लिए चुनाव पूरा हो चुका है। अब आखिरी और सातवे चरण में एक जून को 57 सीटों पर मतदान होगा और इसी के साथ लोक सभा की सभी सीटों के लिए मतदान पूरा हो जाएगा। परिणाम 4 जून को आएंगे। बहरहाल, लोक सभा चुनाव 2024 अपनी शुरुआत से ही कम मतदान प्रतिशत से चिंता में डाले हुए है। लोगों का अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने में इस प्रकार इस प्रकार से कम दिलचस्पी लेना यकीनन मजबूत लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। जीवंत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि मतदाता पूरी सक्रियता और तन्मयता से चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बने, लेकिन पहले चरण से ही देखने में आया कि मतदान के रोज अनेक मतदाता अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने निकल पड़े। कुछ कहते सुने गए कि उनके परिवार के मत न भी पड़े तो क्या फर्क पड़ेगा। जीतने वाली पार्टी को जीत ही जाएगी। बताया जा रहा है कि भीषण गर्मी होने के कारण भी मतदाता वोट करने घर से नहीं निकल रहे । चुनाव आयोग ने पहले चरण के कम वोट प्रतिशत रहने पर अपनी कोशिशें और तेज कर दीं ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाता वोट करने से घरों से निकलें, लेकिन मतदाता की उदासीनता टूटने में नहीं आ रही। दिल्ली जैसे राजधानी शहर, जहां के निवासी बनिस्बत पढ़े-लिखे और जागरूक माने जाते हैं, में भी मत प्रतिशत पिछली दफा से भी कम रह जाना वाकई चिंता की बात है। दरअसल, एक तो चुनाव में कोई लहर नहीं बन सकी है, और चुनाव पूरी तरह स्थानीय मुद्दों पर आ सिमटा है, मगर कम मतदान को किसी भी तर्क से वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है। कम मतदान चिंता की बात है।


Date: 27-05-24

गरमी और आगजनी

संपादकीय

ताप का असर चहुंओर दिखने लगा है। नौतपा के दिन शुरू हो गए हैं। माना जाता है कि सूर्य इन नौ दिनों में पृथ्वी के सबसे करीब आ जाता है। यह क्रम आगामी 2 जून तक चलेगा, पर जून के महीने में उत्तर भारत में गरमी से राहत की उम्मीद नहीं है। आगजनी की घटनाएं अचानक से बढ़ गई हैं। देश के अनेक शहरों में आगजनी के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। इसी कड़ी में गुजरात के राजकोट में शनिवार को बहुत दुखद हादसा हुआ है। एक गेमिंग जोन में भीषण आग लगने से कई बच्चों समेत 30 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। आग लगने का कारण जांच में चाहे जो भी सामने आए, पर इसमें मौसमी तापमान की बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घटना पर गहरा दुख जताया है। गुजरात सरकार की ओर से मृतकों के परिजन को चार लाख और घायलों को 50 हजार रुपये देने की घोषणा ही पर्याप्त नहीं है, जो लोग दोषी हैं या जिन लोगों ने आग से बचने के पूरे इंतजाम नहीं रखे थे, उनके प्रति कतई नरमी बरतने की जरूरत नहीं है।

इधर दिल्ली में भी मुंडका इलाके में शनिवार को एक कार एसेसरीज फैक्टरी में ऐसी भीषण आग लगी कि बचाव कार्य के लिए रोबोट का इस्तेमाल करना पड़ा। फायर ब्रिगेड की 26 गाड़ियां भी मिलकर जल्दी आग नहीं बुझा पाईं। यहां भी आग का कारण तुरंत पता नहीं चला है, पर मौसम का असर साफ है। दरअसल, अनेक ऐसे कारखाने हैं, जहां गरमी के दिनों में भी काम को धीमा नहीं किया जाता है। चूंकि इन दिनों व्यावसायिक गतिविधियों में तेजी आई है, इसलिए तमाम कारखाने दिन-रात काम कर रहे हैं और आगजनी जैसी दुर्घटना की आशंका बढ़ जा रही है। क्या ऐसे कारखानों को कम से कम दिन के समय रोका जा सकता है, जहां आगजनी की आशंका ज्यादा है? जहां बचाव के इंतजाम पूरे नहीं हैं, वहां तो विशेष रूप से दिन के समय काम रोक देने में ही भलाई है। ध्यान देने की जरूरत है, आगजनी की घटनाएं नोएडा में भी सामने आई हैं, और बाजारों में भी लोगों को सावधानी से रहना सिखाया जा रहा है। उधर, गुरुवार को ही महाराष्ट्र के डोंबिवली के औद्योगिक क्षेत्र में आग लगने से कम से कम दस लोगों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए। क्या इस रासायनिक कारखाने को भीषण गरमी के समय बिना सुरक्षा इंतजाम के चलाना जरूरी था? दरअसल, ऐसे मामलों में दोषियों को पर्याप्त सजा नहीं मिलती है, इसलिए औद्योगिक क्षेत्रों में आगजनी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।

वास्तव में, भीषण गरमी में आगजनी के इतने ज्यादा मामले हैं कि आप गिनते चले जाएंगे। इसके साथ ही चिंता की बात यह भी है कि बिजली की मांग बहुत बढ़ गई है। बड़े पैमाने पर वातानुकूलित यंत्रों का इस्तेमाल हो रहा है। मिसाल के लिए, दिल्ली में अब बिजली की मांग रिकॉर्ड 8,000 मेगावाट के पार चली जा रही है। नतीजा साफ है, जिस दिन मांग ने रिकॉर्ड तोड़ा, उस दिन राष्ट्रीय राजधानी में आगजनी के अनेक मामले सामने आए। अकेले एक शहर दिल्ली की शिकायतों पर गौर कीजिए, तो मई के पहले 20 दिनों में ही आग लगने की कॉल की संख्या पिछले साल की तुलना में दोगुनी से अधिक, 2,280 तक पहुंच गई। दिल्ली का अनुभव यह बताता है कि आग लगने के पचास प्रतिशत से ज्यादा मामलों में विद्युत संबंधी गड़बड़ी या कोताही ही जिम्मेदार होती है। अत: यह समय घर-घर सावधानी बरतने का है और प्रशासन को भी चौबीस घंटे सचेत रहना चाहिए।