27-02-2020 (Important News Clippings)

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27 Feb 2020
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Date:27-02-20

कारोबारी सुगमता में हुआ सुधार लेकिन बढ़ सकती है असहजता

ए के भट्टाचार्य

हाल के वर्षों में कारोबारी सुगमता सूचकांक में भारत का प्रदर्शन खासा बेहतर रहा है। विश्व बैंक द्वारा अक्टूबर 2019 में तैयार सूचकांक में भारत को 190 देशों की सूची में 63वें स्थान पर रखा गया था। यानी एक वर्ष में भारत ने 14 स्थानों का सुधार किया था। जबकि इससे पिछले वर्ष उसने 23 स्थानों की प्रगति की थी। विश्व बैंक ने 2019 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि बीते कुछ वर्ष के दौरान किए गए सतत कारोबारी सुधारों ने भारत की मदद की है। उसने कहा कि लगातार तीसरे वर्ष भारत शीर्ष 10 सुधारक देशों में शामिल रहा। सूचकांक में भारत की स्थिति बेहतर करने वाले सुधारों में कारोबार शुरू करने के मानक सहज करना, निर्माण परमिट में बेहतरी, सीमा पार व्यापार सहज बनाना और ऋणशोधन के मामले हल करना शामिल है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ क्षेत्र गंभीर चिंता का विषय हैं। मसलन, अनुबंध प्रवर्तन के मामलों में भारत को 190 देशों में 163वां स्थान दिया गया है जबकि परिसंपत्ति पंजीयन में 153वां। बैंक के अनुसार परिसंपत्ति पंजीयन में औसतन 58 दिन और परिसंपत्ति मूल्य का 8 फीसदी व्यय होता है। यह उच्च आय वाले देशों से बहुत ज्यादा है। इसी तरह देश में निचली अदालत में वाणिज्यिक विवाद का मामला निपटने में 1,445 दिन लगते हैं जो विकसित देशों से करीब तीन गुना है। कारोबारी सुगमता सूचकांक में देश के विश्वसनीय प्रदर्शन के साथ यह देखना होगा कि क्या देश का मौजूदा आर्थिक नीति के माहौल से आने वाले वर्षों में और सुधार हो सकता है। हाल के दिनों में कुछ परेशान करने वाली घटनाएं घटी हैं जो कारोबारी सुगमता को प्रभावित कर सकती हैं। देश के दूरसंचार सेवा प्रदाता अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। सरकार उनसे और अधिक राजस्व की मांग कर रही है और न्याय व्यवस्था राजस्व दावे पर निर्णय सुनाने के पहले मौजूदा बाजार ढांचे को पहचानने से इनकार कर रही है।

सरकार और दूरसंचार कंपनियों के बीच समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) का आकलन कई वर्ष पिछड़ गया है। शुरुआत 2003 में हुई थी जब कंपनियों ने कहा था कि एजीआर में केवल दूरसंचार राजस्व शामिल किया जाना चाहिए जबकि सरकार का कहना था कि एजीआर में दूरसंचार और गैरदूरसंचार दोनों तरह के राजस्व शामिल होने चाहिए। एजीआर का आकलन सरकार को चुकता की जाने वाली लाइसेंस फीस के निर्धारण के लिए होना था। सन 1999 में यह एजीआर का 15 फीसदी थी और 2013 में इसे एजीआर का अधिकतम 8 फीसदी कर दिया गया। शुरुआती दौर में अदालती फैसले दूरसंचार कंपनियों के पक्ष में आए। दूसरे शब्दों में अदालत ने सरकार की उच्चतर एजीआर की मांग ठुकरा दी। उस वक्त तक कंपनियों ने दावे का 80 फीसदी चुका दिया था। सरकार ने राशि रिफंड करने के बजाय अपील में न केवल समूची राशि बल्कि ब्याज और जुर्माने की भी मांग की। अपील की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय ने की और सरकार जीत गई। अधिवक्ताओं संजय हेगड़े और प्रांजल किशोर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक आलेख में दलील दी थी कि दूरसंचार कंपनियों से मूलधन के अलावा ब्याज और जुर्माना चुकाने को कहना गलत है क्योंकि निचली अदालत में वे जीत गई थीं। यदि सरकार ने ब्याज और जुर्माने पर जोर नहीं दिया होता तो सबसे बड़ी अदालत के निर्णय पर कंपनियों की प्रतिक्रिया अलग होती।

दूरसंचार कंपनियों से की जा रही 1.3 लाख करोड़ रुपये की कुल मांग का बमुश्किल एक-चौथाई हिस्सा मूल धन है, शेष राशि ब्याज और जुर्माने की है। ऐसा लगता है कि सरकार ने ब्याज और जुर्माने की राशि इसलिए नहीं जाने दी क्योंकि ऐसे निर्णय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नजर में आ जाते हैं और बाद में ऐसे राजनीतिक विवादों को जन्म देते हैं कि निजी दूरसंचार कंपनियों का पक्ष लिया गया। सरकार द्वारा जुर्माने और ब्याज पर जोर देने की एक वजह यह भी है कि उसे अतिरिक्त राजस्व की जरूरत है ताकि राजस्व कमी दूर की जा सके।

ब्याज और जुर्माने सहित समूची राशि चुकाने पर जोर देने का अर्थ यह भी है कि वोडाफोन आइडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों पर दो अन्य बड़ी कंपनियों की तुलना में अधिक असर होगा। कंपनी का सकल बकाय 50,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा। कंपनी कह चुकी है कि इतनी बड़ी राशि चुकाना उसके बस की बात नहीं है और उसे अपना कारोबार समेटना पड़ेगा। क्या सरकार ने इस निर्णय के नफा-नुकसान का आकलन किया है? जबकि इसका बोझ देश की तीन सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनियों में से एक को उठाना पड़ेगा? क्या उसे दूरसंचार बाजार ढांचे पर इस निर्णय के असर का आकलन करना चाहिए था? अंत में क्या सरकार ने यह समझा कि वोडाफोन आइडिया को इससे गहरा झटका लगेगा। यह कंपनी देश में 55 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर चुकी है। सरकार दूरसंचार क्षेत्र के लिए बेल आउट पैकेज ला सकती है ताकि वह मौजूदा भुगतान संकट से उबर सके। परंतु देश के निजी क्षेत्र पर इसका गहरा असर होगा।

मई 2019 के आम चुनाव में सत्ता में वापसी के बाद मोदी सरकार विदेशी निवेशकों के साथ दो बड़े मामलों में संबद्घ रही। एक मामला एमेजॉन के जेफ बेजोस से संबंधित है, जिनकी विदेशी निवेश संबंधी प्रतिबद्घताओं का सरकार के प्रतिनिधियों ने उपहास उड़ाया था। दूसरा मामला वोडाफोन आइडिया का है जिसका विदेशी साझेदार ब्रिटेन का वोडाफोन समूह एजीआर के बोझ तले दबा है। तीसरा मामला आने वाले महीनों में सुर्खियां बटोर सकता है। यह मामला है केयर्न एनर्जी और भारत सरकार के बीच 1.6 अरब रुपये के कर विवाद का जिस पर निर्णय आना है। किसी को नहीं पता कि यह मामला क्या मोड़ लेगा। परंतु कारोबारी सुगमता में सुधार पर गर्व करने वाले देश के लिए तीन बड़ी विदेशी कंपनियों एमेजॉन, वोडाफोन और केयर्न को प्रभावित करने वाला घटनाक्रम शायद भविष्य में इस सूचकांक में सुधार की संभावनाओं को प्रभावित करे।


Date:27-02-20

नई बुलंदियों पर भारत-अमेरिका संबंध

हर्ष वी. पंत , (लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्राध्यापक हैं)

अमेरिकी राष्ट्रपति का 36 घंटे का भारत दौरा सक्रियता से भरा रहा। वह अपने परिवार के साथ अहमदाबाद से आगरा होते हुए नई दिल्ली पहुंचे। भारत पहुंचते हुए उन्होंने शानदार स्वागत की अपेक्षा की थी और वह उन्होंने पाया भी। खुद उन्होंने इसे अपने इन शब्दों में बयान किया, जैसा स्वागत मैंने पाया, वैसा किसी ने नहीं पाया। स्टेडियम के बाहर भी हजारों लोग थे। वह एक शानदार दृश्य था।

वास्तव में मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत उनकी उम्मीदों और उस माहौल के अनुरूप हो, जो उनके भारत आगमन को लेकर बना दिया गया था। ऐसे बहुत कम देश हैं, जहां डोनाल्ड ट्रंप का ऐसा शानदार स्वागत हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर के नेताओं और यहां तक कि अस्थिर स्वभाव वाले डोनाल्ड ट्रंप के साथ तालमेल बैठाने में सिद्धहस्त हैं। वह ट्रंप के साथ व्यक्तिगत रिश्ता कायम करने में इसके बावजूद सफल रहे कि प्रारंभ में अमेरिकी राष्ट्रपति ने उनके प्रति उपेक्षा भाव दिखाया था। यही कारण रहा कि भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री की प्रशंसा उत्साहित होकर करते रहे। उन्होंने साबरमती आश्रम की अतिथि पुस्तिका में भी नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने वाली टिप्पणी दर्ज की।

बीते आठ महीनों में यह ट्रंप और मोदी के बीच पांचवीं मुलाकात थी। इससे यही पता चलता है कि दोनों के बीच रिश्ते प्रगाढ़ हो रहे हैं। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक व्यापक साझा बयान जारी किया। इसमें दोनों देशों के बीच हुए तीन समझौतों का जिक्र था। इनमें एक ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को लेकर था। साझा बयान में इस पर भी सहमति जताई गई कि दोनों देश बड़े व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ेंगे। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका रणनीतिक रिश्तों के दायरे को वैश्विक स्तर पर ले जाने पर सहमति व्यक्त की। आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर और भरोसे के साथ काम करने की जो प्रतिबद्धता जताई गई, उससे रक्षा और सुरक्षा संबंधों को बल मिलेगा।

तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदे के तहत भारत एडवांस्ड मिलिट्री इक्विपमेंट सिस्टम के साथ अपाचे और एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर अमेरिका से खरीदेगा। ट्रंप ने दुनिया के सबसे आधुनिक और उच्च कोटि के अमेरिकी हथियारों, जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम, मिसाइल, रॉकेट से लेकर नौसैनिक जहाज शामिल हैं, को भारत को देने का भी एलान किया।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र हमेशा की तरह अमेरिकी राष्ट्रपति की प्राथमिकता में रहा। ट्रंप ने चार देशों- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत की साझा पहल को आगे बढ़ाने की जरूरत रेखांकित की, ताकि आतंकवाद पर लगाम लगाने के साथ समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। हिंद-प्रशांत क्षेत्र को परिभाषित करने को लेकर शुरुआती हिचक के बाद ट्रंप प्रशासन अब इसे लेकर स्पष्ट नजर आ रहा है कि भारत के पश्चिमी छोर से लेकर अफ्रीका के पूर्वी छोर तक का समुद्री इलाका हिंद-प्रशांत क्षेत्र है।

चूंकि भारत और अमेरिका, दोनों ही देश चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट रोड परियोजना को लेकर संशकित हैं, इसलिए क्षेत्रीय सहयोग आधारित परियोजनाओं को गति देने पर जोर दिया जा रहा है। इसमें ब्लू डॉट नेटवर्क भी शामिल है। इसमें ऐसी परियोजनाएं शामिल होंगी जो पारदर्शी, समावेशी और आर्थिक एवं सामाजिक रूप से उपयोगी तथा पर्यावरण हितैषी हों। ट्रंप यह बताने को उत्सुक थे कि जबसे अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने पदभार संभाला है, तब से भारत को अमेरिकी निर्यात में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ऊर्जा उत्पादों के निर्यात में यह वृद्धि 500 फीसदी रही है। भारत अमेरिकी कच्चे तेल का चौथा और एलएनजी का पांचवां सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। भारत को एलएनजी के आयात में कोई दिक्कत पेश न आए, इसके लिए एक्सॉन मोबील और इंडियन ऑयल के साथ एक करार भी हुआ है।

हालांकि दोनों पक्ष व्यापार के मामले में अपने मतभेद दूर नहीं कर पाए, लेकिन दोनों ही नेताओं ने यह उम्मीद जताई कि जल्द ही इसे लेकर एक बड़ा समझौता होगा। भारत में कई लोग ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध होने का हवाला दिए जाने पर चिंतित हुए होंगे, लेकिन इसे अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को सुरक्षित निकालने के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। चूंकि अमेरिका और तालिबान में समझौता होने वाला है, इसलिए ट्रंप पाकिस्तान का सहयोग चाहते हैं। इसी तरह उनके मध्यस्थता संबंधी बयान को भी पाकिस्तान की चिंता को कम करने की नजर से ही देखा जाना चाहिए। मध्यस्थता वाली ट्रंप की टिप्पणियों को लेकर भारतीय नीति-नियंता अगर आज चिंतित नहीं दिखते, तो इसका कारण यही है कि भारत-अमेरिका की गहराती मैत्री के बीच पाकिस्तान की अधिक अहमियत नहीं रह गई है।

इस मैत्री को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि दोनों देशों के रिश्ते केवल सरकारों के बीच नहीं हैं, बल्कि लोगों के भी बीच भी हैं और उनके जरिये संचालित भी हैं। 21वीं सदी के सभी संबंधों में ये संबंध सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका में रह रहे करीब 40 लाख भारतीय और लगभग दो लाख छात्र दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने का काम कर रहे हैं।

हालांकि बीते दशकों में एक के बाद एक सरकारों ने दोनों देशों के रिश्तों को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मोदी और ट्रंप ने रणनीतिक साझेदारी को धार देने के लिए वह किया है, जो पहले नजर नहीं आता था। भारत-अमेरिका की सेनाओं के बीच साझा अभ्यास इसी का सुपरिणाम है। पहले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। साफ है कि मोदी ने ट्रंप को अमेरिका के दूसरे निकटतम सहयोगियों के मुकाबले काफी अच्छी तरह से साधा है। यही वजह रही कि ट्रंप अपने पूरे दौरे के दौरान अपने स्वाभाविक मिजाज से इतर काफी संभलकर टिप्पणी कर रहे थे। उन्होंने वही बात कही, जो मोदी सरकार के हित में थी। उन्होंने भारत के महत्व को रेखांकित किया ही, साथ ही भारत-अमेरिका रिश्तों को नई ऊंचाई देने में मोदी के योगदान की सराहना भी की।

कुछ लोगों द्वारा यह कहे जाने का कोई मतलब नहीं है कि ट्रंप की यात्रा भारत के लिए फायदेमंद नहीं रही। जो समझौते हुए हैं, वे पहले से जगजाहिर थे। उच्चस्तरीय दौरे हमेशा ऐसे ही होते हैं और उनमें वार्ता के बिंदु पहले से तय होते हैं। दरअसल ट्रंप की छवि एक बड़े कारोबारी नेता की रही है। वह कोई भी समझौता बहुत सोच-समझकर करते हैं। ऐसे में भारत की झोली में कुछ ठोस देने के इतर उनका यहां आना ही बड़ी बात है। संबंध अच्छे रहेंगे तो करार भी होते रहेंगे।


Date:26-02-20

Counting birds together

The State of India’s Birds Report has two distinctive features that define a new approach

M.D. Madhusudan , Uma Ramakrishnan and Suhel Quader , [M.D. Madhusudan, Uma Ramakrishnan and Suhel Quader are ecologists and members of a multi-institutional team that worked on the State of India’s Birds Report]

The State of India’s Birds Report 2020 represents the first collective attempt in India to understand and assess how the avifauna are doing. The results of this exercise are broadly sobering. While there are several species, including globally threatened ones, whose populations are doing reasonably, more bird species are showing declines in population than are showing population stability or increases. During the last two decades, over half the species assessed have declined. This trend is even more pronounced in recent times, with nearly 80% of the species assessed showing declines over the last five years. And these declines are particularly acute for certain groups of birds, including birds of prey, migrant shorebirds, birds of forests and grasslands, and endemic birds of the Western Ghats. The report further suggests that more bird species deserve immediate conservation attention than previously thought. To the list of 67 globally threatened Indian bird species previously identified by the IUCN (as critically endangered, endangered or vulnerable), the report adds 34 more species. The number of species of high conservation concern in India is now 101.

A collaborative effort

But the news is not all bad. The report also provides strong reasons for hope that we can further strengthen the understanding and conservation of our avian heritage. In particular, the report has two distinctive features that define a new approach: first, that the information it builds on comes from citizens like us all, and second, that the report’s data and analysis are in the public domain, inviting critique and further refinement.

Assessing the status of our birds poses a variety of challenges. For a start, there are over 1,300 species of birds in India. While some are loud, colourful or diurnal, and hence relatively easier to detect, others are quiet, shy, or nocturnal. Further, finding them also means having to look in a wide variety of habitats: in forests, wetlands, farmlands, cities, mountains and even open oceans. And to complicate matters further, hundreds of species migrate into and out of our country at different times of the year. Addressing these challenges and achieving a coverage both of species and of habitats has been possible only because of an alignment in the formidable energies and efforts of a large and inspired community of birdwatchers across the country. Only through the efforts of over 15,500 birdwatchers, it became possible to assemble a dataset of over 10 million records, with data points going as far back as the 1970s. Upon this foundation, a large multi-institutional consortium of researchers drawn from both non-governmental and government institutions collaborated to analyse and put together the report.

While the report describes key patterns of change in the populations of certain bird species, answering why these changes have taken place, or developing conservation action that address these changes, are logical follow-up actions that are inconceivable without focused and sustained collective efforts. Just as we have collectively collected, curated, compiled and analysed bird data, we must remain engaged with the results, and continue to further not only an understanding of our avifauna but also actions to conserve them.

Open access to data

Besides collaboration, another key value that the report seeks to acknowledge is the importance of making, not just its outputs, but also the entire process open. The data that has gone into this report are not only collected by thousands of citizens, but are open for any researcher to use. The analyses (and the code) that form the basis of this report are in the public domain. Finally, the report and its results too are entirely open. A better public and scientific understanding of our biodiversity can grow only from wider and open access not only to data, but also from opening the entire process of scientific inquiry to wider peer and public scrutiny and challenge. And we are hoping that, as more and more people come in and examine the data, the analyses and the results, and ask questions, it only adds greater strength to our understanding of our precious birds.

Of all the forms in which humans encounter nature, birds perhaps touch our lives most closely. Birds are nearly everywhere. They are colourful, they sing and they display. They perform vital functions like predation and seed dispersal. They pervade nearly every aspect of our cultural lives. Given our shared bonds in a timeless journey, to paraphrase ornithologist Nigel Collar, we need to continue building and strengthening models by which citizens, scientists, conservationists and managers collaborate not only to understand our birds, but also to enable them to fare better on our fast-changing planet.