27-01-2020 (Important News Clippings)

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27 Jan 2020
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Date:26-01-20

संविधान संशोधन का अर्थ

रामबहादुर राय

आजकल संविधान को लेकर जो बहस चल रही है, उसके गुण-दोष को छोड़ दें, तो एक अच्छी बात यह है कि संविधान की ओर लोगों का ध्यान गया है. इस बहस से एक बात अच्छी निकलकर कर आयेगी कि अब लोग संविधान के बारे में अधिक से अधिक लोग जान सकेंगे, साक्षर हो सकेंगे और जागरूक हो सकेंगे. दरअसल, इन चीजों को बहुत अभाव था, और अब भी है. पिछले कई सालों से मेरा प्रयास रहा है कि संविधान के प्रति जागरूकता बढ़े और लोग साक्षर हों.

इसलिए मैंने कई अवसरों पर लेख लिखा है और भाषण भी दिये हैं कि आप अपने संविधान को जानिए. अगर हम एक सर्वेक्षण करें, साधारण लोगों की बात मैं नहीं कर रहा, बल्कि 790 सांसदों के बीच यह सर्वेक्षण करें और पूछा जाये कि क्या आपने संविधान पढ़ा है. यह सवाल पूछने के बाद आपको आश्चर्य होगा कि 790 सांसदों में से शायद ही कोई कहे कि उसने पूरा संविधान पढ़ा है. कुछ ही होंगे, जिन्होंने संविधान पढ़ा होगा. ऐसे में संविधान को लेकर जागरूकता की जरूरत तो है ही, न सिर्फ सांसदों-नेताओं के लिए, बल्कि हर जन-साधारण के लिए भी.

प्रोफेसर कृष्णनाथ एक पढ़े-लिखे और विद्वान व्यक्ति थे. वह समाजवादी आंदोलन के बड़े नेताओं में गिने जाते थे. कई साल पहले एक बार मैं कृष्णनाथ जी से मिलने गया और उनका एक लंबा इंटरव्यू किया. उस इंटरव्यू में मैंने एक सवाल पूछा था कि संविधान सभा में समाजवादी क्यों नहीं गये?

इसका उत्तर उन्होंने दिया, लेकिन उत्तर के आखिर में उन्हें एक मजेदार बात कही. उन्हाेंने कहा कि संविधान को ज्यादातर लोगों ने खूंटी पर टांग दिया है यानी ऐसा मान लिया गया है कि संविधान कोई धरोहर वाली वस्तु है, जिसे सुरक्षित रख दिया गया है. आज हमारे समाज में यही स्थिति है. अब जब जागरूकता बढ़ेगी, तो लोग संविधान को अपनी-अपनी खूंटी से उतारेंगे और फिर उसे उलटना-पलटना शुरू करेंगे.

बहस के दौरान अक्सर यह सवाल उठता है कि संविधान के साथ छेड़छाड़ सबसे ज्यादा किसने किया. संविधान में, प्रस्तावित और हो चुके, कुल 128 संशोधन हैं. पहला संशोधन पहली निर्वाचित लोकसभा से पहले यानी 1950 का है. संशोधन होना संविधान की जीवंतता का प्रमाण है.

हमारा संविधान इतना लचीला है और हमारे संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर इसे लचीला बनाया, ताकि समय के हिसाब से इसमें संशोधन हो सके. संविधान सभा में 22 जनवरी, 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव की बहस का जब समापन किया, तो उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बात कही- ‘यह संविधान हम अपनी पीढ़ी के लिए बना रहे हैं. आनेवाले पीढ़ियों को यह अधिकार होगा कि वे इसमें जैसा उचित समझें, वैसा संशोधन करें.’ आज नेहरू की यह बात प्रासंगिक है. दुनिया के किसी भी देश का संविधान भारत के संविधान जितना लचीला नहीं है.

संविधान की किसी धारा में संशोधन या उससे छेड़छाड़, इन दोनों के बीच के फर्क को समझने की लोग कोशिश आज नहीं कर रहे हैं. संविधान में संशोधन को भी लोग छेड़छाड़ का आरोप लगा देते हैं. यही वजह है कि आज संविधान को लेकर बात करना जरूरी है. आज जो संविधान हमारे सामने है, वह अपने मूल संविधान (1950 में लागू होने के वक्त का) से बहुत अलग है.

हमारे संविधान को तीन ताकतों ने समय-समय पर बदला है, छेड़छाड़ नहीं किया है. पहली ताकत संसद ने संविधान को बदला है. दूसरी ताकत है सुप्रीम कोर्ट है, जिसकी संवैधानिक बेंच में तीन बड़ी पोथियां हैं, जिसमें यह दर्ज है कि संवैधानिक बेंच ने संशोधन से संबंधित कितने फैसले लिये.

तीसरी ताकत भारत के नागरिक हैं, जिन्होंने जनहित याचिकाओं के जरिये जो सवाल उठाये, उससे भी संविधान परिवर्तित होता गया. इस तरह मूल संविधान में भारी बदलाव आ गया है. लेकिन, आज यह बात लोगों को जाननी चाहिए कि संविधान के साथ सबसे बड़ी छेड़छाड़, सबसे बड़ा गुनाह, सबसे बड़ा हमला कब हुआ और किसने किया. वर्ष 1971 से 1977 के दौरान इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस की सरकार रूस के पैटर्न पर पूरी राज्य-व्यवस्था को खड़ा करना चाहती थी.

इसलिए संविधान में जहां-जहां उनको अड़चनें आ रही थीं, उनको दूर करने के लिए सरदार स्वर्ण सिंह कमेटी बनी और उस कमेटी ने एक सिफारिश की, जिसके आधार पर संविधान में 42वां संशोधन हुआ. गौरतलब है कि 42वां संशोधन संविधान के मूल के दो-तिहाई हिस्से को बदल देता है. उसी कार्यकाल में, उसी दौर में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर के शुक्ला मामले में दिये अपने एक फैसले में जीने के अधिकार को भी छीन लिया. संविधान के साथ इससे बड़ी छेड़छाड़ कभी हुई ही नहीं.

नरेंद्र मोदी की सरकार भारत की पहली सरकार है, जिसने संविधान की रक्षा का शपथ लिया है. मोदी सरकार ने ही संविधान दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाने का सिलसिला शुरू किया. ऐसे में आज मोदी सरकार पर संविधान के साथ छेड़छाड़ का जो आरोप है, वह राजनीतिक आरोप भर है, जो सिर्फ मुसलमानों को भड़काने के लिए है.

मुझे मोदी सरकार के साथ ही पिछली सरकारों से भी शिकायत है कि 42वें संशोधन में जिस संविधान के दो-तिहाई हिस्से को बदल दिया गया और जब जनता पार्टी की सरकार आयी, तब 45वें संविधान संशोधन से कुछ चीजों को सुधारा, लेकिन कांग्रेस द्वारा किये गये छेड़छाड़ को पूरी तरह से ठीक नहीं किया गया.

उसमें सबसे प्रमुख बात यह है कि इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया और उसमें दो शब्द ‘सेक्युलरिज्म’ और ‘सोशलिज्म’ जोड़ दिया. सवाल है कि क्या हमारे संविधान निर्माता सांप्रदायिक थे, जो उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलरिज्म शब्द नहीं रखा? आज संविधान की बहस में यह सवाल पूछा जाना चाहिए. इसलिए मोदी सरकार से मेरी शिकायत है कि उसने संविधान की मूल प्रस्तावना को वापस लाने की कोशिश नहीं की.

आज सीएए पर बहस में यह कहा जा रहा है कि संविधान खतरे में है. ऐसी बहस ही निराधार है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, नागरिकता छीनने का नहीं. इस बात को मैं सही मानता हूं. आज जो बौद्धिक कवायद चल रही है कि संविधान के साथ छेड़छाड़ हो रहा है, वह आम जनता को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है कि सीएए से मुसलमानों की नागरिकता चली जायेगी. यह निराधार बात है


Date:25-01-20

भ्रष्टाचार का पैमाना

संपादकीय

भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने को लेकर सरकार भले कितने दावे कर ले, लेकिन हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार कहीं कम नहीं हुआ है, बल्कि बढ़ता जा रहा है। दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार पर एक सौ अस्सी देशों की जो सूची जारी की है, उसमें इस बार भारत दो स्थान खिसक कर अस्सीवें स्थान पर चला गया है। पिछले साल यह अठहत्तरवें स्थान पर था। जाहिर है, भ्रष्टाचार कम होने के बजाय बढ़ा है। वैसे भ्रष्टाचार के मामले में भारत की दुनिया में जो छवि बनी है, वह कोई नई बात नहीं है। देश के भीतर हो या बाहर, सरकारों और प्रशासन से लेकर सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार जिस कदर व्याप्त हो चुका है, उसमें इसका खात्मा सिर्फ एक कल्पना भर से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन ताज्जुब इस बात पर है कि एक चुस्त-दुरुस्त नौकरशाही और कड़े निगरानी तंत्र का दावा करने वाली सरकारें आखिर भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लगा पातीं! हालांकि अब ये कोई नया सवाल नहीं रह गया है। हकीकत तो यह है कि हम एक भ्रष्ट तंत्र में जीने के आदी हो गए हैं और भ्रष्टाचार को एक तरह से आत्मसात कर चुके हैं।

अगर वैश्विक संदर्भ में देखें, तो इस बात से खुश हुआ जा सकता है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुकाबले हमारी स्थिति बेहतर है। भ्रष्टाचार सूचकांक में बांग्लादेश एक सौ छियालीसवें और पाकिस्तान एक सौ बीसवें स्थान पर है। भारत के समकक्ष देशों में चीन, घाना, मोरक्को जैसे देश हैं। अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत एक तरह से विकासशील देशों का नेतृत्व करने वाला देश माना जाता है। ऐसे में अगर भ्रष्टाचार के मामले में हम मोरक्को या घाना के साथ गिने जाते हैं तो यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। ये छोटे अफ्रीकी देश हैं जहां जनता गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से तो मरहूम है ही, राजनीतिक अस्थिरता और गुटीय संघर्ष भी बर्बादी का बड़ा कारण हैं। लेकिन भारत के हालात इनसे एकदम अलग हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा और परिपक्व लोकतंत्र है, दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। भले आंतरिक समस्याएं हों, पर राजनीतिक अस्थिरता नहीं है। इतना सब कुछ होने के बाद अगर हमारी सरकारें भ्रष्टाचार-मुक्त शासन नहीं दे पा रही हैं तो यह चिंताजनक बात है।

सवाल है कि फिनलैंड, स्वीडन, सिंगापुर, स्विटजरलैंड जैसे जो देश इस सूची में सबसे ऊपर हैं, जहां भ्रष्टाचार नहीं के बराबर है, जहां लोगों को काम कराने के लिए सरकार-प्रशासन को कोई घूस नहीं देनी पड़ती, उन देशों से हम क्यों नहीं कुछ सीखते। भारत में चाहे कारपोरेट घरानों की बात करें, या नगर निगम और पंचायत स्तर पर चले जाएं, भ्रष्टाचार को लेकर सब जगह एक-सी कहानी देखने-सुनने को मिलेगी। चुनाव आयोग ने भले आचार संहिता बना रखी हो और खर्च सीमा तय कर रखी हो, लेकिन चुनावों में उम्मीदवारों की ‘मदद’ के लिए अमीर, रसूखदार और उद्योग घराने किस कदर पैसा बहाते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। ये भ्रष्टाचार का बड़ा कारण है और यह सब निगरानी तंत्र की मौजूदगी में इस साफ-सुथरे से चलता रहता है कि पकड़ में भी नहीं आता। सरकारें अपने पसंदीदा उद्योगपतियों के लिए अनुकूल नीतियां बनाने से नहीं हिचकती हैं। इसी तरह निचले स्तर पर देखें तो आम लोगों को तमाम सरकारी सेवाओं के लिए आज भी घूस देने को मजबूर होना पड़ रहा है। जन्म प्रमाण पत्र बनवाने से लेकर बिजली के बिलों को ठीक करवाने के लिए भी घूस का चलन आम है। और ये सब तब है जब ज्यादातर सेवाएं ऑनलाइन की जा रही हैं। ऐसे में भारत कैसे भ्रष्टाचार मुक्त हो पाएगा?


Date:25-01-20

खतरे का वायरस

संपादकीय

अमूमन हर साल दुनिया के किसी हिस्से में किसी न किसी ऐसी बीमारी के वायरस की खबर आती है, जिसके खतरे सामान्य से बहुत ज्यादा होते हैं। निश्चित रूप से यह दुनिया भर में बदलते पर्यावरण, जलवायु में होने वाले उथल-पुथल, मनुष्य और उसकी बस्तियों की जीवनशैली में असंतुलन की वजहों से होता होगा। लेकिन इतना साफ है कि ऐसे मौकों पर दुनिया भर में अब तक विकास कर सका चिकित्सा विज्ञान अक्सर लाचार नजर आता है। फिलहाल चीन में कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर में एक बड़ी चिंता खड़ी हो गई है कि अगर इसका विस्तार नहीं रुका तो बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। माना जा रहा है कि इस वायरस के संक्रमण की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई है, लेकिन अब यह चीन के कई शहरों में फैल चुका है और इसकी चपेट में करीब साढ़े आठ सौ से ज्यादा लोगों के आने की खबर है। अब तक इस वायरस से पच्चीस लोगों की मौत हो चुकी है।

कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के विश्लेषण में यही सामने आया है कि यह मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता रखने वाले अन्य कोरोना वायरस की तुलना में सार्स के ज्यादा नजदीक है। करीब अठारह साल पहले सार्स के कहर से लगभग आठ सौ लोगों की मौत हो गई थी। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की चुनौतियों के मद्देनजर आपात बैठक बुलाई। चीन के जिस शहर वुहान में इस वायरस का उद्गम माना जाता है, वह फिलहाल एक तरह से बंद है और वहां अस्थायी तौर पर सार्वजनिक यातायात को रोक दिया गया है। संक्रमण के मद्देनजर वहां के लोगों को शहर नहीं छोड़ने की सलाह दी गई है। इसके अलावा, थाइलैंड, जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया में भी इसके संक्रमण के कुछ मामले पाए गए हैं। खासतौर पर वुहान से होकर आने वाले लोगों में इसके संक्रमण का डर सबसे ज्यादा पाया गया है। भारत चूंकि चीन का पड़ोसी है और कई स्तरों पर दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही बनी रहती है, इसलिए स्वाभाविक रूप से यहां इस मसले पर खास सावधानी बरतनी होगी। यों दिल्ली सहित सात हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई है, जिसमें चीन और हांगकांग से लौटे यात्रियों की गहन जांच की जाएगी।

मुश्किल यह है कि भारतीय परिस्थितियों में आमतौर पर सर्दी-जुकाम को एक सामान्य बीमारी की तरह लिया जाता है और लोग इसे लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं होते हैं, बल्कि ज्यादातर लोग ऐसी स्थितियों में लापरवाही बरतते हैं और बिना डॉक्टर की सलाह लिए अपने स्तर पर दवा दुकानों से ली गई दवाइयां खा लेते हैं। ताजा चुनौती इसलिए गंभीर है कि कोरोना वायरस की चपेट में आने वाले व्यक्ति में भी लगभग वैसे ही लक्षण देखे गए हैं, जो आम सर्दी-जुकाम में होते हैं। मसलन, सिरदर्द, नाक बहना, खांसी, गले में खराश, बुखार, अस्वस्थ होने का अहसास, छींकें आना आदि के अलावा निमोनिया और फेफड़ों में सूजन। अब अगर इसे देश में होने वाली आम मौसमी बीमारियों की तरह देखा जाएगा तो शायद यह कोरोना से उपजी गंभीरता की अनदेखी की तरह होगा, क्योंकि इससे संक्रमित लोगों में सर्दी-जुकाम के लक्षण जरूर होते हैं, लेकिन इसका असर गंभीर हो तो जान भी जा सकती है। जाहिर है, संक्रमण की परिस्थितियों को पूरी तरह नियंत्रित करने के साथ-साथ जांच के बाद प्रभावित लोगों की अधिकतम सावधानी से इलाज ही इसका सामना करने के उपाय हैं, क्योंकि अभी तक इस वायरस को बेअसर करने कोई टीका तैयार नहीं किया गया है।