26-09-2024 (Important News Clippings)

Afeias
26 Sep 2024
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Date: 26-09-24

Judging The Judges

SC does great service to courts’ dignity by calling out objectionable comments made from an HC bench

TOI Editorials

Bringing to a close its suo motu case on two videos in which a Karnataka HC judge is seen making irrelevant, even harmful, remarks, a five-judge CJI-led bench reiterated the basics of what should guide judges’ constitutional task. “It is important every judge is aware of his or her own predispositions.” CJI Chandrachud did well to take serious note of the two videos. In one, the HC judge called a Bengaluru Muslim-majority area ‘Pakistan’. In another, he was mocking a woman lawyer by using offensive language. Justice Srishananda had apologised earlier, though his initial counter was that his words were taken out of context.

It’s unfortunate SC had to remind judges of such basics. But rather frequent instances are emerging of judges making either communally charged or openly anti-women rights comments. Have they suddenly turned offensive? No. It is CJI’s welcome measure of live-streaming and recording of court proceedings that is capturing some of the reality of courtroom discourse. SC picked up this case, and in doing so it showed it’s aware of unsavoury observations some judges make. Observations that no longer escape public attention.

SC observed “that the demands…of the electronic age would elicit appropriate modulation of behaviour, both on the part of the Bar and the bench in the future.” Two developments over the last few years have helped expose preachy self-righteousness of some judges countrywide, where own prejudices and biases weigh heavily upon their conduct in court. One, live-streaming has taken the court to the public. Two, the emergence of dedicated court-reporting websites has captured a plethora of cases, causes and comments that otherwise would be limited to lawyers alone. This is forcing courtrooms to be that much more accountable, in a manner of speaking, to the public they serve.

SC repeatedly emphasises judges should avoid patriarchal and misogynistic stereotypical commentary on women’s dress, behaviour, status etc. But judges continue to make loose comments, a misplaced morality damaging to the dignity of court and its proceedings. SC fixed that today – “the heart and soul of judging is the need to be impartial and fair.” Here’s hoping judges will take note.


Date: 26-09-24

We Were Warned

World is now living with extreme weather & extreme reluctance to take serious action about climate change

TOI Editorials

Heat almost killed you? Wilting your plants and making life miserable for all creatures great and small? Toxic air, a Delhi regular, burning your eyes, choking your airways? Rain washed your daily routine away? Brought your city to a standstill in, sometimes, chest-deep water? Everywhere in India, in different ways, the last few months have shown us what extreme weather looks like. The cost in lives lost, infra damaged, work hours foregone, and health risks is already large. Now, pundits are warning of extreme cold conditions in some parts of India in the winter. So, whom to blame, really? Mirror, mirror on the wall…

Scientists warned us. The first climate deal was inked over a quarter of a century ago. But, the greenhouse effect was first identified exactly 200 years ago, in 1824. The scientist who identified it wrote: “Establishment and progress of human societies…can notably change…in vast regions…the state of the surface, distribution of water and great movements of the air. Such effects are able to make to vary…the average degree of heat…”. By 1896, greenhouse effect was first calculated. It took another 100 years of development for the world to ink its first climate deal to “save the planet”, in the 1996 Kyoto Protocol. But COPs have been a cop out – glitzy episodes of theatric climate negotiations, dramatic emission targets, impressive goals, and shadowy lobbies. In 2023, US Congress and European Parliament members wrote to UN about their “profound concern that current rules…permit private sector polluters to exert undue influence.” The Egypt COP had a record 636 delegates who work for fossil fuel companies.

Rivers polluted and dry, oceans warmer and rising, glaciers melting, more ’n more ACs whirring for longer periods – human action alone has unleashed climate change upon us. Rail at the weather, but it heeds no criticism. How to mitigate? Even heat action plans are just that. Plans. There’s little evidence coverage required to protect, especially outdoor workers, has been achieved – traffic police, airport outdoors crew, street vendors, gig workers are all on their own. As are we. Withered by the weather.


Date: 26-09-24

संस्थाएं सामाजिक चेतना फैलाने का काम भी करें

संपादकीय

गवर्नेस का कोई भी तंत्र रहा हो, कबायली व्यवस्था से लेकर लोकतंत्र तक, लेकिन निरंतर बदलते समाज में नैतिक मूल्य बनाए रखने का काम आध्यात्मिक व धार्मिक रूप से समुन्नत लोगों का रहा है । प्रजातंत्र में राजनीति वोट की याचक होती है और ऐसी याचना में समाज-सुधार करने की नैतिक शक्ति नहीं होती । धार्मिक संस्थाओं के भी अपने हित होते हैं। ऐसे में जो भी सबसे स्वीकार्य संस्था या उसमें लगा व्यक्ति समाज की निःस्वार्थ सेवा करता है वह समाज सुधारक की भूमिका में स्वतः आ जाता है। नैतिकता में गिरावट का संकट मोबाइल फोन के बाद का है। बाल यौन शोषण पश्चिमी देशों से भारत पहुंचा है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट को समाज-सुधारक की भूमिका में आना पड़ा। कोर्ट ने इस सामाजिक-मानसिक बीमारी के इलाज के लिए देश के सभी कोट्र्स द्वारा ‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द के प्रयोग पर ही रोक लगा दी है और इसकी जगह ‘बाल-यौन उत्पीड़न सामग्री’ (सीएसईएएम) का प्रयोग करने को कहा है। कोर्ट ने ऐसे वीडियोज देखना ‘पॉक्सो’ के तहत सजा की श्रेणी में रखा है। इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने ही महिला अधिकार, दहेज व फौरी तलाक सरीखे मुद्दों पर समाज में नई चेतना पैदा की थी। देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को भी चेतना फैलाने का काम करना चाहिए।


Date: 26-09-24

हिजबुल्ला की हरकतों की कीमत चुका रहा है लेबनान

अभिजीत अय्यर मित्रा,( सीनियर फेलो, आईपीसीएस​​​​​​​​​​​​​​ )

मैं यह लेख इजराइल के हृदयस्थल यरूशलम से लिख रहा हूं, जहां कल सुबह हिजबुल्ला की ओर से दागी गई एक बैलिस्टिक मिसाइल के चलते हमें एक बंकर में शरण लेनी पड़ी थी। इजराइल और हिजबुल्ला के बीच आज जो कुछ भी हो रहा है, उसके कारणों की गहराई से पड़ताल करना जरूरी है। पाकिस्तान की तरह लेबनान को भी एक कृत्रिम-राष्ट्र के रूप में गढ़ा गया था। उसका निर्माण स्थानीय ईसाई बहुसंख्या के लिए सीरिया को तोड़कर किया गया था, लेकिन अपने निर्माण के 50 वर्षों के भीतर ही यह सुन्नी बहुसंख्या वाला देश बन गया और 1990 के दशक में यह शिया बहुसंख्यक बन गया। लेकिन शियाओं के पास राजनीतिक ताकत नहीं थी और वे एक और गृहयुद्ध शुरू नहीं करना चाहते थे। तब उन्होंने हिजबुल्ला का सहारा लिया, जो कि ईरान के रिमोट कंट्रोल से संचालित होता है।

ईरान हिजबुल्ला की मदद से कई निशाने साधना चाहता है। उसका पहला मकसद है एक क्षेत्रीय शिया-गठजोड़ का नेतृत्व करना, जिसमें 2000 के दशक से इराक, सीरिया और लेबनान शामिल हैं। दूसरा मकसद इजरायल के विरोध में अपने को सबसे आगे दिखाना था, क्योंकि परम्परागत रूप से इसे सुन्नी एकाधिकार के रूप में देखा जाता था। यह 1980 और 1990 के दशक में सऊदी अरब से इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व छीनने के लिए किया गया था, जिसने अमेरिका के सहयोगी के रूप में काम किया था। 2010 के दशक से तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण मकसद ईरानी परमाणु हथियारों को कवर प्रदान करना रहा है। इसके लिए प्राथमिक खतरा हमेशा इजराइली हवाई हमले से आता है और आता रहेगा।

लेकिन दुर्भाग्य से, लेबनान के लोगों से इस बारे में कोई राय-मशविरा नहीं किया गया। अगर कोई लेबनानी ईसाई या सुन्नी लेबनान को ईरान के प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करने के खिलाफ बोलता है, तो उसे मार दिया जाता है और अपराधियों को पकड़ा नहीं जाता। 2005 में ईरान के हितों की पूर्ति के लिए लेबनान में सीरिया की निरंतर सैन्य उपस्थिति का विरोध करने पर पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी तक की हत्या कर दी गई थी। लेबनान अब हिजबुल्ला की हरकतों की कीमत चुका रहा है। प्रतिरोध की कार्रवाइयां हिजबुल्ला करता है और जान लेबनानी नागरिकों को गंवानी पड़ती है।

मौजूदा तनाव की शुरुआत 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजराइल पर किए हमलों से हुई। पहले हिजबुल्ला को अधिक सक्षम आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाता था। लेकिन 7/10/23 को हमास ने ऐसा हमला किया, जो इससे पहले किसी भी अरब देश या संगठन ने नहीं किया था। हमास नंबर 1 बन गया। हिजबुल्ला को फिर से अपना वर्चस्व स्थापित करना था, इसलिए उसने उत्तरी इजराइल में लगातार रॉकेट बमबारी का अभियान शुरू किया। ऊपरी तौर पर यह कहा गया कि यह फिलिस्तीन का समर्थन करने के लिए किया जा रहा था, लेकिन असली कारण हमास के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता थी। 7/10/23 के बाद से हिजबुल्ला ने इजराइल पर 9000 रॉकेट दागे हैं, लेकिन वह उत्तरी इजराइल से लगभग 70,000 इजराइलियों के पलायन के अलावा और कुछ हासिल नहीं कर पाया है। ये 9000 रॉकेट बेकार में नहीं दागे गए थे, उनका उद्देश्य ईरानी परमाणु कार्यक्रम की रक्षा करना था।

पिछले 30-40 सालों से इजराइल ने हिजबुल्ला को बेअसर करने के कई तरीके आजमाए हैं, लेकिन उसे पूरी कामयाबी नहीं मिली। कारण, हिजबुल्ला का असली कमांड-सेंटर तेहरान में है और इजराइल ईरान को सीधे निशाना बनाने से परहेज करता रहा है। 7/10/23 के बाद यह तस्वीर बदल गई। इजराइल ने सीरिया में कई ईरानी राजनयिकों को मार डाला, जिसके परिणामस्वरूप ईरान की ओर से इजराइल पर पहला सीधा हमला हुआ। फिर इजराइल ने तेहरान में हमास के नेता इस्माइल हनीये को मार गिराया। तेहरान में लीडरशिप गेस्ट हाउस में हनीये को मारकर इजराइल ने ईरान को यह संदेश दे दिया कि वे अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। इसके बाद इजराइल ने हिजबुल्ला कमांडरों के पेजर और वॉकी-टॉकी में ब्लास्ट करवाके उसके कमांड-सिस्टम पर करारी मार की। फिर हवाई हमलों में हिजबुल्ला के डिप्टी-हेड और मिसाइल-फोर्स के प्रमुख को मार गिराया गया।

इजराइल ने पिछले साल से अब तक कई मोर्चों पर कार्रवाई की है। पर नुकसान लेबनान के लोगों का हो रहा है। ईसाइयों ने 1980 के दशक में लेबनान की सत्ता खो दी थी और अब उनके देश को ईरान की विदेश नीति के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अपहृत किया जा रहा है। वहीं सुन्नियों की सियासी ताकत को हिजबुल्ला ने हाईजैक कर लिया है।


Date: 26-09-24

मेक इन इंडिया अभियान

संपादकीय

मेक इन इंडिया अभियान के दस वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री ने उसकी सफलता का जो उल्लेख किया, उससे असहमत तो नहीं हुआ जा सकता, लेकिन यह आभास किया जाए तो बेहतर कि इस पहल को और अधिक सफल बनाया जा सकता था। इस अभियान ने कई उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं, जैसे दस वर्ष पहले देश में मोबाइल फोन बनाने वाली केवल दो कंपनियां थीं। आज उनकी संख्या बढ़कर दो सौ के करीब हो गई है। इसके चलते भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता देश बन गया है। पहले केवल 1,556 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात होते थे। अब 1.2 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल निर्यात हो रहे हैं और देश में प्रयोग होने वाले 99 प्रतिशत मोबाइल मेक इन इंडिया हैं। इसी तरह फिनिश्ड स्टील के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। खिलौनों के निर्माण में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और अब उनका आयात घटकर आधा रह गया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए जिस तरह डेढ़ लाख करोड़ का निवेश हुआ है, उससे पांच प्लांट लगने जा रहे हैं, जो प्रतिदिन सात करोड़ चिप बनाएंगे। भारत नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में अब दुनिया में चौथे नंबर पर है और देश का ईवी उद्योग अब तीन अरब डालर तक पहुंच गया है। रक्षा क्षेत्र भी मेक इन इंडिया की सफलता की कहानी कहता है। देश का रक्षा निर्यात 21 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है और अगले पांच वर्षों में इसे बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा गया है। आज भारत कई देशों को रक्षा सामग्री का निर्यात कर रहा है।

यह कहा जा सकता है कि मेक इन इंडिया अभियान ने रक्षा क्षेत्र की तस्वीर बदलने का काम किया है। ऐसी ही तस्वीर अन्य क्षेत्रों में भी बदलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। यह एक तथ्य है कि तमाम प्रयासों के बाद भी चीन से होने वाला आयात कम नहीं हो रहा है। तमाम ऐसी वस्तुएं चीन से मंगाई जा रही हैं जिनका निर्माण भारत में किया जा सकता है। एक समस्या यह भी है कि चीन से तमाम कल-पुर्जे मंगाकर उन्हें देश में असेंबल कर कई तरह के उपकरण बनाए जा रहे हैं। समझना कठिन है कि भारतीय उद्योगपति वह सब देश में क्यों नहीं बना सकते, जिसके निर्माण की संभावनाएं देश में हैं। इनमें से कुछ वस्तुएं तो ऐसी हैं, जो पहले भारत में बनती भी थीं। एक ओर जहां देश के उद्योगपतियों को कमर कसनी होगी, वहीं दूसरी ओर सरकार को भी यह देखना होगा कि हमारे उद्योगपति चीनी कारोबारियों का मुकाबला करने में क्यों हिचक रहे हैं और उनकी क्या समस्याएं हैं? कुल मिलाकर मेक इन इंडिया अभियान कुछ हद तो सफल है, लेकिन अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना है।


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