23-10-2024 (Important News Clippings)

Afeias
23 Oct 2024
A+ A-

To Download Click Here.


Date: 23-10-24

No Female Foeticide, Knowing Sex or Not

ET Editorials

Last weekend, IMA president R V Asokan called for legalising prenatal gender detection tests. His argument: the ban, in place since 1994, unfairly targets medical practitioners, while the real issue lies in societal attitudes against the female child. He’s right about it being a societal problem. But the key question is: has the Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act of 2003 worked? If not, why?

Since the original 1994 law, India’s sex ratio has improved. Overall, it’s risen from 927 females per 1,000 males in 1991 to 1,020, according to NFHS-5 (2019-21). As for the sex ratio at birth, in 2015, the number of girls for every 1,000 boys was 918. This has risen to 934 in 2022. If India has not attained better numbers, it’s because of the collusion of rogue doctors, prejudiced families and weak enforcement. But other influences have improved the sex ratio as well — rising education levels, political and economic incentives, and gender sensitisation. Considering these changes and the law being 30 years old, there’s no harm in reassessing its effectiveness and exploring whether the challenge can be better addressed through other means, including leveraging the robust Mother and Child Tracking System (MCTS).

Two factors must be borne in mind if the ban is to be reassessed: one, integrity of doctors will stillbe crucial to prevent tests/ assessments from being abused as grounds for medical termination of pregnancy (MTP); two, the need for robust tracking. This means incentivising all involved in the system to ensure that everyloophole is plugged. While putting more pressure on families is acceptable, anyone attempting to bypass the system, including doctors, cannot be allowed to go scot-free.


Date: 23-10-24

ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील का अर्थशास्त्र समझें

संपादकीय

उत्तर भारत में एक जमाने में आशीर्वाद के रूप में प्रचलित ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ अब दक्षिण भारत के राज्यों में सत्तापक्ष का नया नारा है। आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने तरीके से राज्य के लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। यह सच है कि ये राज्य आबादी नियंत्रण में अग्रणी रहे, जिससे यहां उत्तर भारत की अपेक्षा बच्चों को बेहतर भोजन, अच्छी शिक्षा और अधिक प्रति-व्यक्ति आय मिली। दक्षिण के कर्नाटक और उत्तर के यूपी का सकल घरेलू उत्पाद लगभग बराबर है, लेकिन प्रति-व्यक्ति आय में साढ़े तीन गुना से ज्यादा का अंतर है, क्योंकि आबादी नियंत्रण में एक सफल रहा जबकि दूसरा असफल। यह भी सच है कि बिहार और यूपी का आबादी घनत्व क्रमशः 1300 और 828 है। दक्षिण भारत के राज्यों का आबादी घनत्व अपेक्षाकृत काफी कम है। तमिलनाडु का आबादी घनत्व बिहार का मात्र 40 प्रतिशत है, लेकिन जीडीपी तीन गुना से ज्यादा है। तभी तो भारत पांचवी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था होकर भी मानव विकास सूचकांक पर 132वें स्थान पर है। दक्षिण भारत के लोगों ने अपने विवेक से आबादी पर काबू पाया जो सराहनीय है। इन राज्यों में उत्तर भारत के मुकाबले ज्यादा तेजी से बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है या कामकाजी आयु के युवाओं की घट रही है, लिहाजा आने वाले दिनों में ये आर्थिक उत्पादकता में पिछड़ जाएंगे। लेकिन ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील का अर्थशास्त्र समझना होगा। क्या जिन राज्यों में आबादी घनत्व ज्यादा है, वहां से युवा दक्षिण भारत के राज्यों में नहीं जा सकते ? क्या इससे दोनों की समस्या हल नहीं होगी? शायद नहीं, क्योंकि उत्तर भारत में युवाओं को उस स्तर की तकनीकी शिक्षा नहीं मिल रही है। अधिकांश माइग्रेशन बिहार और यूपी से अनस्किल्ड, सेमी-स्किल्ड कामगारों का ही हो रहा है। उत्तर भारत के राज्य सोचें।


Date: 23-10-24

विज्ञान-एआई के निजी हाथों में होने से आम लोगों का घाटा

कैथरिना पिस्ट, ( कोलंबिया लॉ स्कूल में कानून की प्रोफेसर )

पिछले दिनों की ये दो घटनाएं देखें। कैलिफोर्निया के गवर्नर गैविन न्यूसम ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल करते हुए ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेफ्टी बिल’ में अड़ंगा डाल दिया, दूसरी ओर केमिस्ट्री के क्षेत्र में नोबेल वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड बेकर समेत, गूगल की सब्सिडरी डीप माइंड और आइसोमोर्फिक लैब्स के कर्मचारी डेमिस हैसाबिस और जॉन एम. जंपर को मिला।

हालांकि इन दोनों घटनाओं में समानता न दिखे, पर व्यापकता में देखें, तो समझ आएगा कि निजी कॉर्पोरेट्स को अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए मानवता के भविष्य को भी आउटसोर्स किया जा रहा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि कैलिफोर्निया बिल अपने आप में संपूर्ण था, पर यह एआई को विकसित करने वालों को, एआई के संभावित खतरों के प्रति जवाबदेह ठहराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास था।

इसके साथ ही इसमें न सिर्फ किसी जोखिम पर फोकस किया गया बल्कि इसमें गंभीर नुकसान पर ध्यान दिया गया था, जैसे सामूहिक विनाश के हथियार विकसित करना या कोई बड़ा आर्थिक नुकसान आदि। गूगल समेत टेक इंडस्ट्री लॉबी ने पुरजोर तरीके से इस बिल का विरोध किया था।

2024 में ऐसा पहली बार हुआ है, जब नेचरल साइंस में नोबेल जैसा पुरस्कार मल्टीनेशनल कंपनियों के कर्मचारियों को मिला। इससे पहले के पुरस्कार पाने वाले या तो यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स रहे हैं या शोधकर्ता या फिर सरकारी मदद पाने वाले शोध संस्थान।

इन सबने अपने शोध परिणाम को रिव्यू जर्नल में प्रकाशित किया और अपनी खोज को दुनिया के सामने सार्वजनिक किया। नोबेल देने वाली स्वीडन की अकादमी का इरादा जो भी हो, पर गूगल के शोधकर्ताओं को पुरस्कार देने का इसका निर्णय, विज्ञान के निजीकरण को वैध बनाने का एक प्रयास है।

सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं है। भुगतान डॉलर के रूप में नहीं तो, आंकड़ों के रूप में होता है। अल्फाफोल्ड ने प्रोटीन के जिस थ्री-डी स्ट्रक्चर का अनुमान लगाया, वह डाटा भी उसे इंटरनेट से ही मिला। सार्वजनिक रूप से मौजूद डाटा के बिना अल्फाफोल्ड नहीं होता।

सच्चाई देखें, तो वैज्ञानिकों का परिश्रम से किया काम निजी क्षेत्र को यूं ही मुफ्त में मिल जाता है, जिसे वैज्ञानिकों ने आम लोगों के टैक्स की बदौलत पूरा किया या फिर पब्लिक रिसर्च इंस्टीट्यूट में नौकरी करते हुए वह काम किया।

पहला सैटेलाइट अमेरिकी सरकार ने लॉन्च किया था, इलॉन मस्क ने नहीं, इंटरनेट का व्यावसायीकरण होने से बहुत पहले अमेरिकी सेना ने इंटरनेट विकसित कर लिया था और फार्मा कंपनियां बिरले ही बुनियादी शोध पर पैसा खर्च करती हैं।

क्यों परेशान हों, जब आप यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ या इसी तरह की एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित वैज्ञानिकों का काम सामने आने का इंतजार कर सकते हैं, ताकि एक क्षेत्र में हुए शोध को और आगे बढ़ाया जा सके, जहां लाभदायक निवेश किया जा सकता है?

यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है कि निजी कंपनियां कैसे इस सबका फायदा उठा पा रही हैं। असली रहस्य तो ये है कि क्यों सरकारें, आम टैक्स पेयर्स की मदद से सालों तक चले शोध को अपनी इच्छा से इन कंपनियों के हाथों में सौंप देती हैं, और वो भी यह गारंटी लिए बिना कि इनका प्रयोग आम लोग कैसे कर सकेंगे।

कैलिफोर्निया का बिल इस बात को अनिवार्य बनाता कि अगर चीजें पूरी तरह से गलत दिशा में चली गईं, तो एआई मॉडल्स को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा, लेकिन इस प्रावधान को पूरे के पूरे बिल के साथ कूड़े में डाल दिया गया।

यह तर्क भी नया नहीं है कि अगर हम भविष्य के नुकसान के बारे में पर्याप्त नहीं जानते हैं, तो हमें “निजी’ बाजारों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, जो हमेशा सरकारी ” हस्तक्षेप’ के बिना सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हैं। जाहिर है, हमें अपना भविष्य निजी कॉर्पोरेट्स के हाथों में सौंपना होगा, जिनका एकमात्र उद्देश्य शेयरधारकों को अमीर बनाना है।


Date: 23-10-24

सहयोग की सरहद

संपादकीय

जब भी ची देशों के बीच सीमा पर तनाव बना रहता है, तो स्वाभाविक रूप से उनका आर्थिक विकास प्रभावित होता है इसलिए दुनिया भर में प्रयास किए जाते हैं कि पड़ोसी देशों के साथ तनाव का रिश्ता न रहे। मगर अक्सर वर्चस्ववाची नीतियों के चलते कुछ देशों में परस्पर टकराव बना रहता है। भारत और चीन के बीच भी लंबे समय से रिश्ते इसीलिए मधुर नहीं हो पाते कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी की मर्यादा का पालन नहीं करता। वह अपनी विस्तारवादी नीति पर कायम है। 15 जून, 2020 को चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया था। दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव हुआ उसके बाद चीन ने भारत के हिस्से वाले छह क्षेत्रों में अतिक्रमण कर लिया था। तबसे लगातार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच अब अपने सैनिकों को वापस बुलाने और एलएसी पर 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमति बन गई है। सोमवार को भारत ने इसकी सूचना जारी की थी, अब चीन ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। चीन ने कहा है कि वह भारत के साथ मिल कर सीमा संबंधी विवाद का हल निकालने का प्रयास करेगा।

यह अच्छी बात है कि गलवान में हुए सैन्य संघर्ष के बाव भी चीन बिना किसी हील हुज्जत के हमेशा बातचीत की मेज पर बैठता रहा। तब से सैन्य अधिकारी स्तर की बीस से अधिक बैठकें हो चुकी है। इसके अलावा विवेश मंत्रियों के स्तर पर भी बातचीत के कई दौर हो चुके हैं। इन्हीं बैठकों और बातचीत का नतीजा है कि चीन ने भारत के छह में से चार क्षेत्रों चेपसांग गलवान, हाटस्प्रिंग और पैंगोंग से अपनी सेना हटा ली थी मगर अभी भी चौलतग ओल्ली और डेमचोक में उसका कब्जा बना हुआ था। भारतीय सैनिक उन क्षेत्रों में गश्त करने नहीं जा सकते थे। ताजा समझौते के अनुसार उन दोनों क्षेत्रों को भी खोल गया है। अब भारतीय सेना अपने तय क्षेत्रों में गश्त कर सकेगी। भारत ने इसे चीन का सकारात्मक रुख बताया है। दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए उनकी सेनाओं का परस्पर मेलजोल बढ़ना जरूरी है। इस तरह अगर भरोसा बढ़ेगा, तो निश्चय ही सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में भी सकारात्मक कदम उठाना आसान होगा।

हालांकि चीन के किसी भी रख पर दावे के साथ कुछ कहना मुश्किल होता है। पूर्वी लाख में उसके ताजा सकारात्मक रुख से निस्संदेह भारतीय सेना का तनाव काफी कम होगा, मगर चीन कब अपना रुख बदल ले कहना मुश्किल है। भारत के पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और श्रीलंका में विकास परियोजनाओं के जरिए उसने अपनी मौजूदगी बढ़ाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल कर ली है। समय-समय पर वह भारतीय हिस्से वाली जगहों को अपना बता कर उनका नाम बदलता और उन्हें अपने नक्शे में दिखाता रहा है। हिंद महासागर में वह अपनी मौजूदगी बनाए रखने और बढ़ाने का लगातार प्रयास करता देखा जाता है। इसलिए उचित ही भारत कोई बड़ा दावा करने से बच रहा है। मगर यह भारत की बड़ी कामयाबी कही जाएगी कि उसने बहुत सावधानी और संयम के साथ चीन को अतिक्रमण वाली जगहों से वापस लौटने को राजी कर लिया। अगर इसी तरह दोनों देश निरंतर और सकारात्मक रुख के साथ प्रवास करते रहें, तो सीमा विवाद को भी सुलझाने की उम्मीद जगती है।


Date: 23-10-24

नई करवट

संपादकीय

बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन ने कुछ लचीला रुख अपनाया है, जिसके चलते दोनों देशों के रिश्तों में पिछले चार साल से जमी बर्फ पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और सीमा पर गश्त पर अहम सहमति बनी है.

यदि नई दिल्ली और बीजिंग इस समझौते की भावना के अनुरूप विवादित क्षेत्र से अपने-अपने सैनिकों की वापसी की दिशा में ठोस कदम उठाते हैं, तो यह समझौता दोनों देशों के बीच राजनयिक और द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित कर सकता है।

विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने सोमवार को समझौते की घोषणा की. इस समझौते से यह साफ हो गया है कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच डेमचोक और देपसांग की स्थिति को लेकर विवाद सुलझ गया है. अब जवान यहां से लौटेंगे और गश्त फिर से शुरू होगी. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कार्यक्रम में कहा कि भारत और चीन की सेनाएं पुरानी स्थिति यानी अप्रैल 2020 की स्थिति पर लौट आएंगी।

दरअसल, जुलाई 2024 में भारत-चीन संबंधों को लेकर कूटनीतिक जगत में खूब चर्चा हुई थी. विदेश मंत्री जयशंकर ने अपनी लाओस यात्रा के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ चर्चा की। संभव है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शिखर वार्ता आयोजित करने पर चर्चा हुई हो।

रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक के लिए आवश्यक माहौल बनाने के लिए दोनों देशों ने सीमाओं से सेना हटाने का फैसला किया है। जाहिर है, इससे शिखर वार्ता के पक्ष में जनमत तैयार होगा। यदि राष्ट्रपति शी जिनपिंग रणनीतिक कौशल दिखाते हैं, तो द्विपक्षीय संबंध वुहान और महाबलीपुरम की भावना को फिर से जगाने का अवसर हो सकता है।

रूस की ओर से भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव रणनीतिक त्रय रूस-भारत-चीन (आरआईसी) प्रक्रिया के तहत पूर्व के तीन देशों पर चर्चा कर रहे हैं। गलवान घटना के बाद यह सिलसिला रुक गया है।

पुतिन भारत, रूस और चीन के बीच रणनीतिक त्रिकोणीकरण की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना चाहेंगे। सीमा विवादों के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत चीन से निवेश का इच्छुक है. इसे सरकारी नीति में बदलाव भी कहा जा सकता है।


Date: 23-10-24

‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ से दहशत

सतीश सिंह

डिजिटल हाउस अरेस्ट’ साइबर अपराध का नया स्वरूप है, जिससे आमजन दहशतजदा है, क्योंकि आए दिन कोई न कोई साहबर ठगों का शिकार बन रहा है और ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। ऐसी ठगी में पढ़े-लिखे लोग ज्यादा शिकार बन रहे हैं और ठगी के शिकार लोगों में बुजुर्गों की संख्या अधिक है।

विगत वर्षों में साइबर अपराधों में काफी विविधता आई है। ‘तू डाल-डाल, में पात-पात’ की तर्ज पर अपराधी अब नये-नये तरीकों से साहवर अपराध को अंजाम दे रहे हैं। इस क्रम में नई मोडस ऑपरेंडी है ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’। इस तकनीक की मदद से ऑनलाइन फ्रॉड में काफी तेजी आई है। उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2024 के पहले सप्ताह में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में एक 65 साल की बुजुर्ग महिला को 5 दिनों तक डिजिटली घर में कैद करके फर्जी पूछताछ किया गया और 46 लाख रुपए ठगे गए। इसी तर्ज पर अगस्त महीने में लखनऊ की एक महिला न्यूरो डॉक्टर को 6 दिनों तक डिजिटली गिरफ्तार करके ठगों ने 2.3 करोड़ रुपए ठग लिए। दोनों मामले में ठग खुद को सीबीआई अधिकारी बता रहे थे और बुजुर्ग महिला एवं महिला डॉक्टर को हवाला कारोबार में उनकी संलिप्तता बताकर इन दोनों ठगी को अंजाम दिया।

इस तरह की ठगी में ठग पुलिस, सीबीआई, ईडी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, राँ, नॉरकोटिक्स आदि का अधिकारी बनकर आडियो या वीडियो कॉल करके टार्गेट इतना डराते हैं कि वह अपनी जिंदगी भर की जमापूंजी ठग के खाते में ट्रांसफर कर देता है। ठगी को अंजाम देने के लिए ठग हर तरह के हथकंडे अपनाता है, जैसे टार्गेट के खाते का इस्तेमाल हवाला के लिए किया जा रहा है या उसका करीबी गिरफ्तार हो गया है या वह ड्रग्स स्मगलिंग या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है आदि। ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ को मूर्त रूप देने के लिए ठग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर रहे हैं। एआई के जरिये वे टार्गेट के सगे-संबंधियों के आवाज की नकल करके या फिर उसकी हूबहू वीडियो बनाकर टार्गेट को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं कि वे गंभीर संकट में हैं। ठगे जाने का मुख्य कारण डर, जागरूकता की कमी, सतर्क नहीं रहना और कुछ मामलों में खुद का भ्रष्ट होना है। चूंकि, ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ या दूसरे साइबर अपराधों को रोकने के लिए अभी भी पुख्ता कानून और प्रशिक्षित मानव संसाधन का अभाव है, इसलिए ऐसी ठगी को रोकना भारत में हाल फिलहाल में असंभव लग रहा है। आज की तारीख में देश में प्रशिक्षित साइवर पुलिस की भारी कमी है, जिसका फायदा साइबर ठगों को मिल रहा है। ‘विश्व साइबर अपराध सूचकांक’ में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है। इस सूचकांक में 100 देशों को शामिल किया गया है, जिसके मुताबिक साइबर अपराध के मामले में रूस शीर्ष पर है, जबकि यूक्रेन (2), चीन (3), अमेरिका (4), नाइजीरिया (5), रोमानिया (6) और उत्तर कोरिया (7) वें स्थान पर है।

आजकल किशोर बच्चियों को ऑनलाइन चैटिंग एप के जरिये ब्रेनवॉश करके या उनकी अश्लील तसवीरों को पॉर्न मार्केट में बेचकर और उनके पैरेंट्स को ब्लेकमेल करके ठगी को अंजाम दिया जा रहा है। ऑनलाइन गेमिंग, कूरियर, रिश्तेदार, दोस्त की गिरफ्तारी आदि की धमकी, अश्लील वीडियो आदि नये-नये तरीकों की मदद से ठगी करने के वारदातों में तेजी आई है। स्नैप चैट, फेसबुक और इंस्टाग्राम भी अब ठगी के साधन बन गए हैं। मित्र या रिश्तेदार की फर्जी प्रोफाइल बनाकर ऐसी ठगी को अंजाम दिया जा रहा है। हाल के वर्षों में कॉल फॉरवर्डिंग के जरिये साइबर अपराध करने की घटनाओं में उल्लेखनीय तेजी आई है। इस सुविधा का इस्तेमाल उपभोक्ता तब करते हैं, जब वे मीटिंग या किसी जरूरी काम में व्यस्त होते हैं, ताकि कोई जरूरी कॉल मिस न हो। बीते कुछ वर्षों से गूगल सर्च इंजन पर लोग अपने हर प्राप्न का जबाव ढूंढ रहे हैं। ऐसे मनोविज्ञान को दृष्टिगत कर ठग नामचीन भुगतान एप्स जैसे, गूगल पे, फोन पे, पेटीएम के नाम से अपना नंबर इंटरनेट पर सहेज रहे हैं, जिसके कारण खुद से लोग हैकर्स के जाल में फंस जाते हैं। ब्राउजर एक्सटेंशन के डाउनलोडिंग के जरिये भी साइबर अपराध किए जा रहे हैं। यह काम वायरस के जरिये किया जाता है। क्रोम, मोजिला आदि ब्राउजर के जरिए किए गए ऑनलाइन लेनदेन ब्राउजर के सर्वर में सेव हो जाते हैं, जिन्हें सेटिंग में जाकर डिलीट करने की जरूरत होती है, लेकिन अज्ञानतावश लोग ऐसा नहीं करते हैं, जिसका फायदा साइबर ठग उठाते हैं।

फिशिंग के तहत किसी बड़ी या नामचीन कंपनी का फर्जी वेवसाइट बनाकर लुभावने मेल किए जाते हैं, जिसमें मुफ्त में महंगी चीजें देने की बात कही गई होती है। हैकर्स एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये भी ऑफर वाले मैसेज भेजते हैं, जिसमें मैलवेयर युक्त हाइपर लिंक दिया हुआ होता है। आजकल साइबर अपराधी फोन काल्स या एसएमएस के द्वारा लोगों को विना कर्ज लिए ही कर्जदार बताकर उनसे पैसों की वसूली कर रहे हैं। ऐसी ब्लेकमेलिंग छोटी राशि मसलन 2000 से 5000 रुपए के लिए ज्यादा की जा रही है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग पुलिस में शिकायत नहीं करें।

ब्राउजिंग सेशन के दौरान संदेहास्पद पॉप अप से सतर्क रहें, https://पैड लॉक सिंबल वाला URL है या नहीं को सुनिश्चित करें, वेबसाइट्स या मोबाइल या पब्लिक लैपटॉप या डेस्कटॉप पर कार्ड की जानकारी साझा नहीं करें, अंजान नंबर या ईमेल आईडी से आए अटैचमेंट को तुरंत डिलीट कर दें और ऑनलाइन लॉटरी, कैसिनो, गेमिंग, शॉपिंग वा फ्री डाउनलोड वाले मैसेज की उपेक्षा करें तो फिशिंग मेल या एसएमएस वा व्हाट्सएप के जरिये फॉरवर्ड होने वाले संदेहास्पद हाइपर लिंक के जाल से बचा जा सकता है। साथ ही, कभी मनोवैज्ञानिक दबाव में नहीं आएं। धमकी मिलने पर पुलिस की मदद लेने से नहीं हिचकें। हमेशा जागरूक रहें। फोन, कंप्यूटर, टैबलेट के सॉफ्टवेयर को समयानुसार अपडेट करें, मजबूत पासवर्ड, अंजान लिंक को ओपेन करने से बचें, निजी जानकारी को सुरक्षित रखें, सार्वजनिक वाई- फाई के इस्तेमाल में सावधानी बरतें, एंटीवायरस का इस्तेमाल करें और नियमित रूप से उसे अपडेट करें आदि। सबसे महत्त्वपूर्ण है लालच से परहेज करें। मामले में
सावधानी ही बचाव है।