21-05-2016 (Important News Clippings)
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Date: 21-05-16
For global effort on beneficial owners
Sebi’s decision to tighten rules for participatory notes is acceptable in the larger objective of maintaining transparency on the identity of those investing in the markets. Sure, increased disclosure requirements, bringing P-Note holders under the ambit of Indian know-your-customer and anti-money-laundering rules and restricting the transfer of P-Notes among foreign investors will raise transaction costs, and complicate compliance for issuers. Investors, whose only interest is to avoid the hassle of registering themselves as foreign portfolio investors, rather than to hide their identity, should not find the new norms too onerous. The rest can, well, lump it.
The funds routed via P-Notes have fallen significantly in recent years. However, there also are credible entities such as university endowments investing via P-Notes. The strategy should be a gradual and automatic phase-out, not abrupt changes that would spook the market. Lowering the transaction cost of registering as an investor in the country will also encourage more investors to come in directly.
Some complementary action is required, while asking investors for identity disclosure. India should create a Unique Legal Entity Identifier, to bring out ultimate beneficial ownership. Britain has done well to launch a pilot initiative for automatic exchange of information on beneficial ownership with afew countries. The intent is to ask the Financial Action Task Force to develop the new standard. India is already a signatory to the automatic exchange of tax information among countries. It makes sense to join a similar initiative on beneficial ownership, with safeguards for confidentiality and data protection. The world needs standardised, interlinked registries of full beneficial ownership information.
Date: 20-05-16
कोचिंग का इलाज
किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों की भूमिका आज किसी से छिपी नहीं है। आज हालत यह है कि शिक्षा जगत के दायरे में इसे कोचिंग उद्योग के नाम से जाना जाने लगा है।
किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों की भूमिका आज किसी से छिपी नहीं है। आज हालत यह है कि शिक्षा जगत के दायरे में इसे कोचिंग उद्योग के नाम से जाना जाने लगा है। खासतौर पर इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता आज एक बड़ी समस्या बन चुकी है। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ताजा पहल अगर मूर्त रूप लेती है तो यह विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी राहत की बात होगी। मंत्रालय ने एक मोबाइल पोर्टल और ऐप लाने का इरादा जताया है, ताकि इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए कोचिंग की मजबूरी खत्म की जा सके। चूंकि इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, आयु, अवसर और परीक्षा का ढांचाकुछ ऐसा है कि विद्यार्थियों के सामने कम अवधि में कामयाब होने की कोशिश एक बाध्यता होती है इसलिए वे सीधे-सीधे कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं। अब अगर मोबाइल पोर्टल और ऐप की सुविधा उपलब्ध होती है, तो इससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए विद्यार्थियों के सामने कोचिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प खुलेंगे। दरअसल, कोचिंग संस्थान अपने यहां पढ़ाई करने वालों से इसी दावे के साथ अनाप-शनाप मोटी रकम वसूलते हैं कि उनके यहां बेहतरीन शिक्षक हैं जो सफलता को लगभग सुनिश्चित करते हैं। अब मोबाइल पोर्टल और ऐप पर इस पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों पर आइआइटी शिक्षकों के व्याख्यान के साथ-साथ प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों के पिछले पचास सालों की प्रवेश परीक्षा के प्रश्नपत्र होंगे। सबसे अहम पहलू यह है कि इन सुविधाओं के लिए विद्यार्थियों को अलग से कोई शुल्क नहीं देना होगा। इसके अलावा, यह भी तय किया गया है कि आइआइटी-जेईई प्रवेश परीक्षा के प्रश्न बारहवीं कक्षा के पाठ्यक्रम के अनुरूप होंगे। अभी तक इसकी तैयारी के लिए पढ़ाई का दायरा काफी बड़ा रहा है। जाहिर है, बारहवीं कक्षा के पाठ्यक्रम को पहले ही पढ़ चुके छात्रों के लिए यह एक बड़ी राहत होगी। राजस्थान का कोटा शहर आज आइआइटी-जेईई में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों का एक केंद्र बन चुका है। लेकिन इसी शहर में पिछले कुछ समय से चिंता का सबब बने विद्यार्थियों की आत्महत्या के सिलसिले में अनेक दूसरे पहलुओं के अलावा एक कारण कोचिंग संस्थानों की व्यवस्था, फीस, अनुशासन, दिनचर्या, पढ़ने के घंटे से लेकर विद्यार्थियों के प्रति उनका रवैया भी सामने आया है। कोचिंग के प्रचार के मकसद से कामयाबी को अनिवार्य बनाने लिए विद्यार्थियों पर दबाव उनमें से कइयों को अवसाद से भर देता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल इंजीयिरिंग के क्षेत्र में भविष्य बनाने के प्रति बढ़ते आकर्षण को देखते हुए इसकी तैयारी को पूरी तरह बाजार आधारित बना देने वाले कोचिंग संस्थानों के वर्चस्व को तोड़ने में सहायक साबित होगी। इस संदर्भ में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शिक्षा के व्यवसायीकरण पर भी चिंता जताई है। लेकिन घोर व्यवसायीकरण इंजीनियरिंग की तैयारी तक सीमित नहीं है। देश भर में शिक्षा-व्यवस्था जिस तरह धीरे-धीरे बाजार के हवाले होती जा रही है, उसका सबसे बड़ा खमियाजा समाज के कमजोर तबकों को भुगतना है। इसलिए व्यवसायीकरण से निजात दिलाने का तकाजा इंजीनियरिंग ही नहीं, मेडिकल समेत दूसरी पेशेवर पढ़ाइयों में भी है।