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15-02-2025 (Important News Clippings)
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Peace imperatives
President’s Rule in Manipur provides an opportunity for peace
Editorial
In Manipur, with the Bharatiya Janata Partyunable to identify a successor to N. Biren Singh for the post of Chief Minister and the Assembly also not having been convened even six months since its last sitting, President’s Rule was imposed in the State with the Assembly under suspended animation. Since mid-2023, in any case, a number of central forces have been deployed, with the Union Home Ministry in control over law and order even as the strife that began as an ethnic conflagration in May 2023 has shown no signs of easing. With President’s Rule being declared — even if it was for expedient reasons and showcased an inability of the BJP and its allies in government to overcome the ethnic differences within the legislature and in the polity — the Union government now has an opportunity to ease the tensions. It can also work on pressing issues such as the persisting displacement of over 60,000 people. Reports suggest that many among them still experience severe trauma and a loss of livelihoods, which must be tackled by the government with alacrity. President’s Rule also allows for the possibility of talks between representatives of the two communities in the conflict, especially those who are committed to peace. The legislators can also play a role in this exercise of reconciliation.
The other major issue is the militarisation of civil society, with the burgeoning of armed groups among the two communities, who have termed themselves as “village volunteers”, brandishing arms looted from constabularies. Earlier attempts to retrieve these weapons and bring the looters to face justice have not borne fruit. The militarisation in the new ethnic conflict has also been complicated by the expanded role of insurgents who were fighting the Indian state or were engaged in the Myanmar civil war. It would take a concerted effort by the government, armed forces and civil society actors to identify the “village volunteers”, disarm them by using a firm hand and with incentives, and then work on ways to tackle the insurgents. The Biren Singh regime was incapable of doing this because of the perceived bias in leadership and Mr. Singh’s tendency to stigmatise the Kuki-Zo community as a whole, leading to complete distrust. Efforts must be taken to distance the government from this coloured legacy and the Home Ministry should work on a war-footing to restore peace. Ideally, Assembly elections would have been necessitated immediately considering the deep ethnic divisions within the legislature and its failures. But, first, it is imperative to extinguish the climate of fear and reprehension from violent groups and restore the rule of law before elections.
घुसपैठियों के सवाल पर हमें भी सख्त होना पड़ेगा
संपादकीय
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि किस कानून के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने में ढाका की अनुमति जरूरी है। इस मामले मैं कोर्ट ने ट्रम्पको उदाहरण माना। कोर्ट की सोच सही है। अगर 28 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी 80 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति आय, 40 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी आबादी- घनत्व वाला दुनिया का सबसे ताकतवर देश अपने हित में 1.5 करोड़ घुसपैठियों को हथकड़ी पहनाकर उनके मूल देश भेजने में किसी से नहीं पूछ रहा है, तो भारत को क्यों अर्थव्यवस्था ही नहीं, सामजिक संरचना, जनसांख्यिकी संतुलन और राजनीतिक परिदृश्य बिगाड़ने वाले दो करोड़ ऐसे घुसपैठियों पर रहम करना चाहिए? अमेरिका के मुकाबले भारत की इकॉनोमी 4 ट्रिलियन डॉलर, प्रति व्यक्ति आय (नॉमिनल) 2950 डॉलर, आबादी घनत्व 12 गुना ज्यादा और रोजगार समस्या विकराल है। दो करोड़ विदेशी घुसपैठिए भारत जैसे देश के लिए बड़ी समस्या हैं। वे उन गरीबों का काम छीन रहे हैं, जो गांव से शहर में काम की तलाश में आते हैं। भारतीय श्रमिकों को अपने बच्चे को पढ़ाने और बेहतर जीवन दिलाने की ललक होती है, जो घुसपैठियों में नहीं होती । पीढ़ी-दर-पीढ़ी बाहरी घुसपैठिए देश पर बोझ बने रहते हैं। वोट के लालच में इन्हें राजनीतिक प्रश्रय दिया जा रहा है। संसद में बांग्लादेशी घुसपैठियों का सही आंकड़ा देने वाले एक मंत्री को अगले दिन ही ‘भूलसुधार करना पड़ा था !
भारत-अमेरिका की दोस्ती
संपादकीय
भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाहें थीं। एक तो इसलिए कि मोदी उन चुनिंदा शासनाध्यक्षों में से एक हैं, जिनसे डोनाल्ड ट्रंप ने प्रारंभिक दौर में ही मुलाकात करना बेहतर समझा और दूसरे इसलिए कि भारत अब एक बड़ी ताकत बन चुका है और वैश्विक मामलों में उसका रुख-रवैया मायने रखता है। इस मुलाकात को लेकर जिज्ञासा का एक कारण यह भी था कि बाइडन प्रशासन के समय अमेरिका और भारत के संबंधों में एक खिंचाव आ गया था। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा था कि बाइडन प्रशासन भारतीय हितों की वैसी चिंता नहीं कर रहा है, जैसी करनी चाहिए। मोदी और ट्रंप की मुलाकात ने यह तो रेखांकित किया कि दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी लौट आई है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका भारत की समस्त चिंताओं का समाधान करने जा रहा है। इसका संकेत इससे मिलता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के मामले में भी पारस्परिक टैरिफ की नीति पर चलने की घोषणा कर दी। यदि ट्रंप प्रशासन इस घोषणा पर वास्तव में अमल करता है तो जापान, यूरोपीय संघ के देशों के साथ भारत सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में हो सकता है। पारस्परिक टैरिफ से भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिकी बाजार में स्थान बनाना कठिन हो सकता है। इसके नतीजे में अमेरिका में भारतीय निर्यात घट सकता है। इससे भारत के आर्थिक हितों को नुकसान होगा, क्योंकि जीडीपी में निर्यात की अहम भूमिका है और अमेरिका हमारा प्रमुख व्यापारिक सहयोगी देश है।
यह ठीक है कि ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत के मन मुताबिक बात कही, सीमा पार यानी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से मिलकर लड़ने का वादा किया और मुंबई हमले की साजिश में शामिल रहे पाकिस्तान मूल के कनाडाई आतंकी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा की, लेकिन अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों की भारत विरोधी गतिविधियों पर कुछ नहीं कहा। भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान ऊर्जा, तकनीक के साथ अन्य कई क्षेत्रों में जो अनेक समझौते हुए, उनसे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के संबंधों में और प्रगाढ़ता आने जा रही है। इसका पता इससे भी चलता है कि विकसित भारत के लक्ष्य में सहायक बनने वाले विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका से सहयोग की राह प्रशस्त होती दिख रही है और अब भारत अमेरिका से कच्चा तेल और गैस खरीदने के साथ आधुनिक रक्षा उपकरण एवं तकनीक हासिल करने में भी समर्थ होगा, लेकिन क्या लड़ाकू विमान एफ-35 की खरीद हमारी प्राथमिकता सूची में शामिल है? इसमें संदेह नहीं कि भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात ने मैत्री संबंधों को मजबूत करने का माहौल बनाया, लेकिन यह समय बताएगा कि ट्रंप भारत की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हैं या नहीं?
Date: 15-02-25
तैयार हुआ भविष्य के संबंधों का खाका
हर्ष वी. पंत, ( लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं )
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अस्थिर, अनपेक्षित एवं अप्रत्याशित स्वभाव सर्वविदित है। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने अपनी चिरपरिचित शैली में एक के बाद एक फैसलों से पूरी दुनिया को चौंकाने का काम किया है। उनके रुख से स्पष्ट है कि पहले कार्यकाल की तुलना में राष्ट्रपति के रूप में अपनी दूसरी पारी में उनका रवैया और आक्रामक रहने वाला है। वह अमेरिका की प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय कर रहे हैं। ऐसे में दुनिया भर के देशों को भी अमेरिका के साथ अपने संबंधों की नई रूपरेखा बनानी पड़ रही है। ऐसे समय में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी दौरे पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं। दोनों नेताओं की बातचीत में कई उलझाऊ मुद्दों के सुलझने के आसार बनते दिखे तो अगले चार साल के लिए द्विपक्षीय संबंधों का खाका भी खिंचा।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच बैठक में निजी आत्मीयता के भी दर्शन हुए। व्हाइट हाउस में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि ‘उन्हें उनकी कमी महसूस हो रही थी।’ इजरायली प्रधानमंत्री, जापानी प्रधानमंत्री और जार्डन के राजा के बाद मोदी चौथे वैश्विक नेता हैं, जिनकी ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में मेजबानी की। इस तरह सांकेतिक तौर पर भी इस दौरे की महत्ता सहज ही समझी जा सकती है। ट्रंप का जैसा व्यक्तित्व है उसे देखते हुए उनके साथ समीकरण दुरुस्त रखने में निजी संबंध बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। प्रधानमंत्री को ट्रंप ने मित्र के रूप में संबोधित करते हुए उन्हें ‘टफ नेगोशिएटर’ यानी सौदेबाजी में सख्त और दक्ष भी बताया। पीएम मोदी ने भी ट्रंप के विजन ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और अपनी संकल्पना ‘विकसित भारत’ के बीच समानता दर्शाते हुए साझा दृष्टिकोण को रेखांकित किया।
दुनिया भर के देश जिस तरह अमेरिका के साथ अपने संबंधों के पुनर्संयोजन में लगे हैं, उसे देखते हुए भारत को भी देर-सबेर यह काम करना था। प्रधानमंत्री के दौरे के साथ यह प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू भी हो गई। ट्रंप प्रशासन इस समय टैरिफ को लेकर बहुत आक्रामक है और पीएम मोदी के साथ बैठक से कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने जवाबी टैरिफ को लेकर कदम बढ़ाने की घोषणा भी की। स्वाभाविक है कि दोनों नेताओं के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई है। राष्ट्रपति ट्रंप ने जवाबी टैरिफ का एलान जरूर किया है, लेकिन अभी उसके लिए आकलन एवं अन्य पहलुओं को तय किया जाना शेष है। ऐसे में कहीं न कहीं भारत के लिए अपने हितों को सुरक्षित बनाए रखने की गुंजाइश बनी हुई है। अब यह वार्ताकारों पर निर्भर करता है कि इसे किस तरह आगे बढ़ाया जाता है। हालांकि दोनों देशों ने वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इससे तय है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ेगा और इस राह में संभावित अवरोधों को समय रहते दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
अमेरिका ने भारत को अत्याधुनिक रक्षा तकनीक और तेल एवं गैस के साथ ही अन्य उभरती हुई प्रौद्योगिकियों की जो पेशकश की है, उससे व्यापारिक संबंधों को नया आयाम मिलेगा। हिंद प्रशांत से लेकर पश्चिम एशिया में परस्पर हितों के लिए दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी को सैन्य प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से और मजबूती मिलेगी। जहां तेल एवं गैस की बिक्री से भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी, वहीं हाइड्रोकार्बन खरीद में विविधीकरण बढ़ेगा और कुछ पक्षों पर निर्भरता घटेगी। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई जैसे नए उभरते हुए क्षेत्रों में दोनों पक्षों के बीच बढ़ता हुआ सहयोग न केवल द्विपक्षीय, बल्कि वैश्विक व्यवस्था को भी लाभ पहुंचाएगा।
रूस-यूक्रेन के बीच तनाव घटाने को लेकर ट्रंप जिस तरह सक्रिय एवं प्रतिबद्ध हैं, उससे भी भारत के लिए वैश्विक व्यापार में सुगमता बढ़ेगी, क्योंकि बाइडन प्रशासन ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हुए थे। इसी तरह चाबहार बंदरगाह का मामला ट्रंप ने विदेश मंत्री मार्को रूबियो पर छोड़ दिया है कि वही तय करें कि क्या करना है। इससे यही संकेत मिलता है कि भारत को छूट जारी रहेगी।
सामरिक मोर्चे पर भी दोनों देशों की जुगलबंदी और बेहतर हो रही है। पश्चिम एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए दोनों देशों ने अपने प्रयासों की प्रतिबद्धताओं को पुन: व्यक्त किया है। पश्चिमी एशिया में जहां आइटूयूटू को व्यापकता दी जाएगी वहीं हिंद-प्रशांत के लिए हिंद महासागर पहल की घोषणा की गई है। अमेरिका बार-बार स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बात दोहराता है और यह सुनिश्चित करने में भारत की साझेदारी को अहमियत देता रहा है। चीन की बढ़ती हुई चुनौती और प्रमुख वैश्विक व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा के लिए दोनों देशों के ऐसे प्रयास बहुत आवश्यक भी हैं। आतंकवाद के मुद्दे पर भी दोनों देशों की साझा चिंता सामने आई। अमेरिका ने तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताओं से भी अमेरिका ने सहमति जताई है। भारत के लिए परेशानी बढ़ा रहे बांग्लादेश के मामले में तो राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि इस पड़ोसी देश के मामले में जो करना है वह प्रधानमंत्री मोदी ही तय करें। इसे बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के लिए कड़ा संदेश समझा जाए, जिसके बारे में माना जाता है कि बाइडन प्रशासन की मेहरबानी से ही वह अस्तित्व में आ सकी।
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में आर्थिक, सामरिक एवं रणनीतिक संबंधों पर व्यापक सहमति बनी है। दोनों देश 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप संबंधों को आकार देने की दिशा में आगे बढ़े हैं। कुछ मुद्दों पर जरूर अभी भी पेच फंसा हुआ है, लेकिन मोदी-ट्रंप की आत्मीयता और परस्पर हितों की गहरी समझ को देखते हुए आने वाले समय में उनके भी सुलझने की उम्मीद बढ़ी है।
सहयोग का संबंध
संपादकीय
प्रधानमंत्री की इस बार की अमेरिका यात्रा कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। जबसे डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति का पद संभाला है, वे कई मामलों में काफी आक्रामक नजर आ रहे हैं। खासकर प्रवासियों और व्यापार संबंधों को लेकर पदभार संभालने के साथ ही जिस तरह उन्होंने भारतीय मूल के अवैध प्रवासियों की पहली खेप बेड़ियों में जकड़ कर वापस भेज दी, उससे कई तरह की चिंताएं जताई जाने लगी थीं। हालांकि प्रधानमंत्री इस बार राजकीय यात्रा पर नहीं गए थे, मगर डोनाल्ड ट्रंप ने उनके साथ पूरी गरमजोशी दिखाई। इस मुलाकात में कई तरह के भ्रम भी दूर हुए कुछ लोग कयास लगा रहे थे कि ट्रंप जिस तरह कुछ देशों के साथ व्यापार पर अतिरिक्त शुल्क थोप रहे हैं और अमेरिकी हितों को तरजीह दे रहे हैं, उसमें | भारत के साथ भी व्यापार प्रभावित हो सकता है। मगर ट्रंप ने इस कवास को साफ कर दिया। उन्होंने कहा कि जो देश जितना शुल्क लगाएगा, अमेरिका भी उस पर उतना ही शुल्क लगाएगा, न कम न ज्यादा इसका साथ ही उन्होंने भारत सरकार के इस फैसले की तारीफ की कि उसने अनावश्यक शुल्क हटाना शुरू कर दिया है, जिससे भारतीय बाजार में अमेरिका की पहुंच कुछ और बढ़ेगी।
दोनों देशों ने प्रतिरक्षा, तेल-गैस, नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग, आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग और प्रतिरक्षा खरीद मामलों ने महत्त्वपूर्ण समझौते किए। अमेरिका भारत को एफ-35 युद्धक विमान बेचने का इच्छुक है। भारत ने इस पर सहमति दे दी है। हालांकि इस संबंध में अभी कोई आधिकारिक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, पर भारत मानता है कि इस विमान की खरीद से उसकी सामरिक शक्ति बढ़ेगी। अमेरिका ने भरोसा दिलाया है कि वह भारत की नागरिक परमाणु ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करेगा और हर सहयोग उपलब्ध कराएगा वह भारत की तेल और गैस संबंधी जरूरतों को पूरा करेगा। दरअसल, भारत की चिंता कच्चे तेल की अधिक रहती है। रूस यूक्रेन और इजराइल – फिलस्तीन संघर्ष के बीच आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई, तो कच्चे तेल के मामले में भारत ने रूस से सहयोग लेना शुरू कर दिया। अब अमेरिका से इस क्षेत्र में सहयोग मिलेगा, तो निश्चय ही उस पर दबाव कुछ कम होगा।
आतंकवाद के मुद्दे पर भारत और अमेरिका लंबे समय से सहयोगी रहे हैं। मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहब्बुर राणा के प्रत्यर्पण को लेकर अमेरिका ने सकारात्मक रुख दिखाया है, उससे दोनों के रिश्ते और प्रगाढ़ हुए हैं। अवैध आप्रवासन को लेकर अमेरिका की चिंता पर भारत ने कहा कि वह अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार है, बेशक उन्हें ससम्मान वापस भेजा जाए। यही नहीं, प्रधानमंत्री ने उन मानव तस्करों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने का वादा किया, जो भारत से लोगों को बरगला या बहला कर दूसरे देशों में ले जाते हैं। निश्चय ही यह अमेरिका के फैसले के प्रति सकारात्मक रुख है। सबसे अधिक चिंता व्यापार पर अतिरिक्त शुल्क लगाने से भारत के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की चिंता जताई जा रही थी, मगर उस चिंता को दूर करते हुए दोनों देशों ने भरोसा दिलाया है कि वे 2030 तक आपसी व्यापार को दोगुना करेंगे। इससे न केवल दोनों देशों का व्यापार घाटा कम होगा, बल्कि दोनों का बाजार कुछ और विस्तृत होगा। अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में जिस गतिरोध की आशंका जताई जा रही थी, वह समाप्त हो गई है। प्रधानमंत्री की इस यात्रा की यह बड़ी उपलब्धि है।
समन्वय का संतोष
संपादकीय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत- अमेरिका संबंधों को जिस तरह से आगे बढ़ाया है, वह सुखद और संतोषजनक है। व्हाइट हाउस में हुई इस महत्वपूर्ण मुलाकात से पहले एक तनाव देखा जा रहा था और आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, पर कुल मिलाकर, दोनों नेताओं के बीच बातचीत संतुलित और सकारात्मक रही है। दोनों देशों ने अपनी-अपनी चिंताओं के बीच से एक रास्ता निकालने की कोशिश की है और इससे भारत के बढ़ते महत्व का ही पता चलता है। दोनों देशों के बीच टैरिफ का तनाव कायम है, लेकिन इतना संकेत जरूर मिल गया है कि दोनों के बीच व्यापार का बढ़ना तय है। यह भी संकेत मिल गया है कि दोनों देश एक-दूसरे को रियायत देने के लिए कदम उठाएंगे। साल 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 अरब डॉलर करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। दोनों नेताओं ने पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते की जरूरत पर बल दिया है। गौर करने की बात एक यह भी है कि 10 साल की रक्षा सहयोग योजना के तहत अमेरिका भारत को एफ-35 लड़ाकू जेट की बिक्री कर सकता है।
अव्वल तो दोनों शीर्ष नेताओं के बीच जो सहजता दिखी है, उसे रेखांकित करना चाहिए। दोनों शासनाध्यक्षों ने एक-दूसरे के प्रति अनौपचारिक रूप से भी लगाव का प्रदर्शन किया है। ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री को बहुत बेहतर वार्ताकार बताया तो ट्रंप की नीतियों और नारों के प्रति भारतीय प्रधानमंत्री का लगाव भी उल्लेखनीय रहा। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की तरह ही प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ का जयघोष किया है। यह घोषणा दरअसल ट्रंप की नीतियों की प्रशंसा ही है। अगर अमेरिका की महानता सही दिशा में निर्मित हो, तो इससे विकसित भारत का भी निर्माण जुड़ा हुआ है। आज दुनिया में जिस तरह की राजनीति या कूटनीति चल रही है, उसमें भारत का अमेरिका के साथ खड़े होना और उससे यथासंभव आर्थिक सहयोग लेना अचरज की बात नहीं। भारत अनेक अमेरिकी उत्पादों के आयात पर तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक शुल्क लगाता है और ऐसा करना बहुत हद तक जरूरी है। हां, अंतर केवल इतना आएगा कि भारत को कुछ उत्पादों पर शुल्क घटाना पड़ेगा। जहां भारत के स्थानीय उत्पादकों या किसानों पर ज्यादा आर्थिक चोट की आशंका होगी, वहां भारत को समन्वय से रास्ता निकालना होगा। अमेरिका विरोधी रुख पालने के बजाय मिलकर चलने का इरादा चाहिए। लड़ाने वाले तो बहुत मिलेंगे, पर यहां भारत को ज्यादा सावधान रहना होगा।
भारत को बस इतना सुनिश्चित रखना चाहिए कि वह सदैव विकास के साथ खड़ा रहे, किसी के विनाश की योजना के साथ नहीं। युद्धरोकने के लिए ट्रंप प्रयासरत हैं, इस पर भारत कुछ ज्यादा बात कर सकता था। युद्ध, आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ भारत की मजबूती बनी रहनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यावहारिक आश्वासन दिया है कि भारत अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है। साथ ही, प्रधानमंत्री ने मानव तस्करी नेटवर्क को ख़त्म करने के लिए संयुक्त प्रयासों का भी आह्वान किया। बांग्लादेश और आतंकी तहव्वर राणा पर भी चर्चा स्वागतयोग्य है। दक्षिण एशिया में ट्रंप भारत के महत्व को समझते हैं और भारत को अपना महत्व बढ़ाने के और प्रयास करने चाहिए।
Date: 15-02-25
मजबूत रिश्तों की नई मंजिल की ओर बढ़े मोदी-ट्रंप
हर्ष वी पंत, ( प्रोफेसर, किंग्स कॉलेज लंदन )
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा ‘ट्रंप 2.0’ के दौरान दोनों देशों के आपसी रिश्तों का रोडमैप तैयार करता दिखा। इस यात्रा में उन तमाम मुद्दों पर सार्थक बातें हुईं, जिनसे द्विपक्षीय रिश्तों को गति मिलेगी। चाहे सबसे अहम आर्थिक मसला हो या रक्षा व तकनीक से जुड़े मुद्दे या फिर ऊर्जा सुरक्षा | दोनों नेताओं ने लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने व बहुपक्षीय सहयोग पर भी जोर दिया। साझा बयान में आतंकवाद की निंदा करते हुए बाकायदा पाकिस्तान का नाम लेते हुए कहा गया कि मुंबई व पठानकोट हमलों के गुनहगारों को न्याय के कठघरे में खड़ा करने के साथ-साथ इस्लामाबाद को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी जमीन का इस्तेमाल किसी आतंकी गतिविधि के लिए नहीं हो। स्पष्ट है, प्रधानमंत्री मोदी का यह सफल दौरा रहा है। इसका संकेत मोदी-ट्रंप प्रेस वार्ता से भी मिला, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने 2020 में ट्रंप की भारत यात्रा का जिक्र करते हुए 1.4 अरब भारतीयों की तरफ से अमेरिकी राष्ट्रपति को फिर भारत आने का न्योता दिया, जिसे डोनाल्ड ट्रंप ने भी खुले दिल से स्वीकार किया।
ट्रंप ने इस बात पर खुशी जताई है कि भारत ने आम बजट में उन कुछ क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है, जिसको लेकर अमेरिका की चिंता रही है। पिछले दिनों टैरिफ बढ़ाने की कवायद इसलिए भी की गई थी, क्योंकि व्यापार घाटा भारत की तरफ झुका हुआ है। माना जा रहा है कि मोदी- ट्रंप मुलाकात के बाद दोनों देश एक नई आर्थिक संरचना की तरफ आगे बढ़ सकते हैं, जिसमें दोनों के हितों की पूर्ति हो सकेगी। हालांकि, ऐसा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि ट्रंप प्रशासन अमेरिकी हितों को लेकर गंभीर है, तो भारतीय हितों की रक्षा को लेकर वह भी प्रतिबद्ध हैं। इसका मतलब है कि मोल-भाव की जो प्रक्रिया आगे शुरू होने वाली है, वह दिलचस्प रहेगी। अच्छी बात यह भी है कि दोनों देशों ने ‘मिशन- 500’ का लक्ष्य बनाया है, जिसका अर्थ है- 2030 तक द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर तक ले जाना। यह बताता है कि दोनों पक्ष आर्थिक रिश्ते को मजबूती देने को लेकर संकल्पित हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा यह सोचने के बावजूद कि भारत में सीमा शुल्क ज्यादा है, वाशिंगटन आशान्वित है कि भारत के साथ रिश्ते और प्रगाढ़ बनने चाहिए।
रक्षा व तकनीक के क्षेत्र में हुई चर्चा के भी काफी गहरे निहितार्थ हैं। द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दूरगामी बदलाव लाने के लिए एक नई पहल ‘ 21 वीं सदी के लिए अमेरिका-इंडिया कॉम्पैक्ट (सैन्य साझेदारी, वाणिज्यिक और तकनीकी सहयोग के लिए नए अवसरों को आगे बढ़ाना) ‘ की शुरुआत जहां काफी महत्वपूर्ण है, वहीं भारत का यह नजरिया भी अहम है कि भारत-अमेरिका रक्षा संबंध को क्रेता-विक्रेता के रूप में आगे बढ़ाने के बजाय साझा निर्माण की दिशा में बढ़ाना चाहिए। ‘जेवलिन’ और ‘स्ट्राइकर’ की खरीद पर सहमति तो बनी ही, सह-उत्पादन पर भी दोनों देश राजी हुए। यह उस तथ्य की पुष्टि है, जिसमें कहा जाता था कि भारत और अमेरिका अत्याधुनिक तकनीक और रक्षा के मोर्चे पर आपसी संबंध को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं। अमेरिका इस बात भी खुश दिखा कि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों में उसकी अहमियत समझी है। शेल गैस, एलएनजी में अमेरिका हमारा अहम सहयोगी बन सकता है।
सामरिक मुद्दों की बात करें, तो दोनों ही पक्ष पश्चिम एशिया और हिंद-प्रशांत में नए फ्रेमवर्क की तलाश करते दिखे। इस बात पर भी सहमति बनी कि वैश्विक सहयोग के रूप में इस ढांचे को आगे बढ़ाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि अमेरिका हिंद-प्रशांत में भारत की भूमिका बखूबी समझता है। क्वाड को पुनर्जीवित इसलिए भी किया गया है, ताकि हिंद-प्रशांत में चीन की दखलंदाजी से पार पाया जा सके। पश्चिम एशिया में भी कुछ मामलों में भारत का पलड़ा भारी है, इसलिए अमेरिका वैश्विक व्यवस्था को नया रूप देने में इस स्थिति का लाभ उठाना चाहता है।
साफ है, इस मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप, दोनों शासनाध्यक्षों ने नए मानक तय किए हैं, जिन पर भारतीय और अमेरिकी नौकरशाहों को अब आगे बढ़ना होगा। वे किस तरह से एक-दूसरे को समझौतों के लिए तैयार कर पाते हैं, इसका पता तो बाद में चलेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन के अगले चार वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों में काफी स्थिरता देखने को मिल सकती है।