13-01-2025 (Important News Clippings)

Afeias
13 Jan 2025
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  Date: 13-01-25

Data Dining

Culinary smarts may not be enough in the food biz when online platforms are armed with customer data

TOI Editorial

Instant gratification is still a dream but we are getting there. From a 30-minute pizza delivery, we’ve come to chhole-bhature in 10 minutes. Blinkit’s Bistro, Swiggy’s Bolt and Snacc, Zepto’s Cafe, Swish, Zing and MagicNow are already in the super-quick delivery game, more might follow. But there’s a hitch. Notice that these are tech firms that started out connecting restaurants with customers. In a sense, they were online marketplaces for food.

Restaurants – big brands and small – did the cooking, they did the connecting and carrying. In the beginning they even sweetened deals by throwing in discounts. But now aggregators reportedly want to bypass brands for quicker deliveries, and restaurants don’t like it.

It’s a free country, so why not? National Restaurant Association of India (NRAI), which claims to represent over 500,000 restaurants, says the aggregators have totted up mountains of data about customers over the years without sharing it with them. They know what all Mrs Bedi ordered over the past five years, from where, payment methods she used, discounts she applied, ratings she gave…everything. One food aggregator recently shared it had fulfilled 9.1cr biryani orders and 5.8cr pizza orders last year. That’s the data mound they are sitting on. No wonder, restaurateurs are worried. They say aggregators know customers so well, and online ordering has become such a habit, that ‘private labels’ – new food brands created and owned by aggregators – could hurt established restaurants.

NRAI and another hospitality body, Federation of Hotel & Restaurant Associations of India (FHRAI), argue that there’s nothing fair about a marketplace competing with individual sellers. It’s like a mall owner who sets up their own-brand food court, cinema and shops on the ground floor and forces renters upstairs. Of course, renters can move to another aggregator or marketplace, but NRAI and FHRAI say data dominance of leading aggregators is an entry barrier for new aggregators, just as alternative search engines struggle to compete with the market leader.
The matter seems headed to the commerce ministry and Competition Commission of India, but aggregators deny using data to undercut restaurants and argue they have built separate apps for their 10-minute services. We would take them at their word, but data occupies a grey zone in India. That said, while data can net customers, only good food will retain them. The restaurant business is a cautionary tale – by some accounts it has the highest failure rate. Aggregators donning the chef ’s hat should be prepared to burn their fingers.


   Date: 13-01-25

चुनौती है बड़ी

संपादकीय

डार्क वेष, क्रिप्टोकरेंसी और ड्रोन देश के लिए चुनौती बने हुए हैं, और इनको लेकर सख्त कदम उठाने होंगे। नई दिल्ली में ‘मादक पदार्थों की तस्करी और राष्ट्रीय सुरक्षा’ विषयक क्षेत्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि राष्ट्र मादक पदार्थ की तस्करी देश के अंदर या बाहर कतई नहीं होने देगा। कहा कि सरकार ने न केवल मादक पदार्थों के कई नेटवर्क को खत्म करने में सफलता पाई है, बल्कि उनसे जुड़े आतंकवाद को भी नेस्तानाबूद किया है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश में नाक आतंकवाद के कई मामलों का भंडाफोड़ किया गया है और ये बड़ी उपलब्धियां हैं। बेशक, केंद्र और राज्य सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसियां चाक-चौबंदी से नशे के काले का धंधे पर जोरदार प्रहार कर रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि डार्क वेव, क्रिप्टोकरेंसी, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, ड्रोन का इस्तेमाल आज भी हमारे लिए चुनौती बने हुए हैं। डार्क वेब इंटरनेट के उस गुप्त हिस्से को संदर्भित करता है, जिस तक केवल विशेष सॉफ्टवेयर और टूल के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। जहां तक क्रिप्टोकरेंसी की बात है, तो यह एक आभासी मुद्रा है, जो भारत में नियमित नहीं है। इसके जरिए लेनदेन पर निगरानी रखने में एजेंसियों को खासी दिक्कत दरपेश रहती हैं। अलबत्ता, ड्रोन के जरिए सीमा पार से भारतीय सीमा में नशीले पदार्थ में ड्रॉप किए जाने के तरीके पर खासी हद तक लगाम कसमें भारतीय सुरक्षा वल सफल हुए हैं। बहरहाल, नशीले पदार्थों की तस्करी संबंधी कार्यकलाप देश की सुरक्षा और विकास के लिए खासा खतरा हैं और राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और तकनीशियनों को अपने संयुक्त प्रवासों से इन चुनौतियों से पार पाना होगा। इसके लिए तकनीकी सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया जाना जरूरी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सरकार के स्तर पर इच्छाशक्ति होना बेहद जरूरी है। अच्छी बात है। कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मादक पदार्थों के खिलाफ लड़ाई को नई ताकत मिली है। इसी का नतीजा है कि बीते दस वर्षों में मादक पदार्थ की जब्ती में सात गुना वृद्धि हुई है, और मोदी सरकार ने वारंवार संकल्प दोहराया है कि मादक पदार्थ के सुमचे तंत्र को उखाड़ फेंकेंगे। इसके लिए 3 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मादक पदार्थों के तस्करी पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। प्रयासों के नतीजाकून होने के लिए जरूरी है कि नशामुक्त भारत अभियान में तेजी लाई जाए। नशे के व्यसन से मुक्त समाज ही सबसे बड़ा सुरक्षा उपाय है।


   Date: 13-01-25

नई पीढ़ी का आगाज

संपादकीय

इंटरनेट पर सजग या सक्रिय पीढ़ियों को ठीक से पता है कि 1 जनवरी, 2025 से जेनरेशन बीटा का आगाज हो गया है। यह एक ऐसी पीढ़ी होगी, जिनके जीवन का पल-पल तकनीक की बुनियाद पर संवरेगा। वास्तव में, यह पीड़ीगत बदलाव खास तवज्जो की मांग कर रहा है और यह अपनी पिछली पीढ़ियों को भी प्रेरित कर रहा है। पहले के दौर में पीढ़ियों पर इतनी गहराई से काम नहीं होता था, लेकिन अब यह काम मुस्तैदी से हो रहा है, क्योंकि इसमें बाजार का अपना हित है। लोगों की मानसिकता को समझना बाजार के लिए जरूरी है। बाजार को भी यह चिंता है कि नई पीढ़ी किस तरह का व्यवहार करेगी, उसे किस दिशा में ले जाना ज्यादा मुफीद रहेगा। कोई आश्चर्य नहीं कि ऑस्ट्रेलियाई रुझान और जनसांख्यिकी विश्लेषण कंपनी मैककिंडल ही पीढ़ी का नामकरण करती है। इसी कंपनी ने दुनिया को बताया है कि जेनरेशन बीटा अर्थात जेन बीटा में साल 2025 से 2039 के बीच पैदा लोग शामिल रहेंगे। हर पंद्रह साल में पीढ़ी परिवर्तन नई बात नहीं है, लेकिन उसका विश्लेषण दिलचस्प है। सबसे खास बात यह है कि बीटा पीढ़ी के अनेक लोग अगली सदी के भी दर्शन करेंगे।

इस पीढ़ी की दुनिया में आबादी 16 प्रतिशत हो जाएगी और एआई के परिपक्व दौर की यह पीढ़ी ही आगे चलकर दुनिया को राह दिखाएगी। मोटे तौर पर यह बीटा पीढ़ी मिलेनियल्स और जेड पीढ़ी के युवाओं की संतान होगी। अभी तक मिलेनियल्स पीढ़ी को बहुत ताकतवर माना जाता है, इस पीढ़ी ने तेज तकनीकी बदलाव देखे हैं। जेड पीढ़ी को तकनीकी मामलों में उससे भी तेज माना जाता कितने तेज होंगे, सहज ही अनुमान है, अतः इन दोनों पीढ़ियों के बच्चे कितने तेज होंगे, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। तय है, अल्फा पीढ़ी के साथ बीटा पीढ़ी भी एक अलग ही तकनीक प्रधान दुनिया के दर्शन करेगी। वास्तव में, ये नई पीढ़ियां हमें सोचने के लिए विवश कर रही हैं। एक चिंता भी है, जो शायद इस नई पीढ़ी को उतनी जरूरी नहीं लगेगी। इनका कैसा होगा खान-पान, रहन-सहन, आचार-व्यवहार? यही वे मोर्चे हैं, जहां शिक्षा और सही संस्कार को सुनिश्चित करना सबसे जरूरी हो गया है। पीढ़ियों को अमन-चैन और तरक्की वाली दुनिया मिले; लंबा और स्वस्थ जीवन मिले, इसके प्रबंध सभी सरकारों को करने पड़ेंगे। राजनीतिक पार्टियों को भी भविष्य की योजनाओं के साथ सामने आना पड़ेगा। पीढ़ी के साथ देश भी बदल जाता है, तो क्या हमारे देश में सियासी दल सकारात्मक बदलावों के लिए तैयार हैं?

यह रोचक बात है कि हमारी दुनिया कितनी विविध और संपन्न है। हमारे बीच अभी भी वह पीढ़ी है, जिसको मूक माना जाता है, जो साल 1928 से 1945 के बीच जन्मी थी। यह अपने चरम दौर में सबसे व्यावहारिक और सतर्क पीढ़ी साबित हुई। उसके बाद बेबी बूमर्स पीढ़ी (1946-1964) आई, जिसने विश्व युद्धों से उबरकर दुनिया को नई प्रगतिशील आबादी से गुलजार कर दिया। फिर आई एक्स पीढ़ी (1965-1979), जिसने दुनिया में बड़े-बड़े बदलावों के साथ तालमेल बिठाया। उसके बाद आए मिलेनियल्स, जो 1980 से 1994 के बीच जन्मे और नई सदी में वयस्क हुए। यह पीढ़ी भी सुविधाओं के हिसाब से बहुत भाग्यशाली मानी जाती है। उसके बाद जेन जेड (1995-2009) और फिर जेनरेशन अल्फा (2010-2024) की आजकल सर्वाधिक चर्चा रहती है। यह पीढ़ियों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है और सभी पीढ़ियों को समझते हुए ही हमें आगे बढ़ना है।


 Date: 13-01-25

साइबर संसार में आम लोगों को अधिकार देने की कवायद

हरजिंदर, ( वरिष्ठ पत्रकार )

कुछ साल पहले तक हम यह मान बैठे थे कि इंटरनेट पूरी दुनिया को जोड़ देगा और फिर देशों की सीमाएं व पाबंदियां बेमतलब दिखाई देंगी। इससे दुनिया भर के लोग जुड़े भी, पर सरहदों के खत्म होने की बात खामख्याली ही साबित हुई, बल्कि पिछले कुछ समय से लग रहा है कि चीजें उल्टी दिशा में जा रही हैं। ईरान एक ऐसी व्यवस्था बनाने में जुटा है, जिसे ‘हलाल इंटरनेट’ कहा जा रहा है। इसका जो मकसद बताया गया है, वह है ईरान के लोगों को पश्चिमी प्रभाव से बचाना। चीन ने तो बहुत पहले से इस प्रभाव को रोकने के लिए फौलादी दीवार खड़ी कर रखी है। ईरान खुद को पश्चिमी संस्कृति से बचाना चाहता है, तो चीन उस राजनीति से, जो पश्चिम में विकसित हुई है।

यह सब उन चंद देशों की बातें हैं, जो इंटरनेट को अपनी कैद में रखना चाहते हैं, बाकी दुनिया भर में एक आम सहमति सी बनती जा रही है कि इंटरनेट की खुली हवा का प्रवाह रोकना बहुत सारे नए अवसरों से हाथ धोना साबित हो सकता है। वहां समझ यह बन रही है कि इंटरनेट महज एक ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर है, असली चीज तो वह डाटा है, जो इसकी रगों में दौड़ता है। डाटा को नए दौर का सोना कहा जाता है, जो खरीदी-बेची जाने वाली वस्तु भी है, जो संपत्ति भी है और नए दौर में धन कमाने का सबसे बड़ा जरिया भी इसलिए डाटा को संभालने, सहेजने और बाहर न जाने देने की कवायद भी अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से लेकर पूरी दुनिया में चल रही है।

भारत में भी कुछ साल पहले ऐसे प्रावधान की बात सोची गई थी, जिससे कोई विदेशी कंपनी देश का रत्ती भर भी डाटा बाहर न ले जा सके। लेकिन जल्द ही समझ में आ गया कि इंटरनेट का जो स्वरूप है और जिस तरह से यह काम करता है, उसमें यह बहुत हद तक मुमकिन नहीं है। फिर ऐसी जिद पालना खुद अपना ही नुकसान करना होगा। एक ऐसा देश जो सॉफ्टवेयर निर्यात के कारोबार में बहुत आगे पहुंच गया हो, उसके लिए यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा भी हो सकता था। इसलिए समय रहते यह फैसला निरस्त कर दिया गया। मगर दुनिया भर में इन दिनों लोगों के इस डाटा को लेकर काफी मंथन चल रहा है। कहा जा रहा है कि किसी व्यक्ति का डाटा उसका अधिकार है। उसने क्या खरीदा, क्या बेचा, वह कहां गया, क्या किया, किससे बात की, क्या बात की, ये सारी चीजें डाटा की शक्ल में इंटरनेट पर सेवाएं देने वाली कंपनियों की झोली में चली जाती हैं। अगर व्यक्ति के डाटा को उसका अधिकार बनाया जाता है, तो वह जान सकेगा कि उसके डाटा का इस्तेमाल किस तरह से और किस काम के लिए हो रहा है। एक सोच यह भी है कि व्यक्ति को यह अधिकार भी मिलना चाहिए कि अगर अपने किसी डाटा को वह वापस लेना चाहता है, तो वह उसे वापस ले सके।

भारत में कुछ साल पहले शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा था, निजता का अधिकार नागरिक का एक मूल अधिकार है। अभी कुछ ही दिनों पहले प्रोटेक्शन नियमों का जो मसौदा देश केंद्र सरकार ने डिजिटल पर्सनल डाटा के सामने चर्चा के लिए पेश किया है, उसे इस पूरे संदर्भ में देखना होगा। अगर सबकी सहमति बनी और संसद ने इसे हरी झंडी दिखाई, तो ये नियम 2023 में बने ‘डिजिटल निजी डाटा संरक्षण कानून’ का हिस्सा बन जाएंगे। फिर डिजिटल सेवाएं, देने वाली कंपनियों को किसी भी उपयोगकर्ता का डाटा जमा करने से पहले उसकी इजाजत लेनी होगी। अनुमति लेने का संदेश उनको अंग्रेजी और 22 भारतीय भाषाओं में देना होगा, ताकि किसी भी भाषा को जानने वाले उसे समझ सकें। उनको लोगों को अपना डाटा मिटाने का अधिकार भी देना होगा।

अगर यह सब वाकई ठीक से हो गया, तो एक सीधा फायदा यह हो सकता है कि लोगों के फोन पर सुबह- शाम आने वाले स्पैम कॉल जैसी चीजों से कुछ हद तक छुटकारा मिल जाएगा। आप चाहें, तो ऐसी फोन कॉल और मेल भेजने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी कर सकते हैं। हालांकि, अंत में सब इससे तय होगा कि ऐसे कानून जब जमीन पर उतरेंगे, तो कितने असरदार साबित होंगे ?