11-12-2025 (Important News Clippings)

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11 Dec 2025
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Date: 11-12-25

चावल के निर्यात पर ट्रम्प की प्रतिक्रिया द्वेषपूर्ण है

संपादकीय

देखने में यह छोटी घटना है, लेकिन कूटनीतिक दुनिया में इसका महत्व तब बढ़ जाता है, जब यूएस ट्रेड वार्ताकारों का दल बातचीत के लिए भारत आया हो। हुआ यूं कि ट्रम्प अमेरिका के किसान – व्यापारियों से बात कर रहे थे। एक अमेरिकी चावल आयातक कम्पनी के सीईओ ने तीन निर्यातक देशों- भारत, थाईलैंड और वियतनाम की शिकायत करते हुए कहा कि ये अपने यहां किसानों को ज्यादा सब्सिडी देकर कीमतें बिगाड़ देते हैं। इस पर ट्रम्प के कहा- तो क्या भारत पर और टैरिफ लगा दें ? ठीक है। उनके वित्त मंत्री ने उन्हें बताया कि भारतीय चावल पर पहले ही 53% टैरिफ है। लेकिन ट्रम्प ने अनसुना कर दिया। यह घटना बताती है ट्रम्प का आज भी भारत के प्रति द्वेष कितना है। दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक भारत यूएस को अपने कुल निर्यात का मात्र 3% ही देता है, लिहाजा हम पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। दूसरे, भारत का बासमती चावल अमेरिकियों में लोकप्रिय है- उसकी खुशबू, पकाने के बाद की लम्बाई और मुलायमियत के कारण। सामान्य चावल के मुकाबले बासमती चावल अंतरराष्ट्रीय बाजार में सवा या डेढ़ गुना महंगा बिकता है। बासमती का सबसे ज्यादा निर्यात भारत बिरयानी के शौकीन सऊदी अरब को करता है। लेकिन ट्रम्प का भारत के प्रति द्वेष बताता है कि आने वाले दिनों में भारत-यूएस संबंध किस किस्म के रहेंगे। पाकिस्तान भी बासमती से कुछ कम गुणवत्ता वाला चावल यूएस को निर्यात करता है और वह भी काफी कम टैरिफ पर।


Date: 11-12-25

प्राइवेसी और डेटा-अधिकारों पर मजबूत नीतियां अब जरूरी हैं

सुखवीर सिंह, ( लेखक और आईएएस अधिकारी )

पिछले दो हजार सालों में कृषि, लोहा, कागज, कम्पास, गनपाउडर, बिजली, प्रिंटिंग जैसी खोजें धीरे-धीरे सभ्यता के रूप को बदलती रही हैं। लेकिन अंतिम सौ सालों में परिवर्तन तेजी से हुआ और संचार, परिवहन, दवाई, ऊर्जा और सूचना तक पहुंच में अभूतपूर्व गति आई है। इनमें भी पिछले 25 वर्षों में जो हुआ, वह सूचना प्रौद्योगिकी के औद्योगीकरण, डेटा कलेक्शन और कंप्यूटेशनल ताकत के संयोजन का परिणाम है। इनसे सुपरकंप्यूटर्स, क्लाउड, आईओटी, एआई/एमएल, रोबोटिक्स, डेटा साइंस का समन्वय सामने आया, जो दुनिया को पहले के बजाय कहीं तेजी से बदल रहा है।

वास्तव में इंटरनेट और मोबाइल क्रांति ने अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति और राजनीति- चारों को एक साथ झकझोर दिया है। आर्थिक स्तर पर बाजार की सीमाएं टूट गई हैं और पारंपरिक उत्पादन-भागीदारी की जगह डेटा-आधारित प्लेटफॉर्म हावी हो गए हैं। ऑटोमेशन और एआई ने लागत, निर्णय-प्रक्रिया और श्रम-संरचना को बदल दिया है। इनोवेशन आसान हो गया है। ग्लोबल-रीच बढ़ी है। लेकिन पूंजी के एक जगह इकट्ठे होने से विषमताएं भी तीव्र हुई हैं।

डिजिटल-प्रभाव ने पारिवारिक और सामुदायिक ताने-बाने में दरारें डाली हैं। युवा वर्चुअल दुनिया में पहचान, मान्यता और संबंध गढ़ रहे हैं, जिससे परंपरागत सांस्कृतिक ढांचे कमजोर हो रहे हैं। राजनीतिक स्तर पर डिजिटल माध्यमों ने सूचना-वितरण और चुनावी अभियान को नई शक्ति दी है, पर साथ ही गलत सूचना, ध्रुवीकरण और बाहरी हस्तक्षेप को भी बढ़ावा दिया है। डेटा और एआई आधारित निगरानी ने शासन की शक्ति और नागरिक की निजता के बीच नई खाई पैदा कर दी है, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अब सूचना-नियंत्रण पर केंद्रित है।

युवाओं के व्यवहार में भी स्पष्ट बदलाव आए हैं। तेज रिवॉर्ड-सिस्टम्स, तुरंत प्रतिक्रिया, अनगिनत विकल्पों ने धैर्य, दीर्घकालीन योजनाओं और सामुदायिक समर्थन के स्थान को चुनौती दी है। इस संदर्भ में ‘चोकर गेम’ का उदाहरण महत्वपूर्ण है। युवा जोखिम, उत्तेजना और वायरल पहचान के लिए मूल सेफ्टी-नेट और परिवार/समाज के परम्परागत मार्ग को छोड़ तात्कालिक वर्चुअल मान्यता की ओर रुख कर रहे हैं। वे पुराने मूल्यों जैसे परिश्रम, धैर्य, सहिष्णुता, सामूहिकता, सामाजिक संस्कार आदि को कम प्राथमिकता दे रहे हैं। सफलता का आकलन लाइक्स, फॉलोअर्स, व्यूज से हो रहा है।

2050-2060 के दशक तक यह परिवर्तन किसी साधारण तकनीकी उन्नति का रूप नहीं होगा- यह वह विस्फोट हो सकता है, जो आज की सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक संरचनाओं की जड़ें हिला सकता है। परंपरा आधारित व्यवस्था, पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक मान्यताएं, भाषा का स्वाभाविक विकास, रिश्तों की नैतिक परिभाषाएं और श्रम-संस्कृति- सब धीरे-धीरे टूटकर नई, डिजिटल-केंद्रित संरचनाओं में पुनर्गठित होंगी। एआई-आधारित व्यक्तिगत मॉडलिंग ‘एक जैसे पाठ्यक्रम’ और ‘एक जैसे उपचार’ को अप्रासंगिक बना देगी। श्रम की पारंपरिक परिभाषाएं टूटेंगी और नौकरियों की स्थिरता, करियर-मार्ग और दीर्घकालीन भूमिका जैसी अवधारणाएं इतिहास बन जाएंगी।

इतना ही नहीं, परिवार, विवाह और सामुदायिक बंधन की जगह वर्चुअल और ह्यूमनॉइड सहभागिता का नया मिश्रित ढांचा उभर सकता है, जहां एल्गोरिदमिक संगति और डिजिटल निकटता रिश्तों की नई भाषा बन जाएगी। संस्कृति और भाषा का विखंडन इतनी तेज गति से होगा कि दशकों पुरानी परंपराएं कुछ ही वर्षों में अप्रचलित लगने लगेंगी। रीति-रिवाज, सामूहिक अनुष्ठान, सामाजिक संकेतक विलीन हो जाएंगे। यही कारण है कि निजता और डेटा-अधिकारों को लेकर मजबूत नीतियां बनाई जाना जरूरी हैं। अगर ऐसा नहीं किया गया तो निगरानी और डेटा-नियंत्रण समाज की नई संस्कृति बन जाएगी- जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मूल्य नहीं, बल्कि दुर्लभ संपदा बनकर रह जाएगी। ऐसे में एकमात्र संभावित स्थिरता वही होगी, जो हम शिक्षा, कानून, समुदाय और मानव-केंद्रित तकनीक के रूप में निर्मित करेंगे।


Date: 11-12-25

दीपावली एक धरोहर

संपादकीय

प्रकाश के महोत्सव दीपावली का यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होना सुखद और ऐतिहासिक है। इस कामयाबी की चर्चा से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सांस्कृतिक विरासत के मामले में भारत अभी काफी पीछे है। भारत दुनिया के प्राचीनतम देशों में शामिल है, यहां कदम-कदम पर सांस्कृतिक विविधता और वैभवशाली इमारतें हैं, लेकिन अभी तक यहां के 16 स्थानों या सांस्कृतिक आयोजनों को ही विरासत की सूची में शामिल किया गया है। गौर करने की बात है कि भारत की तुलना में काफी छोटा देश इटली इस मोर्चे पर सबसे आगे है, वहां की सबसे ज्यादा 61 सांस्कृतिक धरोहर यूनेस्को के तहत दर्ज हैं। बस एक कम अंक के साथ चीन दूसरे स्थान पर है। ऐसे में, भारत के लिए यह अपने आप में सोचने की बात है और दुनिया के लिए भी कि भारत की अनूठी धरोहरों को आखिर कब वैश्विक मान्यता मिलेगी ? अफसोस, इस सूची में शामिल होने को लेकर भारत में पर्याप्त सक्रियता की कमी रही है।

पहला सवाल तो लोगों के मन में यही आएगा कि दीपावली के वैश्विक धरोहर घोषित होने से क्या हो जाएगा ? अब तक अजंता एलोरा, ताजमहल, चारमीनार इत्यादि, 15 तरह की धरोहरों के वैश्विक घोषित होने से भारत को क्या फायदा हुआ है ? दरअसल, धरोहर घोषित होने से देश का वैश्विक आकर्षण बढ़ता है। पर्यटक या लोग यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त विशेष जगहों पर ही जाना पसंद करते हैं। मिसाल के लिए, अगर हम पर्यटकों की संख्या को देखें, तो कम या ज्यादा धरोहर होने का नफा-नुकसान पता चल जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में साल 2024 में जहां एक करोड़ विदेशी पर्यटक भी नहीं आए थे, वहीं इटली में लगभग सात करोड़ विदेशी पर्यटक पहुंचे। यहां आप एक करोड़ पर्यटकों और सात करोड़ पर्यटकों से होने वाली कमाई को देखेंगे, तो अंदाजा लगेगा कि वैश्विक धरोहरों का क्या मतलब है? ऐसे में, उन सभी लोगों और भारतीय संस्कृति मंत्रालय का आभार जताना चाहिए, जो अन्य स्थानों व अवसरों को धरोहर घोषित कराने के अभियान में लगे हुए हैं। बहरहाल, अब यह इतिहास में दर्ज हो गया है कि नई दिल्ली के लाल किले में आयोजित यूनेस्को अंतर-सरकारी समिति के 20 वें सत्र में 194 देशों के प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और यूनेस्को के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में दीपावली की घोषणा हुई है। इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जब भारत में दीपावली मनाई जाएगी, तब उसका आनंद लेने के लिए आने वाले विदेशी सैलानियों की संख्या में इजाफा होगा।

कोई दो राय नहीं कि धरोहर घोषित कराने के अभियान को युद्ध स्तर पर चलाना चाहिए, लेकिन यूनेस्को के नियमों के अनुसार, कोई देश हर दो साल में एक ही तत्व को धरोहर बनाने के लिए नामांकित कर सकता है। इस नियम में बदलाव की मांग करनी चाहिए। अभी दुनिया ने भारत को ठीक से देखा जाना नहीं है। भारत की अनेक प्राचीन इमारतें और त्योहार वैश्विक मान्यता की योग्यता रखते हैं। यूनेस्को की परिभाषा के अनुसार, सांस्कृतिक विरासत में वे प्रथाएं, ज्ञान, अभिव्यक्तियां, वस्तुएं और स्थान शामिल हैं, जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानते हैं। भारत की विविध पहचानों को भी वैश्विक तेवर- कलेवर मिलना चाहिए। यह भी दिलचस्प है कि अब भारत अपने अगले प्रयास में छठ पूजा को यूनेस्को की मान्यता दिलाने का प्रयास करेगा। यह एक लंबा सफर है, जिसे भारत को जल्दी तय करना है।


Date: 11-12-25

इंडिगो संकट से क्या हम सबक सीखेंगे

श्रीनाथ श्रीधरन, ( लेखक व स्तंभकार )

बडी कंपनियां सिर्फ मुनाफे के लिए ही नहीं, बल्कि कारोबार को निरंतर जारी रखने के लिए भी चलाई जाती हैं। ऐसे में, जब राष्ट्रीय वायुमार्ग पर दबदबा रखने वाली कोई विमानन कंपनी सिस्टम में खराबी का शिकार बनती है, तो उसके परिचालन संबंधी पहलुओं से आगे जाकर भी सवाल पूछे जाने चाहिए, खासकर बोर्ड की जवाबदेही को लेकर प्रश्न पूछे ही जाने चाहिए।

यह सच है कि बोर्ड किसी कारोबार के दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलाप में हस्तक्षेप नहीं करते, लेकिन इंडिगो के मामले में बोर्ड की भूमिका जांच से परे नहीं है। विमानन कंपनियों को नए सुरक्षा नियमों के बारे में काफी पहले बता दिया गया था। कुशल कर्मचारियों की कमी का असर साफ था। सॉफ्टवेयर में बदलाव भी पहले से तय थे। शादी के मौसम की गहमागहमी का अंदाजा भी लगाया जा सकता था। ये कोई अचानक आ गई चुनौतियां नहीं थीं, बल्कि परिचित दबाव थे, जो हर बार इसी समय आते ही हैं। बोर्ड ऐसी चुनौतियों को देखने और उनसे निपटने लिए ही होते हैं। उनका काम सिर्फ कमाई या विस्तार योजना की समीक्षा करना भी नहीं है। उनका काम यह देखना भी है कि क्या कंपनी प्रबंधन ने परिचालन संबंधी योग्यता और संकट के समय तैयार रहने के लिए अतिरिक्त क्षमता तैयार की है या नहीं ?

इंडिगो का ताजा संकट कई बुनियादी सवाल खड़े करता है। क्या स्टाफ के बारे में जांच तब की गई, जब यह साफ हो गया कि सुरक्षा के नियम कड़े होंगे ? क्या बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी को शामिल करने से पहले अचानक बढ़ने वाले उपरोक्त दबावों का आकलन किया गया था ? क्या संचार प्रणाली पर पड़ने वाले दबाव पर गौर किया गया था? क्या कंपनी के डायरेक्टर को परिचालन में होने वाली दिक्कतों के संकेत लगातार मिले थे? अगर मिले, तो क्या उन्होंने प्रबंधन को आपात मोड़ में डाला ?

उड़ानों के बाधित होने के सबसे बुरे दौर में यात्रियों के साथ एयरलाइन का बुरा व्यवहार निगरानी की कमजोरी को दिखाता है। इंडिगो के तंत्र ने विमान परिचालन के बारे में जो वस्तुस्थिति बताई, हवाई अड्डा प्राधिकरण के आंकड़ों से सर्वथा भिन्न थी। बात-बात की सूचना देने के इस अत्याधुनिक जमाने में सूचनाओं में ईमानदारी बहुत जरूरी होती है। बोर्ड अगर इसे सिर्फ एक ब्रांडिंग डिटेल मानता है, तो वह इसकी अर्थव्यवस्था और प्रतिष्ठा पर पड़ने वाले असर से नावाकिफ है। एयरलाइन की इन गहरी खामियों का सबसे बड़ा नुकसान समूह की अग्रिम पंक्ति में तैनात कर्मचारियों को उठाना पड़ा। ये कर्मचारी उन फैसलों और नाकामियों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने लगे, जो उन्होंने नहीं लिए वा जिनको उन्होंने डिजाइन ही नहीं किया था। बोर्ड इसलिए होते हैं कि बड़ी समस्याओं को वे ऊपर ही निपटा दें। माना जा रहा है कि इस पूरी घटना पर नजर रखने वाले बड़े निवेशक और विश्लेषक प्रबंधकों से बहुत सारे सख्त सवाल पूछेंगे, लेकिन ये ऐसे सवाल हैं, जो बोर्ड को खुद ही बहुत पहले पूछने चाहिए थे।

क्या बदले हुए ड्यूटी टाइम नियमों से पहले ‘नॉमिनेशन ऐड रेमुनरेशन कमेटी ने कंपनी के कार्यबल की समीक्षा की थी? क्या इस कार्यबल को बोर्ड के सामने उपलब्ध मानव संसाधन के बजाय परिचालन संबंधित जोखिम के तौर पर पेश किया गया था? क्या बोर्ड के स्तर से परिचालन को प्रभावित करने वाले प्रक्रियागत सॉफ्टवेयर की जांच की गई थी? किसी नाकाम स्थिति या अति व्यस्ततम परिस्थितियों को झेलने में ग्राहक सूचना प्रणाली के सक्षम होने की क्या जांच की गई थी ? और क्या बोर्ड ने विमानों में बढ़ोतरी की तरह ही व्यावसायिक निरंतरता का भी उसी गंभीरता से मूल्यांकन किया? या क्या जोखिम को इस सोच के आधार पर अनौपचारिक तरीके से नजरअंदाज कर दिया गया था कि प्रमोटर का असर, नियामक गतिविधि और राजनीतिक वरदहस्त विमानन कंपनी को आसानी से चलाता रहेगा?

भारत में कॉरपोरेट जांच-पड़ताल अक्सर सीईओ के ऑफिस तक सीमित रहती है। ऐसी ढांचागत प्रणाली में प्रबंधन के पास शायद ही अहम रणनीतिक शक्ति होती है, स्वतंत्र निदेशकों की तो बात वैसे ही कम सुनी जाती है। बोर्ड सक्रिय तो हो सकते हैं, लेकिन जोखिम कम करने की योजना बनाने, परिचालन संबंधी गतिविधियों पर सवाल उठाने और सत्ता के अति- केंद्रीकरण को रोकने में उनकी भूमिका सीमित होती है। पुराने और सक्रिय बाजारों में इस तरह की नाकामियों की जांच आम तौर पर बोर्ड स्तर पर लगातार होती रहती है, लेकिन भारत में एक बार व्यवस्था सुधरी नहीं कि ध्यान भटक जाता है। इसके प्रभाव बुरे पड़ते हैं। यहां बाधाओं से संस्थागत सबक लेने के बजाय उसे एक घटना भर मान लिया जाता है और प्रशासनिक कमजोरियां जस की तस बनी रह जाती हैं।

क्षेत्रगत एकाग्रता से जिम्मेदारी बढ़ती है। किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र में अधिक बाजार हिस्सेदारी रखने वाले व्यवसाय को एक सामान्य कंपनी से भिन्न भूमिका निभानी चाहिए। निरंतरता, पारदर्शिता और जोखिम नियंत्रण उसकी सार्वजनिक जिम्मेदारी होती है। इंडिगो में जो हुआ, उसके व्यवस्थित परिणाम सामने आने चाहिए। बोर्ड को चाहिए कि वह जिस गंभीरता से विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, उसी गंभीरता से व्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के बारे में भी आकलन करे, केवल माफी मांगना काफी नहीं है।

एवरलाइन के बोर्ड नियमित रूप से ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव, डॉलर के घटने-बढ़ने से उत्पन्न विदेशी मुद्रा भंडार की चुनौतियों और रखरखाव पर नजर रखते हैं। बोर्ड के ज्यादा सक्रिय निदेशक तो विमान के पुर्जों और इंजन की आपूर्ति श्रृंखला, परिचालन प्रणाली में साइबर सुरक्षा की कमजोरियों और आउटसोर्स की सेवाओं में निर्भरता पर पैनी नजर रखने की जरूरत रेखांकित करते हैं। ठीक इसी तरह मौसम की अस्थिरता, हवाई क्षेत्र पर प्रतिबंध, भू- राजनीतिक उथल-पुथल, हवाई अड्डों की क्षमता संबंधी बाधाओं और नियमों में बदलाव को भी शीर्ष स्तर के जोखिमों के रूप में मानना चाहिए।

निस्संदेह, नियामकों की भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। विमानन विनियमन लंबे समय से विमान सुरक्षा और मूल्य प्रतिस्पर्द्धा पर केंद्रित रहा है। ऐसा लगता है कि इसमें संगठनात्मक मजबूती को शामिल नहीं किया गया है। इंडिगो प्रकरण एक सबक देता है कि हवाई अड्डों, बंदरगाहों और एक्सप्रेस-वे जैसी सार्वजनिक सेवाओं का संचालन करने वाले नियामकों को पूरी सतर्कता से संचालित किया जाना चाहिए। उनका प्रबंधन कितना कुशल है, यह केवल शेयरधारकों के लिए नहीं, बल्कि अन्य लोगों के लिए भी काफी मायने रखता है।