11-05-2019 (Important News Clippings)

Afeias
11 May 2019
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Date:10-05-19

पस्त बाजार

संपादकीय

शेयर बाजारों का लगातार लुढ़कते जाना चिंता का एक बड़ा कारण बन गया है। अर्थव्यवस्था में और भी बुरी खबरें हैं, लेकिन प्रत्यक्ष रूप में सबको नजर आने वाली चीज शेयर बाजार हैं। बृहस्पतिवार को भी देश के शेयर बाजारों का लुढ़कना जारी रहा। 30 सबसे महत्वपूर्ण कंपनियों के शेयरों का हाल बताने वाला मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक सेंसेक्स 230 अंक टूटकर 37,559 अंक से भी नीचे चला गया। हालांकि बाजार की यह टूटन बुधवार से कम थी, पर इसकी निरंतरता बता रही थी कि बाजार में वापसी का हौसला फिलहाल नहीं दिख रहा। यही हाल नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के 50 शेयरों वाले निफ्टी इंडेक्स का भी था, वह भी 57 अंक से ज्यादा लुढ़क गया। पिछले लगातार कई दिनों से बाजार से आ रही सभी खबरें यही बता रही हैं कि बाजार में खरीदार से कहीं ज्यादा बिकवाल हैं और बाजार के पस्त हौसले का यही कारण है कि निवेशकों को तत्काल कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिख रही। इस रुझान के विस्तार में जाएं, तो सबसे ज्यादा गिरावट ऊर्जा, टेलीकॉम, इस्पात और पेट्रोलियम के शेयरों में दिख रही है। यही चिंता का सबसे बड़ा कारण भी है। ये क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार होते हैं, अगर इन्हीं को लेकर निवेशक उत्साहित नहीं हैं, तो यह अच्छी खबर नहीं है।

इससे जुड़ा हुआ एक दूसरा सच यह भी है कि सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के शेयर बाजार ही लुढ़क रहे हैं। एशियाई शेयर बाजारों के गोता लगाने की यह गति कुछ ज्यादा ही तेज है। खासकर हांगकांग और जापान के शेयर बाजारों की हालत भी खस्ता बनी हुई है। खासकर इस खबर के बाद कि अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार समझौते की वार्ता किसी भी समय टूट सकती है। वार्ता टूटती है, तो इसका अर्थ होगा कि अमेरिका अपने रुख को किसी भी तरह नरम करने को तैयार नहीं है। यदि ऐसा हुआ, तो यह हमारे लिए भी बुरी खबर होगी, क्योंकि इसके बाद भारत से व्यापार के लिए भी अमेरिका की शर्तें कड़ी ही होंगी। बाजार के इस तरह गोता लगाने को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों से जोड़कर भी पेश किया जा रहा है। कई विश्लेषकों ने बताया है कि किस तरह उनके हर ट्वीट पर बाजार लुढ़के। अगर हम मुद्रा बाजार में झांकें, तो वहां भी पस्त हौसले के कई कारण मौजूद दिखाई देंगे। तमाम एशियाई मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। चीन की मुद्रा युआन तो पिछले एक सप्ताह में सबसे तेजी से लुढ़की है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि दुनिया भर के झंझावात भारतीय बाजारों को भी अपनी चपेट में ले रहे हैं।

हालांकि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है कि दुनिया के तमाम झंझावातों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था उनकी चपेट में आने से बची रही। विकास दर ने हमारी अर्थव्यवस्था के हौसले पस्त नहीं होने दिए। लेकिन इस बार जो संकट है, उसमें विकास दर के आंकड़ों की प्रामाणिकता ही संदेह के घेरे में आ गई है। महंगी कारों से लेकर स्कूटरों और ट्रैक्टरों के बाजारों में जो मंदी इस समय दिख रही है, वह भविष्य को लेकर चिंता पैदा करने वाली है। शेयर बाजारों में इस समय जो दिख रहा है, वह इसी चिंता की एक झलक है। 23 मई के बाद बनने वाली केंद्र सरकार की सबसे बड़ी चुनौती इसी चिंता को दूर करने की होगी।


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