09-10-2023 (Important News Clippings)

Afeias
09 Oct 2023
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Date:09-10-23

The Old Middle East

Devastating attacks on Israel will not be without painful consequences for many other countries

TOI Editorials

The gradual thawing of Israel’s relations with its Arab neighbours had raised hopes of building a “a new Middle East”, where economic cooperation leads to a shared prosperity. But with its surprise attack on Israel over the weekend, the terror group Hamas looks to have pulled the rug from under this ambitious peace-and-business endeavour. The scale of the attack has shocked Israelis deeply and in this sense its description as Israel’s 9/11 moment is logical. But it came by both air and land and hit many cities simultaneously. Netanyahu’s grim declaration, “We are at war,” was a natural follow-up. Where this war will go is difficult to predict. What is certain is that given how steadfast a security partner Israel has been for India, today India stands steadfast by it. As Modi has said, “We stand in solidarity with Israel at this difficult hour.”

Netanyahu’s government has a lot of questions to answer about how such a multi-pronged attack went under its intelligence radar, not to mention how the country’s physical defence systems were so easily brought down at so many points. Perhaps a nation coming together to hit back at its attackers will give him some leeway on these failures, for now. How extensively will Israel pound Hamas in densely populated Gaza? Terrorists care little for civilian casualties. Hamas not only mounted the attack fully knowing that this would make life even more hellish for those in Gaza, it also sought to maximise Israeli casualties to re-escalate the Israel-Arab conflict. Hamas does not even recognise Israel’s right to exist. But in its counterattack, Israel has to minimise Palestinian casualties. More casualties will force its Abraham Accords partners to become more distant, not to mention sinking potential partnerships such as with Saudi Arabia. This is exactly what Hamas has set out to do.

The Iran hand is yet another imponderable in this escalation, with Hezbollah launching rockets into Israel from the Lebanon side, and saying it is in “direct contact” with Palestinian “resistance” groups. Stock markets in the Middle East have declined sharply, and understandably, given how many painful forms this crisis can further take. Indian observers are also keeping a close eye on how crude supply and thus inflation risks take shape. It is Israel that has suffered a devastating attack. But some consequences will be suffered by many others as well.


Date:09-10-23

Tightrope walk

By not raising interest rates, RBI betrays its concerns about slowing growth

Editorial

The decision of the RBI’s Monetary Policy Committee (MPC) to leave interest rates unchanged even as the central bank warned of the major risk that ‘high inflation’ poses to macroeconomic stability is a clear sign that monetary authorities find themselves caught in a cleft stick. After a relatively benign first quarter, when headline retail inflation averaged 4.63% as against the RBI’s projection of 4.6%, price gains measured by the Consumer Price Index (CPI) accelerated sharply in the last quarter with July and August seeing readings of 7.44% and 6.83%, respectively. In a tacit acknowledgment of its misjudgment of inflationary trends, the MPC last week raised its projection for average second-quarter inflation by 20 basis points, from the August forecast of 6.2% to 6.4%. And even this projection appears overly optimistic if one considers that the headline number will need to have slowed drastically to less than 5% in September for the RBI’s prognosis to be validated. For now, the MPC is hoping that the recent reduction in domestic LPG prices combined with a lowering of vegetable prices would provide some near-term respite to price pressures. Governor Shaktikanta Das underlined the RBI’s willingness to resort to Open Market Operation sales of securities to suck out excess funds from the system if it sees reason to believe that liquidity may be rising to a level where it could undermine the overall monetary policy stance.

The RBI’s unwillingness to walk the talk and raise interest rates further, even while reiterating the threat to overall economic stability from unmoored inflation expectations, reflects an unstated concern that the growth momentum still remains rather tenuous. The recent debate on the integrity of the NSO’s data on economic growth estimates, and concern that the methodology used to posit 7.8% real GDP growth in the first quarter may have given rise to an overestimation, have to be seen in tandem with economic forecasters’ increased caution over India’s GDP growth outlook for the current fiscal year. Mr. Das acknowledged the weakness in India’s goods exports and the uneven monsoon, which has also led to a drop in kharif sowing of crucial oilseeds and pulses, as key risks to the RBI’s projection for 6.5% GDP growth in FY24. With the rupee already having weakened by about 0.7% since the last policy meeting in August, the RBI also runs the risk of importing inflation and adding to the external sector vulnerabilities if it fails to raise interest rates.


Date:09-10-23

संवैधानिक मूल्यों पर संकट

कपिल सिब्बल, ( लेखक राज्यसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं )

हमारे संविधान के उद्भव और विकास की यात्रा खासी जटिल रही है। स्वतंत्रता से पूर्व का देश का प्रशासन ब्रिटिश राजशाही द्वारा होता था और 562 रियासतों को संघ से जुड़ने के लिए समझाया-बुझाया जा रहा था। हर रियासत का अपना एक इतिहास था तो उसका संचालन और भी जटिल सामाजिक ढांचे के माध्यम से हो रहा था। उस दौर में विभाजित होने के बावजूद अल्पसंख्यकों और अन्य वर्गों ने लोकतांत्रिक भारत की संकल्पना का स्वागत किया। संविधान सभा में जब संविधान के स्वरूप पर बहस हो रही थी तो उसके निर्माताओं ने हमारे असमान सामाजिक ढांचे की जटिलता का संज्ञान लेते हुए उन्हें नागरिकों में हिलोरे ले रही आकांक्षाओं के साथ संबद्ध किया। इस प्रकार, संविधान की संरचना एक राजनीतिक समझौते का परिणाम थी, जिसमें भारत उन सभी अंशभागियों को अपने छत्र तले लाया, जो एक गतिशील लोकतांत्रिक संविधान के अंतर्गत भाईचारे की भावना में विश्वास रखते थे। संविधान के प्रविधान उन सामाजिक चिंताओं को अभिव्यक्त करते हैं जिनसे संविधान निर्माता दो-चार हुए। संवैधानिक प्रविधानों ने विविध पृष्ठभूमि वाले बहुरंगी समाज के बीच सौहार्द भाव के संचार का प्रयास किया। हमारे जटिल इतिहास और अनूठी विविधता की प्रतीक सामाजिक चिंताओं और विविधतापूर्ण धाराओं में भी ताल मिलाने की कोशिश संविधान ने की।

अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी इसी रक्षोपाय के तहत की गई थी कि अतीत में उन्हें अगड़ी जातियों के हाथों अन्याय और पक्षपात का सामना करना पड़ा। हालांकि यह एक ऐसा पहलू है जिसका हम आज भी सार्थक रूप से समाधान नहीं निकाल पाए। अल्पसंख्यकों सहित धार्मिक समूहों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रविधानों की मंशा यही थी कि भारत अपनी बहु-सांस्कृतिक एवं बहु-भाषिक पहचान को कायम रखने के लिए तत्पर है। लिंग, नस्ल, धर्म-पंथ-मजहब, जाति और जन्म के स्थान को लेकर भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी गई। महिलाओं को इस उम्मीद के साथ विशेष दर्जा मिला कि राज्य उनके लिए विशिष्ट प्रविधान करेगा कि वे प्रगति में बराबर की भागीदार बनें। विभिन्न समुदायों की भाषा, संस्कृति और भाषाई परंपराओं को संरक्षण प्रदान करने के साथ ही यह भी तय हुआ कि आधिकारिक उपयोग के लिए कौन सी भाषा उपयोग होगी। इन्हीं संदर्भों में हमारे भारत संघ की संरचना तैयार की गई। उसके संचालन के लिए बंधुत्व, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे सिद्धांतों को मान्यता मिली।

आज वास्तविकता उलट दिखती है। प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा दिन-प्रतिदिन जिस प्रकार की हिंसा देखने को मिल रही है, उसे देखते हुए भाईचारे की भावना दूर की कौड़ी हो गई है। अवसर और स्थिति की समानता प्रदान करने में राज्य की क्षमताओं पर लोगों का भरोसा दरक रहा है, क्योंकि खुला भेदभाव हमारे विषाक्त होते सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन गया है। विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता संकट में है और न्याय प्रणाली पर संदेह बढ़ रहा है। संविधान में जिस राजनीतिक समझौते की झलक दिखती है वह अब धीरे-धीरे ही सही, लेकिन पूर्णत: ध्वस्त हो रही है। हमारे संविधान ने एक आधारभूत ढांचे के अंतर्गत कुछ संस्थानों की आधारशिला रखी है, जो विधि के दायरे में देश का सुचारु संचालन सुनिश्चित करते हैं, लेकिन अब इन संस्थानों को तबाह किया जा रहा है। देश में चुनाव आयोग, संसद और राज्य विधानसभाएं, जांच एजेंसियां और अदालतें जैसे संस्थान सृजित हुए। संघ एवं राज्य, दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोग बने। संघ और राज्य के बीच सेतु बनाने के लिए राज्यपाल जैसी संस्था अस्तित्व में आई। इनका उद्देश्य राज्य की अतिशय शक्ति के प्रति एक संरक्षित आवरण प्रदान करना रहा। संप्रति ये संस्थान उस प्रशासन के फैसलों से पराभव की ओर हैं, जो अपनी इच्छाएं थोपना चाहता है। वह इससे बेपरवाह है कि ये संस्थाएं किस मंशा के साथ बनाई गई थीं। संभवत: यह विफलता उन लोगों के कारण नहीं जिनकी सत्ता के गलियारों में तूती बोलती है, बल्कि इसके लिए वे कमजोर और समझौतापरस्त लोग जिम्मेदार हैं, जिनकी संकल्पना ही राज्य की निरंकुशता के प्रतिरोध के लिए की गई थी। जैसे चुनाव आयोग आज सत्ताधीशों के हाथ की कठपुतली मात्र बनकर रह गया है। समय की कसौटी पर खरी उतरती आईं संसदीय प्रक्रियाओं को ढिठाई से खारिज कर दिया गया है। संसदीय लोकतंत्र को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए आवश्यक संवाद हो नहीं पा रहा है। विधेयक उस प्रक्रिया से पारित कराए जा रहे हैं, जो संवैधानिक परिपाटी से मेल नहीं खाती। चुनी हुई सरकारों को गलत तौर-तरीकों से हटाया जा रहा है और और इस मामले में पीड़ितों को न्याय देने के लिए प्रतिबद्ध संस्थान ऐसे अधिकांश मामलों को लापरवाही से देखते हैं। अदालतें निस्तेज हैं, न्याय प्रणाली सुस्त है और लोगों की चिंताओं के समाधान हेतु संस्थागत ढांचे के दायरे में सार्थक रूप से आवाज नहीं उठ पा रही। जांच-पड़ताल से जुड़ी मशीनरी में भारी गड़बड़ी है और राज्य की ओर से उन्हीं लोगों को सताया जा रहा है जो सरकार की नीतियों और व्यक्तियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं।

स्पष्ट है कि जिस संकल्पना के साथ हमारे संविधान को आकार दिया गया था, वह छिन्न-भिन्न हो रही है। केवल संस्थानों या जांच प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि आम लोगों से लेकर प्रबुद्ध नागरिकों तक ने हमें निराश किया है। राजनीतिक तंत्र के दबंगों की खुलेआम हिंसक गतिविधियों, समाज में अशांति और दलितों एवं अल्पसंख्यकों के विरुद्ध अत्याचारों ने संवैधानिक लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर किया है। राजनीतिक समझौतावाद का पालन नहीं किया गया। इस समय संविधान का जिस प्रकार पालन किया जा रहा है, वह उन आदर्शों से सर्वथा दूर है जिनके साथ उसकी संकल्पना की गई थी। ऐसे में, 2024 भारत के इतिहास में निर्णायक होगा। इसमें भारत का उस नियति से साक्षात्कार होगा कि क्या यहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एवं संवैधानिक मूल्यों की पुनर्स्थापना होगी या फिर संवैधानिक ढांचा और पराभव का शिकार होगा। यदि दूसरी स्थिति बनती है तो देश का अस्तित्व भले ही कायम रह जाए, किंतु उसका आत्मा जरूर आने वाले वर्षों में दफन हो जाएगा।


Date:09-10-23

उपलब्धियों की उम्मीद

संपादकीय

इस वर्ष चीन में हांगझाउ एशियाई खेलों में भारत की ओर से अलग-अलग खेलों के लिए जब टीमों को भेजा जा रहा था, उस समय यह संकल्प साफ दिख रहा था कि अब मैदान में सिर्फ जीतने के लिए नहीं, बल्कि उससे आगे के सफर के लिए जमीन बनाने की कोशिश होगी। इस आयोजन की समाप्ति के बाद पदक तालिका में भारत को जो जगह मिली, वह उम्मीद के अनुरूप थी, लेकिन उससे अहम बात यह है कि लगभग सभी प्रतियोगिताओं में हमारे खिलाड़ियों ने जो दमखम दिखाया, वह भविष्य की अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में एक मजबूत दखल का संकेत देता है। गौरतलब है कि एशियाई खेलों के लिए खिलाड़ियों को रवाना करने से पहले ही ‘इस बार सौ पार’ का नारा दिया गया था। उस नारे में छिपे हौसले और उम्मीद को भारतीय खिलाड़ियों ने पूरा करके अपनी क्षमता साबित की। एशियाई खेल 2023 में भारत ने कुल एक सौ सात पदक जीते। यह पहली बार है जब भारत ने किसी एशियाई खेल में इतने पदक हासिल किए। इससे पहले भारत का सबसे अच्छा प्रदर्शन सत्तर पदकों का था, जो 2018 में जीते गए थे।

इस वर्ष उपलब्धियों की शुरुआत निशानेबाजी में महिलाओं की दस मीटर एअर राइफल टीम ने की, जिसे रजत पदक मिला। पहले दिन भारतीय खिलाड़ियों ने पांच पदक जीते। एक अच्छी शुरुआत को और बेहतर करते हुए दूसरे दिन एअर राइफल में ही पुरुष टीम ने पहला स्वर्ण पदक जीता और इस दिन भारत के पदकों की संख्या ग्यारह हो गई। इसके बाद अन्य खेलों में भी भारत के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किए और मैदान में जीत दर्ज करते गए। इस बार खासतौर पर भारत की पुरुष हाकी पर सबकी नजर थी, जिसके सामने कई मजबूत टीमों की चुनौती थी। फाइनल में जापान को भारतीय जीत की राह में एक ठोस दीवार माना जा रहा था। मगर भारतीय हाकी टीम ने इस प्रतियोगिता में अपने दमखम की निरंतरता को कायम रखा और फाइनल में जापान को एक के मुकाबले पांच गोल से हरा कर चौथी बार खिताब अपने नाम किया।

हालांकि इससे पहले भी भारत ने तीन बार एशियाई खेलों में हाकी का स्वर्ण पदक जीता था। खासतौर पर हाकी के लिहाज से देखें तो ताजा उपलब्धि के साथ भारत ने अगले साल पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने का अधिकार हासिल कर लिया है। गौरतलब है कि अगर किसी वजह से भारत स्वर्ण पदक का खिताब नहीं जीत पाता तो उसे ओलंपिक में शामिल होने के लिए कई स्तर के क्वालिफाइंग दौर की मुश्किल राह को पार करना पड़ता। इसके अलावा, इस आयोजन में भारत की महिला क्रिकेट टीम का स्वर्ण पदक जीतना इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि अब क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में वैश्विक खेल का आयाम हासिल करने में मदद मिलेगी। हांगझाउ एशियाई खेलों में भारत ने जो इतिहास रचा, वह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अब भारतीय खिलाड़ियों को महज औपचारिक उपस्थिति से आगे एक चुनौती की तरह देखा जाएगा। इसके बाद स्वाभाविक ही आगामी ओलंपिक में यह उम्मीद ज्यादा ऊंचे स्तर पर होगी कि हमारे खिलाड़ी उसमें भी एशियाई खेलों की चमक को बरकरार रखेंगे और इससे बेहतर उपलब्धियां देश के नाम करेंगे।


Date:09-10-23

युद्ध के मुहाने पर दुनिया

संपादकीय

गाजा पट्टी की ओर से शनिवार को किए गए हमास के राकेट हमले के बाद उस समूचे इलाके में पहले से जटिल हालात और ज्यादा बिगड़ गए। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को इसे ‘जंग की स्थिति’ कहना पड़ा। उन्होंने यहां तक कहा कि हमारे दुश्मनों को इसकी ऐसी कीमत चुकानी होगी, जिसके बारे में उनको पता भी नहीं होगा। दूसरी ओर, हमास के एक नेता ने भी कहा कि ‘अब बहुत हो चुका’। यानी एक तरह से हमास और इजराइल के बीच खुले युद्ध का एलान हो गया है और अब नहीं चाहने के बावजूद दुनिया के सामने एक और ऐसी त्रासदी को देखने की नौबत आ गई है, जिसमें आखिरी खमियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ता है। ताजा हमले के बाद हमास ने दावा किया कि उसने बीस मिनट के भीतर इजराइल पर पांच हजार राकेट दागे। इसके अलावा, हमास के कई आतंकी भी इजराइली सीमा के भीतर दाखिल हो गए और उन्होंने वहां के कई सैनिकों को पकड़ने का भी दावा किया। दोनों तरफ जान-माल का अच्छा खासा नुकसान हुआ है। साथ ही हिज्बुल्ला के भी मैदान में कूद पड़ने से नए समीकरण उभरने के संकेत हैं।

इजराइल और हमास के बीच टकराव से इस बार न केवल उस समूचे क्षेत्र में तस्वीर ज्यादा बिगड़ने की आशंका है, बल्कि इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असर पड़ सकता है। दरअसल, पहले दिन ही फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ ने जहां हमास के हमलों की निंदा की, वहीं ईरान की ओर से हमास का समर्थन करने की खबरें आईं। यानी इस मसले पर अभी से खेमे बनने शुरू हो गए हैं और कहना मुश्किल है कि ताजा घटनाक्रम कौन-सी दिशा अख्तियार करेगा। इसलिए स्वाभाविक ही इजराइल में भारतीय दूतावास ने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए वहां रह रहे भारतीय सतर्क रहें और स्थानीय प्रशासन की ओर से दिए जा रहे दिशानिर्देशों का पालन करें। इस बार हमास के तेज हमले और उसके प्रति इजराइल की प्रतिक्रिया में जिस स्तर का तीखापन देखा जा रहा है, उसमें हालात तुरंत संभलने की उम्मीद कम ही है। इजराइली सेना ने भी युद्ध की घोषणा कर दी है। अब युद्ध और हिंसा का दायरा यदि और फैला तो इसकी चपेट में अधिक संख्या में आम नागरिक आएंगे।

गौरतलब है कि हमास और इजराइल के बीच टकराव का एक लंबा इतिहास रहा है। वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, गोलन हाइट्स पर कब्जे को लेकर दो अलग-अलग पक्षों और पूर्वी येरूशलम में नागरिकता को लेकर दोहरी नीति आदि मसलों पर विवाद की जड़ से शुरू हुआ टकराव आज इस दशा में पहुंच चुका है कि इजराइल और फिलस्तीन आमतौर पर आमने-सामने ही रहते हैं। इजराइल की नीतियों और कई बार आक्रामक फैसलों को लेकर फिलस्तीन के विद्रोही गुट हमास की ओर से आक्रामक प्रतिवाद किया जाता है। विडंबना यह है कि इस मसले को हल करने या शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस पहलकदमी नहीं देखी जाती है। इसलिए हमास के हमले और उसके जवाब में इजराइल की प्रतिक्रिया का नतीजा क्या निकलना है, यह समझा जा सकता है। यह छिपा नहीं है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के नतीजे में केवल प्रभावित इलाकों के नागरिक ही मुश्किल में नहीं है, बल्कि अनाज की आपूर्ति से लेकर अन्य संबंधित मामलों और कारोबार पर भी इसका असर पड़ा है। दुनिया के कई देशों को इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब इजराइल और हमास के टकराव के बाद भी युद्ध के जटिल हालात खड़े होते हैं, तो उसका हासिल सिर्फ एक नई त्रासदी ही होगी। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है।


Date:09-10-23

जल्द सुलटाना होगा तनाव

संपादकीय

गाजा पट्टी में सत्तारूढ़ चरमपंथी हमास ने शनिवार तड़के इस्राइली शहरों पर अप्रत्याशित हमला करते हुए दो सौ से ज्यादा इस्राइली नागरिकों की हत्या कर दी। हमले में 1100 से ज्यादा व्यक्ति घायल हुए। हमास के सैकडों लड़ाके हवाई, जमीनी और समुद्र के रास्ते इस्राइली सीमा में घुस गए। जवाबी कार्रवाई में इस्राइल के सैनिकों ने गाजा पट्टी में 198 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सोलह सौ से ज्यादा घायल हुए। हमास के ‘ऑपरेशन अल अक्सा स्टॉर्म’ के तहत इस्राइल पर ताबड़तोड़ हमलों के जवाव में यहूदी देश इस्राइल ने ‘ऑपरेशन आयरन स्वोर्ड ‘ की घोषणा की है। प्रधानमंत्री वेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ‘हम युद्धरत हैं। हमास ऐसी कीमत चुकाएगा जैसी उसने सोची भी न होगी।’ प्रमुख यहूदी अवकाश के रोज हमास के लड़ाकों ने इस्राइली शहरों पर हजारों रॉकेट दागे और इस्राइली सैनिकों और नागरिकों को बंधक बनाकर गाजा ले गए। बंधक बनाए गए लोगों की संख्या अभी अज्ञात है। इस बीच, इस्राइली इलाकों में हमास की गोलीबारी जारी है, और इस्राइल ने भी गाजा पट्टी पर हवाई हमले तेज कर दिए हैं। हमास के एक शीर्ष सूत्र के मुताविक, वंधक बनाए गए इस्राइली सैनिकों और नागरिकों का इस्तेमाल इस्राइली जेलों में वंद फिलस्तीनी वंदियों को मुक्त कराने के लिए अदला बदली की सौदेबाजी में किया जाएगा। भारत समेत पश्चिमी देशों ने हमले की निंदा करते हुए इस्राइल के प्रति समर्थन जताया है। गौरतलब है ि इस्राइल में भारत के 18 हजार के करीव भारतीय नागरिक हैं, और भारतीय मूल के लगभग 85 हजार यहूदी आवाद हैं। भारत ने अपने नागरिकों को ‘सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए सतर्कता’ वरतने की एडवाइजरी जारी की है। जिस तरह एकाएक इस्राइली शहरों पर हमास के लड़ाकों ने हमला किया है, उसे देख कर लगता है कि हमले पूरी तैयारी के साथ किए गए । इस्राइल में यह गंभीर आक्रमण सिमकैट टोरा के दिन किया गया तो इस्राइल में खुशी का ऐसा दिन है। जव यहूदी ‘टोरा स्क्रॉल’ पढ़ने का वार्षिक चक्र पूरा करते हैं। इस हमले से पचास साल पहले 1973 के युद्ध की यादें ताजा हो गई जिसमें इस्राइल के दुश्मनों ने यहूदी कैलेंडर के सबसे पवित्र दिन योम किप्पुर पर चौंकाते हुए हमला किया था। गौरतलव है कि हमास और इस्राइल के बीच इस टकराव के बड़े संघर्ष में तब्दील होने का खतरा पैदा हो गया है। लेवनॉन, ईरान जैसे मुस्लिम भाईचारा से प्रेरित चरमपंथी देशों के बीच में कूद पड़ने का अंदेशा है।


Date:09-10-23

पदकों का शतक

संपादकीय

एशियाई खेलों में भारत ने अनुमान से कहीं अधिक पदक जीतकर सुखद इतिहास रच दिया है। चीन के हांगझोउ में आयोजित 19वें एशियाई खेलों में भारत ने कुल 107 पदक जीतकर जो कमाल किया है, उसका असर देश की तमाम गलियों तक पहुंचेगा। पहले 4 अक्तूबर को भारत ने अधिकतम 70 पदक जीतने के रिकॉर्ड को तोड़ा और उसके बाद 7 अक्तूबर को 107 पदकों के साथ समापन किया। मतलब लगभग पांच वर्ष के समय में भारत की झोली में 37 पदकों का इजाफा स्वयं स्वर्णिम कहानी बयान कर रहा है। वाकई 7 अक्तूबर, 2023 भारतीय खेल के इतिहास में हमेशा यादगार रहेगा। पदक तालिका से हजारों भावी खिलाड़ियों को प्रेरणा मिल रही होगी। यह महज दूसरी बार है, जब भारत ने ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में से किसी में 100 से अधिक पदक जीते हैं। साल 2010 में नई दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने 101 पदक जीते थे और इस बार एशियाड में फिर 100 पदकों का आंकड़ा पार करने के इरादे से ही भारतीय दल रवाना हुआ था। खिलाड़ियों ने दिए गए लक्ष्यों को पूरा किया है, तो खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और प्रायोजकों का मनोबल खूब बढ़ा होगा। ऐसे मनोबल के साथ हम अगले एशियाड में 200 पदकों की ऊंचाई छूने का अभियान छेड़ सकते हैं।

हमने एक लंबा सफर तय किया है और हमें अपनी क्षमता के अनुरूप बहुत लंबा सफर तय करना है। हमें अपनी क्षमता को समझना होगा और उसे तेजी से निखारने पर काम करना होगा। गौर करने की बात है कि भारत ने सबसे ज्यादा रिकॉर्ड 29 पदक एथलेटिक्स में जीते हैं और निशानेबाजी में 22 पदक। क्या इन दो खेलों में भारत एक शक्ति के रूप में उभर रहा है? इसमें कोई शक नहीं कि कबड्डी, क्रिकेट, हॉकी में भारत हमेशा से मजबूत रहा है, लेकिन इधर, तमाम तरह के नए और देश में कम लोकप्रिय खेलों में भी ऐसे-ऐसे माहिर खिलाड़ी गांव-देहात से निकलकर विश्व पटल पर आ रहे हैं कि आश्चर्य होता है। पदक में भागीदार रहे तमाम खिलाड़ियों, उनके प्रशिक्षकों, खेल प्रबंधकों, सहायकों और प्रायोजकों की जितनी तारीफ की जाए, कम है। समय आ गया है कि एक-दूसरे के अनुभवों से सीखकर खिलाड़ी तेजी से आगे बढ़ें। उन खेलों पर ध्यान देना होगा, जहां हम सुविधाओं के बावजूद पदक नहीं ला पाए हैं।

ऐसा प्रभावशाली प्रदर्शन अगले साल होने वाले पेरिस ओलंपिक के लिए एक नींव के रूप में काम करेगा। अब एशियाड के 28 स्वर्ण, 38 रजत और 41 कांस्य से आगे की सोचने की जरूरत है। ऊंचे से ऊंचा लक्ष्य रखने वाले खिलाड़ी ही नई ऊंचाइयों को छू पाते हैं। खिलाड़ियों को ज्यादा महत्व देने की जरूरत है। खेल सुविधाओं का विकास हमारे खिलाड़ियों के अनुरूप ही होना चाहिए। किसी अच्छे प्रदर्शन से प्रेरणा लेने की जरूरत है। चीन ने इस एशियाड में 201 स्वर्ण जीते हैं, तो जापान 188 और दक्षिण कोरिया 190 पदकों के साथ लौटा है। एक दिन आएगा, जब भारत भी ऐसी ही ऊंचाई पर पहुंचेगा। बदलाव का बिगुल बज चुका है और भारतीय खिलाड़ियों की मानसिकता भी बदल गई है। भारतीय अब केवल भाग लेने के इरादे से नहीं खेलते हैं, अब वह एक-एक अंक के लिए जूझते हैं। खेलों की दुनिया में भी अपनी बात मजबूती से रखने वाले खिलाड़ियों का भविष्य उज्ज्वल है। कबड्डी का फाइनल मुकाबला एक बेहतरीन गवाह है, भारतीय खिलाड़ी अगर दृढ़ नहीं रहते, तो स्वर्ण हाथ से फिसल जाता।


Date:09-10-23

इजरायल-फलस्तीन फिर लहूलुहान

अश्विनी महापात्रा, ( प्रोफेसर, जेएनयू )

सबकी निगाह फिर पश्चिम एशिया की ओर उठ गई है, जहां बाकायदे जंग छिड़ गई है, सैकड़ों मासूम मारे गए हैं। वैसे आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर कोई अचानक हमला नहीं किया है, छह महीने पहले भी उसने हमला किया था और इजरायल की ओर से जवाबी कार्रवाई भी बहुत दिनों तक चली थी।

आज यह भी गौर करने की बात है कि फलस्तीन दो भागों में बंट गया है। वेस्ट बैंक में जहां पीएलओ, यानी फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन की सरकार है, तो गाजा पट्टी पर हमास का कब्जा है। हमास 1980 के दशक में पैदा हुआ कट्टरपंथी इस्लामिक मूवमेंट है। यह इस क्षेत्र में किसी भी तरह से इजरायल या उसके कब्जे को मंजूर नहीं करता है। जबसे फलस्तीन में अलगाव हुआ, उसके बाद से ही हमास का यह मकसद रहा है कि वह इजरायल के कब्जे वाले इलाकों को बलपूर्वक वापस ले ले। यह पहलू भी सब जानते हैं कि हमास एक घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन है। उसके साथ किसी भी देश का सीधे रिश्ता नहीं है, मगर परोक्ष रूप से उसे समर्थन मिलता रहा है। खासकर ईरान समर्थन करता है, कतर भी धन देता है, इसलिए हमास के पास हथियार आ जाते हैं। अभी हमास ने जो हमला किया है, इसमें कोई शक नहीं कि यह हमला उसने पूरी तैयारी से किया है, ताकि पश्चिम एशिया में इजरायल के जमे पैरों को उखाड़ा जा सके।

यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वेस्ट बैंक फलस्तीन में शासन कर रहा पीएलओ सेकुलर है, जिसके नेता याशर अराफात हुआ करते थे। हमास सांप्रदायिक रूप बहुत कट्टर संगठन है। अब हमास के पास मिसाइल भी है, जिससे वह इजरायल पर हमले करता है। उसने बहुत योजना के साथ दक्षिणी इजरायल क्षेत्र से घुसपैठ की है, जल, हवा और जमीन, तीनों ही स्तरों पर हमास ने हमला बोला है। ऐसा नहीं है कि हमास इजरायल के किसी क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा। पर वह शायद यह संदेश देना चाहता है कि उसके इलाके पर जो कब्जा करेगा, उसके खिलाफ वह लड़ेगा। हमास दुनिया को दिखाना चाहता है कि उसके पास इतनी ताकत है कि वह शक्तिशाली इजरायल में भी घुसपैठ कर सकता है। यह एक तरह से इजरायल की शान पर हमला है। हमास फलस्तीन के खैरख्वाह देशों को यह भी दिखाने की कोशिश में है कि पीएलओ कुछ नहीं कर रहा, केवल वही फलस्तीनियों के लिए लड़ रहा है।

अरब दुनिया में बड़े क्षेत्र को अगर हम देखें, तो ईरान एक बड़ी ताकत होने का दावा पेश करता है। वह शुरू से ही हमास का समर्थक है, तो जाहिर है, हम ईरान और इजरायल के बीच लंबे समय से तनाव देखते आए हैं। कतर एक छोटा देश है, मगर उसके पास पेट्रोलियम की वजह से बहुत पैसा है। सऊदी अरब की बात करें, तो वह मानता है कि फलस्तीनियों को लड़ने का अधिकार है, पर वह अंदर से हमास को नहीं चाहता है। मिस्र भी उसे नहीं चाहता, क्योंकि हमास इस्लामिक ब्रदरहुड से जुड़ा है। ऐसे में, वह हमेशा यही जताने की फिराक में लगा रहता कि वह अकेला संगठन है, जो फलस्तीनियों की आवाज उठाता है।

हमास और इजरायल के बीच लड़ाई पुरानी है, पर यह पहली बार ऐसा हुआ है कि हमास ने इजरायल के अंदर घुसकर ऐसी कार्रवाई की है। घुसकर इजरायलियों को मारा है, उन्हें बंधक बनाया है। इजरायल के लिए यह बहुत बड़ा बदलाव है, इसलिए उसने बिना देरी किए युद्ध की घोषणा कर दी है। फिर भी ऐसा लगता है कि कुछ दिनों तक युद्ध चलेगा और फिर समझौते के लिए प्रयास होंगे। दोनों पक्षों पर दबाव बनेगा।

बहरहाल, दुनिया पर इसका असर तय है। पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े होंगे और अमेरिका तो उसकी मदद करेगा ही। भारत भी इजरायल के साथ है। भारत खुद लंबे समय से आतंकी संगठनों से जूझ रहा है। इजरायल नैतिक, कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भारत की हमेशा मदद करता रहा है, वहीं हमास को नई दिल्ली ने आतंकी संगठन के रूप में ही देखा है। हमास के पक्ष में हम कभी खडे़ नहीं हो सकते। हां, केंद्र में कोई दूसरी सरकार होती, तो शायद वह तटस्थ रुख अपनाती। चूंकि यह सरकार अनेक आतंकी संगठनों से आगे बढ़कर लड़ रही है, सीमापार जाकर भी कार्रवाई की है, तो इजरायल का समर्थन करना स्वाभाविक है। वैसे भी समग्रता में यह हमारा कर्तव्य है कि इस मौके पर हम इजराइल के साथ खड़े हों।

आज चिंता बड़ी है, पर युद्ध का क्षेत्र छोटा है। आकार में अगर देखें, तो इजरायल या फलस्तीन का क्षेत्र बड़ा नहीं है। पश्चिम एशिया में छोटे-छोटे देश हैं, जिनके बीच भयानक खूनी संघर्ष चलता रहा है। इजरायल ने गाजा क्षेत्र से अपना कब्जा हटा लिया था, क्योंकि गाजा को नियंत्रित करना कठिन है, वहां घनी आबादी है, पिछड़ापन है। अब जब गाजा पर कब्जा किए बैठे हमास और इजरायल के बीच युद्ध छिड़ गया है, तब सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की हो रही है कि इजरायल का खुफिया तंत्र इतना कमजोर कैसे पड़ गया? हमास ने यह तो दिखा ही दिया कि वह जब भी चाहे, इजरायल पर हमले कर सकता है। यह इजरायल में असुरक्षा का भाव पैदा करने की साजिश है। अभी तक वह दुश्मनों या प्रतिकूल देशों से घिरे होने के बावजूद खुद को बहुत सुरक्षित समझ रहा था, मगर हमास ने हमला करके बता दिया कि अगर गाजा सुकून से नहीं है, तो इजरायल भी चैन से नहीं रह सकता। शायद इजरायल की तरक्की भी चुभ रही है। हमने देखा है कि पिछले दिनों में सऊदी अरब ने भी इजरायल से संबंध बनाने की रुचि दिखाई है। हमास यह नहीं चाहता, इसलिए अगर उसकी मंशा बड़े युद्ध की हो, तो आश्चर्य नहीं।

रही बात इजरायल को परास्त करने की, तो उसे हराया नहीं जा सकता। शायद हमास यह भी चाहता होगा कि सीधे हमला करके वह बाकी अरब देशों की सहानुभूति व समर्थन बटोर लेगा। उसे लगा होगा कि अरब देश उसके साथ खड़े हो जाएंगे, पर ऐसा होने की संभावना नहीं है। यह रूस-यूक्रेन युद्ध जैसा मामला नहीं है। अरब दुनिया बहुध्रुवीय है, ऐसा नहीं है कि सारे अरब देश फलस्तीन के लिए लड़ना शुरू कर देंगे। अभी भारत का आधिकारिक पक्ष सही है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम इजरायली कब्जे के पक्षधर बन जाएं। हमें आतंकी हमले के खिलाफ खड़े रहना चाहिए।