03-09-2022 (Important News Clippings)

Afeias
03 Sep 2022
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Date:03-09-22

Bail, The Rule

Far too many undertrials are kept in jail for too long.

TOI Editorials

Teesta Setalvad yesterday was granted interim bail by the Supreme Court after having spent more than two months in jail in a case pertaining to alleged fabrication of documents in relation to riots in Gujarat in 2002. Notwithstanding the apex court order, the Gujarat high court will continue to consider her regular bail application. SC’s decision was underpinned by some observations it made earlier. Setalvad has spent over two months in jail without a chargesheet being filed. The offences pertain to alleged forgery and not bodily harm. The offences do not restrain the court from granting bail.

India’s jurisprudence on bail is rooted in the Constitution’s Article 21, the right to life and personal liberty. Its importance can be gauged from the fact that the relevant procedures provide for everything from anticipatory bail to statutory bail. Therefore, SC’s approach is guided by the principle that bail is the rule and jail is the exception.

This principle is not followed often enough by other levels of the judiciary. Data till December 2021 show that of 5. 54 lakh prisoners, 77% were undertrials. A mere 22% of prisoners had been convicted. Around 95% of undertrials are released on bail but the process is slow, often inhumanely so. GoI data for 2019 showed that almost half of the jailed undertrials had been locked up for more than two years. This is unconscionable.


Date:03-09-22

Wind in the sail

INS Vikrant is a milestone for India; the focus now must be on a twin-engine deck-based fighter .

Editorial

India commissioned its first indigenously designed and built aircraft carrier, INS Vikrant, on Friday and joined a small group of countries which include the U.S., the U.K., Russia, France and China, that have the capability to design and build carriers with a displacement of over 40,000 tonnes. What India has demonstrated is the capacity to develop a carrier although it has been operating these ships for over 60 years. It took 17 years from the time the steel was cut and around ₹20,000 crore to make Vikrant a reality. Developing a viable domestic defence industry has been a priority for Prime Minister Narendra Modi, and the new aircraft carrier is a sign of India’s expanding atmanirbharta or self-reliance in defence. The new vessel has 76% of indigenous content overall but its critical technology has been imported, pointing to the need for persistence. The carrier in itself is an engineering marvel with an endurance of 7,500 nautical miles. It has around 2,200 compartments for a crew of around 1,600 that include specialised cabins to accommodate women officers and sailors, and a full-fledged speciality medical facility. Several technological spin-offs from the ship’s construction include the capacity to manufacture warship-grade steel, which India used to import. Its commissioning gives India and its emerging defence manufacturing sector the confidence to aim and sail farther.

The Indian Navy’s ambition is to have three aircraft carriers — it already has INS Vikramadityaprocured from Russia — and it has suggested that the expertise gained from building Vikrant could now be used to build a second, more capable, indigenous carrier. INS Vikrant will be the wind in the sail for India’s proactive maritime strategy in the Indo-Pacific and the Indian Ocean Region. At the commissioning ceremony in Kochi, Defence Minister Rajnath Singh reiterated India’s interest in “a free, open and inclusive Indo-Pacific” and Mr. Modi’s idea of ‘SAGAR’ or Security and Growth for All in the Region. A strong Navy is also critical to India’s ambition to grow its share in global trade, which is largely maritime — INS Vikrant significantly expands the Indian Navy’s footprint in the backdrop of increasing Chinese activity in the region and New Delhi’s closer cooperation with the U.S. While MiG-29K fighter jets will now be integrated into the fleet air arm of Vikrant, the Navy has taken an active interest in procuring either the French Rafale M or the American F/A-18 Super Hornet. This would need structural modifications in the ship which would allow operating these more capable aircraft from its deck. Meanwhile, the plans to develop India’s own twin-engine deck-based fighter continue to remain a distant dream. The focus, and priority now, should be in resolving the fighter jet conundrum while also taking a call on the second indigenous aircraft carrier to ensure that the expertise gained is not jettisoned due to strategic myopia.


Date:03-09-22

क्या भारत के लोग नैतिकता में विश्वास नहीं रखते हैं?

पवन के. वर्मा, ( लेखक, राजनयिक, पूर्व राज्यसभा सांसद )

अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार पूछा था कि क्या भारत के लोग नैतिकता के संकट से जूझते हैं? दूसरे शब्दों में, वे स्वविवेक से नैतिक होते हैं या किसी डर या दबाव के चलते सही चीजें करते हैं? भारत में भ्रष्टाचार कोई अजूबी चीज नहीं है। अजूबी चीज है उसकी स्वीकार्यता और जितने तरीकों से इसे कायम रखा जाता है, उनकी ‘रचनात्मकता’। मालूम होता है कि भारत के लोग नैतिकतापूर्ण और न्यायोचित व्यवहार में उस तरह से विश्वास नहीं रखते, जैसे कि उदाहरण के लिए स्कैंडिनेवियाई देशों के लोग रखते हैं। हमारे लिए भ्रष्टाचार तब बुरा होता है, जब दूसरे उसे करें। सामान्यतया हमारा व्यवहार नैतिकता के बजाय उपयोगिता से अधिक संचालित होता है।

हमारे यहां नैतिकता के साथ यह कहकर छूट ली जाती है कि हमें दुनियादारी आनी चाहिए, क्योंकि जमाना खराब है और जरूरी नहीं कि वह आपसे न्यायपूर्ण व्यवहार करेगा। वैसे में जब अवसर कम हों, प्रतिस्पर्धा कड़ी हो, भ्रष्टाचार का बोलबाला हो, और कामयाबी सुनियोजित तरीके से खरीदी जा सकती हो, तो मान लिया जाता है कि दुनिया से जो चाहिए, वो हासिल करो। बदले में आपको जो देना होगा, उसे आप वैसे भी टाल न सकेंगे। शायद आज ऑनलाइन-लेनदेन ही ऐसा क्षेत्र रह गया है, जहां मनुष्य का दखल सीमित होने से ईमानदारी की गुंजाइश रह गई है। क्योंकि आज ऐसे लोग बहुत कम रह गए हैं, जो स्वविवेक से नैतिकता का निर्वाह करें।

महात्मा गांधी साधन-शुचिता में विश्वास रखते थे और कहते थे कि साधन भी साध्य जितने महत्वपूर्ण हैं। उनकी नैतिक श्रेष्ठता को सराहा गया, लेकिन उन्हें अधिक अनुयायी नहीं मिले। क्या इसलिए कि यह विचार भारतीय परम्परा के प्रतिकूल था? कौटिल्य का अर्थशास्त्र सत्ता के नैतिक आधार पर चर्चा करने में समय नहीं गंवाता। इसके उलट वह साम-दाम-दंड-भेद से सत्ता पाने और बनाए रखने के तौर-तरीकों की पैरवी करता है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने कौरवों को परास्त करने को नैतिक साधनों से अधिक प्राथमिकता दी थी। कौरवों के गुरु द्रोण का वध तभी किया जा सका था, जब युद्धिष्ठिर को एक झूठ बोलने को कहा गया। द्रोण अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत प्रेम करते थे। श्रीकृष्ण जानते थे, अगर द्रोण से कहा जाए कि अश्वत्थामा मारा गया तो उनका मनोबल टूट जाएगा। युद्ध में अश्वत्थामा नामक एक हाथी की मृत्यु हुई थी। इन मायनों में युद्धिष्ठिर ने जब कहा कि अश्वत्थामा मारा गया तो वे झूठ नहीं बोल रहे थे। लेकिन वे इस वाक्य में निहित छल से अनभिज्ञ नहीं थे।

इसी तरह कर्ण का वध तब किया गया, जब उनके रथ का पहिया धरती में धंस गया था और वे उसे निकालने के लिए नीचे उतरे थे। एक निहत्थे व्यक्ति पर प्रहार करना युद्ध के नियमों के विपरीत था, लेकिन कृष्ण-नीति यह थी कि उन लोगों के साथ नैतिकतापूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है, जो स्वयं अनैतिकता को प्रश्रय देते हों। दुर्योधन भीम के साथ हुई लड़ाई में मारा गया था। भीम आमने-सामने की टक्कर में दुर्योधन से जीत नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर प्रहार किया, जबकि यह भी नियमों के विपरीत था। चूंकि कौरव अधर्म के प्रतीक थे, इसलिए उन्हें परास्त करने के लिए अनुचित साधनों के प्रयोग को सही मान लिया गया था।

हिंदू दृष्टि में धर्म एक अत्यंत परिष्कृत अवधारणा है। यह हमारे सामने नीतिपूर्वक आचरण का एक खाका तो रखता ही है, लेकिन साथ ही व्यवहारकुशलता की भी अनुमति देता है, ताकि उचित संदर्भ में उसे उपयुक्त ठहराया जा सके। ईसाई परम्परा के उलट हमारे यहां टेन कमांडमेंट्स नहीं होते। महाभारत में जब द्रौपदी युद्धिष्ठिर से कहती हैं कि पांच भाइयों के बीच उन्हें साझा करना धर्म के विपरीत है तो युद्धिष्ठिर कहते हैं- धर्म सूक्ष्म है, द्रौपदी। उसे कौन परिभाषित कर सका है? लेकिन आज धर्म की बौद्धिक सूक्ष्मताओं को भुलाकर उसका सामान्यीकरण कर दिया गया है। सत्ता, रसूख और सम्पत्ति के लिए नैतिकता को ताक पर रख दिया गया है। यही कारण है कि आज माता-पिता भी अपने बच्चों के साथ मिलकर उनके परचे की लीक्ड कॉपी हासिल करने की कोशिश करने लगते हैं। या राजनीतिक पार्टियां उचित-अनुचित का चिंतन किए बिना येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करने की कोशिश करती हैं। इस नैतिक पराभव के लिए हम सब मिलकर जिम्मेदार हैं।


Date:03-09-22

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

संपादकीय

देश के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत के जलावतरण के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया, जो ऐसे पोत स्वयं बना सकने में सक्षम हैं। इसी कारण प्रधानमंत्री ने आइएनएस विक्रांत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का परिचायक बताया। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता समय की एक ऐसी मांग है, जिसे पूरा करने के लिए न केवल हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए, बल्कि इस उद्देश्य के तहत काम किया जाना चाहिए कि भारत रक्षा सामग्री और उपकरणों का आयातक बनने के बजाय निर्यातक बने। यह केवल इसलिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि भारत उन देशों में शामिल है, जो अधिकांश रक्षा सामग्री आयात करता है, बल्कि इसलिए भी है, क्योंकि सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। यदि देश अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर हो सके तो हथियारों की खरीद में खर्च होने वाले धन को देश के विकास में लगा सकता है। रक्षा जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि कई बार जरूरी रक्षा सामग्री समय पर नहीं मिल पाती।

भारत अपनी अधिकांश रक्षा जरूरतों के लिए उस रूस पर निर्भर है, जो यूक्रेन युद्ध के बाद से चीन के निकट जा रहा है। चूंकि इसका कोई पता नहीं कि यूक्रेन युद्ध कब समाप्त होगा, इसलिए यह आशंका बढ़ गई है कि भारत को रूस से रक्षा सामग्री और उपकरण हासिल करने में कठिनाई और देरी का सामना करना पड़ सकता है। इस सिलसिले में यह भी किसी से छिपा नहीं कि रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने में अच्छा-खासा समय लग जाता है। इसके चलते कई बार सेनाओं को समय पर रक्षा सामग्री नहीं मिल पाती। एक ऐसे समय जब चीन शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाए हुए है और इसके कोई आसार नहीं कि वह सीमा पर तनाव खत्म करने का इच्छुक है, तब यह कहीं अधिक आवश्यक है कि भारत अपनी सेनाओं को किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार रखे। जैसे चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वैसे ही पाकिस्तान पर भी। ये दोनों देश भारतीय हितों के खिलाफ काम करने में लगे हुए हैं। इसे देखते हुए भारत को अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के मामले में तत्परता का परिचय देना होगा। एक ऐसे समय जब भारत ने अगले 25 वर्षों में स्वयं को विकसित देश के रूप में उभारने का लक्ष्य रखा है, तब यह और आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी रक्षा जरूरतों के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनने की ठोस रूपरेखा बनाए। ध्यान रहे कि कोई देश वास्तव में विकसित तभी बनता है, जब वह रक्षा के मामले में आत्मनिर्भर होता है।


Date:03-09-22

स्वदेशी क्षमताओं का प्रमाण विक्रांत

डा. लक्ष्मीशंकर यादव, ( लेखक सैन्य विज्ञान के पूर्व प्राध्यापक हैं )

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिवस स्वदेश निर्मित भारत के पहले विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड में देश सेवा के लिए समर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि केरल के समुद्री तट पर पूरा भारत एक नए भविष्य के सूर्योदय का साक्षी बन रहा है। यह विश्व क्षितिज पर भारत के बुलंद होते हौसलों की हुंकार है। यह पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत ही नहीं, बल्कि समंदर पर तैरता हुआ एक किला है। इसका डिजाइन और निर्माण सब कुछ भारत में ही किया गया है। इसमें जितनी बिजली पैदा होगी, उससे 5000 घरों को रोशन किया जा सकता है। इसका फ्लाइंग डेक भी फुटबाल के दो मैदानों से बड़ा है। 1971 की लड़ाई में अपनी शानदार भूमिका निभाने वाले विक्रांत का यह नया अवतार अमृत-काल की उपलब्धि के साथ-साथ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और बहादुर सैनिकों को भी एक विनम्र श्रद्धांजलि है। इस अवसर पर भारतीय नौसेना ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिए खोलने का निर्णय भी लिया है।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने भारतीय नौसेना को नया ध्वज भी प्रदान किया। अब छत्रपति शिवाजी से प्रेरित नौसेना का नया ध्वज समुद्र में लहराएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नौसेना के नए निशान का भी अनावरण किया। अब गुलामी के प्रतीक लाल क्रास को हटा दिया गया है। ध्वज में ऊपर बाईं तरफ तिरंगा बना हुआ है और बगल में नीले रंग के बैकग्राउंड पर गोल्डन कलर में अशोक चिह्न बना हुआ है, जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण आत्मनिर्भर भारत अभियान की एक खास मिसाल है। इस तरह इसने नौसैन्य बल का एक नया समुद्री इतिहास रच दिया गया है। इस उपलब्धि के बाद भारतीय नौसेना दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में से एक बन गई है।

आइएनएस विक्रांत के निर्माण की शुरुआत 28 फरवरी 2009 को कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड में की गई। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे 12 अगस्त 2013 को लांच किया गया। दिसंबर 2020 में इसका बेसिन ट्रायल किया गया, जिसमें यह पूरी तरह खरा उतरा। सामुद्रिक परीक्षणों के लिए इसे 4 अगस्त 2021 को समुद्र की लहरों पर उतारा गया, जो इसके परीक्षण का पहला चरण था। परीक्षण का दूसरा चरण अक्टूबर 2021 और तीसरा चरण 22 जनवरी 2022 को पूरा हुआ। इसका अंतिम और चौथा समुद्री परीक्षण मई 2022 में शुरू किया गया, जो 10 जुलाई 2022 को पूरा हुआ। चौथे परीक्षण में समुद्र के करीब और दूरी पर रक्षा संबंधी उपकरणों के साथ इसकी रणनीतिक क्षमता को नौसेना द्वारा व्यापक रुप से जांचा-परखा गया। परीक्षणों में यह भी देखा गया कि यह पोत कितना ताकतवर, टिकाऊ और भरोसेमंद है। इसके अलावा इसकी मारक क्षमता भी देखी गई। इन परीक्षणों ने यह सिद्ध कर दिया कि इसके नौसेना में शामिल होने के बाद देश की रक्षा शक्ति में अभूतपूर्व क्षमता जुड़ जाएगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी। आइएनएस विक्रांत भारत का पहला स्टेट आफ द आर्ट विमानवाहक पोत है। इस युद्धपोत को बनाने में करीब 23,000 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके कांबैट मैनेजमेंट सिस्टम को टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियर डिवीजन ने रूस की वीपन एंड इलेक्ट्रानिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग और मार्स के साथ मिलकर बनाया है। इसे बनाने में कोचीन शिपयार्ड के साथ-साथ 500 से अधिक भारतीय कंपनियों ने मदद की है। इसके अलावा इसके निर्माण में करीब सौ एमएसएमई कंपनियां भी शामिल थीं। इस युद्धपोत के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग कंपनियों ने बनाया है। यह मेक इन इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस पर तैनात होने वाले लड़ाकू विमानों को लेकर भी काफी चिंतन और मनन किया गया। पहले इस पर हल्के तेजस लड़ाकू विमानों को तैनात किए जाने की बात हुई, परंतु इसमें कुछ समस्याएं आईं तो रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने एक प्लान बनाकर हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड को दिया, जिसके तहत अब वह ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर विकसित कर रहा है। तब तक के लिए इस पर मिग-29के श्रेणी वाले लड़ाकू विमानों को तैनात किया जाएगा।

इस विमानवाहक पोत की फ्लाइट डेक करीब 1.10 लाख वर्ग फुट की है, जिस पर बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान आराम से टेक आफ और लैंडिंग कर सकते हैं। इस पर एक बार में 36 से लेकर 40 की संख्या में लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं। इस विमानवाहक पोत की स्ट्राइक फोर्स की रेंज 1,500 किमी तक की है। इस पर जमीन से हवा में मार करने में सक्षम 64 बराक मिसाइलें लगी होंगी। आइएनएस विक्रांत में जनरल इलेक्ट्रिक के ताकतवर टरबाइन लगे हैं, जो इसे 1.10 लाख हार्स पावर की ताकत देंगे। इस तरह यह काफी शक्तिशाली विमानवाहक पोत है। इस युद्धपोत को सर्वश्रेष्ठ आटोमेटेड मशीनों, आपरेशन, शिप नेविगेशन एवं सुरक्षा प्रणलियों से लैस किया गया है। इसकी लंबाई 860 फुट, गहराई 84 फुट ओर चौड़ाई 203 फुट है। इस पोत का कुल क्षेत्रफल 2.5 एकड़ का है। यह 52 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से समुद्र की लहरों को चीरता हुआ तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है। यह एक बार में 15,000 किमी की यात्रा कर सकता है। इसमें एक बार में 196 नौसेना अधिकारी, 1149 सेलर्स और एयरक्रू तैनात रह सकते हैं। इन खूबियों वाला यह पोत हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारतीय नौसेना की ताकत काफी बढ़ा देगा।


Date:03-09-22

हर लिहाज से फायदेमंद है ‘नेट जीरो’

जयंत सिन्हा, ( लेखक संसद की वित्तीय स्थायी समिति के चेयरमैन हैं। वह झारखंड के हजारीबाग से लोकसभा के सदस्य हैं। )

भारत के ज्यादातर लोगों का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने से देश का विकास बाधित होगा। उनका विश्वास है कि कोयले पर आधारित ऊर्जा का विकल्प सौर ऊर्जा नहीं हो सकती है। विद्युत चालित कारें अत्यधिक महंगी हैं। इसलिए लोग जानवरों के जीवाश्म से बने ईंधन की जगह पौधों के प्रोटीन पर आश्रित ईंधन की ओर रुख नहीं करेंगे। उनका मानना है कि ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले जीवाश्म आधारित ईंधन (भूरी) तकनीकों की जगह कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली (हरित) तकनीकें ज्यादा नुकसान करेंगी। यदि भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकों की लागत कम होगी तो भारत के विकास के लिए नेट जीरो उत्सर्जन अच्छा रहेगा। ऐसे में बेहतर यह रहेगा कि बाजार की दशा व दिशा इसे रास्ते पर आगे बढ़े। नेट जीरो मुनाफे, लोगों और ग्रह के लिए पूरी तरह फायदेमंद होगा।

अनुमान यह है कि हालिया नीतियों के कारण वैश्विक स्तर पर साल 2100 तक तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तेजी से तापमान बढ़ने की स्थिति में भारत पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में अकाल, बाढ़, तटीय इलाकों के जलमग्न होने, हिमनदों के पिघलने और गर्म हवाओं के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और नए रोजगारों का सृजन ठहर सा जाएगा। मौसम की अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियां आधारभूत संरचना को नुकसान पहुंचाएगी और ऐसे में आपदा प्रबंधन के लिए कहीं अधिक निवेश की जरूरत होगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटीय शहरों को खतरा पैदा हो जाएगा। स्विस रे ने तापमान 1.5 डिग्री की जगह 2-3 डिग्री बढ़ने की तुलना करते हुए अनुमान जताया है कि ऐसे में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 10-20 प्रतिशत तक कम हो सकता है। इसके अलावा हमारे शहरों को जीवाश्म आधारित ईंधन से अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाले वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर साल 10 लाख से 20 लाख लोगों की मौत होती है।

भारत के नेट जीरो की तुलना वैश्विक स्तर पर 2-3 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी से तुलना की गई है। अभी तक नेट जीरो को अपनाने की अवस्था में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव दिखाई नहीं देते हैं। अभी तक यह माना जाता रहा है कि जीवाश्म पर आधारित ईंधन के दाम कम ही रहेंगे। हालांकि भूराजनीतिक दशाओं और कम निवेश के कारण जीवाश्म आधारित ईंधन के दाम अत्यधिक बढ़ सकते हैं। इस साल तक भारत का कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले का आयात 250 अरब डॉलर के करीब हो जाएगा और आयात में इनकी हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक हो सकती है।

विश्व 2050 तक जीरो उत्सर्जन को अपना लेगा। अनुमान यह है कि तब भारत की अर्थव्यवस्था 7 अरब टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन के स्तर को पार कर सकती है। हमारे नेट जीरो के रास्ते में हरित तकनीकों जैसे सौर और पवन ऊर्जा, इलेक्ट्रिक मोबिलटी, हरित हाइड्रोजन और पौधों के प्रोटीन के क्षेत्रों में अत्यधिक व तुरंत निवेश की जरूरत होगी। यह माना जाता रहा है कि भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकों में अधिक निवेश की जरूरत है। इसलिए इसे बिल गेट्स ने ‘ग्रीन प्रीमियम’ (महंगी हरित) नाम दिया। हालांकि अभिनव प्रयोग करने वाले भारतीय कारोबारियों ने ‘ग्रीन प्रीमियम’ को ‘ग्रीन डिस्काउंट’ (छूट वाली हरित) में परिवर्तित कर दिया है।

कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र की अपेक्षा सौर ऊर्जा से बनी विद्युत की लागत 20-30 प्रतिशत कम आ रही है और यह पूरे दिन मुहैया कराई जा रही है। भारत में बिकने वाले ऑटो रिक्शा में 90 प्रतिशत से अधिक इलेक्ट्रिक ईंधन से चालित हैं। सामान्य ऑटो रिक्शा की अपेक्षा इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा सस्ते तो हैं ही, साथ ही इनकी परिचालन लागत भी कम है। डीजल और पेट्रोल से चलने वाली कारों की अपेक्षा इलेक्ट्रिक से चलने वाली कारें सस्ते दामों पर मुसाफिरों को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जा रही हैं। इसी तरह भारत में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) मुसाफिरों को कम मूल्य पर गंतव्यों तक लेकर जा रहे हैं। दुनिया भर के तकनीकविदों के सहयोग से भारत के दिग्गज कारोबारी समूह यह प्रयास कर रहे हैं कि हरित हाइड्रोजन की कीमत एक डॉलर प्रति किलोग्रास से कम लाई जा सके। चीनी की मिल एथनॉल का उत्पादन कर रही हैं ताकि इसका पेट्रोल से सम्मिश्रण कर जीवाश्म ईंधन की लागत को कम लाया जा सके। सोयाबीन से तैयार सोया दूध की कीमत डेयरी के दूध से कम है।

भारत पेट्रोल, डीजल और कोयले पर उच्च आबकारी करों के जरिये कार्बन पर शुल्क लगा रहा है। औद्योगिक उत्सर्जन के लिए उत्सर्जन व्यापार योजना की घोषणा कर दी गई है। छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने, बिजली चालित वाहनों और उनके चार्जिंग स्टेशनों के नेटवर्क के लिए महत्त्वपूर्ण रियायतें दी जा रही हैं। ये रियायतें तय करेंगी कि हरित तकनीकें सस्ती दर पर मुहैया हों और भारत के स्टार्टअप सिस्टम को कहीं बेहतर समाधान मुहैया कराए जा सकें। इससे हम अधिक से अधिक हरित यूनिकॉर्न (एक अरब से अधिक मूल्य की कंपनियों) को बनने में मदद देंगे। इससे देश में नए हरित उद्योगों का उदय होगा और इससे तेजी से कार्बन उत्सर्जन घटेगा।

सरकार की नीतियों की मदद से सस्ती हरित तकनीक अपनाने से भारत की अर्थव्यवस्था में तकनीक के स्तर पर अत्यधिक परिवर्तन आएगा। बीते दशकों में डिजिटल तकनीकों ने एनालॉग तकनीक की जगह ले ली है। बाजार आधारित निवेश, तकनीकी विकास और व्यापक औद्योगिक गतिविधियों के कारण व्यापक रूप से आईटी, टेलीकॉम, वित्तीय और मीडिया उद्योग को बढ़ावा मिला है। अब हरित उद्योग फलेंगे-फूलेंगे।

कई व्यापक अध्ययनों के मुताबिक इस सदी के मध्य तक नेट शून्य उत्सर्जन का स्तर पाने के लिए भारत को हर साल 50 से 100 अरब डॉलर का निवेश करने की जरूरत होगी। प्राइवेट क्षेत्र की पूंजी से हरित उद्यमिता का तेजी से विकास होगा। हरित उद्योगों से मिलने वाले निवेश इस क्षेत्र में और निवेश को आकर्षित करेगा। इससे बाजार भारत को नेट जीरो के रास्ते पर ले जाएगा। नेट जीरो का रास्ता अपनाने पर जीडीपी की विकास दर कहीं ज्यादा होगी। ऐसे में ज्यादा नौकरियों का सृजन होगा, वायु प्रदूषण घटेगा, भुगतान का बेहतर संतुलन होगा और भारत की अर्थव्यवस्था अधिक मजबूत हो जाएगी। यदि हम 2-3 डिग्री तापमान में बढ़ोतरी से तुलना करेंगे तो नेट जीरो का विकास अधिक सकारात्मक रहेगा।

भारत हरित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐसे स्तर पर पहुंचने के करीब है कि वह अन्य देशों को सेवाएं मुहैया कराकर धन अर्जित कर सकता है। निर्विवाद रूप से भूरी तकनीकों की अपेक्षा हरित तकनीकें अधिक सस्ती हैं। जी-7 देशों को हमारे नेट जीरो विकास के लिए पर्याप्त रूप से वित्तीय तंत्र से मदद अवश्य मुहैया करानी चाहिए। इससे हमारी कंपनियों और उद्यमियों को नए हरित कारोबार के लिए संसाधन उपलब्ध हो पाएंगे और वे वर्तमान कारोबार को परिवर्तित भी कर पाएंगे। मार्केट की शक्तियां और रिटर्न से प्राप्त पूंजी कार्बन उत्सर्जन को तेजी से कम करने में मदद करेगी। नेट जीरो से भारत में सकारात्मक आर्थिक विकास, रोजगार का सृजन और लोगों की सेहत बेहतर होगी।


Date:03-09-22

सामरिक उपलब्धि

संपादकीय

स्वदेशी तकनीक से बने विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत के जलावतरण से भारत की सामरिक ताकत और आत्मविश्वास निस्संदेह काफी बढ़ गया है। करीब सोलह सौ सदस्यों वाले चालक दल के लिए तैयार किया गया यह युद्धपोत एक तरह से समुद्र में चलती-फिरती वायु और जलसेना छावनी की तरह काम करेगा। इस पर एक समय में करीब तीस हल्के लड़ाकू विमान और हेलिकाप्टर तैनात किए जा सकेंगे। इस तरह यह देश का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत है। हालांकि अमेरिका, चीन और रूस के पास इससे कुछ अधिक क्षमता वाले पोत हैं, पर विक्रांत के जलावतरण के बाद भारत अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस की कतार में खड़ा हो गया है। भारत के पास एक और विमानवाहक पोत सक्रिय है- विक्रमादित्य। यानी अब भारत के पास दो ऐसे युद्धपोत हो गए हैं। चीन के पास भी इतने ही पोत हैं। विक्रांत के संचालन से इसके जरिए मिग आदि लड़ाकू विमानों को समुद्र में उतारने और उड़ान भरने की सुविधा उपलब्ध होगी। विक्रांत खुद एक युद्धक जलपोत है। इस तरह हिंद महासागर में भारत की ताकत बढ़ गई है। स्वाभाविक ही विक्रांत के संचालन से खासकर पाकिस्तान और चीन की चिंता बढ़ गई है। अभी तक हिंद महासागर में चीन का दबदबा बना हुआ था और अपनी सामरिक ताकत के बल पर वह भारत को धौंस देता रहता है। इससे उसका मनोबल कुछ कमजोर होगा।

विक्रांत की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार किया गया है। इसमें देश की करीब पांच सौ छोटी-बड़ी कंपनियों ने सहयोग दिया। इसके पहले वाला विक्रांत युद्धपोत ब्रिटेन से मंगाया गया था। विक्रमादित्य रूस से खरीदा गया था। इस तरह विक्रांत की सफलता के बाद भारत का स्वदेशी सैन्य साजो-सामान के मामले में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प विक्रांत के जलावतरण से साकार होता दिख रहा है। भारत उन देशों में है, जो अपने सैन्य साजो-सामान पर काफी धन खर्च करता है। इसलिए कई देश उससे सैन्य उपकरणों की खरीद आदि के लिए लालायित रहते हैं और इसके मद्देनजर अपने अंतरराष्ट्रीय रिश्तों और रणनीतियों में बदलाव भी करते रहते हैं। कई बार इसी आधार पर वे भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करते देखे जाते हैं। दरअसल, कई देशों की अर्थव्यवस्था सैन्य साजो-सामान के कारोबार पर निर्भर है। वे बिचौलियों को मोटा कमीशन, घूस आदि देकर लड़ाकू विमान, हेलिकाप्टर, पनडुब्बी, हथियार आदि खरीदने का सौदा कराते रहते हैं। अगर भारत इस मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन जाता है, तो न सिर्फ इन अड़चनों से मुक्ति मिलेगी, बल्कि वह खुद एक सैन्य साजो-सामान के बाजार में खड़ा हो सकता है। इसका रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। इसलिए भी हथियार बनाने वाले देशों को विक्रांत का जलावतरण खटक रहा होगा।

सबसे बड़ी बात कि विक्रांत की हिंद महासागर में मौजूदगी से चीन का एकाधिकार समाप्त होगा और वह भारत को जब-तब आंखें दिखाने से बचेगा। अभी भारत को हिंद महासागर में सबसे अधिक चुनौती चीन की तरफ से ही मिलती रही है। पाकिस्तान भी उसी की शह पर भारत को उकसाने का प्रयास किया करता था। अब वह ऐसा नहीं कर पाएगा, क्योंकि इस युद्धपोत में पानी के भीतर से आसमान में मार करने वाले अत्याधुनिक हथियार लगे हुए हैं। दुश्मन पनडुब्बियों की टोह लेने में भी आसानी हो गई है। सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि विक्रांत के आने से हिंद प्रशांत और हिंद महासागर में शांति का वातावरण बनेगा।


Date:03-09-22

विक्रांत का गौरव

संपादकीय

यह देश के लिए बड़ी खुशखबरी है कि भारतीय नौसेना को पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत मिल गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में केरल तट पर विशाल पोत आईएनएस विक्रांत भारत की आन-बान-शान में शुमार हो गया। प्रधानमंत्री ने यहां तक कह दिया कि यह पोत समंदर की सभी चुनौतियों को भारत का जवाब है। लंबे समय से इस स्वदेशी पोत का इंतजार था। पोत बनाने की क्षमता अभी केवल चंद विकसित देशों के पास है, अब इन देशों में भारत भी अपनी अनोखी क्षमता के साथ शामिल हो गया है। यह पोत स्वयं ही इतनी ऊर्जा पैदा करने में सक्षम है, जिससे 5,000 से ज्यादा घरों को रोशन किया जा सकता है। इसमें जितने केबल और तार इस्तेमाल हुए हैं, वे कोच्चि से शुरू हों, तो काशी तक पहुंच सकते हैं। इसका डेक एक फुटबॉल मैदान के बराबर बताया जा रहा है। वाकई इसके आने से नौसेना की ताकत में ही नहीं, बल्कि मनोबल में भी वृद्धि होगी। स्वदेशी पोत से स्वदेश की रक्षा के संकल्प को मजबूती मिलेगी। यह जरूरी है कि सेना में ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी साजो-सामान हों, ताकि उनकी देखरेख आसानी से हो सके। स्वदेशी पोतों पर किसी नई सुविधा को जोड़ने व पुरानी को हटाने में भी अनावश्यक समय नहीं लगेगा।

यह गौर करने की बात है कि भारत के नौसेना विज्ञान को भी इस अवसर पर खूब याद किया जा रहा है। भारत एक समय नौसेना के मामले में बहुत सक्षम था। मध्यकालीन इतिहास को अगर देखें, तो 1650 के आसपास छत्रपति शिवाजी ने अपनी नौसेना का निर्माण किया था। वह नौसेना की जरूरत को समझ गए थे, लेकिन जब देश पर अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ा, तो उन्होंने भारतीय नौसेना विज्ञान और उद्योग को एक तरह से प्रतिबंधित कर दिया। भारत नौसेना ही नहीं, अस्त्र-शस्त्र निर्माण के क्षेत्र में भी काफी पिछड़ गया और आज के समय में भी सामरिक संसाधनों के मामले में हम आत्मनिर्भरता से बहुत दूर हैं। हमारे पास विमानवाहक पोत और भी हैं, लेकिन उनका निर्माण स्वदेशी तकनीक या स्वदेशी प्रयासों से नहीं हुआ है। गौरव के क्षणों में भी हमें यह एहसास जरूर होना चाहिए कि एक विशाल विमानवाहक पोत बनाने में हमें एक दशक से भी ज्यादा समय लग गया है। शिवाजी सामरिक मोर्चे पर अपने समय और विश्व के साथ कदम मिलाकर चल रहे थे, इसलिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। हमारे सामरिक रणनीतिकारों की सोच में अगर शिवाजी बरकरार हैं, तो यह आश्वस्त करने वाली बात है।

यह अतिरिक्त खुशी की बात है कि नौसेना का ध्वज न केवल बदल गया है, बल्कि अब उस पर शिवाजी की छाप दिखने लगी है। हालांकि, यह अफसोस की बात है कि गुलामी के दौर के अंत के इतने वर्ष बाद भी नौसेना के झंडे में अंग्रेजों का एक प्रतीक चिह्न सेंट जॉर्ज क्रॉस शामिल था। आखिर सरकारें गुलामी के इस प्रतीक को क्यों ढोती रहीं? क्या ऐसे ही अनेक शर्मनाक प्रतीक अब भी देश पर लदे हुए हैं? नए भारत में गुलाम भारत की कोई चीज बची न रहे, यह सुनिश्चित करना चाहिए। बेशक, आईएनएस विक्रांत का पदार्पण एक आगाज होना चाहिए। भारत में सामरिक निर्माण विकास में तेजी लाने की जरूरत है। भारत जिस तरह से चुनौतियों से घिरता जा रहा है, उसमें स्वदेशी तैयारी और जरूरी हो गई है। भारतीयों को रक्षा मामले में सच्चा गौरव तब हासिल होगा, जब हम अपने अधिकतम अस्त्र-शस्त्र, सैन्य साजो-सामान, वाहन स्वयं बनाने लगेंगे।


 

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