03-02-2024 (Important News Clippings)

Afeias
03 Feb 2024
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Date:03-02-24

Eastern Mysticism to Eastern Materialism

Facilitate a winner in this bloc as a poster state.

ET Editorials

FM Nirmala Sitharaman has, in the interim budget, prioritised eastern India as a driver for economic growth. The region deserves special policy intervention. Per-capita income in the four states — Bihar, Jharkhand, Odisha and West Bengal — are lower than the national average by 15-60%. The growth rate of per-capita income in Bihar is less than half that of Karnataka, India’s fastest-growing state. Odisha, the fastest-growing state in eastern India, is the only one growing significantly faster than the national average. These states house over a fifth of India’s population and constitute the tail in human development rankings. If India hopes to repeat the previous decade’s feat of doubling per-capita income, it will have to devote special attention to the region. Sitharaman’s announcement would indicate GoI is preparing to bridge the physical and social infrastructure deficit in this part of the country.

The region is strategically located for India to act as a bridge for trade between Asia and Europe. These states have to be better integrated logistically to keep production and transport costs low for India to emerge as a manufacturing export hub. Of course, eastern India is not a homogenous area. Policy will have to be tailored to specific states. Resource-rich Odisha and Jharkhand offer themselves to a manufacturing push. West Bengal has advantages in services. Bihar would benefit by stabilising its population growth faster and through higher social sector spending.

Reforms in welfare delivery and stepped-up capex offer GoI increased leverage to accelerate development of eastern India. Its growth record, however, acts as a serious impediment to weaning the region off its political compulsions to prioritise redistribution. New Delhi’s emphasis on growth has more than its share of sceptics here. The demonstration effect would be more powerful if the Centre could facilitate a winner in this bloc. Factors that led to the deindustrialisation of the region need to be addressed, alongside higher resource devolution.


Date:03-02-24

जाति की गहरी जड़ों को मिटाना इतना आसान नहीं

संपादकीय

सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने सभी कोर्ट्स को कहा है कि सुनवाई प्रक्रिया में वादी प्रतिवादी की जाति का जिक्र न हो। दो दिन बाद ही मद्रास हाई कोर्ट ने इस आदेश को ‘अदूरदर्शी’ बताते हुए कहा कि विरासत, उत्तराधिकार और आरक्षण में जाति और धर्म अपरिहार्य होते हैं। भारत में राजनीतिक दलों ने धर्म, जाति, उप-जाति, क्षेत्रीय और भाषाई पहचान की जड़ों को दोषपूर्ण चुनाव-पद्धति (एफपीटीपी) में वोट के लिए और गहरा किया है। हाल ही में बिहार के जाति आधारित आकलन ने पूरे भारत में भागीदारी के अनुसार हिस्सेदारी’ (जाति के हिसाब से) के नारे को हवा दी । जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जिसे इस तरह खत्म नहीं किया जा सकता। अक्सर पता चलता है। कि शादी में घोड़ी पर चढ़ने से नाराज उच्च वर्ग ने किसी दलित को सरेआम पीटा या किसी दलित लड़की से दुष्कर्म किया और पुलिस ने घटना की रिपोर्ट तक नहीं लिखी। क्या ऐसे मामलों में फैसले देते समय जाति को नजरअंदाज किया जा सकता है? अगर जाति-प्रथा का असली उन्मूलन करना है तो सामाजिक आंदोलन करना होगा जो मौजूदा चुनाव प्रणाली में संभव नहीं है। 70 साल बाद भी, ऐन चुनाव के कुछ माह पहले सत्ताधारी दल का किसी जाति या धर्म विशेष को आरक्षण देना या किसी नेता द्वारा इसकी मांग करना इस जाति -प्रथा की जड़ों की गहराई बताता है।


Date:03-02-24

मुस्लिमों को अपने लिए नए नेतृत्व को तलाशना होगा ​​​​​​​

शीला भट्ट, ( वरिष्ठ पत्रकार )

अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह की खासियत यह थी कि यह काफी शांतिपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ। 22 जनवरी की ऐतिहासिक घटना से पहले के दिनों में देश में कोई बड़ा साम्प्रदायिक तनाव या विवादित बयान नहीं देखा गया। सरकार ने माहौल को शांत रखने के लिए होमवर्क भी किया था। प्रधानमंत्री ने अजमेर शरीफ में दरगाह पर चादर चढ़ाने भेजी। कट्टरपंथी समूहों को नियंत्रण में रखते हुए पूरे देश में इस्लामिक धार्मिक नेताओं तक पहुंचने का प्रयास किया गया। भारत के अल्पसंख्यक भी समझते हैं कि राम मंदिर का उद्घाटन एक ऐतिहासिक घटना थी, और यह हिंदू पुनरुत्थानवाद के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी।

2014 के बाद से, साम्प्रदायिक राजनीति में बहुत-सी चीजें हुई हैं, लेकिन सीएए को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शनों को छोड़कर मुस्लिम समुदाय चुप ही रहा है। मुसलमानों के भीतर एक वर्ग ऐसा है, जो अलग-थलग महसूस करता है। कुछ अन्य हैं, जो भारत और अपने बारे में अधिक आश्वस्त हैं। वे कहते हैं, हम राम जन्मभूमि और नए राम मंदिर के महत्व को समझते हैं, लेकिन काशी और मथुरा के लिए आंदोलनों का पुनर्जीवित होना डराता है। एक और वर्ग है, जो सोचता है कि प्रधानमंत्री पुराने घावों को हरा करने की कोशिशों को विराम देने में सक्षम हैं और मोहन भागवत की तरह कह सकते हैं कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखें?

ऐसे सभी ऐतिहासिक या अंदरूनी टकरावों को उनकी परिस्थितियों और परिप्रेक्ष्यों में ही देखा जाना चाहिए। भारत में हो रही हलचलों की सबसे खास विशेषता यह है कि यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक संबंधों पर केंद्रित नहीं है। यदि आप वर्तमान राजनीति का विश्लेषण करते हैं तो यह हिंदुओं के दो अलग-अलग समूहों के बारे में है, जो अंदर ही अंदर एक-दूसरे से बहस कर रहे हैं। मुस्लिम फैक्टर एक बड़ी कहानी का छोटा हिस्सा है। एक तरफ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष-उदारवादी और वामपंथी-हिंदू हैं, जो रूढ़िवाद का विरोध करने की कोशिश कर रहे हैं। 1989 में पालमपुर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। तब आडवाणी ने घोषणा की थी कि उनकी लड़ाई सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आधारित है और उनके विरोधी छद्म-धर्मनिरपेक्ष हैं। तभी से हिंदू समाज विचारों की इस तीव्र लड़ाई को देख रहा है।

पीएम मोदी चुनावी राजनीति में पुराने मूल्यों, आधुनिक युग के विकास और भविष्य की उम्मीदों के बूते वोटों का अम्बार लगाने में माहिर हैं। जो उनका विरोध कर रहे हैं, वे मूलतः नेहरूवादी विज़न के लिए लड़ रहे हैं, जो मिली-जुली संस्कृति पर जोर देता है। वे नहीं चाहते कि 21वीं सदी का भारत हिंदू-वर्चस्व वाला हो। यह स्पष्ट है कि भारतीय मुसलमान अकेले लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। इसका यह भी मतलब है कि भारत के मुसलमानों के लिए भी अयोध्या एक नई खिड़की खोल रही है। जब विचारों का टकराव हिंदुओं के भीतर चल रहा हो, तो समय की मांग यह है कि मुसलमान भी उन पुराने नेताओं को त्याग दें, जो अपने असफल विचारों के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं।

वे नए नेतृत्व की तलाश करें। आज मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है स्कूल जाने वाले बच्चों के नामांकन- अनुपात में सुधार लाना, जो दलितों, आदिवासियों और ओबीसी की तुलना में बहुत कम है। साथ ही, पंचायत से संसद तक सत्ता में बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए व्यावहारिक रणनीति बनाना। चुनावी राजनीति की रणभूमि रूढ़िवादी मुसलमानों सहित सभी प्रकार के नेताओं को लचीला और समझौतावादी बनाती ही है।

भारत की साझा-संस्कृति के गौरवशाली अध्याय पर हस्ताक्षर करने का एक सुनहरा मौका तब चूका गया था, जब 1980 और 1990 के दशक के मुस्लिम नेताओं ने भारत के सबसे संवेदनशील धार्मिक- सांस्कृतिक मुद्दे पर अदालत के बाहर समझौता करने से इनकार कर दिया था। मुस्लिम जनता पर नियंत्रण रखने वाले उन नेताओं के पास भारत की कोई स्पष्ट समझ नहीं थी और वे राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर वार्ताओं के विफल रहने के सम्भावित परिणामों को पढ़ने में नाकाम रहे। अगर राम मंदिर के लिए हिंदुओं के भारी समर्थन को हिंदू पुनर्जागरण कहा गया है तो मुसलमानों के भीतर भी एक और पुनर्जागरण शुरू होने में अभी देर नहीं हुई है। यह मोड़ उच्च शिक्षा के माध्यम से व्यापक बदलाव ला सकता है। जब मोदी 2001 में गुजरात के सीएम बने तो वहां मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित सिर्फ तीन स्कूल थे। अब करीब 80 स्कूल हैं। ये भी तो पुनर्जागरण है!


Date:03-02-24

विकसित भारत की दीर्घकालिक योजना

डा. सुरजीत सिंह, ( लेखक अर्थशास्त्री हैं )

पिछले दस वर्षों में मोदी सरकार द्वारा किए गए संरचनात्मक सुधारों के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले सकारात्मक परिणामों का ब्योरा प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में 2047 तक देश को विकसित बनाने की एक दीर्घकालिक योजना का रोडमैप प्रस्तुत किया है। वैश्विक आार्थिक चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और मुद्रास्फीति के दबावों जैसी तात्कालिक चुनौतियों के बीच भी वित्त मंत्री राजकोषीय घाटे को 5.8 प्रतिशत तक संतुलित करने, पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देने, हरित और समावेशी विकास पर बल देने में सफल रही हैं। देश को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने गरीबों, महिलाओं, युवाओं और किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कही है। विकसित देश की तरफ कदम बढ़ाते हुए पूंजीगत व्यय पर फोकस किया है। पूंजीगत परिव्यय में लगभग 11 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि रखी गई है, जो जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है। इसके अंतर्गत तीन प्रमुख आर्थिक रेलवे कारिडोर बनाए जाएंगे। यात्रियों की सुरक्षा, सुविधा और आराम बढ़ाने के लिए चालीस हजार सामान्य रेल बोगियों को वंदे भारत मानकों के अनुरूप परिवर्तित किया जाएगा। विमानन क्षेत्र एवं मेट्रो का विस्तार होगा।

देश के विकास में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का असर भी अंतरिम बजट में दिखा। इसी दिशा में लखपति दीदी कार्यक्रम के लक्ष्य को दो करोड़ से बढ़ाकर तीन करोड़ करने का निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि नौ करोड़ महिलाओं के साथ 83 लाख स्वयं सहायता समूह ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को बदल रहे हैं। वहीं सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए नौ से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों के टीकाकरण की बात कही गई है। सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 के तहत मातृ एवं शिशु देखभाल के लिए विभिन्न योजनाओं को एक व्यापक कार्यक्रम के तहत लाने की बात कही गई है। निश्चित रूप से इससे बेहतर पोषण वितरण और प्रारंभिक बचपन देखभाल कार्यक्रम में तेजी आएगी। आयुष्मान भारत योजना के तहत अब स्वास्थ्य देखभाल कवर करने वाली सभी आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का सशक्तीकरण किया जाएगा।

कृषि क्षेत्र की तीव्र वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देने की बात भी अंतरिम बजट में कही गई है। विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए व्यापक प्रयास किए जाएंगे। दुधारू पशुओं की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा विकास निधि बनाई जाएगी। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत जलीय कृषि उत्पादकता को मौजूदा तीन से बढ़ाकर पांच टन प्रति हेक्टेयर तक किया जाएगा। हालांकि प्रत्यक्ष कर संग्रह के बढ़ने एवं रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में तेज बढ़ोतरी के बाद भी कर के स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। बस मौजूदा घरेलू कंपनियों के लिए कारपोरेट टैक्स की दर 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत और कुछ नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 15 प्रतिशत की गई है। साथ ही नवाचार को प्रोत्साहन देने के लिए पचास साल के लिए ब्याज मुक्त ऋण से एक लाख करोड़ रुपये का कोष स्थापित होगा।

वर्ष 2070 तक नेट-जीरो की प्रतिबद्धता पूर्ति की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया है। इसके लिए पवन ऊर्जा क्षमता के दोहन के लिए सहायता प्रदान की जाएगी। परिवहन के लिए सीएनजी और घरेलू उद्देश्यों के लिए पीएनजी में बायोगैस का चरणबद्ध मिश्रण अनिवार्य किया गया है। घर की छतों पर सोलर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने के लिए एक करोड़ परिवारों को हर महीने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं धार्मिक पर्यटन सहित पर्यटन में स्थानीय उद्यमिता के अवसरों का दोहन करने के लिए राज्यों को प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों का विकास करने, वैश्विक स्तर पर उनकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग करने के लिए प्रोत्साहित करने की बात कही गई है। सुविधाओं और सेवाओं की गुणवत्ता के आधार पर केंद्रों की रेटिंग के लिए एक रूपरेखा स्थापित की जाएगी। इसके लिए राज्यों को दीर्घकालिक ब्याज मुक्त ऋण भी प्रदान किया जाएगा। घरेलू पर्यटन के उभरते क्षेत्रों में बंदरगाह कनेक्टिविटी, बुनियादी ढांचे के विकास और सुविधाएं बढ़ाने के लिए परियोजनाएं शुरू की जाएंगी। इससे रोजगार सृजन में भी मदद मिलेगी। यह भी सच है कि बिना राज्यों के सहयोग के भारत को 2047 तक विकसित बनाना मुश्किल होगा। इसके लिए राज्य सरकारों को पचास वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण के रूप में 75 हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए पचास वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण की योजना इस वर्ष भी जारी रहेगी, जिसका कुल परिव्यय 1.3 लाख करोड़ रुपये होगा। पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत अगले पांच वर्षों में दो करोड़ और घर बनाए जाएंगे। किराये के घरों, झुग्गियों, चालों और अनधिकृत कालोनियों में रहने वाले मध्यम वर्ग के योग्य लोगों को अपना घर खरीदने या बनाने में मदद करने की बात भी कही गई है। जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए भी एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाएगा।

यद्यपि यह अंतरिम बजट बहुत विस्तार वाला नहीं है। इसके बावजूद यह लोकलुभावन योजनाओं से परहेज करने और विकास की महत्वाकांक्षाओं को अधिक मजबूत करने वाला है। कुल मिलाकर, मोदी सरकार अपनी प्रतिबद्धताओं के माध्यम से सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास पर खरी उतरती दिख रही है।