02-09-2017 (Important News Clippings)

Afeias
02 Sep 2017
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Date:02-09-17

Rape in marriage: Still a violation of consent and therefore rape

 TOI Editorials
The Union government recently told the court that marital rape should not be criminalised, because what an “individual wife” considers rape may not appear the same to others, and because this would destabilise families and be used to “harass husbands”. In this upside-down view, the hassle of seeking redress for sexual violence is the problem, not the violence itself.Across the world, legal frameworks have struggled with the question of marital rape. Some countries, like India, treat it on par with domestic abuse and subject to civil remedies, and criminalise it only if the spouses are separated or if the woman is a minor. Apart from the social reflex that assumes that men have a right to their wives’ bodies, the burden of evidence has also been held up as a reason to exempt marital rape – how would one prove that a woman has not consented in this specific instance? But the high hurdles of proof and the cultural bias against accepting the crime, should be all the more reason to legally recognise the crime for what it is.One by one, most progressive legal systems now recognise that spousal rape is a crime, India being one of the shameful exceptions. Statistics prove that Indian women face the greatest violence and trauma in their own homes; marital rape is usually a long-running pattern of abuse. Recognising it as such is a crucial test for any jurisdiction that claims to treat women as equal citizens.

Date:02-09-17

आजादी के 75 वर्ष बाद कैसी हो कर नीति?

सरकार कर नीतियों में स्थिरता लाई है। अगले पांच साल में इनमें कुछ और विशेषताएं जोड़ी जा सकती हैं

सुधीर कपाडिय़ा 

अंग्रेजों ने सन 1922 में आयकर की शुरुआत की थी। इसे प्रथम विश्वयुद्घ के बाद खस्ता अर्थव्यवस्था के लिए राजस्व जुटाने की खातिर अस्थायी उपाय के तौर पर पेश किया गया था। यह सिलसिला आजादी के बाद भी जारी रहा और सन 1962 में पहली बार इसमें सुधार किया गया। समय के साथ इसमें पूंजीगत लाभ कर, संपत्ति कर, उपहार कर और तमाम अन्य शुल्क शामिल किए गए। इन कानूनों के तहत कराधान का ढांचा समाजवादी विचार से प्रेरित रहा। इसमें तमाम जटिल रियायतें और छूट शामिल थीं। इससे अनुपालन में मुश्किल आती, भ्रष्टïाचार होता, लोग कर चुकाने से बचते और ईमानदार लोगों को परेशानी होती। इस बीच पहले कर सुधार कानून की प्रस्तावना राजीव गांधी सरकार ने तैयार की। तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (सन 1987 के आसपास) ने एक दीर्घकालिक राजकोषीय नीति पेश की जिसके जरिये विभिन्न कर रियायतों को सहज बनाया गया और अधिक आसान कर दरों की राह बनाई गई। इसके बाद ही पीवी नरसिंह राव का दौर आया जब तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने एक के बाद एक बजटों में कर दरों को तार्किक बनाया। सन 1994 में सेवा कर पेश किया गया जिसमें चुनिंदा सेवाएं शामिल थीं। सन 1997 के आसपास तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जो बजट पेश किया उसमें आय कर दरों में कमी की गई देश में सहज कर व्यवस्था की राह आसान हुई। बीते दो दशक से वही व्यवस्था लागू है। सदी में बदलाव के समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार थी। तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने नए कर सुधारों को अंजाम दिया। खासतौर पर उत्पाद शुल्क की दरों में। राजग सरकार के दौर में ही वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और सेवा कर सुधार की बुनियाद तैयार हुई। केलकर समिति के गठन के साथ आय कर को अधिक तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। सहज कर नीतियों और कर कानूनों में सुधार की प्रक्रिया संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के पहले कार्यकाल में भी जारी रही। बहरहाल आज जिसे हम ‘कर आतंकवाद’ कहने लगे उसकी जमीन वर्ष 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल में पड़ी। उस बजट में अप्रत्यक्ष लेनदेन पर पुरानी तारीख से लागू होने वाला कर लाया गया। जबकि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में अनुकूल निर्णय दे चुका था। उस बजट में रिकॉर्ड संख्या में पुरानी तारीख से लागू होने वाले कानून पेश किए गए। इससे यह संदेश गया कि देश की राजनीति में एक खास किस्म का अक्खड़पन घर कर गया है। भारतीय कर व्यवस्था की जटिलताओं की बात करें तो कानून की जटिलता, कर अधिकारियों के मनमाने अधिकार, लंबे चलने वाले अदालती मामले और कई रियायतें और छूट आदि इसकी पहचान रहे हैं। इसकी वजह से कर की प्रभावी दर सांविधिक दर से अत्यंत कम रही है।
मौजूदा हालात
 मोदी सरकार ने तो अपने इरादे चुनाव अभियान में ही जाहिर कर दिए थे। उसने वादा किया था कि कर आतंकवाद समाप्त किया जाएगा और कर नीतियों में स्थिरता और निश्चितता लाई जाएगी। मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जो चार बजट पेश किए हैं उनमें से किसी में अतीत से लागू होने वाला कर संशोधन नहीं किया गया। इतना ही नहीं कई प्रशासनिक स्पष्टïीकरण भी लागू किए गए ताकि विवादों से बचा जा सके। कई मामलों में सरकार ने अपना पक्ष कमजोर होने पर विवाद खत्म करने के लिए ऊपरी न्यायिक मंचों में अपील ही नहीं की। उसके बाद नोटबंदी, माफी योजना, विधायी सुधार, कई देशों के साथ सूचना साझा करने के समझौतों तथा कर वंचना रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए जनरल एंटी अवॉयडेंस रूल्स और बेस इरोजन तथा प्रॉफिट शिफ्ट ऐक्शन प्लान की मदद से एक के बाद एक कई सख्त कदम उठाए गए।  परंतु दो चिंताएं अभी भी बरकरार हैं: पहली, कर अधिकारियों के मनमाने अधिकार। तमाम बेहतरीन प्रयासों के बावजूद नए विधायी प्रावधानों में यह रियायत बरकरार है। दूसरी बात, कानूनों के मसौदों की कई व्याख्याएं आज भी संभव हैं। साथ ही कानूनी कार्रवाई की गुंजाइश भी बरकरार रहती है।

भविष्य

70 वर्ष के भारत की कर नीति में आजादी के बाद से काफी परिपक्वता आई है। मौजूदा सरकार की ऊर्जा और प्रतिबद्घता को देखें तो 75 वर्ष के भारत के कर ढांचे में निम्र बातें शामिल होनी चाहिए:कर-जीडीपी अनुपात: जीएसटी, नोटबंदी  और कर प्रशासन द्वारा डाटा विश्लेषण ने कर दायरे का बहुत अधिक विस्तार किया है। इसकी बदौलत देश के कर-जीडीपी अनुपात (केंद्र और राज्यों के) में इजाफा होना चाहिए। फिलहाल इसका स्तर 16.6 फीसदी है। इसके बढ़कर 20 फीसदी होने की उम्मीद है। इससे देश चीन और मैक्सिको के समकक्ष हो जाएगा। कॉर्पोरेट कर दर: विभिन्न रियायतों और छूटों में काफी कमी की जानी चाहिए। बल्कि 25 फीसदी की एक सुस्पष्टï कॉर्पोरेट कर दर होनी चाहिए जिसमें कोई उपकर शामिल न हो। इसके अलावा लाभांश वितरण कर समाप्त किया जाना चाहिए। लाभांश कराधान के पुराने तरीके को अपनाना कहीं अधिक बेहतर होगा जहां व्यक्तिगत अंशधारक करयोग्य होते थे। व्यक्तिगत आय कर की हिस्सेदारी: देश में व्यक्तिगत करदाताओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। देश के जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी काफी कम है। हर 100 मतदाताओं में केवल 7 ही कर देते हैं। ब्राजील और तुर्की इस क्षेत्र में भारत की तुलना में दोगुना राजस्व देते हैं। डिजिटल कर प्रशासन: मैक्सिको ने चौथे दर्जे का डिजिटल कर प्रशासन बनकर राह दिखाई है। इसके लिए कर की मरम्मत और पारेषण को लेकर 100 फीसदी अनुपालन की जरूरत होती है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लेनदेन का विस्तृत ब्योरा दर्ज होना चाहिए। इसकी मदद से ही मैक्सिको का कर प्रशासन एकदम तात्कालिक विश्लेषण करता है और ई-ऑडिट और आकलन करता है। डिजिटल इंडिया पर बढ़ते ध्यान के साथ हमें भी कम से कम पांचवीं श्रेणी का कर प्रशासन बनने पर तो ध्यान केंद्रित करना ही चाहिए। जीएसटी दरों को तर्कसंगत  बनाना: जीएसटी दरों की तीन से अधिक श्रेणियां नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा आपूर्ति शृंखला और विनिर्मित वस्तुओं के विभिन्न घटकों के बीच पूरी सुसंगतता होनी चाहिए। इसके अलावा बहुत अधिक तादाद में वस्तुएं 12 फीसदी की दर के दायरे में  आती हैं। इन तमाम कारकों के बीच जीडीपी में 1.5 से 2 फीसदी की बढ़ोतरी होने में अभी वक्त लगेगा।

 Date:02-09-17