02-02-2024 (Important News Clippings)

Afeias
02 Feb 2024
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Date:02-02-24

Not On Account Of Vote

Politically savvy and fiscally prudent, budget bets on India Inc investing more. Will that happen?

TOI Editorials

Budgets are embedded in a political context. The salient political message in Modi’s government’s last budget before the Lok Sabha election is unmistakable. They are confident.

Confidence in vote | FM stuck to convention while presenting her sixth budget. It was a vote-on-account, which is what an interim budget is meant to be. In a similar situation in 2019, the interim budget not only introduced an income support scheme for farmers, income tax benefits were also announced. The 2024 vote-on-account avoided change, signalling Modi is confident of returning to power.

But surprise in store | Tucked in the budget speech was the announcement that a high-powered committee would be set up to conduct a detailed study on the challenges arising from demographic changes. The uneven pace of a fall in fertility rates across states is a potential stress point on the federal architecture. Whether this is the only objective or there are other considerations in play will be clearer once the committee is set up.

Fiscal pullback | Modi’s second term saw deficits and debt surge after the pandemic’s outbreak. In its last year, Modi government began to pull back from the high levels of debt and deficit. In revised estimate (RE) of 2023-24, led by both a scaledown in expenditure and tax revenue that beat expectations, fiscal deficit was brought down. It was 5.8% of GDP, 0.10 percentage point lower than the budget estimate (BE) last year.

Capex questions | A highlight of budgets since 2020-21 was a huge ramp up in public investment. Effective capital expenditure increased from ₹6.4 lakh crore that year to ₹12.7 lakh crore in 2023-24. Revised estimates raise the question if there’s sufficient capacity to absorb capital expenditure at this pace. The fiscal pullback in 2023-24 was helped by reduction in capital expenditure. It was ₹12.7 lakh crore in RE 2023-24, lower by almost ₹1 lakh crore than BE.

Tax buoyancy | Tax revenue trend over the last three years has been positive. Gross tax revenue as a proportion of GDP in RE 2023-24 was 11.6%, almost at the level it reached in 2007-08. Importantly, the level has been stable over three years and has been driven mainly by income tax collections. Among taxes, income tax has emerged as the single largest source of tax, which signifies the tax system has become fairer.

Disputes remain unresolved | The missing reform in tax system is a measure to cap rising amounts under dispute. In 2022-23 it was ₹12.21 lakh crore, almost 40% of gross tax revenues. This budget proposed to withdraw tax demand on small sums. There needs to be a solution for larger amounts.

Pointers for the future | Modi government’s fiscal plan is to bank on tax buoyancy, slash subsidies but keep up capital spending in order to lower gross borrowing in BE 2024-25 by 8% to ₹14.1 lakh crore. This is a necessary condition to encourage private sector investment. The big question is – will private sector respond? Interim budget has done all it could to roll out the red carpet. The ball is in India Inc’s court.


Date:02-02-24

अंतरिम बजट में रेवड़ियां नहीं बांटने के मायनेन

संपादकीय

परंपरा से हटकर इस बार मोदी सरकार ने चुनाव से ठीक पहले के बजट में रेवड़ियां नहीं बांटीं। हालांकि, इसके पहले सन् 2019 में भी ऐसे ही अंतरिम बजट के बावजूद किसान सम्मान निधि घोषित की गई थी। इस बार भी उम्मीद थी कि इस निधि को बढ़ाया जाएगा और महिलाओं को अलग से लुभाने के लिए महिला किसानों की राशि में और ज्यादा इजाफा होगा। चूंकि जीएसटी के मद में लगातार राजस्व बढ़ रहा है लिहाजा युवाओं के लिए भी अलग से कुछ राशि देने की आशा थी। बहरहाल रेवड़ियां न बांटने के पीछे शुद्ध अर्थशास्त्र की मजबूरी भी है। एमएसएमई सेक्टर, जहां नियमित रोजगार करीब 12 करोड़ मिलते थे, बुरी स्थिति में है। चूंकि बेरोजगारी बढ़ी है लिहाजा खपत भी कम हो रही है जिससे लघु व मध्यम उद्योगों में काम नहीं है। यानी ‘दुष्चक्र’ । उधर निजी पूंजी निवेश भी कम हुआ है, जिसके कारण सरकार पर पूंजी निवेश (कैपेक्स) बढ़ाने की मजबूरी है। अगर कैपेक्स एक सीमा से ज्यादा करेंगे तो फिस्कल डेफिसिट बढ़ने का खतरा रहेगा। यानी यहां भी उसी कुचक्र का डर। सरकार की दृढ़ता काबिले तारीफ है। अगर यही सरकार आगे भी चुनकर आती है तो आगे शिक्षा-स्वास्थ्य पर एक अभियान के तहत निवेश करना होगा भले ही इसका तात्कालिक लाभ कम हो, पर दीर्घकालिक लाभ बेशुमार होगा।


Date:02-02-24

नकल, कोचिंग और जॉब स्कैम पर अधकचरे कानून

विराग गुप्ता, ( लेखक और वकील )

12वीं फेल’ और ‘डंकी’। परीक्षा पर चर्चा और राष्ट्रपति का अभिभाषण। महिला, युवा, गरीब और किसान की चार जातियां और आरक्षण की बढ़ती मांग। नौकरी स्कैम और नकल माफिया। इन सभी के केंद्र में शिक्षा और रोजगार की बढ़ती आकांक्षा है। मैकाले का बोझ ढो रहे भारत में रोजगार का मतलब नौकरी से है। इसके लिए एक अदद डिग्री, घूस या सिफारिश की जरूरत होती है।

शिक्षा और नौकरी के इस विराट बाजार में स्कूल, कोचिंग और ऑनलाइन कंपनियां बच्चों का शोषण करके तगड़ी मलाई खा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जेएस वर्मा कमेटी ने 2012 की रिपोर्ट में लिखा था कि हजारों बी-एड कॉलेजों की गुणवत्ता के बजाय व्यापार में दिलचस्पी है। रिपोर्ट में सुकरात को उद्धृत करते हुए शिक्षण में रट्टामारी के बजाय विवेक के महत्व को बताया था।

शिक्षा में विवेक के ह्रास की तीन बानगियों को समझें।

1. प्रथम संस्था की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश बच्चों की हिंदी, गणित और अंग्रेजी कमजोर होने से उनकी नींव कमजोर है।

2. स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई नहीं होने से बच्चे ट्यूशन और कोचिंग के लिए बाध्य हैं। एक अनुमान के अनुसार 85 लाख छात्रों से कोचिंग का सालाना कारोबार करीब 58 हजार करोड़ रुपए का है।

3. स्किल डेवलपमेंट और स्वरोजगार के दावों के बीच यूपी में 60244 पुलिस कांस्टेबल पदों की भर्ती के लिए 50 लाख लोग मारामारी कर रहे हैं।

कोचिंग माफिया पर लगाम के लिए शिक्षा मंत्रालय ने 15 दिन पहले गाइडलाइंस जारी की हैं। ये 11 पेज की गाइडलाइंस किस कानून के तहत बनाई गई हैं? उन्हें किस अधिकारी की अनुमति से जारी किया गया है? सरकारी दस्तावेज का फाइल नंबर और जारी करने की तारीख क्या है?

इन सभी अहम बातों का वेबसाइट में उपलब्ध गाइडलाइंस में विवरण नहीं है। आत्महत्या की मीडिया रिपोर्टिंग के दबाव में अधकचरी गाइडलाइंस से समाधान के बजाय लालफीताशाही और भ्रष्टाचार बढ़ता है। इसके तीन पहलुओं को समझना जरूरी है-

1. पीआईएल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में कहा था कि कोचिंग से जुड़े मर्ज को खत्म करने के लिए नियम बनाकर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। उसके बाद कई कमेटी बनाने के साथ संसद में भी खूब बातें हुईं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी कोचिंग के बढ़ते मर्ज पर चिंता व्यक्त की गई। समवर्ती सूची में होने की वजह से शिक्षा में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन प्रस्तावित बिल या जारी की गई गाइडलाइंस में राज्यों के साथ जरूरी परामर्श नहीं हुआ।

2. सुप्रीम कोर्ट ने एक पीआईएल डिस्मिस की है। उसमे यह जेनरिक मांग की गई थी कि अदालत के फैसलों पर सरकार को पूरी तरह से अमल करना चाहिए। उसी तरीके से सरकारी गाइडलाइंस में अनेक जेनरिक और आदर्श नियम बनाए गए हैं। सुरक्षित जगह, ग्रेजुएट टीचर, सही फीस, वेबसाइट में सारे विवरण, भ्रामक वायदे नहीं, सीसीटीवी कैमरे, 5 घंटे से ज्यादा पढ़ाई नहीं, पसंद नहीं आने पर फीस वापसी, देर रात कोचिंग नहीं और रिजल्ट सार्वजनिक नहीं करना आदि। इन नियमों का पालन कैसे होगा और कौन कराएगा, इस बारे में गाइडलाइंस मौन हैं। इनमें उपभोक्ता संरक्षण कानून और सिविल प्रोसिजर कोड के तहत दंड का जिक्र है। लेकिन इन कानूनों के तहत मुकदमेबाजी महंगी होने के साथ पीड़ित को मुआवजा और न्याय मिलने मे कई बरस लग जाते हैं।

3. बच्चों के बेहतर रिपोर्ट कार्ड और विजिटिंग कार्ड के सब्जबाग के नाम पर कोचिंग का धंधा चल रहा है। दूसरी तरफ एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में लगभग 13000 छात्रों ने आत्महत्या की। डबल इंजन सरकार के सुरक्षा कवच की वजह से भाजपा शासित राज्यों में नकल और नौकरी माफिया का खुलासा नहीं हो रहा। लेकिन विपक्ष शासित राज्यों में सीबीआई और ईडी के छापों के बाद नौकरी और नकल माफिया के साथ अफसर और नेताओं की काली करतूतें उजागर हो रही हैं।नई गाइडलाइंस बाध्यकारी नहीं हैं। इनके मनमाफिक अमल से डमी स्कूलों और ऑनलाइन माध्यम से कोचिंग का ट्रेंड बढ़ने पर शोषण के साथ काले धन का प्रभाव बढ़ेगा। बैंकिंग, रेलवे, नीट, जेईई और यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक रोकने के लिए सख्त सजा वाले कानून का बिल संसद में पेश होगा। लेकिन नए आपराधिक कानूनों में संगठित अपराधों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है, उन कानूनों को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बावजूद अभी तक लागू नहीं किया गया है।


Date:02-02-24

विकसित भारत के संकल्प का प्रदर्शन

विवेक देवराय,आदित्य सिन्हा ( देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख, और सिन्हा परिषद में ओएसडी – अनुसंधान हैं )

देश के भविष्य के लिए दीर्घकालिक योजना अत्यंत महत्वपूर्ण होती है ऐसी योजनाओं से सतत आर्थिक वृद्धि एवं चहुंमुखी विकास के लिए संसाधनों का रणनीतिक आवंटन सुगम होता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में ऐसी ही दूरदर्शिता का परिचय दिया। उन्होंने तात्कालिक राजनीतिक लाभ के बजाय दूरगामी एवं व्यापक लाभ को वरीयता दी, जिससे भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के प्रयासों को और गति मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का जो आह्वान किया था, उस सिद्धि को प्राप्त करने में अंतरिम बजट के कुछ प्रविधान संकल्प की भूमिका में दिख रहे हैं। इसी कड़ी में पहला कदम पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित करने का है। बुनियादी ढांचागत विकास सरकार की प्राथमिकताओं में बना हुआ है। आधारिक संरचना को और मजबूत बनाने के लिए सरकार ने अवसंरचना क्षेत्र के लिए 11.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर 11.1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इसके माध्यम से रेलवे नेटवर्क, मेट्रो रेल, विमानन और हरित ऊर्जा पर काम किया जाएगा। बुनियादी ढांचे पर इतने भारी खर्च का अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव देखने को मिलेगा। इससे जहां बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा तो आर्थिक वृद्धि की गति और तेज होगी। देश के बहुमुखी विकास के लिए ये दोनों ही आवश्यक पहलू हैं।

भारत तेज आर्थिक वृद्धि की ओर अग्रसर हैं, लेकिन इस राह में देश का पूर्वी हिस्सा कुछ पीछे रह गया। उसकी भरपाई के लिए सरकार भारत के इस हिस्से पर पूरा ध्यान दे रही है कि वह देश की तेज आर्थिक वृद्धि के साथ कदमताल करे और उसका लाभ यहां के लोग भी उठा पाएं। इससे जहां क्षेत्रीय असंतुलन दूर होगा, वहीं समावेशी वृद्धि को बल मिलेगा। इसके साथ ही राज्य सरकारों के अहम सुधारों को प्रोत्साहन देने के लिए 50 वर्षों के लिए 75,000 करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण की पेशकश भी सराहनीय कही जाएगी। इस कवायद का उद्देश्य राज्यों को विकास-केंद्रित सुधारों के लिए प्रोत्साहित करना है। विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए राज्यों का व्यापक विकास अत्यंत आवश्यक है। भारत की आर्थिक वृद्धि मेंउसके राज्यों की जटिल कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार राज्यों को सुधारों के लिए प्रेरित करने के साथ ही सुधार करने वाले राज्यों को पुरस्कृत भी कर रही है। इससे राज्यों में सुधारों के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ी हैं, जो देश की आर्थिक वृद्धि में अहम भूमिका निभाएगी।

सरकार विकसित भारत के संकल्प पूर्ति की दिशा में विदेशी निवेश को आकर्षित करने पर भी पूरा जोर दे रही है। वह कई देशों के साथ द्विपक्षीय निवेश संधियों पर वार्ता में लगी है। यह दृष्टिकोण भारत के दूरगामी हितों की पूर्ति करने वाला है, क्योंकि इससे निवेश, नवाचार और तकनीकी उन्नयन के लिए अनुकूल परिवेश तैयार होने के साथ ही आर्थिक वृद्धि को नए पंख लगेंगे। विदेशी निवेश को आकर्षित करने से भारत पूंजी, तकनीकी हस्तांतरण और विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा, जो देश केसमग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक अवयव हैं। इसी आवश्यकता को महसूस करते हुए सरकार ने नवाचार को रफ्तार देने का निर्णय किया है। इस दिशा में 50 वर्षों के लिए एक लाख करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करने वाले कोष के गठन की पहल एक रणनीतिक कदम है।

जलवायु परिवर्तन समकालीन दौर की एक बड़ी चुनौती है। सरकार इस चुनौती की गंभीरता को समझते हुए उससे निपटने के लिए संकल्पबद्ध है। इसी दिशा में हरित ऊर्जा से जुड़ी कई पहल की गई हैं और ऐसी कई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की तैयारी है। सरकार पवन ऊर्जा से जुड़ी संभावनाओं को व्यापक स्तर पर भुनाने और इस राह में वित्तीय संसाधनों सहित तमाम अन्य बाधाओं को दूर करने की राह तैयार कर रही है। इसी प्रकार सौर ऊर्जा के समुचित दोहन की योजना बनाई जा रही है। इसके माध्यम से करीब एक करोड़ घरों को छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में सक्षम बनाया जाएगा, ताकि हर महीने तकरीबन 300 यूनिट मुफ्त बिजली मिल सके। इस कदम से न केवल ऊर्जा के लिए अक्षय स्रोत की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, बल्कि हरेक घर के पैसों की बचत भी होगी और कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर बनेंगे। सरकार ग्रीन हाइड्रोजन के स्तर पर भी प्रयासरत है। इसके लिए वर्ष 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोल गैसिफिकेशन और द्रवीकरण क्षमता स्थापित करने की योजना है। इससे प्राकृतिक गैस, मेथेनाल और अमोनिया के आयात को घटाने में मदद मिलेगी। ये कदम न केवल विकसित भारत के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, बल्कि वर्ष 2070 तक ‘नेट जीरो’ के लक्ष्य की पूर्ति में भी सहायक होंगे।

अंतरिम बजट एक प्रकार से जुलाई में पेश होने वाले पूर्ण बजट की आधारशिला रखने वाला है। इसका विस्तारित खाका तो पूर्ण बजट में ही दिखेगा, फिर भी अंतरिम बजट इसकी झलक अवश्य पेश करने में सफल रहा कि सरकार किस तरह देश के भविष्य को संवारने के लिए अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर काम रही है।


Date:02-02-24

पाला बदलने की सियासत

रजनीश कपूर

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता।’ मशहूर शायर बशीर बद्र का यह शेर देश की राजनीति में हुए हालिया बदलाव पर एकदम सही बैठता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदल कर यह बात सिद्ध कर दी है कि या तो ‘इंडिया’ गठबंधन ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया या ‘एनडीए’ गठबंधन ने उन्हें कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया । राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर अटकलें लग रहीं हैं कि नीतीश के इस कदम के पीछे का कारण क्या हो सकता है।

बिहार में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे के कारणों में जहां एक ओर ‘इंडिया’ गठबंधन में न होने वाले समझौते हैं। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन के कुछ नेताओं में किसी-न-किसी तरह का ‘खौफ भी है। उन नेताओं को लगता है कि उन्हें बेवजह किसी-न-किसी विवाद में फंसा दिया जाएगा और इसका लाभ सत्तापक्ष आने वाले चुनाव में लेगा, परंतु नीतीश कुमार की बात करें तो जिस तरह उन्होंने विपक्षी दलों को जोड़ने में पहल की थी, उनसे ऐसी उम्मीद किसी को भी नहीं थी, परंतु यहां एक बात अहम है कि नीतीश जैसे अनुभवी और कद्दावर नेता ने जो ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ किया उसके पीछे कोई ठोस वजह जरूर रही होगी। जैसा कि हमने इस कॉलम में कुछ हफ्तों पहले लिखा था कि मोदी सरकार में किसी भी तरह की अटकलों की कोई जगह नहीं है। प्रधानमंत्री के मन में जो होता है वे उसे हर संभव कोशिश के सहारे पूरा कर ही लेते हैं। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण अयोध्या में श्री राम मन्दिर का निर्माण और उद्घाटन है। इसलिए यदि विपक्षी दल नीतीश के पाला बदलने को लेकर जो अटकलें लगा रहे हैं हो सकता है वह सही न हों। क्या पता प्रधानमंत्री जी ने नीतीश कुमार के लिए कुछ बड़ा सोच रखा हो जिसका पता केवल अमित शाह जी को और शायद नीतीश जी को ही हो, तभी तो उन्होंने यह कदम उठाया। रही बात अटकलों की तो एक बात जो सत्ता और मीडिया के गलियारों में घूम रही है वो यह है कि शायद प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार को देश का अगला उपराष्ट्रपति बनाना तय किया है, परंतु ऐसा संभव इसलिए नहीं लगता क्योंकि मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ जी का कार्यकाल अभी अगस्त 2022 में ही शुरू हुआ है, जो कि 2027 तक चलेगा। ऐसे में समय से पहले उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा तो उसके पीछे कोई ठोस वजह होनी चाहिए। परंतु वहीं एक खबर और है जो काफी जोरों से सियासी गलियारों में घूम रही है, कि नीतीश कुमार 2024 में बनने वाली मोदी सरकार में लोक सभा के अध्यक्ष बनाए जाएंगे। इस पूर्वानुमान को इसलिए सही माना जा सकता है क्योंकि 2024 में बनने वाली सरकार में लोक सभा अध्यक्ष बिना किसी मौजूदा पद पर तैनात व्यक्ति का कार्यकाल कम किए हुए नियुक्त किया जाएगा। देखा जाए तो लोक सभा अध्यक्ष का पद भी राज्य सभा अध्यक्ष के पद की तरह एक संवैधानिक पद होता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि राज्यसभा अध्यक्ष हमेशा देश का उपराष्ट्रपति ही होता है। इसलिए नीतीश जी को यदि लोक सभा अध्यक्ष बनाना तय किया गया है तो इस बात में दम हो सकता है कि यह भी एक कारण हो सकता है नीतीश जी का पाला बदलने का। देखना यह होगा कि 2024 के चुनाव में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो ये बात तो तय है कि नीतीश जी के जेडी (यू) का बिहार में आधार ही समाप्त हो जाएगा। यानी ‘न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए।’ हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव के बाद तमाम टीवी चर्चाओं में राजनैतिक विश्लेषक इस बात पर खास जोर दे रहे है कि विपक्षी दलों को आपस में एकजुट हो कर चुनावी मैदान में उतरना चाहिए था। जो भी क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में एक मजबूत स्थिति में हैं उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता के बीच अभी से प्रचार करना चाहिए।

इसके साथ ही उन्हें उन दलों का सहयोग भी करना चाहिए जहां दूसरे दल मजबूत हैं। विपक्षी दल यदि एक दूसरे के वोट नहीं काटेंगे तो उनकी एकता के चक्रव्यूह को भेदना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। ऐसा केवल तभी हो सकता है जब सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं और एक आम सहमति पर पहुंच कर चुनाव लड़ें। सफल लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है। विपक्ष मजबूत तभी होगा जब एकजुट होगा, परंतु जिस तरह विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन ने शुरुआत में एक मजबूत रूप धारण करने की कोशिश की वहीं इसके प्रमुख दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन से अलग होना अच्छे संकेत नहीं दे रहा । चुनाव से पहले होने वाली राजनीति केवल धारणाओं का खेल है। जो भी दल ऐसी धारणा को प्रचारित करने में कामयाब हो जाता है वही जनता के दिलो दिमाग में अपनी छाप छोड़ कर सफल हो जाने की सोचता है। सोचना तो मतदाता को है कौन सा दल या गठबंधन उनके हित में है। ये आनेवाला समय ही बताएगा कि नीतीश कुमार किस कारण से वापिस एनडीए का हिस्सा बने।


Date:02-02-24

विश्वास का प्रदर्शन

संपादकीय

नरेंद्र मोदी सरकार के दसवें वर्ष का अंतिम व अंतरिम बजट पूरी तरह से आश्वस्त और भविष्योन्मुखी बजट है। यह कदापि चुनावी बजट नहीं है, क्योंकि दो महीने में देश में चुनाव होने जा रहे हैं, पर सरकार में किसी भी तरह की बेचैनी नहीं है। साफ लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपनी वापसी के लिए आश्वस्त है। चूंकि यह अर्थव्यवस्था की बुनियादी मजबूती पर फोकस करता हुआ बजट है, इसलिए किसी भी प्रकार की नई तात्कालिक लोक लुभावन घोषणा से इसे बचाया गया है। लोकलुभावन घोषणा के रूप में केवल सूर्योदय योजना है, जिसकी घोषणा पहले ही हो चुकी है, जिसके तहत देश के एक करोड़ घरों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की योजना है। ये ऐसे घर होंगे, जिनकी छतों पर सौर ऊर्जा के लिए संयंत्र स्थापित होंगे। न कॉरपोरेट कर में कोई परिवर्तन हुआ है और न आयकर में किसी तरह की राहत दी गई है। अब वेतनभोगियों को चुनाव बाद आम बजट से ही उम्मीद रखनी चाहिए। बजट में नारी, युवा, किसान और गरीब पर विशेष नजर है और इसके सियासी मूल्य को सहज ही समझा जा सकता है। बहरहाल, संसद में अच्छे माहौल में बजट का पेश होना भी स्वागतयोग्य है। इस अंतरिम बजट 2023-24 को हम ‘गुड रिपोर्ट कार्ड बजट’ भी कह सकते हैं, क्योंकि एक घंटे से भी कम समय के अपने बजट भाषण का अधिकतर हिस्सा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नरेंद्र मोदी सरकार की दस साल की उपलब्धियों की व्यवस्थित प्रस्तुति पर खर्च किया। चूंकि विकास दर संतोषजनक है, लगभग 7 प्रतिशत की विकास दर देश हासिल कर सकता है। सरकार का वित्तीय घाटा 5.9 के अनुमान से कम 5.8 रहा है और सरकार वित्त वर्ष 2025 में इसे 5.1 प्रतिशत करने के प्रति आश्वस्त है। कोई संदेह नहीं है कि यह सरकार के आत्मविश्वास से सराबोर बजट है। वित्तीय घाटे को एकदम से कम किया भी नहीं जा सकता, क्योंकि सरकार को विकास की रफ्तार बनाए रखने के साथ जनकल्याण के कार्यों-योजनाओं को भी चलाए रखना है। वाकई, देश का तेज विकास और जरूरतमंदों की मदद करना ज्यादा जरूरी है और वित्तीय घाटे की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार के समय में उच्च शिक्षा में महिलाओं का प्रवेश बढ़ा है और 25 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर निकल आए हैं। लोगों की आय में 50 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। साफ तौर पर केंद्र सरकार का फोकस आर्थिक न्याय पर है, अगर इसे सुनिश्चित किया जाए, तो सामाजिक न्याय में भी सहूलियत होगी। नरेंद्र मोदी सरकार के समय में विदेशी पूंजी निवेश भी खूब आया है। करीब 596 अरब डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश 2014 से 2023 के बीच आया है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि सरकार को एहसास है, विदेशी पूंजी निवेश का पूरा लाभ देश को नहीं हुआ है, इसलिए सरकार एफडीआई की नई परिभाषा गढ़ रही है। ‘फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट’ को अगर ‘फर्स्ट डेवलप इंडिया’ की ओर मोड़ दिया जाए, तो कमाल हो सकता है। सरकार ने युवाओं के कौशल विकास की दिशा में काफी काम किए हैं और अब लघु व मध्यम कंपनियों को भी प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि उत्पादन के साथ ही निर्यात में भी वृद्धि हो। कहने की बात नहीं कि बुनियादी ढांचे में सरकार का निवेश सराहनीय है और सरकार इसे जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रखे हुए है। आगामी पूर्ण बजट में भी बुनियादी ढांचे में निवेश के साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य में भी सरकार से ज्यादा बजट की उम्मीद रहेगी।