
13-06-2024 (Important News Clippings)
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देश में विकास नीतियां नए पैरामीटर्स पर बनें
संपादकीय
देश की समस्याओं को गहराई से समझने और उसके अनुसार योजनाएं बनाने में कुछ नए पैरामीटर्स सरकार की मदद कर सकते हैं। हाल में एक नए पैरामीटर के आंकड़ों से पता चला कि उत्तर भारत के राज्य प्रति व्यक्ति जीएसटी (यानी उपभोग) में राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं जबकि दक्षिण के राज्य काफी ऊपर। यहां तक कि तेलंगाना और कर्नाटक का उपभोग खर्च एमपी और झारखंड से तीन-चार गुना ज्यादा है। जीएसटी केंद्र और राज्य दोनों लेते हैं। इन आंकड़ों से उन राज्यों की सही स्थिति पता करने में कोई गलती नहीं हो सकती । कम से कम जीएसटी आधारित कंजम्पशन आंकड़े असली उपभोग की स्थिति बता सकेंगे और उसी के साथ यह भी कि कोई व्यक्ति किस किस्म के उपभोग में कितना खर्च करता है । यह संख्या उसके जीवनयापन का स्तर यानी असली हालत बताती है। एक अन्य उदाहरण लें। देश में सरकारी कर्मचारियों का वेतन दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले कितना कम या ज्यादा है, जानने के लिए औसत वेतन को देश के प्रति-व्यक्ति आय के अनुपात के रूप में देखने से पता चला कि इस पैरामीटर पर भारत के सरकारी कर्मचारी दुनिया में सबसे ज्यादा पगार पाते हैं। यह अलग बात है कि प्रति एक हजार आबादी में उनकी संख्या संपन्न देश तो छोड़िए, चीन और ब्राजील के मुकाबले क्रमशः मात्र 15 और 30% है। इन पैरामीटर्स के आधार पर सरकार बेहतर योजनाएं बना सकती है।
Date: 13-06-24
परीक्षाओं में धांधली होगी तो छात्रों में भरोसा कैसे पैदा होगा
विराग गुप्ता, ( सुप्रीम कोर्ट के वकील, ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक )
डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ में अनेक तरह की धांधली, मक्कारी और पेपर-लीक से लाखों परिवारों का सपना टूटने के साथ ही एनटीए और सरकार की साख को भी भारी धक्का लगा है। मेडिकल, इंजीनियरिंग, फार्मेसी और यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित करने वाली ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ को सोशल मीडिया में ‘नेशनल ठगी एजेंसी’ नाम से शर्मसार किया जा रहा है।
राज्यों में पुलिस की जांच, संदेहजनक तरीके से गठित आंतरिक जांच समिति, तमाम हाईकोर्ट में सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट में लम्बी तारीख से मामला और बिगड़ रहा है। परीक्षा में धांधली का योग्य छात्रों पर कितना प्रभाव पड़ता है, उसकी दो बानगी देना जरूरी है।
कई साल पहले सीबीएसई की कक्षा 12 की वार्षिक परीक्षा में एक मेधावी लड़की ने एनसीईआरटी की किताबों से अलग हटकर मौलिक और श्रेष्ठ जवाब दिए। लेकिन दकियानूसी परीक्षक ने उस सवाल में नंबर नहीं दिए। हाईकोर्ट में मेरी बहस के बाद कॉपी की दोबारा जांच हुई। जज ने मौखिक तौर पर यह माना कि ऐसे श्रेष्ठ जवाब पर पूरे नंबर मिलने चाहिए, लेकिन लिखित आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। उस घटना के बाद सीबीएसई ने नीतियों में बदलाव किया। लेकिन समय पर सार्थक न्याय नहीं मिलने से उस लड़की का आत्मविश्वास लम्बे समय के लिए चरमरा गया।
दूसरा मामला क्लैट का है, जिसके माध्यम से विधि कॉलेज में प्रवेश होते हैं। पांच साल पहले बिहार में नकल और चीटिंग से कुछ बच्चों ने क्लैट में टॉप रैंक हासिल करके भारत के सर्वश्रेष्ठ लॉ कॉलेज में एडमिशन हासिल कर लिया। संदेह के बावजूद उन पर कार्रवाई नहीं हुई, क्योंकि इससे पूरी परीक्षा पर सवाल खड़े हो जाते। लेकिन कॉलेज की आंतरिक परीक्षा में छात्रों के फेल होने पर हेराफेरी की हकीकत सामने आने के बाद विद्यार्थियों का सिस्टम पर भरोसा डगमगा गया।
पेपर लीक हुआ है तो क्या पूरी परीक्षा रद्द नहीं होनी चाहिए? परीक्षा रद्द होने पर क्या बाकी निर्दोष छात्रों के साथ ज्यादती नहीं होगी? इन विवादों के चक्रव्यूह में फंसने के बजाय मध्यम-मार्ग पर एक्शन लिया जा सकता है। जिन सेंटर पर नकल, फर्जीवाड़ा और गलत तरीके से ग्रेस मार्क देने के आरोप हैं, ऐसे सभी संदिग्ध बच्चों का नए सिरे से टेस्ट कराने से मेरिट का सच सामने आ जाएगा।
इसके अलावा सभी संदिग्ध छात्रों, उनके पैरेंट्स, कोचिंग संस्थान और परीक्षा केंद्र के इंचार्ज लोगों का तत्काल प्रभाव से नार्को टेस्ट होना चाहिए। इससे मेरिट वाले छात्रों का सिस्टम में भरोसा बढ़ने के साथ भविष्य में धांधली करने वालों के मंसूबे ध्वस्त होंगे। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि सभी मामलों को अदालतों के पाले में धकेलना गलत है। अगली तारीख के पहले ही पारदर्शी व निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई करके सरकार को जनता का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। अन्यथा तमिलनाडु सरकार की यह बात सही साबित होगी कि नीट की परीक्षा प्रणाली गरीब और ग्रामीण विरोधी है।
राजनीतिक हस्तक्षेप, कोचिंग माफिया, धनबल के बढ़ते प्रभाव से परीक्षाओं में धांधली की वजह से शिक्षा के साथ नौकरियों की गुणवत्ता गिरने से भारत में शैक्षणिक अराजकता बढ़ रही है। स्मार्ट सिटी की बात करने वाले देश में जांच की उलटबांसियों के बजाय जल्द न्याय क्यों नहीं मिलता? व्यापमं घोटाले से साफ है कि पुलिस और सीबीआई की लम्बी जांच से पीड़ित लोगों का भविष्य अंधेरी सुरंग के हवाले हो जाता है। अपराधी सांसदों से जैसे लोकतंत्र शर्मसार होता है, उसी तरह कोचिंग माफिया और सॉल्वर गैंग की मिलीभगत से अयोग्य और धनपशुओं के मेडिकल प्रोफेशन में आने से समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
भारत में पीआईएल यानी जनहित याचिका के नाम पर पब्लिसिटी का कारोबार बढ़ने के बावजूद पीड़ित लोगों को न्याय नहीं मिलना चिंताजनक है। वर्ष 2022 की नीट परीक्षा से जुड़े पेंडिंग मामले को अर्थहीन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों ने पिटीशन को निरस्त कर दिया है। यह मामला व्यापमं की तरह बेपटरी ना हो, इसके लिए हाईकोर्ट में चल रहे सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट को अपने पास ट्रांसफर कराना चाहिए। चार हफ्ते का इंतजार किए बगैर सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच में तत्काल प्रभाव से इस पर सुनवाई कराने की जरूरत है।
अपराध और धांधली के सभी पहलू अदालत के सामने आ सकें, इसके लिए एमिकस क्यूरी (न्याय-मित्र वकील) नियुक्त करने की जरूरत है।
अगर नीट की पवित्रता प्रभावित हुई है तो समय पर न्याय देकर जजों को संविधान की शपथ पूरी करनी चाहिए।
आंतरिक सुरक्षा को खतरा
संपादकीय
चिंता की बात केवल यह नहीं है कि जम्मू में आतंकियों की सक्रियता बढ़ रही है, बल्कि यह भी है कि देश-विदेश में भारत विरोधी तत्वों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। एक ओर जहां पंजाब में खालिस्तान समर्थक नए सिरे से सिर उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली आदि में भी। भारतीय प्रधानमंत्री की इटली यात्रा के पूर्व वहां खालिस्तान समर्थकों ने गांधीजी की प्रतिमा को जिस तरह खंडित किया, वह एक तरह से अलगाववादी तत्वों की ओर से भारत को दी जाने वाली सीधी चुनौती है। भारत सरकार को पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में और अधिक सतर्कता बरतने के साथ उन देशों से भी दो टूक बात करनी होगी, जहां खालिस्तान समर्थक बेलगाम हो रहे हैं। भारत सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि लोकसभा चुनाव के पहले सार्वजनिक स्थलों पर बम रखे होने की झूठी सूचनाएं देकर दहशत फैलाने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले स्कूलों में बम रखे जाने की झूठी सूचनाएं दी गईं, फिर अस्पतालों में। इसके बाद विमानों में और अब संग्रहालयों में। चिंताजनक यह है कि ऐसी झूठी सूचनाएं देकर सुरक्षा एजेंसियों का सिरदर्द बढ़ाने वाले तत्वों की पहचान नहीं हो रही है। माना जाता है कि ऐसे तत्व दूसरे देशों में छिपे हुए हैं। सच जो भी हो, भारत सरकार को आंतरिक सुरक्षा पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि हाल के लोकसभा चुनावों में कश्मीर और पंजाब में कई ऐसे अलगाववादी तत्व चुनाव जीतने में समर्थ रहे हैं, जो आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं।
बदलाव की बयार
संपादकीय
माझी के साथ एक अच्छी बात यह है कि केंद्र में भी उनकी पार्टी की सरकार है, इसलिए योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन में किसी अड़चन की गुंजाइश नहीं रहेगी। हालांकि नवीन पटनायक के भी केंद्र सरकार के साथ रिश्ते कभी कड़वे नहीं रहे। नवीन पटनायक ने ओड़ीशा को बीमारू प्रदेशों की श्रेणी से बाहर निकालने, वहां के लोगों की गरीबी दूर करने, शिक्षा और चिकित्सा आदि के क्षेत्र में बेहतरी के लिए जो विकास परिजनाएं चलाईं और प्रदेश का विकास किया, उसकी सभी सराहना करते हैं। मगर विकास परियोजनाओं के चलते नियमगिरी जैसे कुछ इलाकों के आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण को लेकर जो नाराजगी देखी जा रही थी, उन्हें जरूर माझी सरकार से काफी उम्मीदें हैं। इसके अलावा, एक चुनौती होगी वहां सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने की। नवीन पटनायक सदा एनडीए के साथ रहे, मगर जब कंधमाल में ईसाई मिशनरियों पर हमले हुए तो वे उससे अलग हो गए थे। ओड़िया समाज पर इसका बहुत असर पड़ा था । माझी सरकार उसे कितना सुरक्षित रख पाती है, यह देखने की बात है । अब भी ओड़ीशा की छवि अत्यंत गरीब और पिछड़े प्रदेश की है, उस छवि को माझी कितना बदल पाएंगे, उनकी कामयाबी इसी से आंकी जाएगी।