सोशल मीडिया पर की गई आलोचना कितनी न्यायोचित है?

Afeias
13 Dec 2018
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Date:13-12-18

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आज के समय में वैचारिक और सूचना के आदान-प्रदान के लिए समुदायों और समाज के विभिन्न समूहों को आपस में जोड़ने हेतु सोशल मीडिया का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। व्हाट्स एप, ट्विटर, फेसबुक आदि कुछ लोकप्रिय साधन हैं। इन मंचों पर कुछ ऐसे कार्यकर्ता भी सक्रिय रहते हैं, जो सरकार, समाज और मीडिया पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से समय-समय पर उनकी आलोचना में पीछे नहीं हटते। ऐसे कार्यकर्ता किसी घटना से जुड़कर उस पर तुरन्त सुधारात्मक रवैया, न्याय या निष्पक्षता के लिए प्रतिकार, प्रतिशोध और दंड जैसे साधनों को अपनाये जाने पर जोर देन लगते हैं।

इससे उलट एक पत्रकार या लोकपाल का काम किसी अपराध की गैर-दंडात्मक तरीके से सुधारने पर जोर देना होता है। पत्रकारिता से जुड़ा व्यक्ति, गलतियों को सुधारने के लिए एक सौम्य दृष्टिकोण लेकर चलता है। सोशल मीडिया पर सक्रिय इन कार्यकर्ता की सबसे बड़ी कमी यह है कि ये लोग केवल एक मामले को ही केन्द्र में रखकर उसके कटु आलोचक बनकर, उससे जुड़े नियमों के उल्लंघन पर उतारू हो जाते हैं। एक ही थीम या एक ही मामले पर कार्य कर रहे ये कार्यकर्ता एक जटिल, बहुस्तरीय समाज की वास्तविकताओं से अनभिज्ञ होते हैं, और सोशल मीडिया के विद्वान इसे जनता को एक-दूसरे से जोड़ने का कारण करार देते हैं।

दरअसल, ये ऐसे समाधान प्रस्तुत करते हैं, जो लंबे समय में न केवल कमजोर पड़ सकते हैं, बल्कि बहुलवादी सह-अस्तित्व के स्रोतों को कमजोर करने का काम कर सकते हैं। एक रिपोर्टर कितने दबाव और नियमों के घेरे में काम करता है, इसे शायद वे समझ ही नहीं पाते। कानून के भारी दबाव में काम करते हुए ही रिपोर्टर को अपनी रिपोर्ट बनानी होती है। इन कानून के नियमों के पालन के बावजूद, किसी खास खबर के लिए न्यायालय द्वारा की गई असंगत व्याख्या का नुकसान भी सहना पड़ता है। यौन अपराध, किशोरों और बच्चों से जुड़े अपराध की रिपोर्टिंग के बारे में प्रत्येक रिपोर्टर को उनके आरम्भिक प्रशिक्षण के दौरान समझाया जाता है।

ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर अपनी जंग छेड़ रहे किसी व्यक्ति को यह नहीं पता होता कि कोई रिपोर्टर, सरकारी विमानतल या उड़ान से किसी प्रकार की तस्वीर नहीं खींच सकता। ऐसा करने पर समाचार पत्र पर मुकदमा चलाया जा सकता है। साइबर स्पेस में सक्रिय लोग, बिना अधिक जानकारी के, यूं ही अपने विचार रख देते हैं। लेकिन इससे समाचार-पत्रों या रिपोर्टर को, सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाली हानि के बारे में वे नहीं सोचते।

अतः सोशल मीडिया पर समाचार-पत्रों और उनसे जुड़ी खबरों की आलोचना की निष्पक्षता पर विचार अवश्य किया जाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित ए.एस.पनीरसेल्वन के लेख पर आधारित। 29 अक्टूबर, 2018