सीरिया के संकट को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र की नाकामी
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लगभग 6 वर्ष से सीरिया में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। सन् 2010 में वहां की जनता ने राष्ट्रपति बशर उल असद के विरूद्ध प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। इस स्थिति का फायदा उठाकर इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने सीरिया के कई हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और सीरिया में हिंसा अमानवीयता की चरमसीमा पर पहुँच गयी। सीरिया में चल रहे इस गृहयुद्ध ने पूरे विश्व में हलचल सी मचा रखी है। हाल ही में वहां की स्थितियो से सबसे ज्यादा प्रभावित अलेप्पो एवं अन्य शहरों से लोगों को सकुशल बाहर निकालने के लिए पर्यवेक्षकों की तैनाती को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में मतदान हुआ है।
सीरिया के हिंसा प्रभावित शहरों से लोगों को बाहर निकालने का काम शुरू हो चुका है, और पर्यवेक्षकों की तैनाती पर मतदान से पहले भी संयुक्त राष्ट्र सीरिया में शांति स्थापित करने और मौतों का आंकड़ा रोकने का प्रयास करता रहा है। लेकिन फिर भी प्रश्न उठता है कि राष्ट्रों के बीच एवं राष्ट्रों के अंतर्निहित विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए जिस संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था का गठन किया गया था, वह छः वर्ष से चल रहे सीरिया के दिल दहलाने वाले संकट को सुलझाने में आखिर सफल क्यों नहीं हो पा रही है ?
- संयुक्त राष्ट्र की लाचारी
संयुक्त राष्ट्र के राहत कार्यो एवं अन्य प्रयासों के बावजूद सीरिया में जान-माल की बहुत ज्यादा हानि हो चुकी है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र में अपना दबदबा रखने वाले अमेरिका और रूस जैसे दो महाशक्तिशाली देशों की आपसी तकरार के कारण सीरिया में संयुक्त राष्ट्र सर्वसहमति से कोई अभियान नहीं चला पाया है।
- सीरिया के मामले में रूस की भूमिका
सीरिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए रूस अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के बावजूद वहां के राष्ट्रपति असद को लगातार अपना सहयोग दे रहा है। यही नहीं, वह सीरियाई सेना को हथियार भी दे रहा है और वहां आईएस के खात्मे के नाम पर राष्ट्रपति के विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमले भी कर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि रूस सीरिया के भविष्य में अपनी भागीदारी चाहता है। यही कारण है कि वह सीरिया में युद्धविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्ताव पर वीटो का प्रयोग कर उसे निरस्त करता रहा है।
- अमेरिका की भूमिका
वह सीरिया के राष्ट्रपति के विपक्षी गठबंधन ‘नेशनल कोएलिशन‘ यानी विद्रोहियों का समर्थक है और उन्हें हथियार दे रहा है। वहां भड़की हिंसा के लिए वह राष्ट्रपति असद को जिम्मेदार मानता है और उनसे गद्दी छोड़ने की मांग कर रहा है। राष्ट्रपति को रूस का समर्थन मिलने से वह भड़का हुआ है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र में रूस के अस्थायी युद्ध विराम पर तैयार होने के बाद भी अमेरिका समर्थित विद्रोहियों की ओर से घेराबंदी हटाने की शर्तों का बार-बार उल्लंघन होता रहा है।
सीरिया के इस संकट में ईरान, सउदी अरब, तुर्की भी कूद पड़े हैं। एक बात स्पष्ट है कि यहां दखल देने वाले देशों को यहां की शांति, स्थायित्व के स्थायित्व या लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं है। सभी देश अपना-अपना हित साधना चाहते हैं।चूंकि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका एवं रूस दोनों का ही वर्चस्व है, इसलिए उनकी सहमति के बिना संयुक्त राष्ट्र सीरिया के संकट को दूर करने में नाकाम रहेगा।
समाचार पत्र पर आधारित।