वैश्विक समस्या का स्थानीय निराकरण

Afeias
05 Aug 2019
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Date:05-08-19

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नियामगिरी पहाड़ी की डोगरिया कोध जनजाति प्रकृति संरक्षण के मामले में विश्व में सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। पूरे भारतवर्ष में, ऐसी अनेक जनजातियां हैं, जिन्होंने प्राकृतिक पारिस्थिकीय को नष्ट किए बिना अपने जीने के तरीके ढूंढ़ रखे हैं। जंगलों की सीमाओं में रहने वाले कुछ वंचित तबकों और छोटी जात के किसानों के साथ ये जनजातियां ही, भारत की जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा की गारंटी दे सकती हैं।

वर्तमान स्थितियों में प्रकृति अनेक प्रजातियों की विलुप्ति की आशंका से ग्रस्त है। ऐसे में वनवासियों और जनजातियों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि ये हमें आसन्न प्राकृतिक विकटता से निपटने का समाधान दे सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में जैव विविधता पर किया गया वैश्विक मूल्यांकन, प्रकृति के नाश के लिए मानव को हर प्रकार से उत्तरदायी मानता है। घटती जैव-विविधता का सीधा प्रभाव खाद्य सुरक्षा और पोषण पर पड़ने वाला है।

इस समस्या ने संपूर्ण विश्व को अपनी चपेट में ले रखा है। इसका समाधान हमें स्थानीय स्तर पर ही ढूंढना होगा। हमारी उष्णकटिबंधीय जलवायु ने हमें जैव विविधता से समृद्ध कर रखा है। परन्तु इसकी कीमत पर होने वाले आर्थिक विकास, शहरीकरण, वनों की कटाई और अतिवृष्टि ने विश्व के कई अन्य स्थानों की तुलना में इसे अधिक खतरे में डाल दिया है। यह जाहिर है कि गहन खेती, वनों के दोहन और आवश्यकता से अधिक मत्स्य व्यापार ने भारत में जैव विविधता को बेहाल कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का सुझाव है कि मानव की इस भूल का सुधार करने के लिए वनवासियों, मछुआरों और कृषकों की प्रकृति संबंधी पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया जाना चाहिए।

इन स्थितियों में वनवासियों और जनजातियों को वनों से हटाने के बजाय उन्हें वहीं बसाकर प्रकृति का संरक्षण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत ने इस दिशा में कदम उठाते हुए स्थानीय समुदायों को इस प्रकार की जिम्मेदारी सौंप दी है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के कृषक जीरो बजट प्राकृतिक कृषि अपनाने का संदेश दे रहे हैं। हो सकता है कि इस क्षेत्र की कृषि का यह मॉडल पंजाब के लिए अनुकूल न हो, परन्तु वहाँ के कृषकों के पास कोई न कोई स्थानीय समाधान जरूर होगा।

हमारा अस्तित्व इस पर ही निर्भर करता है कि हम नष्ट होती प्रकृति का संरक्षण किस प्रकार कर पाते हैं। अगर इनके प्रमुख संरक्षकों को ही उजाड़ देंगे, तो हमारा डूबना तो सुनिश्चित है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सौम्य सरकार के लेख पर आधारित। 10 जुलाई, 2019