विश्व व्यापार संगठन में भारत का बदलता दृष्टिकोण
Date:23-01-19 To Download Click Here.
सन् 2018 में भारत ने कृषि पर चलने वाली वैश्विक चर्चाओं और वाद-विवादों के मद्देनजर अपनी स्थिति में अचानक ही परिवर्तन का संकेत दिया है। 2017 के अंत में, ब्यूनस आयर्स में हुई विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय चर्चा में, दशकों से चलने वाली समस्याओं के लिए भारत का रूख इतना दृढ़ था कि उसने एक घोषणा को ही अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन स्थिति अब बदलती हुई लग रही है।
भारत की अधिकांश जनता ग्रामीण है, और कृषि पर ही जीवनयापन करती है। अतः उसके लिए कृषि से जुड़े मुद्दे बहुत महत्व रखते हैं। विश्व व्यापार संगठन की अभी तक की बैठकों में उसने कृषि से जुड़े हितों पर एक दृढ़ मोर्चा रखा है। हाल ही में ‘‘स्ट्रेटजिक एलांयस फॉर डब्ल्यू.टी.ओ एण्ड ट्रेड रेमेडीज़ लॉ एण्ड प्रैक्टिस’’ के सम्मेलन में वाणिज्य मंत्री का यह कहना कि ‘नए मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए’, भारत के दृष्टिकोण और प्राथमिकता में आए अहम् परिवर्तन की ओर इशारा करता है।
भारत सरकार की ओर से दिए गए इस वक्तव्य से ऐसा जान पड़ता है कि अब सरकार कॉर्पोरेट सेक्टर और उससे जुड़़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं ग्लोबल फाइनेंसिंग कंपनियों के हितों को भी कृषि जितना ही अहम् मान रही है। भारत के इस कदम से विकासशील देशों के मध्य उसकी छवि को लेकर झटका लगा है।
अगर जमीनी स्तर पर देखें, तो खाद्य सुरक्षा क्षेत्र अभी भी बहुत मांग करता है। इस क्षेत्र में भारत की पहल पर, विश्व व्यापार संगठन के प्रस्तावित प्रतिबंधों के पीछे भी हमारी सरकारों के साथ काम करने वाले अनेक विशेषज्ञों का ही हाथ है। सामाजिक सेवा को लेकर नवम्बर माह में हुई एक बैठक में जमीनी रिपोर्ट के द्वारा यह पता लगा है कि आदिवासी समुदाय 40 प्रतिशत महिलाएं अभी भी कुपोषित हैं, और इससे भी अधिक महिलाएं रक्त की कमी से पीड़ित हैं। यह केवल कागजी रूप में दिखाया जाने वाला मामला नहीं है।
अतः हमें खाद्य सुरक्षा और कृषक सहयोग कार्यक्रम, दोनों को ही चलाए रखना होगा। इससे हमें ‘नो चेलेंज’ खण्ड के लिए एक आधार प्राप्त हो सकेगा। वाणिज्य मंत्री अभी तक 10 प्रतिशत सब्सिडी सीमा से अधिक, विश्व व्यापार संगठन के ग्रीन बॉक्स सब्सिडी (ऐसी सब्सिडी, जिसमें कृषि से संबंधित बुनियादी संरचना में निवेश जैसे-कृषि मंडी एवं नहर आदि के निर्माण पर छूट दी जाती है) में पब्लिक स्टाक होल्डिंग की रक्षा करने पर काम कर रहे थे। परन्तु अब उन्होंने इसकी प्राथमिकता को नीचे कर दिया है। अगर भारत को ‘पीस क्लॉज़’ के चार या आठ सालों वाले मकड़जाल से छुटकारा पाना है, तो भारत को अपनी प्राथमिकता में बदलाव नहीं करना चाहिए।
हमें दृढ़ता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। विश्व व्यापार संगठन के गठन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री, अंत तक अपनी प्राथमिकताओं पर अड़े रहे थे। यह आज भी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी से हमारे छोटे किसानों को ऊबारा और कुपोषण से छुटकारा पाया जा सकता है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित योगेन्द्र के. अलघ के लेख पर आधारित। 7 दिसम्बर, 2018