रोबोट के बढ़ते प्रभाव के लिए सरकार क्या करे?

Afeias
17 Nov 2017
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Date:17-11-17

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सामान्य रूप से यह माना जाता है कि तकनीक और रोबोट रोजगार के अवसरों को कम करते जा रहे हैं। ऐसी धारणा बनाने से पूर्व हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि हाल ही के कुछ दशकों में किस प्रकार से श्रम में परिवर्तन आए हैं। किस प्रकार से श्रम प्रणाली अनुचित माध्यमों या शोषण पर आधारित हो गई है? इसके मूल्यांकन के साथ ही हम विचार कर सकेंगे कि श्रम प्रणालरी की खामियों को दूर करने में रोबोट या तकनीक किस प्रकार से मददगार हो सकती है? सच तो यह है कि अगर रोबोट- क्रांति को ठीक से उपयोग में लाया जा सके, तो हम लंबे समय से हो रहे श्रमिकों के शोषण और उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार को खत्म कर सकते हैं।

  • प्राचीन रोम और यूरोप में एक श्रमिक दिन में छः घंटे ही काम करता था। औद्योगिक क्रांति और स्वचालन के साथ ही मानव पर काम का बोझ बढ़ता गया और यह उसके 12-16 काम के घंटों में परिणित हो गया। यही वह मुख्य मुद्दा है, जिसमें रोबोट भारतीय मानस की मदद कर सकते हैं।
  • भारत में आधी जनता कृषि पर निर्भर है। बढ़ते शहरीकरण के प्रभावों के साथ कृषि पर जीविका चलाने वाले लोग सेवा एवं निर्माण क्षेत्र में रोजगार पा रहे हैं।

जिस प्रकार धीरे-धीरे स्वचालन वाले अवसरों पर रोबोट कब्जा जमाते जा रहे हैं, कृषि के काम रोबोट से बेहतर तरीके से करवाए जा रहे हैं। ऐसी स्थितियों में हम रोबोट के लाभों को उनकी वजह से अपने रोजगार गँवाने वालों में बराबर कैसे बांट सकेंगे?दरअसल, यह काम सरकार का है कि वह कैसे बरोजगारी रोकने के लिए रोबोट से होने वाले लाभों को लोगों तक पहुँचाए। इसके लिए सरकार को रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध कराने होंगे।

  • हमें यह समझना होगा कि बाजार से पूंजी कैसे बनाई जाए। आज बहुत सी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की ऐसी कंपनियाँ हैं, जो युवाओं को बहुत कम धनराशि देकर सुपरवाइजर की तरह उनसे काम करवा रही हैं। ऐसे समय में सरकार को चाहिए कि कर्मचारियों का शोषण रोकने के लिए कुछ नीतियाँ बनाए।
  • डाटा एंट्री और डाटा सुपरविज़न के लिए एक न्यूनतम वेतन तय किया जाए।
  • जो कर्मचारी मशीनों में कोडिंग के जरिए कुशल परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें पर्याप्त वेतन देने की व्यवस्था हो।

आज हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ तकनीक हमारे रोजगार पर अधिकार जमाने से पहले हमारे शरीरों पर अधिकार जमा रही है। स्मार्ट घड़ियों और चश्मे के बाद अब स्वीडिश कंपनी ने ऐसा चिप निकाल लिया है, जिसे वह अपने कर्मचारियों की त्वचा के नीचे लगा देती है। यहाँ सवाल उठता है कि क्या एक प्रकार के साइबोर्ग बनकर हम रोबोट का मुकाबला कर सकेंगे? क्या रोबोट से होने वाले रोजगार के अवसरों के नुकसान का ही मूल्यांकन किया जाना चाहिए? क्या समाज और उसमें हमारे बदलते अस्तित्व का कोई मूल्य नहीं है?

ऐसा लगता है कि रोबोट के बढ़ते प्रभाव तथा अर्थव्यवस्था और रोजगार पर पड़ते उसके प्रभाव को देखते हुए उसे सार्वजनिक सम्पत्ति घाषित कर दिया जाना चाहिए। भारत में भी रोबोट के प्रयोग की इच्छुक निजी कंपनियों पर इसके प्रयोग के लिए एक अच्छा-खासा शुल्क लगाया जाए, जिसे ‘जॉब परमिट फॉर रोबोट’ का नाम दिया जाए। उनके काम से प्राप्त राजस्व का 30 प्रतिशत भाग उन लोगों को पेंशन की तरह दिया जाए, जो रोबोट के कारण बेकार हो गए हैं।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित कार्लो पीज़ेटी के लेख पर आधारित।