राष्ट्रीय डाटा की सुरक्षा की प्राथमिकता
Date:29-11-19 To Download Click Here.
एक डिजीटल अर्थव्यवस्था में डाटा ही केन्द्रीय स्रोत होता है। अधिकांश देशों में डाटा को देश की सम्पत्ति के रूप में देखा जाने लगा है। वर्तमान की डिजीटल या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अर्थव्यवस्था विश्व के दो दिग्गजों-अमेरिका और चीन के इर्द-गिर्द घूम रही है। ऐसी आशंका है कि यूरोपियन यूनियन के साथ-साथ भारत जैसे सभी विकासशील देशों को इनमें से किसी एक का आश्रित बनना पड़ सकता है। स्पष्ट है कि ऐसा होने पर आश्रित देशों को अपनी आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता से समझौते करने होंगे। अगर ऐसा होता है, तो यह एक प्रकार का डिजीटल उपनिवेशवाद बन जाएगा।
एक समय विश्व के दस बड़े कार्पोरेशन में तेल और गैस कंपनियां हुआ करती थीं। आज डिजीटल कंपनियां वहां राज कर रही हैं। इनमें से सभी या तो चीनी हैं या अमेरिकी।
डाटा की साझेदारी
सभी देश चाहते हैं कि उसके डाटा की साझेदारी देश के अंदर ही की जाए। देश के व्यापार-व्यवसाय को बढ़ाने के लिए भी डाटा की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान में गूगल, फेसबुक जैसी कंपनियां लगातार भारतीयों के डाटा एकत्र कर उन्हें अपनी निजी सम्पत्ति की तरह देश से बाहर भेज रही हैं।
नीति आयोग की एआई रणनीति सामाजिक उद्देश्य के लिए डाटा की साझेदारी की अनुमति प्रदान करती है। ग्लोबल कार्पोरेशन भी डाटा की साझेदारी को तब तक उचित मानते हैं, जब तक वह उनके कब्जे में नहीं आता है। इसके बाद वे उसे सार्वजनिक हित के लिए भी भी शेयर करने से इंकार कर देते हैं।
कम्यूनिटी डाटा
डिजीटल अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी समुदाय जैसे ऊबर या अमेजॉन के पास एकत्रित डाटा पर कम्यूनिटी कानूनी अधिकार बनाया जाए। इसके डाटा का इस्तेमाल कंपनी को केवल अपने व्यवसाय संबंधी उपयोग के लिए करने की छूट दी जाए। अन्यथा गलत हाथों में पड़ने पर इसके सामाजिक, राजनीतिक, सैन्य और देश की सुरक्षा से जुड़े दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
डाटा नीति से संरक्षण
प्रस्तावित रीजनल क्रांप्रिहेंसिव इकॉनॉमिक पार्टनरशिप में कुछ सार्वजनिक नीति अपवादों को छोड़कर डाटा के विश्व स्तर पर स्वतंभ प्रवाह की बात कही गई है। व्यापारिक समझौतों का इतिहास बताता है कि सार्वजनिक नीति से जुड़े ये अपवाद बेकार सिद्ध होते हैं।
हांलाकि भारत ने इस समझौते से हाथ खींच लिए हैं। फिर भी अगर भविष्य में वह इस प्रकार के किसी प्रस्ताव पर विचार करता है, तो उसे पहले अपनी डाटा सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम करना होगा।
- ऐसी नीतियां बनाई जाएं, जिससे डाटा की साझेदारी का लाभ भारतीय व्यवसायों को बढ़ाने में उठाया जाए।
- जहाँ सामुदायिक या कम्यूनिटी शेयरिंग का मामला है, वहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि डाटा की सीमा उस विशेष कम्यूनिटी तक ही रहेगी।
- डाटा वर्गीकरण, डाटा ओनरशिप अधिकार तथा डाटा साझेदारी आदि जटिल नीतियों पर भारत को एक लंबा रास्ता तय करना है।
भारत को डिजीटल सुरक्षा के लिए जल्द-से-जल्द कदम उठाने चाहिए। डिजिटल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कमजोरियों का तेजी से लाभ उठाया जा सकता है। हमारे पास खोने के लिए समय नहीं है, परन्तु करने के लिए बहुत कुछ है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित परमिंदर जीत सिंह के लेख पर आधारित। 17 अक्टूबर, 2019