राष्ट्रीय जांच एजेंसी के बढ़ते हाथ

Afeias
20 Aug 2019
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Date:20-08-19

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच की सीमाओं को बढ़ाने के लिए एक संशोधन विधेयक लाया गया है। यह एक ऐसी विशिष्ट जांच एजेंसी है, जिसका गठन केन्द्र सरकार के अधीन किया गया था। इस एजेंसी का काम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की जांच करना है। अभी तक यह राज्य सरकारों के नियंत्रण से इतर केन्द्र सरकार के नियंत्रण में आने वाली संस्थानों की ही जांच कर सकती थी। आतंक और परमाणु क्षेत्र या देशद्रोह से जुड़े अपराधों की जांच करना, एजेसी का मुख्य कार्य रहा है। कुल-मिलाकर कहा जा सकता है कि देश के विरुद्ध किए गए अपराधों की जांच करना ही एजेंसी का कार्य रहा है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच के दायरे को सीमित रखने के पीछे कुछ कारण रहे हैं, और संशोधन के माध्यम से कैसे इन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है, इस पर गौर किया जाना चाहिए।

  • संविधान ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने का काम राज्य सरकारों के अधीन रखा है। फौजदारी कानून में कुछ ऐसे मामले हैं, जिन्हें केन्द्र व राज्य सरकारें, दोनों ही देख सकती हैं। अन्यथा इनकी जांच सामान्यतः राज्य सरकार ही करती है।
  • नए संशोधन से राष्ट्रीय जांच एजेंसी को मानव-तस्करी, विस्फोटक अधिनियम के अंतर्गत होने वाले अपराध और शस्त्र अधिनियम के अंतर्गत् होने वाले अपराध और शस्त्र अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों की जांच करने का अधिकार मिल जाएगा। इन क्षेत्रों में स्वतंत्र और केवल जांच का अधिकार राज्य सरकार के पास भी रहेगा। असंशोधित अधिनियम में आने वाले अपराधों में से कोई अगर आतंक से संबंधित हुआ, तो उस मामले में जांच एजेंसी को कार्यवाही करने का अधिकार होगा।
  • ऊपर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार ने कुछ विशेष श्रेणी के अपराधों पर राज्य सरकार के अधिकारों में सेंध मारी है। अगर यह सत्य है, तो यह भारतीय संघवाद के उस विचार के विरुद्ध है, जो एक राष्ट्रीय ढांचे में राज्यों की स्वायत्तता की गारंटी देता है। इस प्रकार का संशोधन राज्य पुलिस बल को बेमानी बनाता है, और साधारण अभियोगों को भी केन्द्र सरकार द्वारा लिए जाने का रास्ता खोल देता है।
  • संशोधन में जांच एजेंसी को भारतीय नागरिक या ‘भारत के हितों को प्रभावित करने वालों के खिलाफ जांच का अधिकार दिया गया है। इस मामले को अपरिभाषित छोड़ दिया गया है। इसका दुरूपयोग सरकार अपने विरुद्ध उठने वाली आवाजों को दबाने के लए भी कर सकती है।
  • जांच एजेंसी के अपने ही विरुद्ध जांच के कानून में भारत के हितों को प्रभावित करने वाले को अपराध उल्लिखित नहीं किया गया है।

इस संशोधन का सीधा-सा अर्थ यही है कि केन्द्र सरकार, अपने संरक्षण में एक एजेंसी को अपराध करने का अधिकार करने की छूट देना चाहती है।

अतः यह विधेयक न तो भारतीय संघवाद के पैमाने पर खरा उतरता है, और न ही आपराधिक कानून के सिद्धांतों पर। ऐसा संशोधन विधेयक पुनर्विचार की मांग रखता है।

द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित कुणाल अंबस्ता के लेख पर आधारित। 26 जुलाई, 2019