युवा पीढ़ी और भारत
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विश्व के अधिकांश देश प्रजातंत्र और मांग पर ध्यान केन्द्रित करके अपनी सरकार चलाते हैं। लेकिन भारत में परिदृश्य कुछ भिन्न है। भारत की जनसंख्या में 20 वर्ष की उम्र से कम नौजवानों की संख्या 41 प्रतिशत के करीब है। यह भारत के लिए प्रजातांत्रिक सूद का काम कर रही है। 2020 तक तो भारत शायद विश्व के सबसे युवा देश के रूप में देखा जाने लगेगा। अगले तीन दशकों में भारत में कामकाजी लोगों की संख्या एक तिहाई बढ़ जाने की उम्मीद है, जबकि चीन और एशिया में यह 20 प्रतिशत कम हो जाएगी। लेकिन भारत को इस युवा पीढ़ी का लाभ तभी मिल सकेगा, जब वह इस वर्ग को उत्पादक कार्यों में लगा सके।
- अभी तक की स्थिति
भारत सरकार के श्रमिक ब्यूरो के रोजगार व बेरोजगारी पर किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत की युवा पीढ़ी को काम पर लगाने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम एक करोड़ रोजगार उत्पन्न करने की आवश्यकता है। परन्तु 2012 से 2016 तक इस लक्ष्य की पूर्ति नहीं की जा सकी थी।
- युवा पीढ़ी के फायदे और नुकसान
युवा पीढ़ी की अधिकता के साथ अगर रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध न हों, तो यह विनाशकारी हो सकता है। शिकागो काउंसिल में पत्रकार फरीद जकारिया ने कहा था कि ‘किसी देश या समाज में अस्थिरता या खतरा दिखाई देने पर यह देखा जाना चाहिए कि उस देश में युवा कितने हैं।’ उन्होंने फ्रेंच और ईरानी क्रांतियों के पीछे भी इसी तथ्य का हवाला दिया था।इस तथ्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। आज भारत में अनेक आतंकवादी संगठन पैर फैलाते जा रहे हैं। आतंकवादरोधी अंतरराष्ट्रीय केन्द्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा नामक आतंकी समूह बहुत सक्रिय है। हालांकि अलेस्टर रीड के आकलन के अनुसार भारत में अलकायदा विफल हो चुका है, परन्तु यहाँ फैली बेरोजगारी, जो कि भविष्य में एक क्रांति का रूप ले सकती है, के कारण भारत की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को खतरा हो सकता है।
विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती भारत की अर्थव्यवस्था में अस्थिरता के कारण एशिया और पश्चिमी देशों में हलचल मच सकती है। जैसा कि चीन की गतिविधियों से साफ नजर आ रहा है कि वह एशिया में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने और यहाँ से अमेरिकी जड़ों को उखाड़ फेंकने के लिए जुझारू है। ऐसे में एक भारत ही ऐसा देश है, जो चीन-पाकिस्तान के ‘‘वन बेल्ट वन रोड’’ के धु्रव से बाहर खड़ा होकर अमेरिका से हाथ मिलाने की हिम्मत कर रहा है और इस प्रकार चीन को तानाशाह बनने से रोक रहा है।दुर्भाग्यवश पश्चिमी देशों में हाल-फिलहाल में बदली नीतियों ने भारत की बेरोजगारी की समस्या को थोड़ा जटिल कर दिया है। इससे भारत का आई टी उद्योग दबाव में आ गया है। अगर स्थिति यही रही, तो हो सकता है कि भारत के इन आई टी उद्योगों को कर्मचारियों की बहुत ज्यादा छंटनी करनी पड़े। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को घरेलू नीतियों में तेजी से बदलाव लाने होंगे।
भारत के इतिहास में बेरोजगारी सदा ही अनसुलझी समस्या रही है। मोदी सरकार ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए पहले ही कुशल भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं चला दी हैं।दूसरी ओर ट्रंप सरकार के लिए भी एक द्वंद्व की स्थिति है। वह या तो भारत से अपने रिश्तों के माध्यम से एशिया पर पांव जमाए रखे या फिर अमेरिका को अमेरिकियों के लिए सीमित करके कुछ हजार नौकरियाँ बचा ले। भारत को अपनी भूमि पर ही रोजगार उत्पन्न करने के लिए मूलभूत सुधार करने होंगे। तभी बात बन सकती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित रोहन चिंचवडकर के लेख पर आधारित।