महिला श्रम से अधिक की प्राप्ति का प्रवास
Date:12-06-20 To Download Click Here.
भारत में महिला कार्यबल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। 2018 के सामयिक कार्यबल सर्वेक्षण में 71.2% कामकाजी पुरूषों की तुलना में 15 वर्ष से अधिक उम्र की केवल 22% महिलाएं ही कामकाजी थीं। नार्वे, स्वीडन आदि देशों में चार में से तीन महिलाएं औपचारिक कार्यबल का हिस्सा हैं। वहीं अमेरिका में 46.8% , कनाडा में 47.3% , फ्रांस में 48% और चीन में तो 61% महिलाएं कामकाजी हैं।
हाल ही की कोरोना महामारी के दौरान ओडिशा और केरल जैसे राज्यों में महिलाओं की कर्मठता ने झंडे गाड़ दिए। मास्के, ग्लब्स , सेनेटाइजर बनाना , घर-घर जाकर सब्जी बेचना , कमजोर घरों को राशन और खाद्य सामग्री पहुँचाने जैसे तमाम कामों के लिए वहां की महिलाओं ने कमर कस ली थी। उनके इन सभी कामों को स्वयं सहायता समूहों ने संगठित करके वैतननिक बनाया जा सकता था। परन्तु ऐसा नहीं किए जाने से इसे औपचारिक श्रम में शामिल नहीं किया जा सका।
भारतीय महिला श्रमिकों के औपचारिक कार्यबल में सम्मिलित न हो पाने के पीछे पितृसत्तात्मक पारिवारिक संरचना ,शिक्षा की कमी, अपेक्षित कौशल की कमी , घरेलू कामकाज तक सीमित रहना , सुरक्षित कार्यस्थल का अभाव, मातृत्व सुविधाओं का न होना और वेतन में लैंगिक भेदभाव का होना आदि कुछ बड़े कारण हैं। सरकारी ऋण गारंटी के अभाव में सरकार की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए की गई ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टैंड अप इंडिया’ जैसी पहल भी नाकाम रही हैं।
उपलब्धियां भी हैं –
- 2001 में ओडिशा सरकार ने मिशन शक्ति अभियान चलाया था। इसमें 70 लाख ग्रामीण महिलाओं को शामिल करके 6 लाख स्वयं सहायता समूह बनाए गए थे।
- केरल में गरीबी उन्मूलन मिशन की शुरूआत करते हुए 40.39 लाख महिलाओं को लेकर 3 लाख स्वयं सहायता समूह बनाए गए।
दोनों ही मिशन में समूहों को सरल शर्तों पर बैंक ऋण उपलब्ध कराए गए। इससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली और वे अनेक छोटी योजनाओं पर काम कर सके।
- हाल ही में ओडिशा सरकार ने इन समूहों को अगले पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये की विपणन सहायता से जोड़ा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्यान्ह भोजन, अनेक पोषण कार्यक्रमो, मेडिकल सामग्री व बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए सरकारी खरीद से इनकी भागीदारी रखी जाएगी।
इन उदाहरणों से अन्य राज्यों को प्रेरणा लेते हुए महिलाओं को निम्नस्तरीय तकनीक सुविधा के साथ कौशल विकास प्रशिक्षण देने का प्रबंध करना श्रेयस्कर होगा। इससे अनौपचारिक क्षेत्र में लगे महिला कार्यबल को संगठित क्षेत्र में लाया जा सकेगा। यह भारत की अर्थव्यवस्था के उत्थान की दिशा में बड़ा कदम होगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अमर पटनायक के लेख पर आधारित।