भारतीयों का डाटा भारत में ही रहे

Afeias
19 Nov 2018
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Date:19-11-18

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हाल ही में इंटरनेट व अलग-अलग माध्यमों से साझा किए गए भारतीयों के डाटा को सुरक्षित रखे जाने पर तेजी से बहस चलाई गई है। आरबीआई ने भी दिशा-निर्देश दे दिया है कि लोगों के वित्त संबंधी डाटा के भंडारण की व्यवस्था भारत में ही की जाए। डाटा संरक्षण से संबंधित न्यायमूर्ति श्रीकांत समिति द्वारा तैयार किया गया मसौदा अधिनियम, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा।

विदेशी कंपनियां और यहाँ तक कि अमेरिकी सिनेटर आरबीआई के इस दिशा-निर्देश का विरोध कर रहे हैं। उनके कुछ तर्क हैं।

  • टेक कम्पनियों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर डाटा संरक्षण का काम बहुत महंगा होगा। यह अव्यावहारिक है। साथ ही यह अनेक न्यायिक बाधाएं खड़ी करेगा।
  • भारत में डाटा संरक्षण करने से ईज़ ऑफ डुईंग बिजनेस पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

भारत का पक्ष

  • अधिनियम का उद्देश्य डाटा का संरक्षण करना नहीं, बल्कि डाटा की सुरक्षा करना है।
  • अगर भारतीयों के डाटा को अन्य देश एकत्रित करके रखते हैं, तो उस पर उस देश का कानून लागू होगा।
  • विदेशियों की सुविधा के लिए भारतीय सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा डाटा सुरक्षा कानून या आरबीआई के दिशा-निर्देश में कहीं भी यह बात नहीं कही गई है कि डाटा भंडारण का काम केवल भारतीय कंपनियों को ही सौंपा जाएगा। कानून के लागू होते ही क्लाउड स्पेस से जुड़ी अमेजान, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अन्य विश्वस्तरीय कंपनियों को इस क्षेत्र में मौका मिलेगा। अमेजान ने तो डाटा स्टोरेज की भारतीय नीति का पूर्ण समर्थन कर भी दिया है। फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप ने भी इसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी है।

दूसरे, भारतीय सीमाओं में डाटा भंडारण के कार्य में किसी भारतीय व्यवसायी को प्राथमिकता देने जैसी भी कोई बात नहीं है। भारतीय कंपनियों को इस दिशा में स्वयं ही आगे आना होगा।

तीसरे, किसी प्रकार के न्यायिक वाद-विवाद की स्थिति में, भारतीय न्यायालय या भारत सरकार को भारतीय डाटा तक पहुँचने में किसी कम्पनी को असफल नहीं होने देना होगा। डाटा साझा करने के लिए इस प्रकार की नीतियां बनाई जानी चाहिए कि निजता पर आंच न आने पाए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 अक्टूबर, 2018

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