‘चार्टर सिटी‘ की अवधारणा

Afeias
20 Nov 2018
A+ A-

Date:20-11-18

To Download Click Here.

2018 में आर्थिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से विलियम डी. नोई हाऊस और पॉल एच. होमर को मैक्रोइकॉनामी में जलवायु परिवर्तन एवं तकनीकी नवोन्मेष में उनके योगदान को देखते हुए दिया गया है। दोनों ही विद्वानों ने दीर्घकालीन आर्थिक विकास के लिए अद्भुत तरीके रचे हैं। इन दोनों में से होमर ने ‘अंतर्जात विकास सिद्धाँत‘ पर काम करते हुए यह बताया है कि किस प्रकार ज्ञान और विचार आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।

विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री रह चुके होमर ने अपने विचारों को मूर्त रूप देने के इरादे से ‘चार्टर सिटी‘ जैसे नए शहरों के निर्माण का प्रस्ताव रखा है। उनका मानना है कि इन शहरों के निर्माण से नवोन्मेष और आर्थिक विकास को गति मिल सकती है।

  • चार्टर सिटी की संरचना, एक प्रकार की स्टार्टअप इकाई होगी, जो वर्तमान में चल रहे देश के नियमों से अलग सुधारवादी नियमों पर काम करेगी।
  • किसी भी देश में एक साथ नियमों में परिवर्तन करके विकास कर पाना व्यावहारिक नहीं है। अतः इसके लिए होमर ने एक अलग शहर, ‘चार्टर सिटी‘ बनाने का प्रस्ताव रखा है। नए सिरे से निर्मित इस शहर में नए नियम और संस्थाए होंगी। ये दोनों ही निवेशकों और निवासियों को आकर्षित करेंगे।
  • इसके लिए मेज़बान देश को अपने किसी क्षेत्र को नए शहर के निर्माण के लिए काम में लाना होगा। नए शहर के लिए एक नया कानून या चार्टर बनाना होगा। मेज़बान देश, चाहे तो अपने प्रशासन के कुछ उत्तरदायित्व किसी विकसित देश को सौंप सकता है।

सिद्धाँत की आलोचना –

“चार्टर सिटी“ का सबसे अधिक लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को मिल सकता है, जहाँ तेजी से शहरीकरण किए जाने की आवश्यकता है। परंतु होमर के इस सिद्धाँत की कड़ी आलोचना की गई है।

  • होमर के इस विचार को नव-उपनिवेशवाद की भावना से प्रेरित माना जा रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि गरीब देशों को फास्टियन बार्गेन के लिए उकसाया जा रहा है। अर्थात् आर्थिक विकास का आकर्षण देकर उनसे उनकी संप्रभुता का सौदा किया जा रहा है। होमर का कहना है कि चार्टर सिटी में रहने के लिए लोगों को विकल्प दिया जा रहा है। उन्हें बाध्य नहीं किया जा रहा है। यह उपनिवेशवाद से भिन्न है।
  • चार्टर सिटी के सिद्धाँत की आलोचना इस बात पर भी की जा रही है कि यह प्रजातंत्र और नागरिकता के आधारभूत सिद्धाँतों के विरूद्ध है। यहाँ लोगों को शहर के प्रशासक पर अपना मत देने का कोई अधिकार नहीं होगा।
  • होमर का कहना है कि चार्टर सिटी की अवधारणा को उपनिवेशवादी मानसिकता से प्रेरित इसलिए भी नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि इसके प्रशासन में विदेशी सरकार का शामिल होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होगी। इसके अलावा एक अवसर पर होमर ने अपने सिद्धाँत के पक्ष में तर्क देते हुए हांगकांग का उदाहरण दिया, और बताया कि हांगकांग में गरीबी उन्मूलन के लिए चलाए गए सभी आयोजन, उसका वैसा उत्थान नहीं कर सके, जैसा कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने कर दिखाया। इसी से प्रेरित होकर चीन के कम्यूनिस्ट नेता देन जियाओ पिंग ने 1980 में चीन में विशिष्ट आर्थिक गलियारों का निर्माण किया था।

भारत में चार्टर सिटी की संभावना –

2008 में मेडागास्कर और 2012 में हॉन्डूरस जैसे देशों में इस योजना की असफलता के बाद भारत जैसे देश के लिए यह विचारधारा बहुत उपयुक्त नहीं जान पड़ती है। भारत की वर्तमान सरकार पर ब्रिटिश इंडिया के प्रेसीडेंसी टाऊन की तर्ज पर, चार्टर सिटी बनाने के लिए कुछ दबाव डाले गए थे। चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं को इस प्रकार के नए शहरों के निर्माण और अपना प्रशासन रखने के भी प्रस्ताव दिए गए।

भारत के सामने दक्षिण कोरिया में बनाए गए इस प्रकार के आर्थिक क्षेत्र की विफलता का उदाहरण है। दूसरे, भारत में पुणे के पास एक निजी कंपनी की सहायता से निर्मित लवासा नामक क्षेत्र, वर्षों से पर्यावरणीय विवादों में ऊलझा हुआ है। इसी प्रकार गुजरात का ढोलेरा प्रोजेक्ट भी अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। दिल्ली-मुंबई के बीच बनने वाला औद्योगिक गलियारा धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। 100 स्मार्ट शहरों के निर्माण की योजना को, चयनित शहरों के एक छोटे हिस्से को स्मार्ट बनाने तक ही सीमित कर दिया गया है।

‘चार्टर सिटी‘ निर्मित करने के लिए शून्य में से सब कुछ विकसित करने का विचार है। इस प्रकार के टेक्नोक्रेटिक शहरों को राजनीति की गंदगी से बहुत दूर रखने की आवश्यकता होगी। इसके निर्माण क्षेत्र को सामाजिक और राजनीतिक दावों से मुक्त कर पाना ही, भारत जैसे देश के लिए एक चुनौती है।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित मैथ्यू इडिकुला के लेख पर आधारित। 16 अक्टूबर, 2018

Subscribe Our Newsletter