बच्चों का स्वास्थ्य और टीकाकरण

Afeias
13 Feb 2017
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Date:13-02-17

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शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षा पाना हर एक नागरिक का न केवल मौलिक अधिकार है, बल्कि किसी राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी बहुत जरूरी है। बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं। किसी मानव की प्रारंभिक पाँच वर्षों की आयु को प्राथमिकता और सुरक्षा देकर ही शारीरिक और मानसिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। यही कारण है कि हमारे देश में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय बच्चों के प्रारंभिक पाँच वर्षों की सुरक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहा है। अब तक बहुत कुछ किया जा चुका है तथा और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

  • अभी तक  क्या  पाया  है ?

पिछले दशक की तुलना में जीवन-काल में वृद्धि हुई है। प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु दर में कमी आई है। हमने पोलियों को उखाड़ फेंका है। माँ एवं शिशुओं में होने वाली टिटनेस की बीमारी को खत्म कर दिया गया है। इन सबके बावजूद अभी भी हम शिशु-मृत्यु दर एवं अपंगता से जूझ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष भारत में 2.6 करोड़ बच्चों का जन्म होता है। इनमें से लगभग 11.4 लाख बच्चे अपना पाँचवा जन्मदिवस मनाने से पहले ही मर जाते हैं। बच्चों को जानलेवा बिमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण ही सर्वोत्तम उपाय है। सन् 2014 में मंत्रालय ने टीकाकरण से संबंधित मिशन “इंद्रधनुष” की शुरूआत की है।

  • मिशन इंद्रधनुष

यह भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा चलाया जा रहा ऐसा अभियान है, जो बच्चों को टीकाकरण के द्वारा डिथीरिया, पोलियो जैसी दस जानलेवा बिमारियों से बचाता है। यह मिशन गर्भवती महिलाओं को टिटनेस का टीका लगवाने की व्यवस्था करता है। दस्त, पानी की कमी की अवस्था में जीवन रक्षक घोल और जिंक की गोलियों का वितरण करता है। साथ ही बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए विटामिन ए की गोलियाँ भी देता है। इस प्रकार से काम करते हुए यह विश्व का सबसे बड़ा टीकारण कार्यक्रम है। इस मिशन का लक्ष्य 2020 तक देश के 90% बच्चों का टीकाकरण करना है। अपने चैथे चरण में यह उत्तर पूर्व के राज्यों के 67 जिलों में कार्यक्रम चलाएगा। इन जिलों में पिछडे़ और सुदूर क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा।

  • भविष्य में क्या नीति होगी

सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में सरकार ने अनेक नए टीकों की शुरूआत की है। जानलेवा रोटावायरस और डायरियाँ से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं। सुप्त पोलियो के लिए भी टीके की शुरूआत हो चुकी है। अब खसरा और रूबेला के लिए भी टीके लाए जा रहे हैं। अन्य संक्रामक रोगों के साथ न्यूमोनिया और डायरिया दो ऐसे रोग हैं, जो पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इसके लिए विशेष टीकाकरण अभियान चलाए जा रहे है, जिससे लोगों में जागरूकता आए और समय पर इनका ईलाज करवाया जा सकें। स्वास्थ कर्मचारी अब सुदूर और अछूत ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचने लगे हैं एवं लोगों को स्वास्थ कार्यक्रम से जोड़ने लगे हैं। हर बच्चे का जीवन अमूल्य है। टीकाकरण ऐसा कार्यक्रम है, जो देश की मानवरूपी संपत्ति में निवेश करता है। इससे आर्थिक भविष्य को मजबूती मिलने के साथ-साथ अस्पतालों और ईलाज के खर्चे में कमी आती है। हमारा देश बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित जे.पी. नड्डा के लेख पर आधारित। लेखक स्वास्थ एवं परिवार कल्याण विभाग के केन्द्रीय मंत्री हैं।