प्रजातंत्र के वास्ते

Afeias
30 Mar 2020
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Date:30-03-20

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हाल ही में संसद की प्रणाली में बदलाव की कवायद की जा रही है। सत्तासीन दल के दमदार बहुमत ने उसे दंभी जैसा बना दिया है। इसके बावजूद विपक्ष को अपनी भूमिका निभाने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। देश के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हेतु कुछ नए तरीकों को अपनाने का प्रयत्न करना चाहिए। सरकार की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर ऊंगली उठाने का अधिकार विपक्ष के पास होता है। वैश्विक स्तर पर यह सिद्ध हो चुका है कि विपक्ष की आवाज को दबाने के चाहे जितने भी प्रयास किए गए हो, परंतु उसने सामान्य तरीकों से इतर कुछ ऐसे तरीके ढूंढ निकाले, जिससे सरकार को मजबूरन उसका मत सुनना पडा।

कुछ वर्ष पूर्व, पोलैंड ने जालसाजी व्यापार विरोधी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह पहले भी विवादास्पद रहा था। पूरे पोलैण्ड में इसका विरोध भी हुआ। 30 सांसदों ने विभिन्न मुखौटे पहनकर शांतिपूर्ण तरीके से इसका विरोध किया।

2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण के दौरान डेमोक्रेट महिला सांसदों ने काले कपडे पहनकर विरोध प्रदर्शित किया था।

इस वर्ष के प्रारंभ में भारतीय सांसदों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान सफेद कुर्ते या शर्ट पर ‘नो टू सीएए; नो टू एन आर सी‘ लिखकर विरोध प्रदर्शित किया था। इसके अलावा भी संसदीय सत्रों के दौरान सांसदों ने संसद परिसर में बनी महात्मा गांधी की मूर्ति के समक्ष सत्र से आधा घंटे पूर्व का समय विरोध प्रदर्शिन के लिए निर्धारित किया था।

पिछले छः महीनों में विपक्ष ने एक और भी नया तरीका ढूंढ निकाला। उन्होंने संयुक्त सदनों में प्रधानमंत्री के अभिभाषण का बहिष्कार किया। यह एक गंभीर विरोध था।

ऐसा विरोध करते हुए विपक्षी सांसद, अंबेडकर की प्रतिमा के पास एकत्रित हुए, और संविधान की गरिमा को भी बनाए रखा। इस अवसर पर संविधान की प्रस्तावना को कई भारतीय भाषाओं में पढ़ा गया। इस प्रयास ने संघवाद तथा सभी नागरिकों की एकता की आवाज को बुलंद किया। सांसदों के इस विचार को बहुत सराहना मिली। अनेक विद्यार्थी संगठन भी इससे प्रभावित हुए, एवं अनेक सार्वजनिक विद्रोहों में ऐसा किया जाने लगा।

संसद में उठाए जाने वाले मुद्दों पर नागरिक समर्थन जुटाने के लिए सोशल मीडिया का भी उपयोग किया जा सकता है। इसमें किसी मामले पर जनता के विचार प्राप्त किए जा सकते हैं। निःसंदेह कुछ विचार अद्भुत हो सकते हैं।

इस प्रकार प्रजातंत्र में बहुमत चाहे जितना भी मजबूत हो, जनता के समक्ष उसे हार मानना ही पड़ता है। विपक्ष को चाहिए कि अपने दृष्टिकोण से सरकार को अवगत कराने के लिए वह जनता के बीच जाए, और समर्थन जुटाए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित डेरेक ओब्रायन के लेख पर आधरित। 12 मार्च, 2020