डिजीटल अर्थव्यवस्था को अपनाना होगा

Afeias
03 Apr 2019
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Date:03-04-19

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देश में रोजगार और बेरोजगारी को लेकर जो बहस छिड़ी हुई है, उसका मुख्य मद्दा सिर्फ आंकड़ों तक सीमित है। यह नहीं देखा जा रहा है कि किस प्रकार से रोजगार की प्रकृति में बदलाव आता जा रहा है। मार्च 2018 में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले ढाई दशक में लोगों का झुकाव शारीरिक श्रम के बजाय संज्ञानात्मक रोजगारों की ओर बढ़ा है। यही कारण है कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार पाने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है।

पूरे विश्व में चौथी औद्योगिक क्रांति को लेकर अटकलें और तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में भारत के लिए भी 4-5 करोड़ तकनीक-सक्षम कर्मचारी और लगभग 2 करोड़ रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की चुनौती है। डिजीटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते रुझान को अपनाकर ही भारत बेरोजगारी की समस्या से निपट सकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी विकास-यात्रा पर एक नजर

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले तीन दशकों में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विस्तार हुआ है। इससे निर्यात भी बढ़ा और रोजगार के अवसर भी।

  • 1980 में देश तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था की ओर प्रवृत्त हुआ था। 1990 में कम्प्यूटर और सॉफ्टवेयर क्षेत्र में कुछ अधिक प्रगति हुई। सर्वप्रथम बैंकिंग क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने लगा।
  • हार्डवेयर उद्योग भले ही थोड़ा पीछे रह गया हो, परन्तु सॉफ्टवेयर उद्योग लगातार आगे बढ़ता गया। भारत ने व्यापक पैमाने पर आउटसोर्सिंग शुरू कर दी थी। नए-नए उद्यमियों के आने से आईटी क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित होने लगे। इस क्षेत्र में मिलने वाले वैश्विक अवसरों से भारत के तकनीकी विशेषज्ञों को बहुत लाभ मिला। बढ़ती मांग को देखते हुए इस क्षेत्र में अनेक नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुले। इस उद्योग ने नए तकनीकी स्नातकों को अच्छे अवसर भी दिए। यह सिलसिला लगभग दो दशकों तक चलता रहा।
  • दुनिया भर में आने वाले तकनीकी परिवर्तनों, ऑटोमेशन और संरक्षणवाद ने पिछले कुछ वर्षां में, इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की गति को सुस्त कर दिया है। 2013-14 के 01 लाख रोजगार की तुलना में 2017-18 में मात्र 1.05 लाख नए रोजगार ही जुड़ पाए हैं। इन स्थितियों ने भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग को अपने मॉडल में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया है।
  • क्लाउड कंप्यूटिंग, डाटा एनालिटिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स कुछ इस प्रकार की नई तकनीकें हैं, जिनमें रोजगार और धन के लाभ की अपार संभावनाएं हैं। एक सरकारी अध्ययन के अनुसार भारत की डिजीटल अर्थव्यवस्था के 2025 तक एक खरब डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है, जो वर्तमान में 20 अरब डॉलर है।

सूचना प्रौद्योगिकी का भविष्य

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों का भविष्य उज्जवल है। इसके लिए दो स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।

  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए स्कूली शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन लाने होंगे। दूसरे स्तर पर विश्वविद्यालयों को ऐसे तैयार करना होगा कि वे विद्यार्थियों को रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम प्रदान कर सकें।
  • कौशल विकास में गति और विस्तार लाना होगा। नए युग में हमें शिक्षा और प्रशिक्षण को नए ढंग से गठित करना होगा। डिजीटल रुपांतरण से देश का लगभग हर क्षेत्र प्रभावित होगा। जब 1990 में बैंकों में सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाया गया था, तब बैंकिंग संवाददाताओं का उदय हुआ था। कृषि क्षेत्र में मृदा स्वास्थ्य, बुवाई, तथा फसलों के चुनाव के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की सहायता की जरूरत पड़ेगी। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी डायग्नॉस्टिक, टेलीमेडिसिन आदि में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विशेषज्ञों की जरूरत होगी।इसके लिए कुशल कर्मचारी लगेंगे।

अद्यतन, उन्नयन और विस्तार

रोजगार को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अनेक स्टार्ट अप बाजार में आ रहे हैं। निवेश को आकर्षित करने में अमेरिका और चीन के बाद भारत का तीसरा स्थान है। कई स्टार्ट अप ने ‘गिग इकॉनॉमी’ को भी बढ़ावा दिया है, जिसमें अनुबंध आधारित या पार्ट-टाइम या ऑनलाइन रोजगार के अवसर हैं।

रोजगार के क्षेत्र में लगातार इस बात पर नजर रखने की आवश्यकता है कि क्षेत्र के अनुसार रोजगार की उपलब्धता और अर्थव्यवस्था में उस क्षेत्र का प्रदर्शन कैसा है। विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार पर अपडेट और कौशल विकास की गति को देखने की भी आवश्यकता होगी। इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

व्यवस्थित रूप से कदम बढ़ाए जाने पर भारत के अपार संभावनाओं के द्वारा खुलने से कोई रोक नहीं सकता। भारत का भविष्य उज्जवल सिद्ध हो सकता है।

द इकॉनॉमिक टाइम्समें प्रकाशित हेमा रामकृष्णन् के लेख पर आधारित। 14 मार्च, 2019