ग्रामीण ऋण में सुधार के कदम
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ऋण संकट के मूल कारणों में से एक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का अभाव है। आर्थिक वृद्धि का लाभ भी पर्याप्त रूप से रोजगार सृजन में नहीं दिखा है, खासतौर पर गैर-कृषि क्षेत्रों में। ऋण की आसान पहुंच और चौबीस घंटे डिलिवरी सेवाओं के प्रसार से ग्रामीण क्षेत्रों में खपत की स्थिति बढ़़ी है। लोगों को गैर-जरूरी वस्तुओं और सेवाओं के वास्ते ऋण लेने के लिए लुभाया जा रहा है, जिससे वे और अधिक कर्ज के जंजाल में फंस रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के परिवार, रोजमर्रा की अपनी जरूरतों के लिए भी ऋण की राशि पर निर्भर हो रहे हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आय के स्रोत अनिश्चित हैं और यह मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यह अप्रत्याशित मॉनसून, जिंसों की उतार-चढ़ाव वाली कीमतों और बढ़ती इनपुट लागत से भी प्रभावित होती है। कुछ एनबीएफसी इस अंतर का फायदा उठा रहे हैं और रोजमर्रा की खपत के लिए ऋण अधिक ब्याज दरों पर देते हैं। इसमें ऋणों का रॉलओवर चक्र एक अहम हिस्सा है।
इसका सबसे बड़ा संस्थागत उदाहरण फसल ऋण है। सरकार हर वर्ष, किसानों को फसल ऋण का वितरण करने के लिए बैंकों के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करती है। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बैंकों पर दबाव होता है, जिसके कारण अक्सर ऋणों का वितरण तेजी से यह सुनिश्चित किए बिना ही कर दिया जाता है कि इनका उपयोग उत्पादक तरीके से किया जाएगा या नहीं। इस ऋण का इस्तेमाल उत्पादक कृषि निवेश के लिए किए जाने के बजाय तत्काल जरूरतों को पूरा करने या पुराने ऋण का भुगतान करने के लिए किया जाता है, इससे ग्रामीण ऋण संकट गहरा जाता है।
अब यह प्रथा सामान्य एनबीएफसी के साथ-साथ माइक्रोफाइनेंस से जुड़े लोगों तक फैल गई है। वे ऋण का रॉलओवर कर रहे हैं, जिससे उधारकर्ताओं को और अधिक कर्ज में धकेला जा रहा है।
ग्लोबल डेवलपमेंट इन्क्यूबेटर (जीडीआई) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की आमदनी का प्राथमिक स्रोत खेती है। लेकिन इनमें से अधिकांश लोग बेहतर मौके पाने के लिए खेती छोड़ने के लिए तैयार हैं।
देश के ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ते ऋण के संकट को लेकर कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और इसके लिए विचार करने के लिए कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देना जरूरी है।
- रोजगार सृजन – उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋण पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए रोजगार के टिकाऊ अवसर तैयार करने की आवश्यकता है।
- ऋण उपयोगिता – ऋण वितरण के बड़े लक्ष्य तय करने के बजाय सरकार और वित्तीय संस्थानों को यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए कि ऋणों का इस्तेमाल विशेषतौर पर कृषि में बेहद उत्पादक तरीके से किया जाए।
- ब्याज दरों का नियमन – आरबीआई को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एनबीएफसी और बैंक, किफायती ब्याज दरों पर ऋण की पेशकश करें।
- जागरूकता और वित्तीय साक्षरता – ग्रामीण ऋणकर्ताओं को अधिक ऋण लेने के नतीजे और वित्तीय योजना की अहमियत के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।
अगर इन मसलों का हल व्यापक तरीके से नहीं किया जाता है तो ग्रामीण क्षेत्र की ऋण वृद्धि जारी रह सकती है और इसके नकारात्मक दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के इस संकट के समाधान पर विचार करने की आवश्यकता है।
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