क्या भारत से पलायन कर चुकी वैज्ञानिक प्रतिभा की वापसी संभव है ?
Date:12-02-18 To Download Click Here.
अपनी आर्थिक मजबूती के अनुपालन में भारत अनुसंधान पर बहुत ही कम खर्च करता है। 2015 के आर्थिक आंकडे़ के अनुसार भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.5 % ही शोध एवं अनुसंधान पर व्यय किया। जबकि चीन और अमेरिका ने क्रमशः 1 % एवं 2.5 % व्यय किया है।
वर्तमान में लगभग एक लाख पी.एच.डी. किए लोग ऐसे हैं, जो भारत में जन्में जरुर हैं, परंतु विदेशों में रह रहे हैं। भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था को देखते हुए ये प्रवासी प्रतिभाएं वापस अपने देश लौटने की इच्छुक हैं। इसके लिए कुछ प्रयास करने की आवश्यकता है।
- ईज ऑफ डुईंग बिजनेस की तर्ज पर सरकार को ईज ऑफ डुईंग साइंस जैसे अभियान चलाने की आवश्यकता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण में शोध और विकास पर होने वाले खर्च को दोगुना करने की जरूरत पर बल दिया गया है।
- सरकार की ओर से रामानुजम फेलोशिप तथा ब्रिज इंस्पायर जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। स्वदेश वापसी पर वैज्ञानिकों को शोध के लिए पर्याप्त राशि और माहौल दिया जा रहा है। इसके चलते 2012-17 के बीच विदेशों में बसे भारतीय मूल के 649 वैज्ञानिक स्वदेश लौटे परंतु यह संख्या विदेश जाने वाले वैज्ञानिकों की तुलना में बहुत कम है। सरकार के प्रयास अभी पर्याप्त नहीं हैं। जीनोमिक्स, ऊर्जा भंडारण, कृषि और गणित जैसे क्षेत्रों में भी सुविधाएं देने के लिए मिशन चलाए जाने की जरूरत है।
- अमेरिका और चीन जैसे विकसित देशों की तरह विज्ञान और तकनीक पर फोकस किया जाना चाहिए। इसके बजट को दोगुना करने और निजी क्षेत्रों से धन जुटाने की जरूरत होगी।
- भारत में धर्म की आड़ में होने वाले प्रगति-विरोध को दूर करके, विज्ञान के क्षेत्र में खुली बहस का माहौल निर्मित करने की आवश्यकता है।
- भारत को विज्ञान के क्षेत्र में खगोल विज्ञान जैसे अपने सशक्त पक्ष को आधार बनाकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नीति को अपनाना होगा। इसके लिए भारत प्रयासरत भी है।
यह पहला मौका है, जब आर्थिक सर्वेक्षण में पहली बार विज्ञान एवं तकनीक की देश में स्थिति पर एक अलग अध्याय जोड़ा गया है। पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रकाशित होने वाले रिसर्च और पेटेंट में भारत का दबदबा बढ़ा भी है। भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा पेटेंट फाइलिंग ऑफिस है। परंतु प्रति व्यक्ति पेटेंट के मामले में हम अभी भी काफी पीछे हैं। शोध और विकास कार्यों का बजट भी पहले के मुकाबले बढ़ा है। फिर भी 2016-17 के जीडीपी के मुकाबले यह मात्र 0.7 फीसदी है। उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में और भी प्रगति होगी, जो पलायन कर चुकी हमारी वैज्ञानिक प्रतिभा की वापसी में सहायक बनेगी।
समाचार-पत्रों पर आधारित।