‘कुशल भारत’ (स्किल इंडिया) कार्यक्रम में सुधार की आवश्यकता

Afeias
27 Apr 2018
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Date:27-04-18

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भारत में युवा जनसंख्या सर्वाधिक है। यह देश का एक अत्यन्त सकारात्मक पहलू है। इस जनसंख्या का लाभांश प्राप्त करने के लिए हमें युवा पीढ़ी की उत्पादकता का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के मार्ग ढूंढने होंगे। 2016 में इस हेतु सरकार ने शारदा प्रसाद समिति बनाई थी। इस समिति का काम इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स व इंडस्ट्रीज द्वारा प्रवर्तित क्षेत्रीय कौशल परिषदों का औचित्य स्थापन करना था।

शारदा प्रसाद समिति ने व्यावसायिक शिक्षण एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में अनेक सुधारों की सिफारिश की थी। इन सिफारिशों पर जल्द से जल्द एक्शन लिया जाना देश के हित में होगा।

भारत में कौशल विकास की दृष्टि से दो तथ्य महत्वपूर्ण हैं।  एक तो यह कि नियोक्ता की अपेक्षा के अनुरूप कौशल पर्याप्त हो, और दूसरा, कर्मचारियों (युवा व वृद्ध) को एक सम्मानित आजीविका कमाने लायक बनाना। समिति की रिपोर्ट में खास बात यह है कि इसमें व्यावसायिक शिक्षा को पिछड़े व वंचित तबके तक ही सीमित न रखकर, प्रत्येक वर्ग के युवाओं के लिए आवश्यक माना गया है। समिति की अन्य सिफारिशों में अन्य कई महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं –

  • समिति ने नौंवी कक्षा के बाद से ही विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा दिए जाने पर जोर दिया है। चाहे इसके लिए अलग व्यावसायिक स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बनाए जाएं, जो इस क्षेत्र में डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करें।

चीन में नौ साल की अनिवार्य स्कूली शिक्षा के पश्चात् आधे विद्यार्थी तो व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में चले जाते हैं।

भारत में एक तरह का ‘डिप्लोमा रोग’ फैला हुआ है, जिसका शिकार बनकर युवा बेरोजगार हो जाता है। छोटे-मोटे    आई टी आई और निजी व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों से कोई बात नहीं बनेगी। इसके लिए खुद नियोक्ताओं को ही आगे आना होगा।

  • व्यावसायिक पाठ्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप डिजाइन किया जाना चाहिए। हमारे पास अभी 450 कोर्स हैं, जबकि जर्मनी के पास 350 कोर्स हैं। लेकिन वे व्यवसाय के अंतरराष्ट्रीय स्टैण्डर्ड क्लासीफिकेशन के अनुरूप हैं।

हमारे यहाँ पढ़ने, लिखने और गणित पर अधिक जोर दिए जाने की आवश्यकता है। इन आधारभूत कौशल के बगैर तेजी से बदलते विश्व में पैर जमाना मुश्किल है।

  • हमारे देश में पाँच वर्षों में आई टी आई की संख्या 2000 से 11000 तक पहुँच गई है। इस क्षेत्र में नियमन का अभाव है। यही कारण है कि ये आई टी आई उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान नहीं कर पा रहे हैं।

समिति ने सुझाव दिया है कि सेक्टर स्किल कांऊसिल (SSCs) की संख्या को नेशनल इंडस्ट्रियल एक्टिविटी क्लासिफिकेशन के अनुरूप रखा जाना चाहिए। इससे इनकी गुणवत्ता में सुधार होगा। हमारी अर्थव्यवस्था में ऐसी आर्थिक गतिविधियों की संख्या 21 है, जबकि यही ऑस्ट्रेलिया में मात्र 6 है।

‘कुशल भारत’ कार्यक्रम को कैसे सफल बनाया जाए?

व्यावसायिक शिक्षा प्रशिक्षण की सफलता के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि इसके सभी पाँच स्तम्भ आपस में तालमेल बनाकर काम करें।

फिलहाल भारत के संगठित क्षेत्र की केवल 36 प्रतिशत कंपनियां ही प्रशिक्षुओं को लेती हैं। शारदा प्रसाद समिति ने इसमें बढ़ोत्तरी करने के लिए सुझाव दिया है कि प्रशिक्षुओं को भर्ती करने और कौशल विकास करवाने की इच्छुक कंपनियों को इसकी प्रतिपूर्ति दी जाए। इस प्रकार संगठित क्षेत्र में 100 प्रतिशत कुशल कर्मचारी होंगे।

सरकार को चाहिए कि निजी क्षेत्र में अपेक्षित कौशल के संबंध में डाटा एकत्र करे। प्रत्येक पाँच वर्ष में राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित कुशलता और उसकी पूर्ति के बीच की दूरी पर सर्वेक्षण कराया जाए।

नेशनल स्किल डेवलपमेंट कार्पोरेशन (NSDC) और नेशनल स्किल क्वालीफिकेशन फ्रेमवर्क (NSQF) जिस प्रकार और गति से कार्य कर रहे हैं, उसके हिसाब से हम विश्व के कौशल विकास का केन्द्र नहीं बन सकते। हमें अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित संतोष मेहरोत्रा  और आशुतोष प्रताप के लेख पर आधारित।