कार्यबल में महिलाएं 

Afeias
12 Apr 2019
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Date:12-04-19

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अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार अवैतनिक घरेलू कामों के प्रति पूर्वाग्रह के कारण हमारे देश में लैंगिक असमानता को ठीक करना अत्यंत दुष्कर सिद्ध हो रहा है। इससे जुड़े कुछ तथ्य इस प्रकार हैं –

  • श्रम संगठन की 2017 की नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 70 प्रतिशत महिलाएं घर से बाहर काम के लिए जाना चाहती हैं। 2018 का अध्ययन बताता है कि मात्र 45 प्रतिशत महिलाएं ही रोजगार प्राप्त कर सकी हैं। ये आंकड़े उनकी इच्छा और वास्तविकता के अंतर को सिद्ध करते हैं।
  • मार्च में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार घरेलू कामकाज के प्रति भारतीय समाज में चला आ रहा पक्षपात ही महिलाओं के लिए रोजगार प्राप्ति की राह में सबसे बड़़ा अवरोध है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कामकाजी उम्र की 21.5 प्रतिशत महिलाएं घर में देखभाल जैसे अवैतनिक काम में लगी हुई हैं। जबकि ऐसे पुरूषों की संख्या मात्र 1.5 प्रतिशत ही है।
  • महिलाओं को मातृत्व जैसे जीवन-सोपानों से गुजरना पड़ता है। 0-5 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की देखभाल के कारण वे रोजगार नहीं ले पाती हैं। श्रम संगठन के अनुसार अधिकांश देशों में महिलाओं के मातृत्व काल से जुड़ी आशंका के चलते पुरूषों को रोजगार देना पसंद किया जाता है। इतना ही नहीं, पुरूषों को वेतन-वृद्धि और प्रोन्नति भी ज्यादा दी जाती है। रिपोर्ट बताती है कि छोटे बच्चों वाली माताओं में से मात्र 25 प्रतिशत को ही मैनेजर स्तर का पद प्राप्त है। जबकि पुरूषों में यह अनुपात 75 प्रतिशत है। तो क्या महिलाओं के लिए यह मातृत्व का दंड है?
  • महिलाओं को रोजगार प्राप्त करने में शिक्षा भी आड़े आती है। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार माध्यमिक व उच्च-माध्यमिक स्तर की शिक्षा के पंजीकरण में लैंगिक अनुपात ठीक बताया गया है। लेकिन शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार से वंचित जनसंख्या का अनुपात देखने पर महिलाओं का प्रतिशत 69 है। विकासशील देशों में जहाँ महिलाओं को रोजगार प्राप्त भी है, तो वे अधिकतर असंगठित क्षेत्रों में ही काम कर रही हैं।
  • यदि डिग्रीधारक वयस्कों में देखें, तो 17.2 प्रतिशत पुरूषों की तुलना में 41.5 प्रतिशत महिलाएं बेरोजगार हैं। जो महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा आगे निकली हुई हैं, वे अधिक योग्य हैं। पूरे विश्व में मैनेजर स्तर पर काम करने वाले लोगों में से 44 प्रतिशत महिलाएं पुरूषों की तुलना में उच्च डिग्री प्राप्त किए हुए हैं।

रोजगार के क्षेत्र में ऐसे अनुपात के संतुलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। महिलाओं के कार्यबल पर ध्यान दिया जाना चाहिए। महिलाओं को कार्यबल में अधिक-से-अधिक शामिल करके पुरूषों के वैतनिक काम के घंटों को कम किया जा सकता है। इससे लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति होगी, और नारी सशक्तिकरण भी होगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित गरीमेला सुब्रह्मण्यम के लेख पर आधारित। 26 मार्च, 2019