आर.बी.आई. की मुश्किलें

Afeias
19 Jun 2020
A+ A-

Date:19-06-20

To Download Click Here.

रिजर्व बैंक भारत का ऐसा केन्द्रीय बैंक है , जो सरकार की आर्थिक नीतियों में बराबर की भूमिका निभाता है। उसे अन्य बैंकों के नियमन संबंधी अधिकार दिए गए हैं। हाल ही में महामारी के चलते व्यापारियों और उद्यमियों को होने वाले नुकसान के कारण उसने बैंकों को छूट दी है कि वे अगस्त 2020 के अंत तक सावधि ऋण पर पुनर्भुगतान को स्थगित कर दे। हालांकि आरबीआई ने इस मोहलत के दौरान ऋण के बकाया हिस्से पर ब्याज वसूलने को कहा है। इसी बीच बैंक से ऋण लेने वाले एक ग्राहक ने उच्चतम न्यायालय से अपील की है कि वह आर .बी.आई. को आदेश दे कि वह बैंकों से मोहलत की अवधि के दौरान ब्याज माफ करने के लिए कहे , क्योंकि इस बीच उनकी कोई आय नहीं थी।

सवाल उठता है कि अगर बैंक ब्याज की रकम को माफ कर दें, तो इसका भार कौन वहन करेगा ?

बैंक तो बचतकर्त्ता और उधारकर्त्ता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। वे जो ब्याज इकट्ठा करते हैं , उससे अपनी लागत और कुछ लाभ को कवर करने के लिए एक मार्जिन रखते हैं। ब्याज माफ करने से होने वाले नुकसान को वे अपने मुनाफे में समायाजित नहीं कर सकते।

तो क्या बचतकर्त्ताओं पर इसका भार डाल दिया जाना चाहिए ?

ऐसा नहीं किया जा सकता , क्योंकि अधिकांश बचतकर्त्ता पेंशनर जैसे छोटे मध्य वर्ग के लोग होते हैं। कुछ लोगों की आय का स्रोत ही जमा पैसे पर मिलने वाला ब्याज होता है। अगर आरबीआई ब्याज माफी का आदेश देता है , तो बचतकर्त्ताओं को मिलने वाले ब्याज में आई कमी से घबराकर वे अपनी जमा पूंजी बैंक से निकालकर असंगठित बाजार में लगाने लगेंगे , और शारदा चिट फंड जैसा कोई नया घोटाला सामने आ सकता है।

दूसरे , अगर छोटे जमाकर्त्ताओं ने अपनी धनराशि बैंकों से निकाल ली , तो चाहे छोटे स्तर पर ही सही , परन्तु  बैंकों के लिए निधि का स्रोत बने इन जमाकर्ताओं से वंचित होकर बैंक और कमजोर हो जाएंगे।

तीसरे , बैंक व्यावसायिक संस्थान होते हैं। इनके निर्णय उदारता पर नहीं , बल्कि व्यावसायिक जोड़-तोड़ के आधार पर लिए जाते हैं। समय-समय पर बैंकों को अपनी ब्याज दरों में कटौती या बढ़ोत्तरी करनी पड़ती है। यह केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से ही किया जाता है। इसके अलावा वे अपने शेयरहोल्डर्स के प्रति एक प्रकार का उत्तरदायित्व  रखते हैं। अत: वे एक पक्ष का साथ देकर दूसरे पक्ष को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं ?

बैकिंग रेग्यूलेशन एक्ट के अंतर्गत आरबीआई को नियामक-शक्ति मिलती है। बैंकों को ब्याज-माफी का आदेश देकर वह अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन नहीं कर सकता।

ब्याज में छूट देना , बैंकों के दायरे से परे है। यह स्पष्ट‍ रूप से सरकार के अधिकार क्षेत्र में उसकी वितरण नीति का एक मुद्दा हो सकता है। सरकार ने कृषि ऋण की माफी का बोझ स्वयं ही उठाया था। इस मामले में भी रियायतों का बोझ सरकार को उठाना चाहिए। सरकार इस बोझ को कैसे वहन करेगी , यह राजनीतिक अर्थव्यावस्था का जटिल मुद्दा है। सरकारी संसाधन कर और उधार से आते हैं। अत : यह वर्तमान और भविष्य के करदाताओं पर निर्भर है। क्या आज के हितधारकों के एक समूह को वर्तमान और भविष्य के करदाताओं की लागत पर छूट दिया जाना उचित है ?

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में  प्रकाशित डी. सुब्बाराव के लेख पर आधारित। 11 जून , 2020