आधारभूत परिवर्तन का दौर
Date:30-08-17
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भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल के तीन वर्षों में एक बात साफ उभरकर सामने आ चुकी है कि परिवर्तन इस सरकार का मूलमंत्र है। परन्तु ये परिवर्तन मात्र दिखावटी हैं या इनमें प्रतिमान विस्थापन की क्षमता है, यह बात देखने वाली है। समय के साथ इस सरकार की एक बात स्पष्ट होती जा रही है कि चाहे इसके द्वारा लाए गए परिवर्तन धरातल के स्तर पर बदलाव ला सकें या नहीं, परन्तु एक बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि ये वैचारिक स्तर पर परिवर्तन लाने वाले अवश्य हैं।
बी.जे.पी की पूर्व सरकारों ने भी नेहरूवादी विचारधारा पर काम किया था। परन्तु वर्तमान में स्थिति कुछ भिन्न है। नेहरूवादी विचारधारा का स्थान हिन्दुत्व के एक नए रूप ने ले लिया है। नए हिन्दुत्व की विचारधारा का प्रभाव भारत की घरेलू और विदेश नीतियों, विवाद-निराकरण और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
आधारभूत परिवर्तन की प्रकृति
- अभी तक उदारवादी वामपंथी तथा नेहरूवादी विचारधारा का अनुकरण करने वाले लोग सामाजिक-राजनैतिक अनुक्रम का पारंपरिक रूप से उपभोग करते चले आ रहे थे। यह वर्ग लगातार राज्य का संरक्षण प्राप्त किए हुए था और सारी जनता की भी आस्था इसके प्रति समर्पित थी। परन्तु अब मामला उलट गया है। हिन्दुत्व की विचारधारा उफान पर है और बहुत से पारम्परिक उदारवादी वामपंथियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोना शुरू कर दिया है।
- हमारे देश में अल्पसंख्यकों की भूमिका में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण न करने की नीति से यह सिद्ध होता है कि अल्पसंख्यकों को सामान्य नागरिकों की तरह ही रहना होगा। अन्यथा उन्हें द्वितीय श्रेणी नागरिकों की तरह देखा जाएगा।
- इस नई हिन्दुत्व विचारधारा में घरेलू विवादों का समाधान जिस प्रकार वाक्पटुता और सैनिक नीतियों से करना शुरू किया गया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि यह मेल-मिलाप के संवेदनशील राजनैतिक दांवपेंचों से परे, राष्ट्र-निर्माण के लिए आक्रामक तरीके अपनाने से भी परहेज नहीं करेगी।
- इस विचारधारा का प्रभाव प्रधानमंत्री की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों में भी देखा जा सकता है। अपनी क्षमता और शक्ति का दिखावा, इस नए हिन्दुत्व की दीर्घस्थायी प्रकृति है। उसकी हर व्यवस्था में यह अधिक बढ़ती ही दिखाई देती है। चीन एवं पाकिस्तान के प्रति इसका दृष्टिकोण ही इसका प्रमाण है।
- विचारधारा में आ रहे मौलिक परिवर्तन का प्रभाव सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन पर बहुत अधिक पड़ा है। यह ऐसा प्रभाव है, जो हमें असामान्य लगता है या शायद यह हमारे लिए नया है। परन्तु अपनी तरह के हिन्दू-धर्म रक्षकों द्वारा किसी मुसलमान की हत्या का जो प्रभाव हम पर पड़ रहा है, वह प्रभाव अपने आसपास फैली गरीबी और हमारी शर्मनाक जाति-व्यवस्था को देखकर क्यों नहीं पड़ता? ऐसा लगता है कि हम इसके आदी हो चुके हैं। हमने इसे ऐसे ही अपना लिया है। इसलिए यह गलत नहीं लगता।
- कांग्रेस की उत्तराधिकारी सरकारों और यहाँ तक कि बाजपेयी सरकार ने भी हमारी उच्च शिक्षा एवं बुद्धिजीवी वर्ग पर चले आ रहे उदारवादी वामपंथी विचारधारा के प्रभाव का शमन करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए, बल्कि वे उनके सहयोजक बने रहे। परन्तु वर्तमान सरकार ने इससे प्रतिरोध दिखाना प्रारम्भ कर दिया है।
- मोदी सरकार की कश्मीर नीति में भी आधारभूत परिवर्तन की झलक मिलती है। पूर्व सरकारों ने कश्मीरियों को राजनैतिक सुलह के माध्यम से शांत रखने की कोशिश की थी। परन्तु वर्तमान सरकार ने कश्मीर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी के माध्यम से उन सब पर शिकंजा कसने की शुरूआत कर दी है, जो वहाँ आतंकवाद को पनपाने की जड़ बने हुए हैं। जबकि पहले की सरकारों ने इनका तुष्टिकरण किया है।
आधारभूत परिवर्तन के साथ ही उथल-पुथल, उलझन, असमंजस और असहजता के दौर स्वाभाविक रूप से आते हैं और आज हमें उसके प्रमाण मिल रहे हैं। चूंकि इन परिवर्तनों की प्रकृति धु्रवीकरण से संबंद्ध है, अतः इन सबके बीच वैचारिक मतभेद, क्षेत्रीय भिन्नता एवं छिटपुट झड़प होना वांछनीय सा है। अगर हमारे पारम्परिक विचारधारा के समर्थक इन परिवर्तनों को अवशोषित करके इनके अनुगामी बन जाएं, तो इन परिवर्तनों का प्रभाव कई गुना सकारात्मक हो सकेगा।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित हैप्पीमोन जैकब के लेख पर आधारित।