अर्थव्यवस्था का चक्र
हाल ही में रुचिर शर्मा की एक पुस्तक आई है, ‘‘दी राईस एंड फॉल ऑफ़ नेशन्स” उसमें “दि सर्किल ऑफ लाइफ” चैप्टर है। इसमें यह बताया गया है कि पिछली शताब्दी में किस प्रकार पहले तो राजनेताओं ने बड़ी सफलतायें एवं लोकप्रियता हासिल की। किन्तु बाद में वे ही लोग बुरी तरह से असफल एवं अलोकप्रिय हुए। हांलाकि चीन के देंग शायो पिंग जैसे नेता इसके अपवाद भी रहे। लेकिन अधिकांशतः जैसे; ब्राजील के लूला, रूस के पुतिन, तुर्की के एर्दोगन तथा भारत की यूपीए की सरकार ने सन् 2000 के आसपास आशातीत आर्थिक वृद्धि दर हासिल की। लेकिन एक दशक बाद ही इनका बुरी तरह से पतन हो गया।
इस संबंध में रुचिर शर्मा कहते हैं कि हर सफलता में असफलता के बीज मौजूद होते हैं। इंडोनेशिया के वित्त मंत्री चातिब बासरी इसको इन शब्दों में बयां करते हैं, ‘‘बुरा समय अच्छी नीतियां बनाता है और अच्छा समय बुरी नीतियां।’’
अर्थव्यवस्था कभी भी स्थिर नहीं रह सकती। नीतियां लगातार बनानी ही पड़ती हैं। चूंकि बुरे समय से उबरना जरूरी होता है, इसलिए उस समय नीतियां, बहुत सोच-समझकर बनाई जाती हैं। इसके फलस्वरूप नीतियां अच्छी बन जाती हैं।
भारत में यह आर्थिक चक्र
- प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के समाजवादी विचारों को शुरू में तो सफलता मिली, किन्तु सन् 1958 तक विदेशी मुद्रा का भयानक संकट आ गया। हांलाकि इस समय आर्थिक नीतियों में मूलभूत परिवर्तन हो सकते थे, किन्तु एड इंडिया कन्सोर्टियम ने उन्हें उबार लिया।
- इसके बावजूद श्रीमती इंदिरा गांधी ने समाजवादी नीति को ही आगे बढ़ाया। संयोग से उन्हें विश्व बैंक के अध्यक्ष मैकनमारा से सस्ती दर पर धन मिल गया। फलस्वरूप परिवर्तन का यह अवसर भी हाथ से निकल गया।
- श्रीमती गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुरी तरह असफल हो गया था। सन् 1980 में तेल की कीमतों में वृद्धि तथा विश्व आर्थिक मंदी ने भारत को अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता मांगने को विवश किया। वस्तुतः यहीं से भारत के आर्थिक उदारीकरण की ओर बढ़ने की शुरूआत हो गई थी।
- इसके अच्छे परिणाम हुए, और भारत अब तक के5 प्रतिशत की वृद्धि दर से निकलकर नब्बे के दशक में 5.5 प्र्रतिशत तक पहुँच गया। लेकिन यह वृद्धि अच्छी आर्थिक नीतियों के कारण नहीं, बल्कि सरकार द्वारा किये गये खर्च तथा दिये गये ऋण में वृद्धि के कारण हुई थी।
- नब्बे के दशक की यह गति अंतिम दशक तक पहुँचते-पहुँचते रुक सी गई। तेल की कीमतों की वृद्धि ने भारत के विदेशी मुद्रा कोष को खाली कर दिया। इस प्रकार आर्थिक नीतियों में क्रांतिकारी परिवर्तन अब समय की आवश्यकता हो गई थी, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी.व्ही.नरसिंहाराव के नेतृत्व में घटित हुई। भारत में वैश्विकरण एवं आर्थिक उदारवाद की शुरूआत हो गई।
- मनमोहन सिंह की सरकार ने 21वीं सदी के शुरू में अच्छी आर्थिक वृद्धि प्राप्त की। किन्तु भ्रष्टाचार के मामलों ने उन्हें पुतिन तथा लूला की तरह नष्ट कर दिया।
- अब सवाल यह है कि क्या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आर्थिक जीवन के इस चक्र को तोड़ सकेंगे?
“दि इकोनॉमिक टाइम्स” में स्वामीनाथन एस.अंकलेसरिया अय्यर के ‘‘ब्रेकिंग दि सर्किल ऑफ लाइफ” शीर्षक से प्रकाशित लेख पर आधारित।