अमेरिका की अफगानिस्तान नीति और भारत

Afeias
08 Sep 2017
A+ A-

Date:08-09-17

 

To Download Click Here.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हाल में जारी की गई दक्षिण एशिया और अफगानिस्तान की नीति से अफगानिस्तान में स्थायित्व की संभावनाएं जगी हैं। अमेरिकी सरकार की इस नीति में भारत के लिए भी गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। गौरतलब है कि अफगानिस्तान में शांति के लिए पिछले 15 वर्षों से अमेरिका प्रयासरत है।अभी तक अफगानिस्तान की समस्या को सुलझाने के लिए अमेरिका ने तालिबान और उसके पोषक पाकिस्तान से बातचीत के जरिए रास्ता बनाने की कोशिश की थी। परन्तु ट्रंप सरकार ने पाकिस्तान के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए उसे आतंकवाद को पनाह न देने की स्पष्ट चेतावनी दे दी है।

अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति ऐसी नीति भारत के हित में है। इससे भारत की कश्मीर समस्या में कुछ कमी आएगी। साथ ही अमेरिका चाहता है कि भारत अफगानिस्तान में अपनी भूमिका; खासकर आर्थिक क्षेत्र में बढ़ाए। अमेरिका की ऐसी अभिच्छा अफगानिस्तान में भारत की पूर्व भूमिका से बिल्कुल उलट है। अभी तक अमेरिका यही सोचता था कि भारत और पाकिस्तान की आपसी दुश्मनी अफगानिस्तान समस्या का एक बहुत बड़ा कारण है।

बहरहाल, भारत को ट्रंप की नई नीति का लाभ उठाते हुए अफगान सरकार और वहाँ के लोगों के साथ द्विपक्षीय रिश्ते निभाने के लिए जो स्वतंत्र नीति अपनाई है, उसे जारी रखना चाहिए। अफगानिस्तान के प्रति तीन ठोस धरातल पर भारत अपनी सकारात्मकता जारी रख सकता है-

  • अफगानिस्तान के अनुरोध पर भारत उसे जो आर्थिक मदद दे रहा है, उसमें बढ़ोत्तरी कर दे। सड़क, बांध, बिजली से जुड़ी परियोजनाओं को जारी रखे।
  • सैन्य एवं पुलिस प्रशिक्षण मुहैया कराता रहे।
  • अफगानिस्तान के मामले में ट्रंप के भारत पर विश्वास जताने से पाकिस्तान को निश्चित रूप से बेचैनी होगी। वह चाहेगा कि अफगानिस्तान में अमेरिका का भारत के प्रति दृष्टिकोण पूर्ववत हो जाए। भारत को ऐसा संभव न होने देने के लिए कूटनीतिक स्तर पर तैयारी रखनी होगी।

भारत को संपूर्ण विश्व को एक बार फिर से याद दिलाना होगा कि वह आतंकवाद विरोधी वातावरण बनाने के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहा है।

ट्रंप सरकार की अफगान नीति दक्षिण-एशिया की राजनीति में नया मोड़ ला सकती है। परन्तु ट्रंप की कथनी और करनी की सत्यता को जांचने से पूर्व अफगानिस्तान के प्रति अपनी नीति में भारत को कोई ढील न देते हुए भविष्य के दांवपेंचों से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए।

    विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों पर आधारित।