व्यापारिक प्रतिष्ठानों को उत्तराधिकार का चयन सोच-समझकर करना चाहिए
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इंफोसिस के चेयरमैन एन आर नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी में नियम बनाया था कि उसके संस्थापकों और सह-संस्थापकों के बच्चे कंपनी में सक्रिय भूमिका नहीं लेंगे। ऐसा करने के पीछे उनका मंतव्य यही था कि इसके उत्तराधिकारियों में सभी प्रतिभा के बल पर पद प्राप्त करें। अक्सर यह देखा गया है कि उच्च पदों पर पारिवारिक सदस्यों के आने पर प्रतिबद्धता के स्तर में कमी आती है।
किसी भी संस्थान के उच्च पदों पर नियुक्ति के लिए प्रतिभा का कोई मुकाबला नहीं हो सकता। यहीं आकर चयन के सर्वश्रेष्ठ तरीके में एक स्वतंत्र बोर्ड की भूमिका मायने रखती है। इसके लिए ऐसे उम्मीदवारों का चयन होना चाहिए, जो कंपनी का हित साध सकें। ऐसे हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए, जो कंपनी के भले की सोच सकें। स्वतंत्र बोर्ड ऐसा हो, जो शेयरधारकों के प्रति प्रबंधन की जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रयत्न करे।
अगर स्वतंत्र बोर्ड परिवार के किसी योग्य सदस्य को भी पदासीन करता है, तो सदस्य को चाहिए कि वह अन्य कर्मचारियों का सम्मान प्राप्त करने के लिए अपनी दक्षता सिद्ध करे। भारत की बहुत सी कंपनियों ने पारिवारिक सदस्यों को उच्च पदों पर बैठाकर भी श्रेष्ठता हासिल की है।
व्यवसायों के लिए उत्तराधिकार का विवेकपूर्ण नियोजन जरूरी है। कंपनी की प्रगति इसी पर निर्भर करती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 दिसंबर, 2022