विश्व व्यापार संगठन की अनेक चुनौतियां
Date:08-01-21 To Download Click Here.
विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसी वैश्विक संस्था है, जो देशों के बीच में व्यापार के नियमों को नियंत्रित करती है। इसका काम वस्तु एवं सेवा प्रदाताओं, उत्पादकों, निर्यातकों और आयातकों को अपने व्यापार को सुगमता से चलाने में मदद करना है। हाल ही में इसके महानिदेशक पद पर एक महिला की नियुक्ति हुई है। संगठन के 164 सदस्यों के बीच के भिन्न हितों में संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। साथ ही प्रतिस्पर्धी देशों के बहुराष्ट्रीय और राष्ट्रवादी विचारों के बीच सामंजस्य रखना भी महत्वपूर्ण होगा।
कुछ वर्षों से सुस्त पड़े विश्व व्यापार संगठन में तत्काल प्रभाव से सुधार की आवश्यकता है। लेकिन हो सकता है कि ये सुधार भारत जैसे विकासशील देशों के लिए भारी पड़ जाएं। विश्व व्यापार संगठन के मूल में दोहा एजेंडा है, जिसमें विकसित देशों ने ई-कॉमर्स, निवेश सुविधा, सूक्ष्म-लघु और मझोले उद्यमों और लिंग संबंधी मामलों को शामिल करने की मंशा प्रकट की है। अनेक विकासशील देशों के लिए विकास आधारित एजेंडा महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके लिए व्यापार, विकास के उत्प्रेरक की तरह काम करता है। संगठन के विवाद निपटान तंत्र को बहाल करने की आवश्यकता है। खासतौर पर इसके अपीलीय निकाय का पुनरूद्धार संगठन के कुशल कामकाज के लिए भी महत्वपूर्ण है।
विकसित देश, विकासशील देशों की परिभाषा में बदलाव करना चाहते हैं। जो देश अभी तक स्पेशल एण्ड डिफरेन्शियल ट्रीटमेंट के अंतर्गत आते हैं, ( इनमें भारत भी है ), उन्हें इस बदलाव से बहुत अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
भारत की स्थिति पर प्रभाव –
यह धारणा कि 1995 में इसके गठन के बाद से कुछ देशों को संगठन के नियमों से अत्यधिक लाभ हुआ है, कम से कम भारत के मामले में दोषपूर्ण है। भले ही विकास को मापने पर विचारों की सहमति हो या न हो, भारत एक विकासशील देश ही रहेगा। विकसित देशों के इस पैरामीटर से निकलने के लिए भारत के पास दो रास्ते हैं। वह या तो लंबी अवधि के लिए अपने लिए बातचीत करे या विकास सूचकांकों के आधार पर स्वीकार्य फॉर्मूले की राह पर चले।
संगठन में चल रहे वार्तालाप में सबसे महत्वपूर्ण मत्स्य पालन पर दी जाने वाली सब्सिडी है। इस मामले में भारत न्यूनतम पर मामला तय करने की पहल कर सकता है। इससे पारंपरिक और कारीगर किसानों के लिए स्थायी संरक्षण की मांग भी की जा सकती है। विकसित देशों के प्रस्तावित नियमों को अगर लागू कर दिया जाएगा, तो अंतरराष्ट्रीय जल में मत्स्य संसाधनों का दोहन होने से विकासशील देशों को हानि होगी।
कोविड का प्रभाव –
महामारी से जन्मी स्थिति के बीच संगठन की महानिदेशक आपूर्ति श्रृंखला के स्वतंत्र और मुक्त रहने को सुनिश्चित कर सकती है। इससे वैक्सीन के निर्यात-आयात प्रतिबंधों को समाप्त करके एक आदर्श सामंजस्यपूर्ण वितरण तंत्र बनाया जा सकता है।
इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे विश्व की मानवता की मदद करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है, जो संगठन के देशों के लिए उदाहरण का काम करती है। इससे बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत वैश्विक प्रयास के स्वैच्छिक सहयोग की भी रक्षा हो सकेगी।
वर्तमान में, संगठन के लिए सबसे महत्वपूर्ण एक विश्वास का वातावरण तैयार करना है, जिसमें सदस्य देश उचित नियमों का पालन इस प्रकार से करें, जो सभी राष्ट्रों का हित कर सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित दामू रवि के लेख पर आधारित। 17 दिसम्बर, 2020