विरासत को संजोयें

Afeias
09 Aug 2021
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Date:09-08-21

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विश्व की सभ्यताओं में भारत की सभ्यता का एक अलग स्थान रहा है। यह धार्मिक और जातीय रूप से इतनी विविधता लिए हुए है कि विश्व की अनेक संस्कृतियां इसकी ओर आकर्षित होती रही हैं। भारत की गहन विरासत और संस्कृति की रक्षा के लिए सरकार की ओर से जो प्रयत्न किए जाने चाहिए, उनमें कमी दिखाई देती है।

हाल ही में हुए मंत्रिपरिषद् के विस्तार को देखें, तो पता चलता है कि संस्कृति मंत्रालय के लिए पूरा समय देने वाला कोई मंत्री नहीं है। इससे पूर्व की सरकारों ने भी ऐसा ही रवैया अपनाया था। इतना ही नहीं, संस्कृति मंत्रालय को पर्याप्त निधि नहीं मिलती है। जो मिलती है, उसका पूरा उपयोग नहीं किया जाता। यह मंत्रालय ऐसे नौकरशाहों से भरा पड़ा है, जिनका संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं होता। विदेशों में स्थापित इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन्स की हालत बहुत खराब है। देश की अनेक प्रमुख अकादमियों के मुख्य पद रिक्त पड़े हुए है।

विदेशों में संस्कृति की रक्षा हेतु प्रयास –

चीन ने केवल बीजिंग में 150 आर्ट गैलरी स्थापित की हैं। इसके अलावा एक जिला ही पूरा कला को समर्पित कर दिया है।

सिंगापुर, थाईलैण्ड और फिलीपींस ने कला संग्रहालयों के निर्माण पर अथाह राशि खर्च की है। हांगकांग ने अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा हेतु अरबों रुपए लगाए हैं। यूएई ने भी कला संग्रहालयों और कार्यक्रमों के लिए काफी धन लगाया है।

कला एवं संस्कृति की रक्षा के प्रयास क्यों आवश्यक हैं ?

  1. जब संस्कृति में संस्थागत रूप से निवेश नहीं किया जाता है, तो एक प्रकार की सांस्कृतिक उदासीनता घर कर जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि हम लोकप्रिय व क्लासिकल संस्कृति के बीच संतुलन बनाकर नहीं चल पाते।
  1. सांस्कृतिक सक्रियता की कमी से लोग अपनी संस्कृति का जब पर्याप्त ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो वे आसानी से सांस्कृतिक उग्रवाद की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जो अनुचित होता है। यह बहिष्करण की दृष्टि से जुड़ा हुआ है, जिसके प्रतिकूल राजनीतिक परिणाम होते हैं।

ऐसे में संस्कृति एक नारा बन जाती है। यही आज कश्मीर की प्रकृति की अक्षम्य क्षति कर रहा है। नाट्यशास्त्र, अजंता और मुगलों के शिल्पकारों की भूमि में जर्जर कला सभागार, उपेक्षित संग्रहालय, ढहते स्मारक धब्बे की तरह हैं। भारत की भूमि को इस ओढ़ी हुई सांस्कृतिक दरिद्रता से बाहर निकलने की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पवन के वर्मा के लेख पर आधारित। 17 जुलाई, 2021