विनिर्माण क्षेत्र की समस्याओं पर एक नजर
Date:29-09-21 To Download Click Here.
यदि हम वैश्विक परिदृश्य में देखें, तो भारत इस समय तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इस दृष्टि से उसका लक्ष्य प्रतिवर्ष स्थायी रूप से 9-10% की सकल घरेलु उत्पाद वृद्धि दर प्राप्त करना है। अतः यह आवश्यक है कि विनिर्माण क्षेत्र लंबे अरसे तक 13 से 14 प्रतिशत की दर से विकास करे। पिछले दो वर्षों से विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 15 से 16% है। यह कोरिया, मलेशिया और थाइलैण्ड जैसे अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। चीन की तो 34% की हिस्सेदारी है। इस स्थिति को देखते हुए नई नीति में अगले दस साल के लिए विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भारत को इस क्षेत्र की अपनी कमियों को दूर करने की आवश्यकता होगी ।
- विनिर्माण के क्षेत्र में आने वाली पहली समस्या भूमि की है। किसी भूमि पर विनिर्माण से संबंधित उद्योग के लिए अग्रिम भुगतान किया जाता है। परंतु पता चलता है कि वह भूमि विवाद में फंसी हुई है। इसमें कई वर्षों के नुकसान के साथ परियोजना की गणना गडबड़ा जाती है। अतः भूमि अधिग्रहण को फुलप्रूफ होना चाहिए।
- दूसरी कमी श्रम प्रबंधन के क्षेत्र में है। श्रम के लिए न्यूनतम मानक ऐसे तय किए जाएं, जो स्वीकार्य हों।
- मशीनरी और तैयार उत्पादों के आयात और निर्यात को सुविधाजनक बनाया जाना चाहिए। वैश्विक विनिर्माण के लिए सीमापार माल की आसान आवाजाही की आवश्यकता होती है। मशीनरी व उत्पादों के घटकों के आयात प्रतिस्थापन से बात नहीं बन सकती।
- कराधान और अनुपालन का बोझ कम किया जाना चाहिए। अनुपालन के बोझ से काम की गति धीमी हो जाती है।
- वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए कारखानों तक परिवहन तंत्र का उत्कृष्ट ढांचा तैयार किया जाना चाहिए।
‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए भारत को विनिर्माण का केंद्र बनना होगा। यह ऐसा क्षेत्र है, जो रोजगार के अवसरों में वृद्धि के साथ-साथ देश को मजबूत करता है, और स्थायित्व लाता है। इसके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
विभिन्न स्रोतों पर आधारित।