वर्तमान चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका
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हाल ही के चुनावों में हमने सोशल मीडिया का जबरदस्त प्रभाव देखा है। ऐसा शायद पहली बार हुआ है, जब सोशल मीडिया ने अपनी एकतरफा दक्षिणपंथी बयानबाजी से इतर भी वैकल्पिक दृष्टिकोण के लिए रास्ते बनाए हैं। इस प्रक्रिया में उसने एक प्रकार से सरकारी शिकंजे से अपने को मुक्त रखा है।
सोशल मीडिया पर अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से फैलाने वालों को एल्गोरिदम के माध्यम से बढ़त मिलती रही। ज्ञातव्य हो कि यूट्यूब और फेसबुक पर एक ऐसा एल्गोरिदम फीचर है, जो सामग्री की लोकप्रियता के बढ़ने के साथ ही उसे उपयोगकर्ताओं तक पहुँचाने का प्रयास करता है। गत चुनावों में यही विशेषता प्रभावी साबित हुई है। इसी के चलते जनता को (खासकर युवाओं) विभिन्न राजनैतिक दृष्टिकोणों को जानने-समझने का मौका मिल सका है।
दूसरी ओर नौकरियों की कमी से निराश शिक्षित युवाओं पर सोशल मीडिया पर चल रहे विभिन्न राजनीतिक विचारों का खूब प्रभाव पड़ा है, और वे भाजपा से दूर हो गए हैं। यह परिणामों में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
बहुत बुनियादी स्तर पर यह एक सकारात्मक विकास है। लोकतंत्र में विचारों की विविधता और राजनीतिक विचारों की सक्रिय प्रतिस्पर्धा महत्वपूर्ण है। सोशल मीडिया का यह ट्रेंड भारत में उभर रहे लोकतांत्रिक पुनर्जीवन का सूचक भी कहा जा रहा है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 मई, 2024