वर्षा से उपजी अनियमितताओं के लिए कौन जिम्मेदार
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इस माह उत्तर भारत में दो दिन हुई भारी बारिश का कारण मानसूनी हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ का संगम था। इस प्रकार की परस्पर क्रिया के कारण 2013 में उत्तराखंड में भयंकर बाढ़ आई थी। इस बार यह हिमाचल से लेकर दिल्ली तक विनाश करती गई है। इस प्रकार की बारिश का कारण जलवायु परिवर्तन है। लेकिन बारिश से होने वाली परेशानियों के चक्र में फंसे नागरिकों को नगर निकाय कब तक धोखा देते रहेंगे। केवल दो क्षेत्रों पर विचार करें, जो दिखाते हैं कि नई जलवायु चुनौतियों से मजबूती से लड़ना तो दूर, स्थानीय सरकारों ने 20वीं सदी के बुनियादी कार्यों को भी पूरा नहीं किया है।
1). सभी विशेषज्ञों की सलाह और कई आपदाओं के बावजूद, हिमालयी राज्यों में मैदानी इलाकों के विकास मॉडल को दोहराया जाना जारी है। मौसम से जुड़ी गंभीर चेतावनियों के बाद भी हिल स्टेशनों को पर्यटकों से भर जाने दिया जाता है।
2). बारिश के लिए समय पर नालों से गाद निकालने में नगर निगमों की देरी की परंपरा अभी भी चल रही है। आधुनिक शहरों की नालियों को निर्माण के मलबे और अन्य कचरे से भर दिया जाता है। जबकि इन्हें साल भर अच्छी स्थिति में रखा जाना चाहिए। इससे भी बुरी बात यह है कि 7,933 शहरी बस्तियों में से 65% के पास कोई मास्टर प्लान तक नहीं है। अधिकांश शहरी कार्य असंयमित और अलग-अलग उद्देश्यों को लेकर चलते रहते हैं।
देश के सबसे अमीर नगर निगम को फंडिंग देने के बावजूद मुंबई में हर साल बड़े पैमाने पर जलभराव होता है। इससे पता चलता है कि बुनियादी ढांचे की कमी को ठीक करने की मुख्य चुनौती धन की कमी नहीं बल्कि उसका दुरूपयोग है। क्या इस दुरूपयोग के लिए कभी किसी को दंडित किया जाएगा?
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जुलाई, 2023