वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की ओर
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2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन की भारत की घोषणा, एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। 2030 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की 50% आवश्यकताओं को पूरा करने के नए मॉडल का नेतृत्व करने वाला भारत, अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक खाका प्रदान करता है। भारत के इस महत्वकांक्षी लक्ष्य से संबंधित कुछ तथ्य-
- तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के नाते, विश्व में भारत का वार्षिक कार्बन उत्सर्जन तीसरे नंबर पर सबसे अधिक है। हालांकि प्रति व्यक्ति की दृष्टि से यह नीचे है। भारत के विशाल आकार और विकास की विशाल गुंजाइश का मतलब है कि आने वाले दशकों में इसकी ऊर्जा मांग किसी अन्य देश की तुलना में अधिक होने की पूरी संभावना है।
- यही कारण है कि सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा को स्थापित करने के साथ ही इसकी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने और एक अरब टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड को कम करने का लक्ष्य रखा है।
- भारत में सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
- भारत में नवीकरणीय बिजली किसी भी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्था की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। 2026 तक इसकी क्षमता में दोगुनी वृद्धि हो जाएगी।
- आधुनिक जैव ऊर्जा के बड़े उत्पादकों में से भारत एक है, और इसके उपयोग को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं।
- अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में इथेनॉल के क्षेत्र में भारत चीन और कनाडा से आगे निकलकर, अमेरिका और ब्राजील के बाद इसका सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा।
रास्ते की चुनौतियां –
- कमोडिटी मूल्य में तीव्र वृद्धि ने ऊर्जा को कम किफायती बना दिया है।
- भारत में बहुत से उपभोक्ताओं को अभी भी पर्याप्त विद्युत आपूर्ति नहीं मिल पाती है।
- खाना पकाने के लिए पारंपरिक ईंधन पर निरंतर निर्भरता से कई लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है।
- बिजली वितरण कंपनियों की आर्थिक स्थिति खराब है, जो ऊर्जा क्षेत्र के परिवर्तन में एक बाधा है।
फिर भी, अक्षय (रिन्यूएबल) बैटरी और ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी है। इनके साथ ही अन्य निम्न कार्बन उपयोग वाली प्रौद्योगिकी में 2030 तक भारत एक बड़ा बाजार बन सकता है। एक अनुमान के अनुसार आज से 2030 के बीच भारत की ऊर्जा अर्थव्यवस्था में औसतन प्रतिवर्ष 160 अरब डॉलर निवेश की आवश्यकता होगी। यह वर्तमान के निवेश स्तर का तीन गुना है। इसलिए कम लागत वाली लंबी अवधि की पूंजी तक पहुंच बनाना ही नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की कुंजी हो सकती है।
इसके अलावा, भारत आसानी से 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन की मांग पैदा कर सकता है, जिसे रिफाइनरियों और उर्वरक क्षेत्र में ग्रे हाइड्रोजन से स्थानांतरित किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप 28 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। यह सन् आगे 2050 तक 400 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएगा। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी पृथ्वी के लिए परिवर्तनकारी हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित फातीह बिशेल और अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 10 जनवरी, 2022