उत्तराखंड क्यों जल रहा है
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पिछले पांच वर्षों में नवंबर से जून तक उत्तराखंड में जंगल की आग का खतरा लगातार बढता जा रहा है। यहां तक कि सर्दियों में आग लगने की घटनाओं में कई गुना वृद्धि हुई है।
इसके पीछे के कारणों पर कुछ बिंदु –
- पेड़ों की कमी – एक समय पर उत्तराखंड के भूक्षेत्र का 50% से अधिक हिस्सा वन था। विकास के नाम पर वन क्षेत्र के बड़े हिस्से की बलि दी गई है। इनमें से अधिकांश की योजना या डिजाइन विवेकपूर्ण ढंग से नहीं बनाए गए हैं। यह तथ्य भी सबको पता है कि वनों की कटाई आग के खतरे को बढ़ाती है। खंडित वन-क्षेत्र से भी यह खतरा बढ़ता है। पेड़ों की संख्या और जमीन पर उगने वाली वनस्पतियों में कमी से जंगल सूख जाते हैं। इसके कारण जंगलों में आग लगती है। आग से क्षतिग्रस्त वन कमजोर हो जाते हैं, और इस प्रकार वनों का नाश होता जाता है।
यद्यपि सरकारी प्रयास से जंगल की आग पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन बेतहाशा गर्मी और मौसम की परम घटनाओं को काबू में नहीं किया जा सकता। उसकी हानि जनता को ही उठानी पड़ती है।
- प्रभाव स्पष्ट है – इससे जीवन की हानि, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि, वन क्षेत्र का सिकुड़ना, आवास का नुकसान और जैव विविधता के विलोप जैसी स्थानीयता आती है। जो धुआं फैलता है, वह बहुत बड़े क्षेत्र में लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। पर्यटन को बड़ा झटका लगने से राज्य की अर्थव्यवस्था और उसके संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 07 मई, 2024
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