
उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास
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भारत ने हाल ही में चावल की दो जीनोम-संवर्धित किस्में जारी की हैं और यह कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। साइट डायरेक्टेड न्यूक्लिएज 1 (एसडीएन 1) जीनोम परिवर्तन तकनीक की मदद से विकसित डीआरआर धान 100 (कमला) और अपनी मूल किस्मों क्रमशः सांबा मंसूरी (बीपीटी 5204) और कॉटनडोरा (सन्नालू एमटीयू – 1010) की तुलना में बेहतर परिणामों का दावा करती है।
धान की नई किस्मों के लाभ –
- ये किस्में 30% अधिक पैदावार का लाभ देंगी।
- इन किस्मों से फसलें 15-20 दिन पहले तैयार हो जाएंगी, जिससे फसलों को जल्दी बदला जा सकेगा। इससे भूमि की दक्षता का अच्छा उपयोग संभव हो सकेगा।
- हरियाणा व पंजाब जहाँ धान की खेती के कारण भूजल की विकट स्थिति है, वहाँ ये किस्में पानी की कम जरूरत व उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता की चुनौती को हल कर सकती हैं।
- पूर्वी उत्तरप्रदेश, तटीय पश्चिम बंगाल और ओडिशा तथा महाराष्ट्र के वे हिस्से, जहाँ धान की खेती मिट्टी और जलवायु के चुनौतीपूर्ण हालात के कारण कम है, वहाँ इन किस्मों से अच्छी फसल पैदा की जा सकती है, क्योंकि ये सूखे से सुरक्षित किस्में है तथा मिट्टी की खराब स्थिति में बची रह सकती हैं।
- इन किस्मों में बाहरी डीएनए शामिल नहीं किया गया है। इसके कारण नैतिक तथा नियामकीय बाधाएँ भी कम होंगी।
- वर्ष 2022 में सरकार ने जीएम मस्टर्ड हाइब्रिड, डीएमएच 11 को मंजूरी दी थी। यह सरकार का एक सकारात्मक तथा ऐतिहासिक कदम था। समुचित नियमन और वैज्ञानिक पारदर्शिता के साथ जीएम फसलें उत्पादकता बढ़ा सकती हैं। इनमें जैविक दबाव को लेकर प्रतिरोध तथा इनपुट लागत कम हो सकती है।
आगे की राह –
- सरकारी खरीद वाली एजेंसियों को इन किस्मों को चिह्नित कर सरकारी खरीद तथा वितरण प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।
- किसानों को प्रशिक्षित करने तथा खेत के स्तर पर इनके प्रयोग के स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करके जैव सुरक्षा चिंताओं को दूर किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति तैयार करे।
- जैव प्रौद्योगिकी का पूर्ण लाभ लेने के लिए कृषि शोध एवं विकास में निवेश बढ़ाना चाहिए।
- जैव प्रौद्योगिकी संस्थाओं के लिए संस्थागत सहायता बढ़ानी चाहिए।
- जलवायु के प्रति टिकाऊपन को खाद्य सुरक्षा नीतियों में शामिल करना चाहिए।