उपहार कर की सीमा का विस्तार किया जाना चाहिए
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हमारे देश में पश्चिम के विपरीत परिवार की अवधारणा अधिक विस्तृत है। कोई दूर का चचेरा भाई/बहन या मानी हुई बहन भी परिवार में उतने ही शामिल माने जाते हैं, जितने कि सगे रिश्तेदार। इस विस्तार को देखते हुए उपहारों की कर-मुक्त सीमा बहुत संकीर्ण है। विवाह में दिए जाने वाले उपहार को ही केवल कर-मुक्त रखा गया है, जो उपयुक्त तो है, परंतु पर्याप्त नहीं है। कुछ बिंदु –
- भारत में उपहार पर लगाए जाने वाले कर को इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि इसका दुरूपयोग न हो सके।
- फिर भी हमारी विस्तृत पारिवारिक परिभाषा में यह फिट नहीं बैठती है, और खून के रिश्तों से परे संबंधों को उपहार देने से रोकती है।
- जबकि हमारे देश में कोई भी व्यक्ति अपने खून के रिश्ते से अलग किसी को भी कानूनी उत्तराधिकारी बना सकता है। इस पर किसी प्रकार का कर नहीं लगता है, तो वह अपने जीते जी ऐसे किसी प्रिय व्यक्ति को उपहार देने का अधिकारी क्यों नहीं है? उसे अपने जीवनकाल में ही इस दान का सुख मिलना चाहिए।
- उपहार कर की शुरूआत उन देशों में हुई थी, जहाँ उत्तराधिकार दिए जाने पर कर लगा करता था।
- भारत के कंपनी एक्ट में परिवार की परिभाषा को विस्तृत किया जाना चाहिए। भले ही दाता को किसी तीन नामों को चुनने की अनुमति दे दी जाए। इसमें बोर्ड मेम्बर्स भी कोई गलत लाभ नहीं ले सकते हैं। कॉपोरेट व्यवस्था में अगर निदेशक अपने निकट परिवार से परे भी किसी का नाम लाभार्थी के रूप में डालना चाहेंगे, तो कंपनी पर अच्छा प्रभाव ही पड़ेगा।
- यह व्यवस्था धन के फैलाव को प्रोत्साहित करती है।
अगर संस्थाओं के लिए उपहार-कर से बचने का प्रावधान दिया जा सकता है, तो पारिवारिक संदर्भ में भी इसे दिया जा सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 अप्रैल, 2023