ट्रिप्स छूट की वास्तविकता

Afeias
25 May 2021
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Date:25-05-21

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“महामारी से बचाव कैसे हो” लेख में हमने अमेरिकी सरकार द्वारा ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ इंटेलैक्च्युल प्रापर्टी या ट्रिप्स समझौते के अंतर्गत कोविड वैक्सीन के लिए अस्थायी छूट प्रदान करने का उल्लेख किया था। ज्ञातव्य हो कि अक्टूबर 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने ट्रिप्स समझौते की कुछ धाराओं में पहले ही छूट की मांग की थी, जिससे कोविड-19 से सुरक्षा व उपचार में आसानी हो सके। इस दिशा में अमेरिका की यह पहल सराहनीय कही जा सकती है, और उम्मीद की जा सकती है कि कनाडा, यूरोपीय यूनियन भी इसका अनुसरण करेंगे।

कठिन डगर

1990 के दशक में अफ्रीका में एड्स के संकट के बाद, विश्व व्यापार संगठन ने 2003 में निर्णय लिया था कि विनिर्माण क्षमता में कमी वाले देशों में दवाओं की पहुँच में वृद्धि करने के लिए ट्रिप्स के अनुच्छेद 31 में निहित एक बाध्य लाइसेंस को दवा-निर्माण की क्षमता से जूझ रहे देश को निर्यात करने की छूट दे दी गई थी। इस छूट में केवल जरूरतमंद देश की मांग के अनुसार ही दवा-निर्माण की अनुमति दी गई है। आयातक देश को अपनी मांग विश्व व्यापार संगठन के समक्ष रखनी पड़ती थी। पिछले 17 वर्षों में शायद ही किसी देश ने इस छूट का लाभ उठाया हो।

भले ही ऊपरी तौर पर अमेरिका ने छूट की घोषणा कर दी है, पंरतु वह अपने फार्मा उद्योग के हितों को दांव पर नहीं लगाएगा। अमेरिका ने वैसे भी केवल वैक्सीन के बौद्धिक संपदा अधिकारों में छूट को स्पष्ट किया है। अन्य उपचार सामग्री पर उसने पहले ही चुप्पी साधकर अपने हितों को प्राथमिकता दी है।

मुख्य बाधाएं कैसे दूर हों ?

वैक्सीन पर दी गई छूट से केवल उसके निर्माण को गति मिल सकती है, परंतु इसकी तकनीकी जानकारी पर पहुँच नहीं बन सकती। बौद्धिक संपदा अधिकारों में मिली छूट के अंतर्गत किसी दवा-निर्माता कंपनी को उसकी तकनीक साझा करने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। अब यह जरूरतमंद देशों की सरकारों पर निर्भर करता है कि वे दवा-निर्माता कंपनियों से कानूनी, नीतिगत या वित्तीय दांव पेंचों के द्वारा तकनीक निकलवा पाती है या नहीं।

अंत में, ट्रिप्स छूट से देशों को विश्व व्यापार संगठन के दायित्वों से मदद जरूर मिलेगी, लेकिन यह घरेलू बौद्धिक संपदा विनियमों की प्रकृति को नहीं बदलेगा। इसलिए, देशों को अपने घेरलू कानूनी ढांचे में उपयुक्त बदलाव की दिशा में काम करना शुरू करना चाहिए, और ट्रिप्स की छूट को लागू करना चाहिए। भारत सरकार को भी तुरंत ही इस दिशा में कदम उठाने चाहिए। ट्रिप्स छूट की उपयोगिता के बावजूद यह कोई जादू की छड़ी नहीं है। यह तभी अच्छी तरह से काम करेगा, जब देश एक साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, उत्पादन की कमी और अन्य सामग्री की अनुपलब्धता जैसी गैर बौद्धिक संपदा श्रेणी की अड़चनों को संबोधित करेंगे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित प्रभास रंजन के लेख पर आधारित। 10 मई, 2021

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